Charu Tiwari
January 10 at 10:58pm ·
'लोक का चितेरा' नाम से स्व. श्री चन्द्रसिंह राही जी की पचास वर्षो की गीत यात्रा पर शीघ्र प्रकाशित होने वाले अभिनन्दन ग्रंथ के संपादकीय का एक अंश-
-----लोक विधाओं पर बहुत सारे लोगों ने काम किया है। आकाशवाणी के जिन कार्यक्रमों का जिक्र किया गया है उनमें लोक के मर्मज्ञ केशव अनुरागी का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने लोक की अभिव्यक्ति का जो व्यापक मंच तैयार किया उसकी नींव पर हमारे गीत-संगीत की बहुत सारी प्रतिभाओं ने अपना रचना-संसार खड़ा किया। आदि कवि गुमानी, मौलाराम, गौर्दा, गोपीदास, कृष्ण पांडे, सत्यशरण रतूड़ी, शिवदत्त सती, मोहन उप्रेती, ब्रजेन्द्र लाल साह, नईमा खान, लेनिन पंत,
रमाप्रसाद घिल्डियाल ‘पहाड़ी’ के बाद घनश्याम सैलानी, डा. गोबिन्द चातक, डा. शिवानन्द नौटियाल, हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’, मोहनलाल बाबुलकर, अबोधबंधु बहुगुणा, कन्हैयालाल डंडरियाल, रतनसिंह जौनसारी, शेरदा ‘अनपढ़’, गोपालबाबू गोस्वामी, बीना तिवारी, चन्द्रकला, मोहन सिंह रीठागाड़ी, झूसिया दमाई, कबूतरी देवी, बसन्ती बिष्ट, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, नरेन्द्रसिंह नेगी, हीरासिंह राणा आदि ने सांस्कृतिक क्षेत्रा में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है। लोक पंरपरा को आगे ले जाने वाली पीढ़ी भी तैयार है। जागर शैली और ढोल-दमाऊ को विश्व पटल तक पहुंचाने वाले जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण हैं तो जौनसार से रेशमा शाह, जागर शैली की हेमा करासी नेगी हैं तो विशु( लोक की आवाज लिये ‘न्यौली’ गाने वाली आशा नेगी भी। अभी लोकधुनों के प्रयोगधर्मी किशन महीपाल और रजनीश सेमवाल से भी लोगों का परिचय हुआ है।
लोक विधाओं पर संक्षिप्त में इतनी बातें हमारे लोक की समृ(ि को तो बताती हैं, लेकिन इससे बात पूरी नहीं होती। इस पर पूरी चर्चा भी कर लें तो समाप्त नहीं होगी। यह बात शुरू ही तब हो पायेगी जब इसमें लोक विधाओं के साथ जीने वाले एक व्यक्तित्व का नाम जोड़ा जायेेगा। वह नाम है- श्री चन्द्रसिंह ‘राही’। चन्द्रसिंह ‘राही’ का मतलब है उपरोक्त सभी लोक विधाओं का एक साथ चलना। उनको समझना। उस अन्र्तदृष्टि को भी जो लोक के भीतर समायी है। हम उन्हें अपनी लोक विधाओं का एक चलता-पिफरता ज्ञानकोश कह सकते हैं। वे लोक धुनों के धनी हैं। प्रकृति प्रदत्त आवाज के बादशाह भी। उनके गीतों में प्रकृति का माधुर्य है। संवेदनाएं हैं। भाषा का सौंदर्य है। बिम्ब जैसे उनके गीतों की विशेषता। शब्दों का बड़ा संसार है। उनके पास लोक की पुरानी विरासत है। नये सृजन के लिये खुले द्वार भी। लोक में बिखरी बहुत सारी चीजों को समेटने की दृष्टि भी। वे लोक गायक हैं। गीत लिखते और गाते हैं। संगीत से उनका अटूट रिश्ता है। लोक वाद्यों पर उनका अधिकार है। कोई लोकवाद्य ऐसा नहीं है जिसे उन्होंने न बजाया हो। वे उत्तराखंड के हर लोकवाद्य पर अधिकारपूर्वक बोल सकते हैं। ‘राही’ जी लोक विधाओं के अन्वेषी हैं। लगभग तीन हजार से अधिक लुप्त होते लोकगीतों का संकलन उनके पास है। गढ़वाली और कुमाउंनी भाषा पर उनका समान अधिकार है। इन सबके साथ ‘राही’ जी हमारी सांस्कृतिक धरोहर के सबसे प्रबल पहरेदार हैं। एक सरल इंसान। दरअसल ‘राही’ जी की अपनी खूबियां हैं।
दिल्ली पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट के संस्थापक निदेशक, उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच के संरक्षक और मेरे मित्रा श्री विनोद बछेती ने श्री चन्द्रसिंह ‘राही’ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक पुस्तक निकालने की बात कही। जिसका संपादन उन्होंने मुझे सौंपा। इससे पहले भी वे उत्तराखंड के सुप्रसि( लोकगायक श्री नरेन्द्रसिंह नेगी और श्री हीरासिंह राणा पर इस तरह की पुस्तकों का प्रकाशन कर चुके हैं। मेरे लिये इससे बड़े सौभाग्य की बात और क्या हो सकती थी कि जिनके गीत हम सत्तर के दशक में बहुत छोटी उम्र में सुना करते थे आज उनके गीतों पर कुछ लिखने-कहने का मौका मिला। चन्द्रसिंह ‘राही’ जी से मुलाकात कब हुई यह कहना बहुत कठिन है। लगता है कि दशकों से एक-दूसरे को जानते हैं। उम्र का इतना बड़ा पफासला होने के बाद भी उन्होंने कभी उस अन्तर को प्रकट नहीं होने दिया। उनके साथ उस दौर में ज्यादा निकटता हो गयी जब मैं ‘जनपक्ष’ पत्रिका का संपादन कर रहा था। कभी भी, किसी भी समय उनका पफोन आ सकता है। वह सुबह पांच बजे भी हो सकता है, रात के 12 बजे भी। बहुत आत्मीयता से वे विशु( कुमाउंनी में वे बात करते हैं।
दो साल पहले अपने गृह क्षेत्रा द्वाराहाट के कपफड़ा में एक कार्यक्रम में शामिल होने गया। चन्द्रसिंह ‘राही’ भी साथ थे। पता चला कि वहां रामलीला भी हो रही है। आयोजकों ने कहा कि आप रामलीला का उद्घाटन कर दो। हमें भी रामलीला देखनी थी चले गये। लोगों को पता नहीं था कि मेरे साथ कौन हैं। मैंने मंच में जाकर घोषणा की कि रामलीला का उद्घाटन चन्द्रसिंह ‘राही’ करेंगे। और स्पष्ट करते हुए बताया कि ये वही ‘राही’ जी हैं जिन्होंने ‘सरग तारा जुनाली
राता...’, ‘हिल मा चांदी को बटना...’, जैसे गीत गाये हैं। पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया। रामलीला तो छोडि़ये पहले गीतों की फरमाइश आ गयी। पुरानी पीढ़ी के लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि सत्तर के दशक में जिस गायक को रेडियो पर सुना था उसे कभी सामने भी देख पायेंगे। ऊपर से धारा प्रवाह कुमाउंनी बोलने से वे लोगों के चहेते बन गये। मैं उन्हें कई आयोजनों में अधिकारपूर्वक अपने साथ ले गया। वे जहां भी गये अपने गीतों से लोगों के दिलों में स्थान बना आये। राही जी को जौनसार से लेकर जौहार तक की लोक विधाओं में महारत हासिल है। चन्द्रसिंह ‘राही’ अब अस्वस्थ रहते हैं। उनका इलाज भी चल रहा है। हम सब की कामना है कि वे जल्दी स्वस्थ हों और उनकी आवाज हमें वर्षो तक मंचों पर सुनाई दे।