Author Topic: उत्तराखण्ड के वीर सेनानी- Brave soldier of Uttarakhand  (Read 40328 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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MAHAVIR CHAKRA :Sepoy Dewan Singh
  Born                     - 14 July 1923 Village- Purdam,Pithoragarh
  Father                  - Sh Udai Singh
  Enrolled                - 14 July 1943
  Award date           - 3 November 1947
  Religion                 - Hindu
During November 1947 at Srinagar in Kashmir, during an action at Badgam, against  the  Tribesmen   Sepoy Dewan  Singh was No 1 Bren Gunner his Section.
The Tribesmen were advancing in an over-whelming majority and his Platoon position was being swept away by enemy Light Machine Gun fire. The odds were such that the platoon commander was ordered to withdraw his Platoon from the position.  The enemy by now had reached very near. On seeing this Sepoy Dewan Singh picked up his Bren gun and commenced firing from his hip with great accuracy and speed and was himself responsible for accounting at least 15 casualties on the enemy thereby repulsing the enemy advance and allowing the other personnel of his Platoon to withdraw.

While thus firing at the enemy, he was severely wounded on the shoulder but this was not sufficient to make this Sepoy leave his position. The enemy now finding that the remainder of the Platoon had withdrawn and that this was lonely Bren gun firing being manned by one man, started concentrating on his post. But Sepoy Dewan Singh would not leave his Bren gun  till he himself got a burst of Bren gun on his chest and died.
This sepoy with complete disregard for his own life and through his example of determined and heroic offensive action undoubtedly saved not only his Section but the whole of the remaining Platoon personnel from being completely overrun. His courage, gallantry and devotion to duty is an example to other soldiers. For this heroic action, Sepoy Dewan Singh was awarded MAHAVIR CHAKRA.


(Source : http://indianarmy.nic.in/Site/p)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रथम विश्व युद्ध के नायक को किया याद

चम्बा: प्रथम विश्व युद्ध के शहीद सेनानायक बीसी गब्बर सिंह की 98वीं पुण्य तिथि पर उन्हें गढ़वाल राइफल के जवानों ने सलामी दी। चम्बा स्थित स्मारक पर लैंसडौन से आए द्वितीय गढ़वाल राइफल के जवानों ने पुष्पचक्र चढ़ाकर शहीद को सैनिक सम्मान दिया।

 रविवार सुबह 8.15 बजे चम्बा चौराहे में शहीद के स्मारक पर जवानों ने पुष्पचक्र चढ़ाकर उन्हें सलामी दी। इस अवसर पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने भी सेनानायक रहे बीसी गब्बर को याद किया। सूबेदार राजवीर सिंह के नेतृत्व में लैंसडौन से आई द्वितीय गढ़वाल रायफल के नायक पुरूषोत्तम सिंह, रायफल मैन अर्जुन सिंह आदि जवानों ने शहीद को श्रद्धाजंलि दी। विदित हो कि चम्बा के नजदीकी मंज्यूड़ गांव निवासी बीसी गब्बर सिंह 19 अक्टूबर 1912 को द्वितीय गढ़वाल रायफल में भर्ती हुए थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब ब्रिटिश सेना जर्मन सेना के सामने टिक नहीं पा रही थी तो ब्रिटिश सेना ने द्वितीय गढ़वाल रायफल की मदद ली। ब्रिटिश सेना की ओर से गब्बर सिंह के नेतृत्व में गढ़वाल रायफल के जवानों ने जर्मन सेना के दांत खट्टे कर दिए। इस दौरान रायफल मैन गब्बर सिंह ने जर्मन सेना के कई किलों को ध्वस्त किया। इसमें भारी संख्या में जर्मन सैनिक मारे गए, बचे हुए 350 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। इस तरह 10 मार्च 1915 को गढ़वाल रायफल ने न्यू चैपल लैंड पर कब्जा किया। इस युद्ध में अप्रितम शौर्य व पराक्रम दिखाते हुए बीसी गब्बर सिंह वीर गति को प्राप्त हो गए। उन्हें मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस सम्मान दिया गया। तब से उनकी पुण्यतिथि व जन्मतिथि के मौके पर नगर क्षेत्र चम्बा स्थित उनके स्मारक पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन कर उन्हें याद किया जाता है। इस मौके पर नगर पंचायत अध्यक्ष सूरज राणा, सैनिक प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष इंद्र सिंह नेगी, शहीद के भतीजा पूर्व सैनिक कमल सिंह नेगी, वीरेन्द्र सिंह, कुंदन सिंह रावत, बलवंत सिंह पुंडीर आदि पूर्व सैनिक व वरिष्ठ नागरिक मौजूद रहे।
(source dainik jagran)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand is a land of Brave Soldiers .

चमोली के मेजर मोहन चंद्र को शौर्य पदक

उत्तराखंड के चमोली जनपद के रहने वाले मेजर मोहन चंद्र को अदम्य साहस के लिए शौर्य पदक से सम्मानित किया है।कश्मीर में तैनात मेजर मोहन का परिवार गढ़ी कैंट में रहता है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से बीते शनिवार को सम्मानित होने के बाद मेजर मोहन गढ़ी सैन्य छावनी में पहुंचे हैं।

जनपद चमोली के ग्र्राम बजवाड़, कुलसारी निवासी मेजर मोहन चंद्र फिलहाल जम्मू कश्मीर में तैनात हैं। उनकी पत्नी और बच्चे गढ़ी कैंट में सैन्य आवासीय परिसर में रहते हैं। 4 कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर मोहन ने 8 नवंबर 2012 को कुपवाड़ा सेक्टर में आतंकवादियों की घुसपैठ की एक बड़ी कोशिश नाकाम की। इस मुठभेड़ में पांच आतंकवादी मारे गए। वर्ष 2010 में उन्हें सेना मेडल भी मिल चुका है।

मेजर मोहन चंद्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कुलसारी में ही पूरी की। इसके बाद इंटर राजकीय इंटर कॉलेज श्रीनगर से किया। श्रीनगर से ही स्नातक की पढ़ाई करने के बाद 2008 में सेना में कमीशन हुए। मेजर मोहन के फील्ड पोस्टिंग पर होने से उनकी पत्नी राशी और दो बेटे हैं अंकुर और अर्णव गढ़ी कैंट में सैन्य आवासीय परिसर में रहते हैं।

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कश्मीरः बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए दी जान - Salute this Brave Solider

नैनीताल के बेतालघाट ब्लाक के चंद्रकोट गांव निवासी और 20 कुमाऊं रेजीमेंट के नायक खेम चंद्र ने श्रीनगर में बाढ़ में फंसे लोगों को बचाते वक्त अपनी जान न्योछावर कर दी।

सैनिक की मौत की खबर मिलने के बाद से उसके परिवार में कोहराम मचा हुआ है। मां, बाप और पत्नी समेत अन्य परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। रविवार को सैनिक के पार्थिव शरीर को यहां लाए जाने की उम्मीद है।

चंद्रकोट गांव निवासी खेम चंद्र (38) पुत्र लीलाधर डौर्बी श्रीनगर में तैनात थे। वह 20 कुमाऊं रेजीमेंट में 5 आरआर में नायक थे। जानकारी के मुताबिक खेम चंद्र अपने साथियों के साथ श्रीनगर में आई बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के अभियान में जुटे थे। 7 सितंबर को उनकी नाव पलट गई।

नाव में सवार सात जवानों में से पांच को तो ही बचा लिया गया, जबकि खेमचंद्र और उनके एक साथी का कहीं पता नहीं चला। शनिवार सुबह श्रीनगर में सेना को खेम चंद्र के बाढ़ में डूबने की जानकारी मिली।

इसके बाद सेना की ओर से फोन पर चंद्रकोट गांव स्थित उनके पिता को दुर्घटना की जानकारी दी गई। बेटे की मौत की खबर मिलते ही पिता, मां, पत्नी और भाई समेत परिजनों में कोहराम मच गया।

घटना की सूचना पर बेतालघाट में व्यवसाय करने वाला उनका भाई रंजन गांव से अपने माता-पिता को बेतालघाट ले आया है। सैनिक की पत्नी प्रेमा देवी (30) अपने दो बच्चों साक्षी (6) एवं आदित्य (3) के साथ अपने मायके रामनगर में रहती है, उसे उसे भी बेतालघाट लाया गया है।
पति की मौत की खबर मिलने के बाद से प्रेमा देवी बदहवास है। घटना की खबर मिलने के बाद से दिवंगत सैनिक के बेतालघाट स्थित घर में लोगों का तांता लगा हुआ है। परिजनों के मुताबिक कुमाऊं रेजीमेंट के अधिकारियों ने उन्हें बताया है कि सैनिक का पार्थिव शरीर दिल्ली से बेतालघाट लाया जाएगा।

परिजनों के मुताबिक दिवंगत सैनिक का छोटा भाई नीरज भी कुमाऊं रेजीमेंट में जम्मू में तैनात है। नीरज ही खेम चंद्र के पार्थिव शरीर को लेकर गांव आ रहा है।

छोटे भाई को थी बाढ़ में लापता होने की खबर
दिवंगत सैनिक खेम चंद्र के छोटे भाई रंजन और सेना में तैनात नीरज को बड़े भाई के श्रीनगर की बाढ़ में लापता होने की खबर पहले ही मिल चुकी थी, लेकिन उन्होंने माता-पिता को इसकी जानकारी नहीं दी थी।

उन्हें उम्मीद थी कि उनका भाई कहीं न कहीं सकुशल मिल जाएगा। इन दोनों भाइयों ने ही सेना के अधिकारियों से भी घर पर कुछ न बताने को कहा था। ग्रामीणों के मुताबिक सैनिक खेम चंद्र दिसंबर में सेना से रिटायरमेंट लेने के मूड में थे। वह बेहद मिलनसार और खुशमिजाज भी थे। (amar ujala)

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कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते लालकुआं का लाल शहीद

दक्षिण कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ जारी अभियान के दौरान सेना और पुलिस की संयुक्त टीम ने वीरवार को कुपवाड़ा जिले के वन क्षेत्र सोच्यालयारी (हंदवाड़ा) में चार आतंकियों को मार गिराया। यहीं आतंकियों से लोहा लेते हुए बिंदुखत्ता (लालकुआं-हल्द्वानी) निवासी और 9 पैरा कमांडो में तैनात मोहननाथ शहीद हो गए।

शहीद का पर्थिव शरीर शनिवार को उसके घर पहुंचने की उम्मीद है। सैनिक मोहननाथ की शहादत की खबर से क्षेत्र में शोक की लहर है। शहीद की एक बेटी भी है। बुधवार से मोहन का फोन स्विच ऑफ होने से उनकी पत्नी भावना परेशान है।

आतंकियों से मुठभेड़ में तीन जवान घायल भी हुए हैं। सैन्य प्रवक्ता के मुताबिक घायल जवानों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

मुठभेड़ स्थल से जवानों को एके राइफलें, दो यूबीजीएल, ग्रेनेड सहित भारी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद बरामद हुआ है। मारे गए आतंकियों की शिनाख्त नहीं हो पाई थी।

मोहननाथ आतंक‌ियों से मुठभेड़ में शहीद होने वाले दो द‌िन में दूसरे जवान हैं। बुधवार को भी बारामुला जिले के राफियाबाद इलाके में आतंकियों से मुठभेड़ में चंद्रबनी (देहरादून) निवासी लांसनायक शिशिर मल्ल शहीद हो गए थे। शहीद का शव देर शाम हवाई रास्ते से देहरादून लाया गया जहां पर उसे मिलिट्री हास्पिटल में रखा गया है।

शुक्रवार सुबह सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा। शिशिर मल्ल की दो साल पहले ही शादी हुई थी। उनके पिता भी सेना से रिटायर हैं और शहीद का छोटा भाई भी गोरखा राइफल में तैनात है। (amar ujala)

 

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