Author Topic: CONNECTION OF FAMOUS PERSONALITIES WITH NAINITAL AND OTHER PLACES OF UK ?  (Read 37189 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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धरमघर से खास लगाव था सरला बहन को

Pithoragarh
| April 5, 2013 5:30 AM

 
  बेरीनाग। स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन की गूंज दुनियाभर में फैल गई थी। बापू के चिंतन से प्रभावित होने वालों में एक ऐसी विदेशी महिला भी थी, जो बाद में भारत की हो गई। कैथरीन मेरी हैलीमन बाद में गांधी जी की शिष्या के रूप में सरला देवी (सरला बहन) के नाम से पहचानी गई। उन्होंने उत्तराखंड को अपनी कर्मभूमि बनाया। जीवन के अंतिम चार साल यहां से 15 किलोमीटर दूर हिमदर्शन कुटीर धरमघर में बिताए। 1982 को मृत्यु के बाद यहीं पर उनकी समाधि बनाई गई।
पांच अप्रैल 1901 को लंदन में जन्मी कैथरीन प्रथम महायुद्ध में हुए नर संहार से स्तब्ध थीं। बाद में वह बापू से मिलीं और उनके विचारों ने कैथरनी के जीवन की दिशा ही बदल दी। उन्हें 1928 में भारत आने का मौका मिला, तो वह हमेशा के लिए यहीं की होकर रह गईं। यहां पहले उन्होंने उदयपुर में विद्या भवन नाम कीशिक्षण संस्थान में काम करने के साथ हिंदी भाषा में पकड़ मजबूत की।
सरला देवी नाम रखकर यहां की संस्कृति में रचने-बसने का संकल्प जाहिर किया। 1935 में वर्धा (अहमदाबाद) में सामाजिक कार्य में हाथ बंटाया। स्वास्थ्य कारणों से बापू ने उन्हें 1941 में अल्मोड़ा के चनौदा गांधी आश्रम में भेज दिया। 1942 में वह कौसानी आ गईं।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सरला बहन ने गिरफ्तार आंदोलनकारियों को कानूनी सहायता और उनके परिजनों को राहत कार्य का प्रबंध किया। नजरबंदी आदेश का उल्लंघन करने पर उनको स्वंय दो बार जेल जाना पड़ा। बाद में यहां आश्रम की स्थापना की। उन्होंने अछूत मानी जाने वाली कन्याओं के लिए छात्रावास स्थापित किया। पलायन को रोकने के लिए आवासीय विद्यालय में कृषि, दुग्ध उद्योग, सिलाई, बुनाई प्रशिक्षण शुरू कराए। यहां वह पर्वतीय महिलाओं के श्रम और उनकी जीवटता से खासी प्रभावित हुईं।
कुमाऊंनी बोली सीखने के साथ वह नंगे पांव खेतों और जंगलों में घूम-घूमकर पहाड़ी महिलाओं जैसा जीवन बिताने लगीं। 1966 तक उन्होंने यहां लड़कियों की शिक्षा का कार्य कर उन्हें रूढ़िवादी परंपराओं से मुक्त होकर आत्मविश्वास के साथ जीने की राह दिखाई। विनोबा भावे के साथ व्यापक लोक शिक्षा के लिए 10 साल तक देशभर में भी घूमी।
कौसानी में शराबविरोधी आंदोलन चला समाज को जाग्रत किया। चार नवंबर 1979 को जमुनालाल बजाज पुरस्कार दिया गया। जीवन के अंतिम चार वर्ष हिमदर्शन कुटीर धरमघर में बीते। पर्यावरण के संबंध में कई पुस्तकें भी लिखी। सरला की शिष्या शोभा बहन अब भी यहीं रहती हैं। आठ जुलाई 1982 को यहीं उन्होंने आखिरी सांस भी ली थी।

(amar ujala)

 

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