टिहरी गढ़वाल के विकास खण्ड जौनपुर के जिस उद्यानपति को उत्तराखण्ड शासन द्वारा "उद्यान पण्डित की उपाधि से विभूषित किया गया है, उसके चमत्कारपूर्ण सृजन के लिये उन्हें सार्वजनिक रुप से भी सम्मानित किया जाना चाहिये।
कुन्दन सिंह पंवार नाम के इस पर्वत पुत्र ने एक ही पेड़ पर खुबानी, पुलम, आडू जैसे विभिन्न प्रजाति के फलों को उगाकर अद्भुत कार्य कर दिखाया है। नैनबाग स्थित "नारायणी" नामक उनके फलोद्यान में एक पेड़ पर अनेक फलों का स्वाद लिया जा सकता है, यह उद्यान ढाई एकड़ भूमि पर स्थापित है, जिसमें से अन्ना, स्टार रपर, आर्जन रपर, रेड चीफ, सिल्वर रेपर, समर रेड, किरमेरा गोल्ड आदि प्रजातियां हैं। सेब की भी प्रजातियों को क्लोन के माध्यम से उत्पन्न किया गया है।
एक हजार से अधिक फलदार पेडों के इस मनमोहक उद्यान में आम की भी कई देशी-विदेशी किस्मों को तैयार किया गया है। पंवार जी के अनुसार उनके उद्यान में दशहरी, लंगड़ा, बाम्बे ग्रीन, मल्लिका, आम्रपाली, रामेला आदि के साथ ही पुलम, आडू, खुबानी बादाम, अनार तथा किवी की अनेक प्रजातियां लगी हुई हैं। उल्लेखनीय यह है किवी फल को पहली बार उत्तराखण्ड में उगाने तथा उसके व्यापक उत्पादन का श्रेय भी श्री पंवार को ही जाता है। उनका कहाना है कि यदि व्यक्ति में काम करने का जज्बा हो तो वह कुछ भी सम्भव कर सकता है।
देहरदून के डीएवी कालेज से अपनी शिक्षा ग्रहण करने के बाद कुन्दन सिंह पंवार ने अपने शुरुआती दौर में सरकारी सेवा भी की, किन्तु उसके बाद पारिवारिक कारणॊं से उन्हें इस नौकरी को छोड़ना पड़ा। अपने बड़े भाई टिहरी जिला पंचायत के उपाध्यक्ष गजे सिंग पंवार और पंवार कंस्ट्रक्शन कम्पनी के मालिक स्व० केदार सिंह पंवार की प्रेरणा से कुन्दन सिंह ने नैनबाग स्थित अपने पांच एकड़ के फार्म में जब बगीचा लगाया, तब इस बात की गुंजाइश कम दिखाई पड़ रही थी कि एक दिन उनका यह नारायणी उद्यान उत्तराखण्ड के नौजवानों के लिये एक माडल उद्यान के रुप में स्थापित होगा। अपनी अथक मेहनत और हार्टिकल्चर में आई वैग्यानिक क्रान्ति के चलते श्री पंवार ने आज वह मुकास हासिल कर लिया है, जिसके लिये वह निश्चित ही बधाई के पात्र हैं। आज के इस दौर में जब पहाड़ के नौजवान सरकारी नौकरी के लिये लालायित हैं, ऎसे में कुन्दन भाई द्वारा स्थापित नारायणी उद्यान नये लोगों और विशेष रुप से पहाड से पलायन कर रहे नौजवानों के लिये प्रेरणास्पद है।
समुद्र तट से 1170 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कुन्दन सिंह पंवार का नारायणी उद्यान लोगों के लिये एक आदर्श पाठशाला भी है। उनका कहना है कि वैश्वीकरण के इस युग में पानी की लड़ाई अवश्यम्भावी है। क्योंकि आज वनों के दोहन से यह समस्या दिनोंदिन गहराती जा रही है। जहां वनों के संरक्षण की जरुरत है, वहीं फलों के उद्यानों के संरक्षण और संवर्धन की भी नितान्त आवश्यकता है। इस संबंध में उन्होंने समय-समय पर शासन का ध्यान आकर्षित किया, किन्तु अपेक्षित सहयोग नहीं मिला। यदि थोड़ा सा भी सहयोग मिला होता तो वे अब तक इस क्षेत्र में काफी उपलब्धि हासिल करके दिखा दिये होते। क्षुब्ध होकर श्री पंवार ने शासन के प्रति अपने विचार इस तरह व्यक्त किये "सरकार की उदासीनता हमारी ऊर्जा को दबाती है"।
युगवाणी, जुलाई, २००७ से साभार टंकित