Author Topic: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier  (Read 53290 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #20 on: November 23, 2015, 12:15:04 AM »

मरकर भी जारी है बाबा जसवंत रावत की शौर्य गाथा

उनको सुबह तड़के साढ़े चार बजे बेड-टी दी जाती है. उन्हें नौ बजे नाश्ता और शाम सात बजे रात का खाना भी मिलता है। चौबीस घंटे उनकी सेवा में भारतीय सेना के पाँच जवान लगे रहते हैं. उनका बिस्तर लगाया जाता है, उनके जूतों की बाक़ायदा पॉलिश होती है और यूनिफ़ॉर्म भी प्रेस की जाती है। इतनी आरामतलब ज़िंदगी है बाबा जसवंत सिंह रावत की, लेकिन आपको ये जानकर अजीब लगेगा कि वे इस दुनिया में नहीं हैं।  राइफ़ल मैन जसवंत सिंह भारतीय सेना के सिपाही थे, जो 1962 में नूरारंग की लड़ाई में असाधारण वीरता दिखाते हुए मारे गए थे. उन्हें उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। सेला टॉप के पास की सड़क के मोड़ पर वह अपनी लाइट मशीन गन के साथ तैनात थे। चीनियों ने उनकी चौकी पर बार-बार हमले किए लेकिन उन्होंने पीछे हटना क़बूल नहीं किया। वो मोर्चे पर लड़े और ऐसे लड़े कि दुनिया हैरान रह गई, इससे भी ज्‍यादा हैरानी आपको ये जानकर होगी कि 1962 वॉर में शहीद हुआ भारत माता का वो सपूत आज भी ड्यूटी पर तैनात है।

उनकी सेना की वर्दी हर रोज प्रेस होती है, हर रोज जूते पॉलिश किए जाते हैं। उनका खाना भी हर रोज भेजा जाता है और वो देश की सीमा की सुरक्षा आज भी करते हैं। सेना के रजिस्‍टर में उनकी ड्यूटी की एंट्री आज भी होती है और उन्‍हें प्रमोश भी मिलते हैं। अब वो कैप्‍टन बन चुके हैं। इनका नाम है- कैप्‍टन जसवंत सिंह रावत। महावीर चक्र से सम्‍मानित फौजी जसवंत सिंह को आज बाबा जसवंत सिंह के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के जिस इलाके में जसवंत ने जंग लड़ी थी उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं और भूत प्रेत में यकीन न रखने वाली सेना और सरकार भी उनकी मौजूदगी को चुनौती देने का दम नहीं रखते। बाबा जसवंत सिंह का ये रुतबा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि सीमा के उस पार चीन में भी है। उनके परिवार वाले जब ज़रूरत होती है, उनकी तरफ़ से छुट्टी की दर्खास्त देते हैं. जब छुट्टी मंज़ूर हो जाती है तो सेना के जवान उनके चित्र को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके उत्तराखंड के पुश्तैनी गाँव ले जाते हैं और जब उनकी छुट्टी समाप्त हो जाती है तो उस चित्र को ससम्मान वापस उसके असली स्थान पर ले जाया जाता है.

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में नूरांग में बाबा जसवंत सिंह ने वो ऐतिहासिक जंग लड़ी थी। वो 1962 की जंग का आखिरी दौर था। चीनी सेना हर मोर्चे पर हावी हो रही थी। लिहाजा भारतीय सेना ने नूरांग में तैनात गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुलाने का आदेश दे दिया। पूरी बटालियन लौट गई, लेकिन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गुसाईं नहीं लौटे। बाबा जसवंत ने पहले त्रिलोक और गोपाल सिंह के साथ और फिर दो स्‍थानीय लड़कियों की मदद से चीनियों के साथ मोर्चा लेने की रणनीति तैयार की। बाबा जसवंत सिंह ने अलग अलग जगह पर राईफल तैनात कीं और इस अंदाज में फायरिंग करते गए मानो उनके साथ बहुत सारे सैनिक वहां तैनात हैं। उनके साथ केवल दो स्‍थानीय लड़कियां थीं, जिनके नाम थे, सेला और नूरा। चीनी परेशान हो गए और तीन यानी 72 घंटे तक वो ये नहीं समझ पाए कि उनके साथ अकेले जसवंत सिंह मोर्चा लड़ा रहे हैं। तीन दिन बाद जसवंत सिंह को रसद आपूर्ति करने वाली नूरा को चीनियों ने पकड़ लिया। इसके बाद उनकी मदद कर रही दूसरी लड़की सेला पर चीनियों ने ग्रेनेड से हमला किया और वह शहीद हो गई, लेकिन वो जसवंत तक फिर भी नहीं पहुंच पाए। बाबा जसवंत ने खुद को गोली मार ली। भारत माता का ये लाल नूरांग में शहीद हो गया।

चीनी सैनिकों को जब पता चला कि उनके साथ तीन दिन से अकेले जसवंत सिंह लड़ रहे थे तो वे हैरान रह गए। चीनी सैनिक उनका सिर काटकर अपने देश ले गए। 20 अक्‍टूबर 1962 को संघर्ष विराम की घोषणा हुई। चीनी कमांडर ने जसवंत की बहादुरी की लोहा माना और सम्‍मान स्‍वरूप न केवल उनका कटा हुआ सिर वापस लौटाया बल्कि कांसे की मूर्ति भी भेंट की। जिस जगह पर बाबा जसवंत ने चीनियों के दांत खट्टे किए थे उस जगह पर एक मंदिर बना दिया गया है। इस मंदिर में चीन की ओर से दी गई कांसे की वो मूर्ति भी लगी है। उधर से गुजरने वाला हर जनरल और जवान वहां सिर झुकाने के बाद ही आगे बढ़ता है। स्‍थानीय नागरिक और नूरांग फॉल जाने वाले पर्यटक भी बाबा से आर्शीवाद लेने के लिए जाते हैं। वो जानते हैं बाबा वहां हैं और देश की सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं। वो जानते हैं बाबा शहीद हो चुके हैं, वो जानते हैं बाबा जिंदा हैं, बाबा अमर हैं। जसवंत सिंह लोहे की चादरों से बने जिन कमरों में रहा करते थे, उसे स्मारक का मुख्य केंद्र बनाया गया। इस कमरे में आज भी रात के वक्त उनके कपड़े को प्रेस करके और जूतों को पॉलिश करके रखा जाता है।


जसवंत सिंह की शहादत से जुड़ी कुछ किंवदंतियां भी हैं। इसी में एक है कि जब रात को उनके कपड़ों और जूतों को रखा जाता था और लोग जब सुबह उसे देखते थे तो ऐसा प्रतीत होता था कि किसी व्यक्ति ने उन पोशाकों और जूतों का इस्तेमाल किया है। कुलदीप सिंह बताते हैं कि इस पोस्ट पर तैनात किसी सैनिक को जब झपकी आती है तो कोई उन्हें यह कहकर थप्पड़ मारता है कि जगे रहो, सीमाओं की सुरक्षा तुम्हारे हाथ में है। इतना ही नहीं, एक किंवदंती यह भी है कि उस राह से गुजरने वाला कोई राहगीर उनकी शहादत स्थली पर बगैर नमन किए आगे बढ़ता है तो उसे कोई न कोई नुकसान जरूर होता है। हर ड्राइवर अपनी यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए जसवंतगढ़ में जरूर रुकता है। जसवंत सिंह के इस युद्ध स्मारक की देखरेख 10वें सिख रेजीमेंट के हाथों में है। यहां आने वाले हर व्यक्ति के लिए यह रेजीमेंट खाना चाय और लंगर की व्यवस्था करता है। यह जसवंत सिंह की शहादत है जिसे ध्यान में रखकर चाय की पहली प्याली, नाश्ते का हर पहला प्लेट और भोजन की सारी व्यवस्था का पहला भोग जसवंत सिंह को ही लगाया जाता है।

यह जसवंत सिंह की वीरता ही थी कि भारत सरकार ने उनकी शहादत के बाद भी सेवानिवृत्ति की उम्र तक उन्हें उसी प्रकार से पदोन्नति दी, जैसा उन्हें जीवित होने पर दी जाती थी। भारतीय सेना में अपने आप में यह मिसाल है कि शहीद होने के बाद भी उन्हें समयवार पदोन्नति दी जाती रही। मतलब वह सिपाही के रूप में सेना से जुड़े और सूबेदार के पद पर रहते हुए शहीद हुए . नूरानांग के इस युद्ध के दौरान शैला और नूरा नाम की दो लड़कियों की शहादत को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। जसवंत सिंह जब युद्ध में अकेले डटे थे तो इन्हीं दोनों ने शस्त्र और असलहे उन्हें उपलब्ध कराए। जो भारतीय सैनिक शहीद होते उनके हथियारों को वह लाती और जसवंत सिंह को समर्पित करती और उन्हीं हथियारों से जसवंत सिंह ने लगातार 72 घंटे चीनी सैनिकों को अपने पास भी फटकने नहीं दिया और अंतत: वह भारत माता की गोद में लिपट गए और इतिहास में अपने नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया

http://www.veergorkha.com/2013/09/blog-post_9150.html

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #21 on: November 23, 2015, 12:18:35 AM »

Sunil Negi
31 mins · Edited ·
BOLLYWOOD FEATURE FILM NAMELY," RIFLEMEN JASWANT SINGH RAWAT," IN THE MAKING
I am thrilled to learn that a full fledged feature film on the life of a brave , courageous n patriotic soldier of GARHWAL RIFLES , Rifleman Jaswant Singh Rawat is being made under the prestigious BOLLYWOOD BANNER YASHRAJ FILMS n the audition for the same is in progress in DELHI. The film titled ", RIFLEMAN JASWANT SINGH RAWAT " under such a prestigious banner is bound to be a super duper hit provided it becomes a reality. Very few people know that this most courageous soldier who was posthumosly decorated with the most coveted felicitation MAHAVIR CHAKRA , single handedly fought the CHINESE at TAWANG, ARUNACHAL BORDER during the 1965 war in order to safeguard his post . RIFLEMAN JASWANT SINGH RAWAT , a most corageous n brave soldier in order to keep the Chinese soldiers /batallion at bay fought with them till the last individually giving them the impression that he is commanding the batallion. In the process he killed good number of Chinese n finally succumbed to injuries after three weeks of relentless struggle . WHEN THE CHINESE FINALLY CAME TO KNOW THAT Rifleman Jaswant Singh Rawat is waging a lone battle after rest of the Indian soldiers have died, he was caught n beheaded by the Chinese. But till the end, he never gave up n instead sacrificed his precious life safeguarding our border from CHINESE invasion. SEEING HIS EXMPLARY COURAGE, THE CHINESE ARMY COMMANDANT HONOURABLY RETURNED BACK HIS SEVERED HEAD TO INDIAN ARMY N PAID THEIR RESPECTS BY SALUTING HIS IMMENSE BRAVERY N ALSO RECOMMENDING HIS CASE TO INDIAN GOVERNMENT FOR THE HIGHEST HONOUR OF THE COUNTRY. Today late Jaswant Singh's cemetry lies in TAWANG OF Arunachal Pradesh where the Indian Armymen press his uniform daily ,polish his boots, supply him food in remembrance as if he is still in their midst inspiring them. THE inhabitants of the area n the people from various nooks n corners of the country including the Armymen n officers worship him in the form of GOD n their Diety . HIS FAMILY RECEIVES HIS FULL SALARY TILL DATE N he receives usual promotions at par with other soldiers as well. CURRENTLY HE HAS BEEN PROMOTED AS A MAJOR. RIFLEMAN J.S. RAWAT IS REVERRED TILL DATE AS A LIVING LEGEND N IS ALSO SERVED FOOD ON DAILY BASIS. A REGULAR PUJA IS DONE AT THE SITE OF HIS CREMATION AND IS CONSIDERED AS A SOURCE OF INSPIRATION,SACRIFICE ,BRAVERY N COURAGE FOR THE FELLOW ARMY PERSONELS N OFFICERS STATIONED ON DUTY AT ARUNACHAL BORDER. SALUTES to this great soul who fought the enemy till the last n sacrificed his life fighting for the nation single handedly for weeks together in thirst n hunger N KILLING SEVERAL CHINESE SOLDIERS.
SUNIL NEGI, PRESIDENT, UTTARAKHAND JOURNALISTS FORUM

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #22 on: December 05, 2015, 08:23:52 AM »
The Heroic Story Of Jaswant Singh – The Man Who Saved Arunachal Pradesh From The Chinese

Sometime before first light fell over the mountains, they’d begun their ascent into Arunachal Pradesh once again.
This was the Chinese Army’s fourth assault, in the last charge as a final insult - they’d chopped off the hand of the Buddha Statue in Tawang and carried it away, but something was different this time.
As the sun rose over the Eastern Himalayas around 5 am and the Chinese troops mounted another assault, this time through Sela top – something was different – the Delta company of the Garwal Rifles or specifically a Rifleman of the 4 Garwal - Jaswant Singh Rawat was in their way.

http://www.indiatimes.com/news/india/the-heroic-story-of-jaswant-singh-the-man-who-saved-arunachal-pradesh-from-the-chinese-army-247929.html

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Re: Jaswant Singh Rawat an Immortal Soldier
« Reply #23 on: January 07, 2018, 11:04:30 PM »
सीमा पर कामचोरी करने पर थप्पड़ मारती है 'आत्मा', पढ़िए देशभक्ति की अनोखी कहानी

यह कहानी है भारत मां के वीर सपूत जसवंत सिंह रावत की। जो गढ़वाल राइफल के वीर जवान रहे और इन्होंने 1962 में चीन के साथ हुई लड़ाई में चीनी सेना को रणभूमि में करारी टक्कर दी। लोगों का कहना है कि वीर जसवंत सिंह की आत्मा पोस्ट पर तैनात झपकी ले रहे सैनिकों को थप्पड़ मारकर जगाती है। इतना ही नहीं जसवंत सिंह को लेकर कई तरह की कहानियां कहीं जाती हैं। कहा जाता है कि जिस कमरे में जसवंत रहते थे वहां आज भी उनके जूतों को पॉलिश करके रखा जाता है। उनके कपड़ों को धोकर और प्रेस करके रखा जाता है, बिस्तर भी लगाया जाता है। लोगों का कहना है कि अगली सुबह बिस्तर, जूते और कपड़े ऐसे मिलते हैं जैसे किसी ने उनका उपयोग किया हो।  बताया जाता है कि 17 नवंबर 1962 को जब चीनी सेना ने यहां हमला किया तो गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान मारे गए, लेकिन जसवंत सिंह अकेले ही 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित अपनी पोस्ट पर डटे रहे। उन्होंने दो स्थानीय मोनपा लड़कियों सेला और नूरा की मदद से अलग-अलग जगहों पर हथियार रखे और चीनी सेना पर हमला बोल दिया। जिस कारण चीनी सेना को लगा कि वे भारतीय सेना की टुकड़ी से लड़ रहे हैं न कि एक आदमी से। कहा जाता है कि इस भीषण लड़ाई के दौरान जसवंत सिंह ने 300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन जसवंत सिंह को राशन पहुंचाने वाले आदमी के पकड़े जाने के बाद चीनी सेना को पता चला कि उनकी सेना के होश उड़ाने वाला एक अकेला राइफलमैन जसंवत सिंह है। सेला ग्रेनेड हमले में मारी गई जबकि नूरा पकड़ी गई। चीनी सैनिकों ने जसवंत सिंह को पकड़ लिया और पेड़ से लटका कर फांसी दे दी। चीनी सेना जसंवत सिंह का सिर काटकर अपने साथ चीन ले गई, लेकिन जसवंत की बहादुरी से प्रभावित एक चीनी कमांडर ने बाद में उसे भारत को लैटा दिया। इस वीर की बहादुरी के चलते सेना ने शहीद होने के 40 साल बाद रिटायरमेंट किया। इतना ही नहीं उन्हें बीच-बीच में प्रमोशन भी दिए गए। स्थानीय लोगों द्वारा कहा जाता है कि यदी जसवंत के स्मारक पर हाथ न जोड़े तो आगे जाकर कोई अनहोनी जरूर होती है।

https://www.amarujala.com/photo-gallery/dehradun/story-of-a-spirit-who-serves-india?pageId=4

 

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