काकोरिकांड में गोविन्द बल्लभ पन्त जी की भूमिका
पं० गोविन्द बल्लभपन्त ने सरकार को खूब आड़े हाथों लिया । बहुत देर तक प्रश्नोत्तर होते रहे । किन्तु बेहया सरकारर टस से मस नहीं हुई । अब सारा खेल खतम हो चुका था ।
अपीलें की जा चुकी थी, कौंसिल में प्रश्न छेड़े जा चुके थे । गवर्नर से दया-प्रार्थना की जा चुकी थी, वायसराय से भी सजा घटाने की प्रार्थना की जा चुकी थी, सम्राट के पास भी प्रार्थना पत्र भेजे जा चुके थे, जो उपाय शक्ति के अन्दर थे, वे सब किये जा चुके थे ।
किन्तु सभी जगह केवल शून्य ही हाथ आया । 19 दिसम्बर को अभियुक्तों को फांसी पर लटका देना निश्चय हो गया । प्रान्त भर में बड़ी बेचैनी पैदा हो गई । 17 दिसम्बर को प्रान्तीय कौंसिल में पं. गोविन्दबल्लभ पन्त ने इस मामले को फिर उठाया । उन्होंने प्रेसीडेण्ट से प्रार्थना की कि सब काम बन्द करके इस मामले पर विचार किया जाये ।
पहिले प्रसिडेण्ट महाशय इस प्रार्थना को अस्वीकार किये देते थे, किन्तु तीन बजे के करीब जब मेम्बरों ने उन से फिर प्रार्थना की, तब वे राजी हुए, किन्तु उस दिन तीन बजे के कुछ बाद ही सरकारी काम समाप्त हो जाने पर डिप्टी प्रसिडेण्ट ने, जो उस समय प्रसिडेण्ट का काम कर रहे थे, कौंसिल की बैठक सोमवार तक लिए स्थगित कर दी ।
सोमवार को सबेरे ही फांसी का समय था । इस लिए मेम्बरों में बड़ी खलबली मच गई । उन्होंने होम मेम्बर नवाब साहब छतारी तक के दरे-दौलत की ख़ाक छानी, किन्तु कोई सुनवाई न हुई और प्रान्तीय कौंसिल में, एक शब्द कहने का मौक़ा दिये बिना ही प्रान्त के चार होनकार नवयुवक फांसी के तख्ते पर टांग दिये गये !