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  • इन्द्रमणि बडोनी जी का जन्म दिन: December 24, 2013
  • इन्द्रमणि बडोनी जी की पुण्य तिथि: August 18, 2014

Author Topic: Gandhi Of Uttarakhand : Indramani Badoni : इन्द्रमणि बड़ोनी जी  (Read 49185 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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We salute this great leader who dreamt for separate Uttarakhand.



       महान पुरुषों के जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों ने अह्म भूमिका निभायी है। परिस्थितियों ने ही उनमें संघर्षो से जूझने का  जज्बा पैदा किया और उनके व्यक्तित्व को निखारा। ऐसी ही कठिन परिस्थितियों ने श्री इन्द्रमणि बडोनी को उत्तराखण्ड का महानायक और आंदोलन का अग्रदूत बनाया। आंदोलन के दौरान उनकी अपनी विशिष्ट शैली, सिद्वांतों, विचारों और जीवन दर्शन के कारण  वह ध्रुव बन कर क्षितिज पर चमकते रहे। अमरीकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने स्व. इन्द्रमणि बडोनी को ”पहाड के गॉधी“ की उपाधि दी थी। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा था कि उत्तराखण्ड आंदोलन के सूत्रधार इन्द्रमणि बडोनी की आंदोलन में  उनकरी भूमिका वैसी ही थी जैसी आजादी के संघर्ष के दौरान भारत छोडों आंदोलन में राष्ट्रपिता महात्मा गॉधी ने निभायी थी।
       श्री इन्द्रमणि बडोनी का जन्म २४ दिसम्बर १९२५ को टिहरी गढवाल के जखोली ब्लाक के अखोडी ग्राम में हुआ। उनके पिता का नाम श्री सुरेशानंद बडोनी था। अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष में उतरने के साथ ही उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। लेकिन आजादी के बाद कामरेड पीसी जोशी के सम्फ में आने के बाद वह पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हुए। अपने सिद्वांतों पर दृढ रहने वाले इन्द्रमणि बडोनी का जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वाले दलों से मोहभंग हो गया। इसलिए वह चुनाव भी  निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में लडे। उनकी मुख्य चिंता इसी बात पर रहती थी कि पहाडों का विकास कैसे हो।


साभार- www.himalayauk.org

पंकज सिंह महर

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पंकज सिंह महर

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स्व० बड़ोनी जी एक कुशल राजनीतिग्य होने के साथ-साथ एक कुशल लोक नर्तक और संस्कृति कर्मी भी थे। राजनीति में आने से पहले वे एक लोक कलाकार के रुप में पहचाने जाते थे, गढ़वाल की लोक संस्कृति को गढ़वाल से बाहर नगरीय क्षेत्रों में प्रदर्शित करवाने में इनका प्रारम्भिक और उल्लेखनीय योगदान रहा है। 1956 में बडोनी जी के नेतृत्व में टिहरी गढ़वाल के ग्रामीण कलाकारों के दल को लखनऊ में "चौंफला केदार" नृत्यगीत प्रस्तुत करने पर उत्तर प्रदेश सूचना विभाग द्वारा प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 26 जनवरी, 1957 को दिल्ली में आयोजित अखित भारतीय लोकनृत्य समारोह में बड़ोनी जी के दल को उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने के लिये चुना गया था और नेशनल स्टेडियम में चौंफला केदार नृत्य को देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु इतने गदगद हो गये कि इन लोक कलाकारों के साथ पहाड़ी वेशभूषा में नाच उठे। इस दल को भारत के सभी दलों में द्वितीय पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया था।
       बड़ोनी जी और उनके साथियों द्वारा गढ़वाली लोक संगीत की शहरी मंच प्रस्तुति गढ़वाल में सांस्कृतिक क्रान्ति का एक सर्वप्रिय और ऐतिहासिक कदम था।

पंकज सिंह महर

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श्रद्धेय इन्द्रमणि बडोनी जी एक राजनीतिज्ञ ही नहीं थे, वह एक कुशक लोक नर्तक, कलाकार और प्रकृति प्रेमी भी थे। पूरे उत्तराखण्ड का उन्होने भ्रमण किया इसी क्रम में भिलंगना नदी के उदगम खतलिंग ग्लेशियर की खोज भी उन्होंने की। उत्तराखण्ड को आत्मनिर्भर राज्य बनाने की उन्हें धुन थी, इसे साकार करने के लिये उन्होंने ग्राम, गंगी में दुर्लभ जड़ी-बूटियों की खेती शुरु की।

लेकिन बड़ा दुर्भाग्य का विषय है कि उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति की धुन में रमे इस गांधी को आज की सरकारों ने भुला दिया। अपनी-अपनी पार्टियों के बड़े नेताओं के नाम पर राज्य की योजनायें शुरु करने वाले हुक्मरानों को यह याद नहीं आता कि जिस प्रदेश में आज वह हुक्मरान बने हैं, उसमें इस व्यक्ति का कितना योगदान था। क्या उत्तराखण्ड की कोई योजना अगर स्व० इन्द्रमणि बडोनी जी के नाम पर शुरु हो जाये तो क्या वह ज्यादा familiar  नहीं लगेगा? सोचनीय विषय तो यह भी है कि सत्ता में शामिल उक्रांद भी इस दिशा में सक्रिय नहीं लगता। जब बेटा ही बाप को भूल जाये तो औरों को क्या दोष दिया जा सकता है।

लेकिन हम आपको हमेशा याद रखेंगे, दिल में.....................................।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the statue of Indramani Badoni at Dehradoon.


Devbhoomi,Uttarakhand

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       अपने सिधान्तों पर अडिग रहने वाले श्री इन्द्रमणि जी बडोनी का जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वाले दलों से मोहभंग हो गया और वो निर्दलीय पर्त्याशी के रूप में चुनाव लडे ! और तीन बार १९६७,१९६९ और १९७७ में ये देवप्रयाग बिधानसभा से बिजई रहे ! और १९८९ में टिहरी लोक सभा सीट से ब्रमदत्त जी के बिरुध चुनाव हारे.!
         लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है की उत्तराखंड राज्य प्राप्ति की धुन में रमे इस गाँधी को आज की सरकारों ने भुला दिया है.! अपनी अपनी पार्टियों के  बड़े नेताओं के नाम पर राज्य की योजनायें सुरु करने वाले इन नेताओं को याद भी नहीं है की जिस प्रदेश में आज वह नेता बने हैं उसमे इस व्यक्ति का कितना योगदान है ! अगर कोई भी योजना इस महान पुरुष के नाम से सुरु हो जाए तो इसमें क्या किसी का अपमान हो जाएगा,
और सबसे बड़ी बात तो यह है की सत्ता में सामिल UKD भी इस दिशा में सक्रिय नहीं है.! जब बेटा ही बाप को भूल जाए तोह औरों को क्या दोष दिया जा सकता है!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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इन्द्रमणि बडोनी जी के किये कार्य सदा अमर rahange !

bs_rawat90

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स्व श्री इन्द्रमणि जी बडोनी (२४ दिसम्बर १९२४ से )

उनकी इस पुण्य तिथि   समस्त अखोडीवासियों की और से भाव भीनी श्रधांजलि !!!
"""""उस शक्श की अजमत का ख्याल आता है, जिसने औरों क लिए पेड लगाये होंगे..."""
         श्री इन्द्रमणि जी बडोनी का जन्म २४ दिसम्बर १९२४  को टिहरी गडवाल के अखोडी (घनसाली ) गाँव में हुआ था ! श्री सुरेशानंद बडोनी के घर में जन्मे इस महान ब्यक्ति का अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष में उतरने के साथ ही राजनीति जीवन का भी आरम्भ हुआ !
         महान पुरुषों के जीवन में बिसम परिस्तित्यां अहम् भूमिका निभाती हैं ! और परिस्तित्यों ने ही उनमे शंघर्षों से झूझने का जज्बा पैदा किया!  ऐसे ही कठिन परिश्तित्यों ने श्री इन्द्रमणि जी बडोनी को उत्तराखंड का महानायक और आन्दोलन का अग्रदूत बनाया ! आंदोंलन के दोरान उनकी शैली,सिधांत, बिचार और जीवन दर्शन के कारण वह ध्रुव बन कर आसमान पर चमकने लगे !
        अमरीकी अखबार वाशिन्घ्टन पोस्ट ने स्व. श्री इन्द्रमणि जी बडोनी को "पहाड़ के गांधी" की उपाधि दी ! उनकी भूमिका उत्तराखंड आन्दोलन में वैसे ही थी जैसे आजादी के संघर्ष में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की थी!
        अपने सिधान्तों पर अडिग रहने वाले श्री इन्द्रमणि जी बडोनी का जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वाले दलों से मोहभंग हो गया और वो निर्दलीय पर्त्याशी के रूप में चुनाव लडे ! और तीन बार १९६७,१९६९ और १९७७ में ये देवप्रयाग बिधानसभा से बिजई रहे ! और १९८९ में टिहरी लोक सभा सीट से ब्रमदत्त जी के बिरुध चुनाव हारे.!
         लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है की उत्तराखंड राज्य प्राप्ति की धुन में रमे इस गाँधी को आज की सरकारों ने भुला दिया है.! अपनी अपनी पार्टियों के  बड़े नेताओं के नाम पर राज्य की योजनायें सुरु करने वाले इन नेताओं को याद भी नहीं है की जिस प्रदेश में आज वह नेता बने हैं उसमे इस व्यक्ति का कितना योगदान है ! अगर कोई भी योजना इस महान पुरुष के नाम से सुरु हो जाए तो इसमें क्या किसी का अपमान हो जाएगा,
और सबसे बड़ी बात तो यह है की सत्ता में सामिल UKD भी इस दिशा में सक्रिय नहीं है.! जब बेटा ही बाप को भूल जाए तोह औरों को क्या दोष दिया जा सकता है!
२००७ में भूत पूर्व मुख्यमंत्री श्री बी.सी. खंडूड़ी जी ने रा.इ.का.अखोडी में बडोनी जी की बिशाल परतिमा का अनावरण किया, और तब से प्रतिवर्ष २४ दिसम्बर को रा.इ.का.अखोडी में बडोनी जी की याद में एक मैले का आयोजन किया जाता है..

इस महापुरुष की सहादत को हम बिसरने नहीं देंगे.
हम इन्हें याद रखेंगे हमेशा हमेशा अपने दिल में ..........

धन्यवाद
Bhagwan Singh Rawat (Akhori)

सत्यदेव सिंह नेगी

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Thank you rawat ji itni achchhi jankari di aapne

Devbhoomi,Uttarakhand

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(२४ दिसम्बर १९२४ से १८ अगस्त १९९९)

उनकी इस पुण्य तिथि पर गिरीश बडोनी (अखोडी) व शिव सिंह रावत (अखोडी), व समस्त अखोडीवासियों की और से भाव भीनी श्रधांजलि !!!
“”"”"उस शक्श की अजमत का ख्याल आता है, जिसने औरों क लिए पेड लगाये होंगे…”"”
श्री इन्द्रमणि जी बडोनी का जन्म २४ दिसम्बर १९२४  को टिहरी गडवाल के अखोडी (घनसाली ) गाँव में हुआ था ! श्री सुरेशानंद बडोनी के घर में जन्मे इस महान ब्यक्ति का अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष में उतरने के साथ ही राजनीति जीवन का भी आरम्भ हुआ !
महान पुरुषों के जीवन में बिसम परिस्तित्यां अहम् भूमिका निभाती हैं ! और परिस्तित्यों ने ही उनमे शंघर्षों से झूझने का जज्बा पैदा किया!  ऐसे ही कठिन परिश्तित्यों ने श्री इन्द्रमणि जी बडोनी को उत्तराखंड का महानायक और आन्दोलन का अग्रदूत बनाया ! आंदोंलन के दोरान उनकी शैली,सिधांत, बिचार और जीवन दर्शन के कारण वह ध्रुव बन कर आसमान पर चमकने लगे !
अमरीकी अखबार वाशिन्घ्टन पोस्ट ने स्व. श्री इन्द्रमणि जी बडोनी को “पहाड़ के गांधी” की उपाधि दी ! उनकी भूमिका उत्तराखंड आन्दोलन में वैसे ही थी जैसे आजादी के संघर्ष में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की थी!
अपने सिधान्तों पर अडिग रहने वाले श्री इन्द्रमणि जी बडोनी का जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वाले दलों से मोहभंग हो गया और वो निर्दलीय पर्त्याशी के रूप में चुनाव लडे ! और तीन बार १९६७,१९६९ और १९७७ में ये देवप्रयाग बिधानसभा से बिजई रहे ! और १९८९ में टिहरी लोक सभा सीट से ब्रमदत्त जी के बिरुध चुनाव हारे.!
लेकिन बड़े दुर्भाग्य की बात है की उत्तराखंड राज्य प्राप्ति की धुन में रमे इस गाँधी को आज की सरकारों ने भुला दिया है.! अपनी अपनी पार्टियों के  बड़े नेताओं के नाम पर राज्य की योजनायें सुरु करने वाले इन नेताओं को याद भी नहीं है की जिस प्रदेश में आज वह नेता बने हैं उसमे इस व्यक्ति का कितना योगदान है ! अगर कोई भी योजना इस महान पुरुष के नाम से सुरु हो जाए तो इसमें क्या किसी का अपमान हो जाएगा,
और सबसे बड़ी बात तो यह है की सत्ता में सामिल UKD भी इस दिशा में सक्रिय नहीं है.! जब बेटा ही बाप को भूल जाए तोह औरों को क्या दोष दिया जा सकता है!
२००७ में भूत पूर्व मुख्यमंत्री श्री बी.सी. खंडूड़ी जी ने रा.इ.का.अखोडी में बडोनी जी की बिशाल परतिमा का अनावरण किया, और तब से प्रतिवर्ष २४ दिसम्बर को रा.इ.का.अखोडी में बडोनी जी की याद में एक मैले का आयोजन किया जाता है..

इस महापुरुष की सहादत को हम बिसरने नहीं देंगे.
हम इन्हें याद रखेंगे हमेशा हमेशा अपने दिल में ……….

धन्यवाद

शिव सिंह रावत
अखोडी

http://himalayauk.org/2010/08/18/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5-%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A4%BF-%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A5%8B/

 

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