जबड़ा फटा पर जज्बे ने दिलाई जीत- हरिदत्त कापड़ी - पिथौरागढ़ थाईलैंड के खिलाफ मैच में जख्मी होने के बावजूद खेलकर टीम को जीत दिलाने वाले अर्जुन अवार्डी हरिदत्त कापड़ी खेल के प्रति समर्पित हैं।
अपने अनुभव की साझा किए
सेना के इस जांबाज में जज्बा, जोश और जनून की झलक आज भी दिखाई देती है। रिटायर होकर कापड़ी ने पहाड़ में बास्केटबॉल जैसे अंजान खेल को अलग पहचान दिलाई।
‘अमर उजाला’ से विशेष बातचीत में 73 वर्षीय हरिदत्त कापड़ी ने लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड मिलने पर खुशी जताई और अपने अनुभव की साझा किए।
पिथौरागढ़ के भाटकोट रोड से फोन पर बातचीत में कापड़ी ने बताया कि 14 साल की उम्र में ब्वॉयज कंपनी में भर्ती होकर खेलना शुरू किया। 1969 एशियन गेम्स की याद ताजा करते हुए बताया कि बैंकाक में तब गेम्स हुए। भारतीय टीम चौथे स्थान पर रही। एक मैच हमेशा याद रहेगा। थाईलैंड के खिलाफ एक मैच में हम बढ़त बनाए हुए थे।
गेंद को छीनने की कोशिश में विपक्षी खिलाड़ी ने कोहनी से मुंह पर वार किया, उनका पूरा जबड़ा हिल गया। जमीन पर गिर ए। स्ट्रेचर पर बाहर लाकर डॉक्टरों ने इलाज दिया। स्थिति बहुत बुरी थी, इसलिए टीम मैनेजर और कोच ने खेलने से मना कर दिया।
बकौल कापड़ी, मैं अपनी जिद से मैदान में गया और आखिर में छह अंक के अंतर से हम जीते। मैच के बाद मेरे जबड़े में सात टांके लगे। यही जज्बा था कि 1969 में भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया।
खेल विभाग में संविदा कोच भी रहे
हरिदत्त कापड़ी 1965 में भारतीय सर्विसेज बास्केटबॉल टीम के कप्तान रहे। बंगाल इंजीनियरिंग से रिटायर होने के बाद उन्होंने 1985 से 2003 तक बिड़ला विद्या मंदिर नैनीताल में कोच के तौर पर काम किया। चार साल तक कापड़ी खेल विभाग पिथौरागढ़ में संविदा कोच के रूप में भी जुड़े रहे।