अपना लाड़ला ‘वैज्ञानिक’ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक रवीन्द्र. के. पाण्डे
उत्तराखण्ड की नौकरशाही, वहां की जमीन से जुड़े नेताओं पर भारी पड़ी, परिणामस्वरूप उत्तराखण्ड के हाथ से उसका अपना लाड़ला फिसलकर पड़ौसी देश चीन की गोद में पहुंच गया।
यह कहानी है अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक रवीन्द्र. के. पाण्डे की। जिसने अपनी सुदीर्घ साधना शोध के बाद ऐसी तकनीक विकसित की, जो कैंसर जैसे भयानक रोगी के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। लेकिन उत्तराखण्ड के इस प्रतिभाशाली वैज्ञानिक को उसी की जन्मभूमि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री व राज्यपाल ने जहां उसे प्रोत्साहित कर, हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया। वहीं उत्तराखण्ड की नौरशाही ने निजी स्वार्थों के चलते उन्हें सिरे से ही नकार दिया।
आज वही प्रतिभाशाली वैज्ञानिक पड़ोसी देश चीन की एक प्रमुख कम्पनी के साथ अगले पांच साल के अनुबंध से जुडकर अपनी तकनीक का सौदा करने को मजबूर है। ज्ञातव्य है कि डॉ. पाण्डे ने अपनी तकनीक का सौदा चीन की हिसुन फार्मा कम्पनी के साथ पांच साल के लिए किया है। कम्पनी इसके लिए डॉ. पाण्डे को 60 लाख डॉलर (करीब 27 करोड़ रुपए) का भुगतान करेगी।
‘निराला उत्तराखण्ड’ ने जब इस बाबत डॉ. रवीन्द्र. के. पाण्डे से बात की तो उत्तराखण्ड से जुड़े कई अनछुए पहलू सामने आए। डॉ. पाण्डे ने अपनी वार्ता की शुरुआत ही यहां से की – ‘पैसों का क्या करना है, इसका कोई अन्त नहीं है। असली तो आत्मा की संतुष्टी है। मेरा भी मन है कि मैं उत्तराखण्ड व देश के लिए कुछ करूं’।
नौकरशाही ने निराश किया
डॉ. पाण्डे की उत्तराखण्ड के प्रति इन उदात्त भावनाओं को लेकर ही जब सवाल किया तो उन्होंने कहा कि लगभग 5-6 वर्ष पूर्व उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवाड़ी से इस विषय पर चर्चा भी की। मुख्यमंत्री तिवाड़ी ने हल्द्वानी स्थित अपनी पत्नी के नाम से स्थापित ‘सुशीला तिवाड़ी हॉस्पिटल’ से जुडऩे का प्रस्ताव रखा। इसके लिए उन्होंने साढ़े सात करोड़ रुपए स्वीकृत भी कर दिये। किन्तु वह राशि कहां गई, किसी को पता नहीं। वहां के आला अधिकारियों से सम्पर्क किया तो उन्होंने निजी स्वार्थ के चलते न केवल हतोत्साहित किया बल्कि अपने व्यवहार से मुझे निराश भी किया।
इतना ही नहीं इसके बाद अगले मुख्यमंत्री भुवन चन्द खण्डूरी से भी मुलाका तक की। उन्हें श्रीनगर (गढ़वाल) में एक इन्स्टीट्यूट खोलने का प्रस्ताव भी दिया। इसमें उन्हें कैंसर पर विविध शोधों का हवाला देते हुए विदेशी फण्ड की व्यवस्था का भी आश्वासन दिया। इस पर मुख्यमंत्री खण्डूरी ने कुछ कागजी कार्यवाही कर इस प्रस्ताव पर अमल करने का विश्वास भी दिया। किन्तु अन्तत: यह भी ठण्डे बस्ते में चला गया। इसी तरह तत्कालीन राज्यपाल से भी मुलाकात की। कुल मिलाकर सारी व्यवस्था कागजों तक सिमट कर रह गई।
इतना ही नहीं राजस्थान की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल से भी इस सम्बन्ध में मुलाकात की। परिणामस्वरूप केवल शील्ड-पुरस्कार स्वरूप प्रदानकर मुझे चलता कर दिया। आज तक कोई बुलावा या प्रस्ताव राजस्थान सरकार से भी नहीं आया।
चीन से सौदा होने के बाद भी डॉ. पाण्डे का यह सपना है कि वे हल्द्वानी, नैनीताल, श्रीनगर या उत्तराखण्ड के किसी अन्य जिले में ‘फोटोडायनेमिक थैरेपी सेन्टर’ खोलेंगे। जिसमें न केवल शोधकार्य होंगे, अपितु रोगियों को अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध होगी। मेरी इच्छा है कि अपने मुल्क में गरीबों को सुलभ चिकित्सा मुहैया करा सकु। डॉ. पाण्डे ने कहा कि कैंसर पर अनुसंधान एक लम्बी प्रक्रिया है। यदि अपने जीवन में 20 में से केवल 5 रोगियों को भी मैं स्वस्थ कर सका तो मैं स्वयं को धन्य मानूंगा। उन्होंने कहा कि मैं ही नहीं अन्य भारतीय मूल के वैज्ञानिक, चिकित्सक और उद्योगपति भारत के लिए कुछ करना चाहते हैं किन्तु यहां की नौकरशाही उन्हें हतोत्साहित करती है। डॉ. पाण्डे ने अपनी वार्ता को जारी रखते हुए बताया कि वे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जे.एफ.कैनेडी से बेहद प्रभावित हैं। विशेषकर उनका यह कथन मुझे विशेष रूप से प्रभावित करता है कि – ‘यह मत सोचो कि देश तुम्हारे लिए क्या करता है बल्कि यह सोचो कि तुम अपने देश के लिए क्या कर सकते हो’। इस वाक्य को प्रेरणावाक्य मानकर मैं प्रयासरत हूं कि कभी न कभी मेरा सपना जरूर पूरा होगा।
जीवन परिचय
डॉ. रवीन्द्र. के. पाण्डे का जन्म सन् 1952 में अल्मोड़ा जिले के ग्राम ‘ताकुला’ में हुआ। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में रवीन्द्र ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही पूरी की। इनके पिता बारामण्डल के तहसीलदार थे। किन्तु अस्वस्थता के चलते उन्होंने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया। जबकि मां एक आम उत्तराखण्डी महिला की तरह खेती-बाड़ी व घर संभालती। रवीन्द्र ने गांव से 8वीं की परीक्षा पास की और देहरादून से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। देहरादून से एम.एस.सी. करने के बाद राजस्थान की राजधानी जयपुर से पी.एच.डी. की उपाधि ग्रहण की। डॉ. रवीन्द्र. के. पाण्डे ने सर्वप्रथम वैज्ञानिक डॉ. बी.सी. जोशी की लेब में काम किया। इस दौरान डॉ. जोशी के व्यक्तित्व का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। समर्पण व त्याग की भावना डॉ. पाण्डे ने डॉ. जोशी से ही सीखी। यहां उन्हें मलेरिया व लेप्रेसी पर शोध करने का अवसर मिला। इस·के बाद डॉ. रवीन्द्र ने इन्दौर में डेढ़ वर्ष तक एक फार्मास्यूटिकल कम्पनी में काम किया। सन् 1980 में डॉ. रवीन्द्र केलिफोर्निया अमेरिका चले गए और इसके बाद इंग्लैंड में शोध कार्य करते हुए अपने व्यक्तित्व को ऊंचाइयां प्रदान की। सन् 1984 में डॉ. रवीन्द्र पाण्डे श्रीमती उषा पाण्डे के साथ विवाह बन्धन में बंध गए। पाण्डे दम्पत्ति की दो संतानें अनुपम व अंकित हैं।
‘निराला उत्तराखण्ड’ ने डॉ. पाण्डे से विस्तृत चर्चा कर यही निष्कर्ष निकाला कि उत्तराखण्ड ही नहीं अपितु पूरे देश में नौकरशाही हावी है। वह भी निजी स्वार्थों के चलते …
(Source -
http://www.niralauttarakhand.com)