Author Topic: Gaura devi Mother of Chipko Movement,गौरा देवीः चिपको आन्दोलन की जननी  (Read 17247 times)

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गौरा देवी मूर्ति का किया विसर्जन
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चम्पावत  जिले के कई हिस्सों में गौरा महोत्सव की धूम मची। चंपावत में महिलाओं ने भगवती मंदिर में देवी गौरा की मूर्ति का विसर्जन किया। इस मौके पर प्रेमा जोशी, चंद्रकला जोशी, भावना बिष्ट, बसंती बिष्ट, पार्वती देवी, नीलम देवी, कमला पंत आदि महिलाएं मौजूद थीं।

नेपाल सीमा से लगे सुनकुरी गांव में गौरा देवी मंदिर में महिलाओं ने महाभारतकालीन गीतों का गायन किया, जबकि झोड़ा, झुम्टा, पूजा-पाठ का क्रम अनवरत रूप से जारी है। बृहस्पतिवार की रात को यहां कुमाऊं लोक सांस्कृतिक कला दर्पण के कलाकारों ने अनेक रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शकों को देर रात तक बांधे रखा। रंग कर्मी प्रकाश राय के निर्देशन में कलाकारों द्वारा जै जग जननी ज्वाला, दुर्गा रे भवानी वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत की गई।


गौरा-महेश्वर पर आधारित लोक नृत्य हरियाली खेत, गंवारा छ भादो में भादो ने समां बांध दिया। वहीं हास्य कलाकार तेज सिंह एवं रश्मि द्वारा इज बाज्यू ले बडो लाड़ प्यार ले पालो, ऐसी सैंणी का हाथ पड़ियूं हल लगा हाल्यूं लोक गीत पर दर्शकों की हंसी का फव्वारा फूट गया।

कार्यक्रम में बेबी प्रियंका, मोनिका, खुशाल मेहता, दीपक राय, सुुरेश राजन, पवनदीप राजन, दीपक कुमार, प्रियंका राजन, विरेंद्र मेहता ने अपने दिलकश कार्यक्रम प्रस्तुत किए। बाद में यहां गौरा महोत्सव की धूम शुरू हो गई।


सामाजिक कार्यकर्ता मदन कलौनी, पुष्कर सिंह सामंत, बद्री सिंह, नर सिंह सौन, विक्रम सिंह, उमेद सिंह, खीम सिंह, राजपाल सिंह, हयात सिंह, इंद्र सिंह, शेर सिंह आदि लोगों द्वारा गौरा महोत्सव में उल्लेखनीय सहयोग कर रहे हैं। रविवार को दर्जा राज्यमंत्री हयात सिंह माहरा गौरा महोत्सव का समापन करेंगे।

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नेतृत्व क्षमता  और विवेक शील बुद्धिमता सिर्फ शिक्षित लोगों  में ही नहीं पनपती  है, यह तो ह्रदय से अनुकंपित, स्नेह, और लगाव तथा मस्तिष्क की वैचारिक चपल  अनुगूँज  से प्रस्फुटित होती है, व्यक्ति की वैचारिक क्षमता, कार्यशीलता और अनुभूति की गति  पर सदा निर्भर  करता है, जितनी अधिक कार्यशीलता होती है उतनी अधिक वैचारिक  क्षमता और अनुभूति की व्यग्रता  बढती चली जाती है.


यही कार्यशीलता उसे कार्य की दक्षता  से नेतृत्व की ओर अग्रसर करती है.  इसी का परिणाम क्रांति में स्पंदित हो उठता है.  प्रायः क्रांतियाँ शांति और उपकारी दृष्टिकोणों से ही कार्यशील होती है.  तब इस कार्य का नेतृत्व कौन  कर रहा है इसके निर्धारण  का कोई मानदंड शिक्षा में  ही निहित नहीं होता है,  बल्कि अनपढ़ और अशिक्षित  व्यक्ति भी इतना संवेदन शील होता है किउनकी अभिव्यंजना पर पूरी सफल  क्रांति आ जाती है.


इसी तरह कि अभिब्यंजना से अनुकंपित, और अभिभूत थी शैल पुत्री गौरा देवी . पूर्णतया अशिक्षित, व् अनपढ़ एक निर्धन एवं हिमालयी जनजातीय परिवार  में,  चमोली जिले कि नीती घाटी के लातागाँव में १९२५ जन्म हुआ था इस हिम पुत्री का.  गौरा के जीवन की गाथा भी बड़ी संघर्ष पूर्ण है .


१२ वर्ष की आयु में विवाह, १९ वर्ष में एक पुत्र को जन्म देकर मातृत्व कि सुखानुभूति के बाद, २२ वर्ष की ही आयु में पति का आकस्मिक स्वर्गवास .विधवा का जीवन यों तो आज भी विकटहै किन्तु  ५० के दशक में स्थिति कितनी भयावह रही होगी कल्पनातीत है,

  और तब सयम, और विवेक के साथ जीवटता से जीना आसान काम नहीं . अपने अटल विश्वास, और संघर्ष शील रहकर  कभी हार नहीं मानी इस वीरांगना नें, जिसने देश नहीं पूरे विश्व में  एक पर्यावरण कि क्रांति ला दी






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१९६२ के चीनी आक्रमण के बाद जब भारत सरकार ने अपने सरहदों की सुध ली और वहाँ सड़कों का निर्माण किया तो धड़ाधड़ पेड काटे जाने लगे।  इसे देखते हुए सन्‌ १९७२ में रैंणी गाँव के लोगों में चर्चा हुई और एक महिला मंगलदल का गठन हुआ जिसकी अध्यक्षा गौरा देवी को बनाया गया।  गाँवों के जल, जंगल और ज़मीन को बचाने के लिए लोगों में जागरण पैदा किया गया।
 

 
बात सन्‌ १९७४ की है जब रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई।  गौरा देवी ने महिला मंगलदल के माध्यम से उक्त नीलामी का विरोध किया।  इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नही आया। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुँचे तो गौरा देवी और उनके २१ साथियों ने उन लोगों को समझाने का प्रयास किया।

]  गौरा देवी ने कहा कि ये जंगल हमारे देवता हैं और यदि हमारे रहते किसी ने हमारे देवता पर हथियार उठाया तो तुम्हारी खैर नहीं।  जब ठेकेदार के लोगों ने पेड़ काटने की ज़िद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फिर इन पेड़ों को हाथ लगाना।  काफी जद्दोजहद के बाद ठेकेदार के लोग चले गए।
 


       
    क्है जंगल के उपकार, मिटटी पानी और वयार,
    मिटटी पानी और वयार, जिन्दा रहने के आधार




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पुनः जनवरी १९७४ में सरकार ने चमोली जिले के नीती घाटी के जंगलों  में कटान  की योजना बनायीं  और तब मंडल फाटा की मुहिम पैन्खाडा  ब्लाक के नीती घाटी के रैणी गाँव के जंगलों  में फ़ैल गयी.   यहाँ  इसकी  सूत्रधार थी गौर देवी. २६  मार्च १९७४ को जंगलों में कटान का कार्य शरू होना था.

 गांववासियों  को पता चलने पर उन्होंने भारी विरोध दर्ज किया. ठेकेदारों ने विरोध में कार्य स्थगित कर रात में कटान की योजना बनायीं. किन्तु   शाम को गावं की एक लड़की  को इसकी भनक लग गयी. और तब उसने यह  सूचना गौरादेवी को दी. गौरा देवी  रैणी गावं की महिला समिति की अध्यक्षा भी थी. इस समय गावं में पुरुष वर्ग भी मौजूद न था


गौरा ने गाँव की महिलाओं को  एकत्रित कर जंगल  की ओर कूच किया. और पेड़ों को आलिंगन बध कर एक चेतावनी दे डाली ठेकेदारों को . कुल्हाड़ी पहले हम पर चलेगी फिर इन पेड़ों पर.  अपने आंचल की छाया से इन वृक्षों  को बचाया आततायियों के चंगुल से  और पूरी रात निर्भय और बेखोफ होकर जग्वाली की अपने शिशुवत पेड़ों की.  यही से आन्दोलन की भूमिका तेज हो गयी और आग की तरह पूरे उत्तराखंड  में फ़ैल गयी  .

तब इसी चिपको आन्दोलन को पुनः दिशा दी श्री चंडी प्रसाद भट्ट ने .तदुपरांत भट्ट जी को श्री सुंदर लाल बहुगुणा का  सानिध्य प्राप्त हुआ और इन दोनों के नेतृत्व में  चिपको आन्दोलन सिर्फ उत्तराखंड तक ही नहीं सीमित रहा   बल्कि पूरे विश्व पटल पर  पर्यावरण को नयी दिशा मिली .

 यदि गौरा देवी अपनी जीवटता और अदम्य सहस का परिचय  न देती तो शायद आज ग्लोवल वार्मिंग की स्थिति और भी भयावह होती. उत्तराखंड में  औषधीय गुणों की वनस्पतिया आज देखने को भी न मिलती.  इसी के प्रतिफल में इन दोनों नेताओं को मैग्सेसे  पुरुष्कार से भी सम्मानित किया गया .


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चिपको का अलख जगाने वाली गौरा देवी के साथ-साथ चमोली में इस आंदोलन की कमान संभालने वाली दूसरी महिला थीं बाली देवी.उन्हें इस बार संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर बुलाया गया था.

 बाली देवी 45 देशों की उन महिलाओं में थीं जिन्हें पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिए ये गौरव हासिल हुआ. शांति के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाली केन्या की वंगारी मथाई ने इस बैठक की अध्यक्षता की.गौरा देवी अब नहीं हैं लेकिन बाली देवी कहती हैं, "मैं गौरा का संदेश लेकर वहाँ गई कि पेड़ हैं तो जीवन हैं.

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  पाखी और अंगडू की परंपरागत पोशाक पहने बाली ने जब अपना भाषण दिया तो देर तक तालियाँ बजती रहीं. उन्होंने कहा "पहाड़ हमारे लिए भगवान हैं और पेड़ हमारे लिए पूजा. भारत में हो या फिर दुनिया में कहीं भी पेड़ पौधे, नदी- झरने,पहाड़ सभी जगह एक जैसे हैं. चांदनी की जो किरणें धरती पर गिरती हैं वो भी सभी जगह एक जैसी ही हैं. पर्यावरण को बचाने के लिये हमारी लड़ाई एक ही है. हम सब बहनें एक हैं."

 बाली देवी को इस बात पर बहुत अचरज हुआ कि चिपको के बारे में वहाँ काफी लोग जानते थे,”लोगों ने बड़ी दिलचस्पी से इसके बारे में और जानना चाहा कि कैसे हमने पेड़ों से चिपक-चिपक कर उन्हें बचाया

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जिस उत्तराखंड की गौरा देवी की गाथा पर्यावरण संरक्षण की गाथा बन गई, वहीं मैती बहनों का यह अभियान भी पर्यावरण के क्षेत्र में देश-दुनिया के लिए अनुकरणीय बन गया है।

 पर्यावरण आंदोलन की प्रतिमूर्ति गौरा देवी की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अस्सी के दशक में ग्वालदम की कुछ महिलाओं ने विवाह के शुभ अवसर पर दूल्हे के जूते चुराने की परंपरा को तोड़कर दूल्हे से वृक्ष लगाने का नेग मांगा और यह आंदोलन षुरू हो गया।

 अब यह आंदोलन उत्तराखंड सहित देश के आठ राज्यों में भी अपनी जड़ें जमा चुका है। चार राज्यों में तो वहां की पाठय-पुस्तकों में भी इस आंदोलन की गाथा को स्थान दिया गया है। कनाडा में मैती आंदोलन की खबर पढ़कर वहां की पूर्व प्रधानमंत्री फलोरा डोनाल्ड आंदोलन के प्रवर्तक कल्याण सिंह रावत से मिलने गोचर आ गई।

 वे मैती परंपरा से इतना प्रभावित हुई कि उन्होनें इसका कनाडा में प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया। अब वहां भी विवाह के मौके पर पेड़ लगाए जाने लगे हैं। कैलीफोर्निया में कार्यरत माया चढ्ढा ने पर्यावरण को बचाने के लिए यह अभियान अमेरिका में शुरू किया तो इसकी चर्चा वहां के अखबार वाशिंगटन पोस्ट में विस्तार से हुई।

बीबीसी पर भी इस आंदोलन के बारे में अब तक तीन बार कार्यक्रम प्रसारित हो चुके हैं। मैती परंपरा से प्रभावित होकर कनाडा सहित अमेरिका, आस्ट्रिया, नार्वे, चीन, थाईलैंड और नेपाल में भी विवाह के मौके पर पेड़ लगाए जाने लगे हैं।

http://www.hindi.indiawaterportal.org

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चिपको की तर्ज पर चले शराब विरोधी आंदोलन



पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि चिपको की तर्ज पर पहाड़ की महिलाओं को शराब विरोधी आंदोलन चलाने की जरूरत है। तभी पहाड़ का समाज इस कुप्रथा से निपट सकता है। श्री भट्ट बछेर में दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल की ओर से आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।

इस अवसर पर चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि आज जिस प्रकार चमोली जिले के अधिकांश गांवों में शराब विरोधी मुहिम ने जोर पकड़ना शुरू किया है। वह यहां के सामाजिक जीवन के लिए शुभ संकेत है।


पहाड़ की महिलाओं ने पहले कई बड़े शराब विरोधी आंदोलन चलाएं। अब फिर से महिलाओं को यह बीड़ा उठाना होगा। उन्होंने कहा कि प्रत्येक गांव की महिला मंगल दल को यह जिम्मेदारी अपने गांव से उठानी पड़ेगी।


पर्यावरण संरक्षण पर उन्होंने कहा कि अलकनंदा घाटी के 160 ग्लेशियरों में से 15 प्रतिशत ग्लेशियर आज नष्ट हो गए हैं। जंगलों की वृद्धि में चौड़ी पत्ती के वृक्षों के अलावा छोटी वनस्पति का होना भी जरूरी है।


जंगलों के बढ़ने से लोगों की जल एवं दैनिक आवश्यकताओं की सहज पूर्ति होती है। कार्यशाला में विकासखंड दशोली, पोखरी व जोशीमठ की महिलाओं ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर कलावती देवी, विजया भट्ट, मुरारी लाल, डीएस नेगी, बीएस नेगी और राम सिंह गड़िया आदि ने विचार प्रकट किए।

Source  Dainik Jagran

 

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