Author Topic: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier  (Read 24167 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #10 on: October 21, 2012, 12:03:20 AM »

हेम पन्त

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #11 on: October 23, 2012, 12:11:34 PM »
जसवंतगढ़। गुवाहाटी से तवांग जाने के रास्ते में लगभग 12,000 फीट की ऊंचाई पर बना जसवंत युद्ध स्मारक भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध में शहीद हुए महावीर चक्र विजेता सूबेदार जसवंत सिंह रावत के शौर्य व बलिदान की गाथा बयां करता है। उनकी शहादत की कहानी आज भी यहां पहुंचने वालों के रोंगटे खड़े करती है और उनसे जुड़ी किंवदंतियां हर राहगीर को रुकने और उन्हें नमन करने को मजबूर करती हैं।

1962 के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए जसवंत सिंह की शहादत से जुड़ी सच्चाई बहुत कम लोगों को पता हैं। उन्होंने अकेले 72 घंटे चीनी सैनिकों का मुकाबला किया और विभिन्न चौकियों से दुश्मनों पर लगातार हमले करते रहे। जसवंत सिंह से जुड़ा यह वाकया 17 नवंबर 1962 का है, जब चीनी सेना तवांग से आगे निकलते हुए नूरानांग पहुंच गई। इसी दिन नूरानांग में भारतीय सेना और चीनी सैनिकों के बीच लड़ाई शुरू हुई और तब तक परमवीर चक्र विजेता जोगिंदर सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गोसाईं सहित सैकड़ों सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे।

गढ़वाल राइफल के चतुर्थ बटालियन में तैनात जसवंत सिंह रावत ने अकेले नूरानांग का मोर्चा संभाला और लगातार तीन दिनों तक वह अलग-अलग बंकरों में जाकर गोलीबारी करते रहे और उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी। सूबेदार कुलदीप सिंह बताते हैं कि जसंवत सिंह की ओर से अलग-अलग बंकरों से जब गोलीबारी की जाती तब चीनी सैनिकों को लगता कि यहां भारी संख्या में भारतीय सैनिक मौजूद हैं। इसके बाद चीनी सैनिकों ने अपनी रणनीति बदलते हुए उस सेक्टर को चारों ओर से घेर लिया। तीन दिन बाद जसवंत सिंह चीनी सैनिकों से घिर गए।

जब चीनी सैनिकों ने देखा कि एक अकेले सैनिक ने तीन दिनों तक उनकी नाक में दम कर रखा था तो इस खीझ में चीनियों ने जसवंत सिंह को बंधक बना लिया और जब कुछ न मिला तो टेलीफोन तार के सहारे उन्हें फांसी पर लटका दिया। फिर उनका सिर काटकर अपने साथ ले गए। जसवंत सिंह ने इस लड़ाई के दौरान कम से कम 300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था।

जसवंत सिंह की इस शहादत को संजोए रखने के लिए 19 गढ़वाल राइफल ने यह युद्ध स्मारक बनवाया। स्मारक के एक छोर पर एक जसवंत मंदिर भी बनाया गया है। जसवंत की शहादत के गवाह बने टेलीफोन के तार और वह पेड़ जिस पर उन्हें फांसी से लटकाया गया था, आज भी मौजूद है।

आज भी जीवित हैं जसवंत। जसवंत सिंह लोहे की चादरों से बने जिन कमरों में रहा करते थे, उसे स्मारक का मुख्य केंद्र बनाया गया। इस कमरे में आज भी रात के वक्त उनके कपड़े को प्रेस करके और जूतों को पॉलिश करके रखा जाता है। जसवंत सिंह की शहादत से जुड़ी कुछ किंवदंतियां भी हैं। इसी में एक है कि जब रात को उनके कपड़ों और जूतों को रखा जाता था और लोग जब सुबह उसे देखते थे तो ऐसा प्रतीत होता था कि किसी व्यक्ति ने उन पोशाकों और जूतों का इस्तेमाल किया है।

कुलदीप सिंह बताते हैं कि इस पोस्ट पर तैनात किसी सैनिक को जब झपकी आती है तो कोई उन्हें यह कहकर थप्पड़ मारता है कि जगे रहो सीमाओं की सुरक्षा तुम्हारे हाथ में है। इतना ही नहीं एक किंवदंती यह भी है कि उस राह से गुजरने वाला कोई राहगीर उनकी शहादत स्थली पर बगैर नमन किए आगे बढ़ता है तो उसे कोई न कोई नुकसान जरूर होता है। हर ड्राइवर अपनी यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए जसवंतगढ़ में जरूर रुकता है।

यह जसवंत सिंह की वीरता ही थी कि भारत सरकार ने उनकी शहादत के बाद भी सेवानिवृत्ति की उम्र तक उन्हें उसी प्रकार से पदोन्नति दी, जैसा उन्हें जीवित होने पर दी जाती थी। भारतीय सेना में अपने आप में यह मिसाल है कि शहीद होने के बाद भी उन्हें समयवार पदोन्नति दी जाती रही। मतलब वह सिपाही के रूप में सेना से जुड़े और सूबेदार के पद पर रहते हुए शहीद हुए लेकिन सेवानिवृत्त लगभग 40 साल बाद हुए।

अरुणाचल के लोगों को यह बात इस युद्ध के 50 साल बाद भी सालती रही है कि जसवंत सिंह जैसे योद्धा को आज तक परमवीर चक्र क्यों नहीं मिला। बीजेपी के पूर्व सांसद किरण रिजिजू कहते हैं कि महावीर चक्र कम नहीं है, लेकिन जसवंत सिंह जैसे योद्धा परमवीर चक्र के हकदार हैं। मैंने सांसद रहते हुए यह मांग उठाई और देश के रक्षा मंत्री को पत्र भी लिखा लेकिन आज तक परमवीर चक्र उन्हें नहीं मिल पाया।

अरुणाचल पूर्व के सांसद तापिर गाव ने कहा कि मैं जसवंत गढ़ में खड़ा होकर भारत सरकार से मांग करता हूं कि जसवंत सिंह को जल्द से जल्द परमवीर चक्र दिया जाए। यदि बीजेपी की सरकार बनी तो हम उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित करेंगे।

बहरहाल जसवंत सिंह के इस युद्ध स्मारक की देखरेख 10वें सिख रेजीमेंट के हाथों में है। यहां आने वाले हर व्यक्ति के लिए यह रेजीमेंट खाना चाय और लंगर की व्यवस्था करता है। यह जसवंत सिंह की शहादत है जिसे ध्यान में रखकर चाय की पहली प्याली, नाश्ते का हर पहला प्लेट और भोजन की सारी व्यवस्था का पहला भोग जसवंत सिंह को ही लगाया जाता है।

शैला और नूरा की शहादत भी कम नहीं है। नूरानांग के इस युद्ध के दौरान शैला और नूरा नाम की दो लड़कियों की शहादत को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। जसवंत सिंह जब युद्ध में अकेले डटे थे तो इन्हीं दोनों ने शस्त्र और असलहे उन्हें उपलब्ध कराए। जो भारतीय सैनिक शहीद होते उनके हथियारों को वह लाती और जसवंत सिंह को समर्पित करती और उन्हीं हथियारों से जसवंत सिंह ने लगातार 72 घंटे चीनी सैनिकों को अपने पास भी फटकने नहीं दिया और अंतत: वह भारत माता की गोद में लिपट गए और इतिहास में अपने नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #12 on: November 04, 2012, 12:53:29 PM »


Royal GarhwaliLike This Page · 51 minutes ago
Must Must Must Share AND TAG Please
 Es Duniya me aaj bhi Kuch logAmar
 hote hai.... Uttarakhand ke ekAese
 veer ki Kahani jo Mar kar bhiAmar
 Hai........
 1962 के युद्ध में भारत के पास एक
 ऐसा भी वीर
 था जिसकी वीरता को चीन...ने
 भी सलाम किया|
 मित्रों आज हम आपको एक ऐसे वीर
 की गाथा सुनाने जा रहे हैं
 जो अपनी मात्र भूमि के लिए वीर
 गति को प्राप्त हो गया और जिसने अकेले
 ३०० चीनी सैनिकों को मर गिराया|
 जी हाँ मित्रों ३०० सैनिकोंको मौत के
 घाट उतार दिया था इस महावीरने|
 इनका नाम है जसवंत सिंह रावत और यह
 एक उत्तराखंडी है|जसवंत सिंह के नाम पर
 एक गाँव का नाम जसवंतपुर भीहै| इन्हें
 इनकी बहादुरी के लिए महावीरचक्र
 भी दिया गया| जिस युद्ध में ये शहीद हुए
 वो था " बैटल ऑफ़ नूरानांग"|
 तेजपुर नूरानांग में रायफलमेन जसवंत सिंह
 के नाम का मंदिर चीन युद्ध में
 इनकी असाधारण वीरता का परिचायक
 है| यहाँ से गुजरने वाला हर व्यक्ति उनके
 मंदिर में "शीश" नवाता है| यहाँ आने
 वालों को उनकी शौर्य गाथा सुनाई
 जाती की किस तरह एक बंकर से
 दो श्तानिया लड़कियों की सहायता लेकर
 चीन की पूरी ब्रिगेड से वह 72 घंटे तक
 झूझते रहे| इनकी वीरता को चीन ने
 भी सलाम किया| भारत से नफरत करने
 वाले चीन ने इनका "तांबे" का "शीश"
 बनाकर भारत को सौंपा| ४ गढ़वाल
 रायफल का यह सेनानी केवल एकसाल पहले
 ही सेना में शामिल हुआ था| सेना में इस
 वीर जवान का सम्मान यह है की शहादत
 के बाद
 भी उनकी पदोनित्ति की जाती है और
 प्रोटोकॉल भी उसी के हिसाब से
 दिया जाता है| इस समय उन्हें लेफ्टिनेंट
 जेनरल का पद मिला हुआ है| जसवंत सिंह के
 बंकर में उनका बिस्तर,पानी का लोटा-
 ग्लास इत्यादि हर रोज साफ़
 किया जाता है| सेना की वहां मौजूद एक
 टुकड़ी उन्हें नियमानुसार सलामी देती है

utkarsh83

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #13 on: February 23, 2013, 02:30:31 AM »
my salute to the braveheart! son of the motherland.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #14 on: September 08, 2013, 11:45:59 AM »
1962 वॉर में शहीद हुआ भारत माता का वो सपूत आज भी ड्यूटी पर तैनात->
 
........................................................................
 उनको सुबह तड़के साढ़े चार बजे बेड टी दी जाती है. उन्हें नौ बजे नाश्ता और शाम सात बजे रात का खाना भी मिलता है.चौबीस घंटे उनकी सेवा में भारतीय सेना के पाँच जवान लगे रहते हैं. उनका बिस्तर लगाया जाता है, उनके जूतों की बाक़ायदा पॉलिश होती है और यूनिफ़ॉर्म भी प्रेस की जाती है.
 इतनी आरामतलब ज़िंदगी है बाबा जसवंत सिंह रावत की, लेकिन आपको ये जानकर अजीब लगेगा कि वे इस दुनिया में नहीं हैं.
 .
 राइफ़ल मैन जसवंत सिंह भारतीय सेना के सिपाही थे, जो 1962 में नूरारंग की लड़ाई में असाधारण वीरता दिखाते हुए मारे गए थे. उन्हें उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
 सेला टॉप के पास की सड़क के मोड़ पर वह अपनी लाइट मशीन गन के साथ तैनात थे. चीनियों ने उनकी चौकी पर बार-बार हमले किए लेकिन उन्होंने पीछे हटना क़बूल नहीं किया.
 वो मोर्चे पर लड़े और ऐसे लड़े कि दुनिया हैरान रह गई, इससे भी ज्‍यादा हैरानी आपको ये जानकर होगी कि 1962 वॉर में शहीद हुआ भारत माता का वो सपूत आज भी ड्यूटी पर तैनात है। सेना के रजिस्‍टर में उनकी ड्यूटी की एंट्री आज भी होती है और उन्‍हें प्रमोश भी मिलते हैं। अब वो कैप्‍टन बन चुके हैं। इनका नाम है- कैप्‍टन जसवंत सिंह रावत। महावीर चक्र से सम्‍मानित फौजी जसवंत सिंह को आज बाबा जसवंत सिंह के नाम से जाना जाता है।
 उनके परिवार वाले जब ज़रूरत होती है, उनकी तरफ़ से छुट्टी की दर्खास्त देते हैं. जब छुट्टी मंज़ूर हो जाती है तो सेना के जवान उनके चित्र को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके उत्तराखंड के पुश्तैनी गाँव ले जाते हैं और जब उनकी छुट्टी समाप्त हो जाती है तो उस चित्र को ससम्मान वापस उसके असली स्थान पर ले जाया जाता है.
 .
 ╰☆╮||जय जवान || || जय हिंद || ╰☆╮

पंकज सिंह महर

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #15 on: December 18, 2013, 04:30:51 PM »


शहीद जसबंत सिह  का मंदिर अरुणाचल प्रदेश

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #16 on: December 15, 2014, 08:27:16 AM »
जसवंत सिँह रावत (from Uttarakhand) ने 1962 के युद्ध मेँ अकेले 300 चीनी सैनिकोँ को मार गिराया था

1962 में चीन ने भारत को करारी शिकस्‍त दी थी, लेकिन उस युद्ध में हमारे देश कई जांबाजों ने अपने लहू से गौरवगाथा लिखी थी। आज 1962 वॉर की 50वीं बरसी है और हम एक ऐसे शहीद की बात करेंगे, जिसका नाम आने पर न केवल भारतवासी बल्कि चीनी भी सम्‍मान से सिर झुका देते हैं। वो मोर्चे पर लड़े और ऐसे लड़े कि दुनिया हैरान रह गई, इससे भी ज्‍यादा हैरानी आपको ये जानकर होगी कि 1962 वॉर में शहीद हुआ भारत माता का वो सपूत आज भी ड्यूटी पर तैनात है।

शहीद राइफलमैन को मिलता है हर बार प्रमोशन

उनकी सेना की वर्दी हर रोज प्रेस होती है, हर रोज जूते पॉलिश किए जाते हैं। उनका खाना भी हर रोज भेजा जाता है और वो देश की सीमा की सुरक्षा आज भी करते हैं। सेना के रजिस्‍टर में उनकी ड्यूटी की एंट्री आज भी होती है और उन्‍हें प्रमोश भी मिलते हैं। अब वो कैप्‍टन बन चुके हैं। इनका नाम है- कैप्‍टन जसवंत सिंह रावत। महावीर चक्र से सम्‍मानित फौजी जसवंत सिंह को आज बाबा जसवंत सिंह के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के जिस इलाके में जसवंत ने जंग लड़ी थी उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं और भूत प्रेत में यकीन न रखने वाली सेना और सरकार भी उनकी मौजूदगी को चुनौती देने का दम नहीं रखते। बाबा जसवंत सिंह का ये रुतबा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि सीमा के उस पार चीन में भी है।

पूरे तीन दिन तक चीनियों से अकेले लड़ा था वो जांबाज

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में नूरांग में बाबा जसवंत सिंह ने वो ऐतिहासिक जंग लड़ी थी। वो 1962 की जंग का आखिरी दौर था। चीनी सेना हर मोर्चे पर हावी हो रही थी। लिहाजा भारतीय सेना ने नूरांग में तैनात गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुलाने का आदेश दे दिया। पूरी बटालियन लौट गई, लेकिन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गुसाईं नहीं लौटे। बाबा जसवंत ने पहले त्रिलोक और गोपाल सिंह के साथ और फिर दो स्‍थानीय लड़कियों की मदद से चीनियों के साथ मोर्चा लेने की रणनीति तैयार की। बाबा जसवंत सिंह ने अलग अलग जगह पर राईफल तैनात कीं और इस अंदाज में फायरिंग करते गए मानो उनके साथ बहुत सारे सैनिक वहां तैनात हैं। उनके साथ केवल दो स्‍थानीय लड़कियां थीं, जिनके नाम थे, सेला और नूरा। चीनी परेशान हो गए और तीन यानी 72 घंटे तक वो ये नहीं समझ पाए कि उनके साथ अकेले जसवंत सिंह मोर्चा लड़ा रहे हैं। तीन दिन बाद जसवंत सिंह को रसद आपूर्ति करने वाली नूरा को चीनियों ने पकड़ लिया। इसके बाद उनकी मदद कर रही दूसरी लड़की सेला पर चीनियों ने ग्रेनेड से हमला किया और वह शहीद हो गई, लेकिन वो जसवंत तक फिर भी नहीं पहुंच पाए। बाबा जसवंत ने खुद को गोली मार ली। भारत माता का ये लाल नूरांग में शहीद हो गया।

चीनी सेना भी सम्मान करती है शहीद जसवंत का

चीनी सैनिकों को जब पता चला कि उनके साथ तीन दिन से अकेले जसवंत सिंह लड़ रहे थे तो वे हैरान रह गए। चीनी सैनिक उनका सिर काटकर अपने देश ले गए। 20 अक्‍टूबर 1962 को संघर्ष विराम की घोषणा हुई। चीनी कमांडर ने जसवंत की बहादुरी की लोहा माना और सम्‍मान स्‍वरूप न केवल उनका कटा हुआ सिर वापस लौटाया बल्कि कांसे की मूर्ति भी भेंट की।

उस शहीद के स्मारक पर भारतीय-चीनी झुकाते है सर

जिस जगह पर बाबा जसवंत ने चीनियों के दांत खट्टे किए थे उस जगह पर एक मंदिर बना दिया गया है। इस मंदिर में चीन की ओर से दी गई कांसे की वो मूर्ति भी लगी है। उधर से गुजरने वाला हर जनरल और जवान वहां सिर झुकाने के बाद ही आगे बढ़ता है। स्‍थानीय नागरिक और नूरांग फॉल जाने वाले पर्यटक भी बाबा से आर्शीवाद लेने के लिए जाते हैं। वो जानते हैं बाबा वहां हैं और देश की सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं। वो जानते हैं बाबा शहीद हो चुके हैं, वो जानते हैं बाबा जिंदा हैं, बाबा अमर हैं। khabar.ibnlive

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #17 on: April 14, 2015, 08:20:49 AM »
हैरतअंगेजः मौत के बाद भी रोज ड्यूटी करता है यह शहीद - Film on great Martyr of 1962 War Late Jaswant Singh Rawat.

वर्ष 1962 के युद्ध में अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर चीन की सेना को जसवंत सिंह रावत ने अकेले 72 घंटे तक रोके रखा था। जैसे ही चीन की सेना को पता लगा कि दूसरी ओर सिर्फ एक सैनिक है तो उन्होंने घेरा बनाकर धोखे से जसवंत सिंह को मार दिया और उनका सिर धड़ से अलग कर साथ ले गए।

जसवंत सिंह साढ़े इक्कीस साल की उम्र में शहीद हो गए थे। उनकी बहादुरी की सेना इस कदर कायल है कि मरणोपरांत भी उन्हें प्रमोशन मिलते गए। उनके नाम का काफी बड़ा मंदिर अरुणाचल में है।

माना जाता है कि आज भी जसवंत सिंह रोज आते हैं। रोज उनके लिए नाश्ता, खाना जाता है, रोज उनकी वर्दी धोई जाती है, जूतों में पॉलिश की जाती है और नई चादर बिछाई जाती है। लोगों का कहना है कि शहीद जसवंत अब भी सीमा पर ड्यूटी करते हैं।

महावीर चक्र विजेता शहीद जसवंत सिंह रावत की 93 वर्षीय मां लीला देवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेटे के लिए परमवीर चक्र की मांग की है।

लीला देवी ने बीते दिसंबर माह में प्रधानमंत्री को पत्र भेजा था। पत्र का जवाब नहीं मिलने से वह निराश हैं। उनका कहना है कि वह अपनी ओर से पूरा प्रयास करेंगी। लीला देवी के बेटे विजय सिंह रावत ने बताया कि भाई के लिए परिवार मिलकर संघर्ष करेगा।

जब तक मां जीवित हैं, वह चाहती हैं कि उनकी आंखों के सामने शहीद जसवंत सिंह को परमवीर चक्र मिल जाए। इसके लिए हमने अपनी ओर से प्रधानमंत्री को पत्र भेजा है। अब तक जवाब नहीं आने से हम निराश जरूर हैं, लेकिन हम बार-बार अपनी मांग दोहराएंगे। हमारे भाई ने देश के लिए जान दी है। सरकार को चाहिए कि वह शहीद को परमवीर चक्र दे। वर्ष 1962 के युद्ध में भारतीय सेना के एक जांबाज ने अकेले 72 घंटे तक चीन की सेना को अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर कैसे रोके रखा, इसे अब पूरी दुनिया देखेगी। दो साल के शोध के बाद दून के कलाकार महावीर चक्र विजेता शहीद जसवंत सिंह रावत पर फिल्म बनाने जा रहे हैं।

15 जून से शूटिंग शुरू होगी। हालांकि कुछ और कलाकारों को शामिल करने के लिए दो दिन बाद दून में ऑडिशन होंगे। 12 करोड़ रुपये से बनने वाली फिल्म में काम करने के लिए तकनीकी टीम मुंबई से आएगी। रविवार को शहीद जसवंत सिंह रावत के निवास पर आयोजित प्रेसवार्ता में फिल्म के निर्देशक अविनाश ध्यानी ने बताया कि दो साल तक जसवंत सिंह पर शोध करने के बाद कहानी फाइनल की गई है।

शोध की शुरूआत जसवंत सिंह के घर से की गई। उनके गांव पौड़ी, गढ़ी कैंट स्थित उनके स्कूल और अरुणाचल स्थित मंदिर में भी गए। जितना पता था, उससे कई गुना ज्यादा उनके बारे में सुनने को मिला।

अरुणाचल में सैनिकों को जब पता लगा कि हम शहीद जसवंत पर फिल्म बनाने की तैयारी में हैं, तो बहुत खुश हुए। करीब दो महीने पहले मुख्यमंत्री हरीश रावत से भी मिले हैं। (amar ujala)

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #18 on: November 23, 2015, 12:05:23 AM »
Great News - Biopic on Rifleman Jaswant Singh Rawat

Noted writer Kamlesh Pandey will be teaming up with Rakeysh Omprakash Mehra for a biopic on Rifleman Jaswant Singh Rawat, who laid down his life in the 1962 Indo-China war.
The idea for this biopic came from director Sanjay Khanduri of “Ek Chalis Ki Last Local” fame.
Pandey and Khanduri, who have taken permission from Rawat’s family, have been working on the script for two years.
“The story of Rifleman Jaswant Singh Rawat is amazing. The 1962 Indo-China war holds an important part in history and Rawat gave his life for the country. These young soldiers fought against all the odds be it weather, equipments and saved our lives. We felt his story needs to be told to everyone,” Pandey told PTI
 
Singh, is a recipient of Maha Vir Chakra (posthumous). Pandey reveals they have been taking help from the Indian Army and Rawat’s family. “There are some soldiers who worked with him (Rawat) are still alive and we are going to meet them to get some more information about him. We are taking help from Army and his family. They are supporting us completely in getting information from the achieves,” he said. The team now is focusing on getting the final draft ready at the earliest. Hopefully, they might start shooting this year. “We have already written one draft but we are still getting things perfect. Until and unless we are not happy with the final version we won’t go on floors soon,” Pandey said. Once the scripting is done, the team will focus on getting the right cast for the film. - See more at: http://indianexpress.com/article/entertainment/bollywood/biopic-on-rifleman-jaswant-singh-rawat/#sthash.O5b8TVa0.dpuf
http://indianexpress.com/article/entertainment/bollywood/biopic-on-rifleman-jaswant-singh-rawat/#sthash.O5b8TVa0.dpuf

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #19 on: November 23, 2015, 12:13:40 AM »
93 वर्षीय बुजुर्ग माँ की अंतिम इच्छा जसवंत सिंह की मिले परमवीर चक्र


देहरादून : यूँ तो उत्तराखंड का इतिहास रणबांकुरों की बहादुरों की तमाम मिसालों से बार पड़ा है लेकिन भारत -चीन युद्ध के दौरान 1962 की लडाई में चीनी फ़ौज की नाक में दम कर 72 घंटों तक अकेले जूझने का साहस जसवंत सिंह रावत के नाम दर्ज है, अब उनकी 93 वर्षीय बुजुर्ग माँ की अंतिम इच्छा है कि केंद्र सरकार उसके बेटे को उसकी आँख बंद होने से पहले परमवीर चक्र से नवाजे. उनका कहना है इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा है हालाँकि उनको अभी तक उसका जवाब नहीं मिला लेकिन उनको उम्मीद है कि एक न एक दिन केंद्र सरकार उसके बेटे को वह सम्मान जरुर देगी जिसका हक़दार उनका शहीद पुत्र है.

आज भी रोज सेना की  ड्यूटी करता है यह शहीद
    वर्ष 1962 के युद्ध में अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर चीन की सेना को जसवंत सिंह रावत ने अकेले 72 घंटे तक रोके रखा था। जैसे ही चीन की सेना को पता लगा कि दूसरी ओर सिर्फ एक सैनिक है तो उन्होंने घेरा बनाकर धोखे से जसवंत सिंह को मार दिया और उनका सिर धड़ से अलग कर साथ ले गए। जसवंत सिंह साढ़े इक्कीस साल की उम्र में शहीद हो गए थे। उनकी बहादुरी की सेना इस कदर कायल है कि मरणोपरांत भी उन्हें प्रमोशन मिलते गए। उनके नाम का काफी बड़ा मंदिर अरुणाचल में है।

    माना जाता है कि आज भी जसवंत सिंह रोज आते हैं। रोज उनके लिए नाश्ता, खाना जाता है, रोज उनकी वर्दी धोई जाती है, जूतों में पॉलिश की जाती है और नई चादर बिछाई जाती है। लोगों का कहना है कि शहीद जसवंत अब भी सीमा पर ड्यूटी करते हैं। महावीर चक्र विजेता शहीद जसवंत सिंह रावत की 93 वर्षीय मां लीला देवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेटे के लिए परमवीर चक्र की मांग की है।
लीला देवी ने बीते दिसंबर माह में प्रधानमंत्री को पत्र भेजा था। पत्र का जवाब नहीं मिलने से वह निराश हैं। उनका कहना है कि वह अपनी ओर से पूरा प्रयास करेंगी। लीला देवी के बेटे विजय सिंह रावत ने बताया कि भाई के लिए परिवार मिलकर संघर्ष करेगा। जब तक मां जीवित हैं, वह चाहती हैं कि उनकी आंखों के सामने शहीद जसवंत सिंह को परमवीर चक्र मिल जाए। इसके लिए हमने अपनी ओर से प्रधानमंत्री को पत्र भेजा है। अब तक जवाब नहीं आने से हम निराश जरूर हैं, लेकिन हम बार-बार अपनी मांग दोहराएंगे। हमारे भाई ने देश के लिए जान दी है। सरकार को चाहिए कि वह शहीद को परमवीर चक्र दे।
वर्ष 1962 के युद्ध में भारतीय सेना के एक जांबाज ने अकेले 72 घंटे तक चीन की सेना को अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर कैसे रोके रखा, इसे अब पूरी दुनिया देखेगी। दो साल के शोध के बाद दून के कलाकार महावीर चक्र विजेता शहीद जसवंत सिंह रावत पर फिल्म बनाने जा रहे हैं।
15 जून से शूटिंग शुरू होगी। हालांकि कुछ और कलाकारों को शामिल करने के लिए दो दिन बाद दून में ऑडिशन होंगे। 12 करोड़ रुपये से बनने वाली फिल्म में काम करने के लिए तकनीकी टीम मुंबई से आएगी। रविवार को शहीद जसवंत सिंह रावत के निवास पर आयोजित प्रेसवार्ता में फिल्म के निर्देशक अविनाश ध्यानी ने बताया कि दो साल तक जसवंत सिंह पर शोध करने के बाद कहानी फाइनल की गई है।
शोध की शुरूआत जसवंत सिंह के घर से की गई। उनके गांव पौड़ी, गढ़ी कैंट स्थित उनके स्कूल और अरुणाचल स्थित मंदिर में भी गए। जितना पता था, उससे कई गुना ज्यादा उनके बारे में सुनने को मिला।
अरुणाचल में सैनिकों को जब पता लगा कि हम शहीद जसवंत पर फिल्म बनाने की तैयारी में हैं, तो बहुत खुश हुए। करीब दो महीने पहले मुख्यमंत्री हरीश रावत से भी मिले हैं।http://www.devbhoomimedia.com/exclusive-news/93-%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%81-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A4/

 

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