Author Topic: Personalities of Uttarakhand/उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध/महान विभूतियां  (Read 148007 times)

हेम पन्त

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उत्तराखण्ड के जनसरोकारों से जुडे क्रान्तिकारी छात्र नेता स्वर्गीय निर्मल जोशी "पण्डित" छोटी उम्र में ही जन-आन्दोलनों की बुलन्द आवाज बन कर उभरे थे. शराब माफिया,खनन माफिया के खिलाफ संघर्ष तो वह पहले से ही कर रहे थे लेकिन 1994 के राज्य आन्दोलन में जब वह सिर पर कफन बांधकर कूदे तो आन्दोलन में नयी क्रान्ति का संचार होने लगा.

गंगोलीहाट, पिथौरागढ के पोखरी गांव में श्री ईश्वरी प्रसाद जोशी व श्रीमती प्रेमा जोशी के घर 1970 में जन्मे निर्मल 1991-92 में पहली बार पिथौरागढ महाविद्यालय में छात्रसंघ महासचिव चुने गये. छात्रहितों के प्रति उनके समर्पण का ही परिणाम था कि वह लगातार 3 बार इस पद पर चुनाव जीते. इसके बाद वह पिथौरागढ महाविद्यालय में छात्रसंघ के  अध्यक्ष भी चुने गये. 1993 में नशामुक्ति अभियान के तहत उन्होने एक सेमिनार का आयोजन किया. 1994 में उन्हें मिले जनसमर्थन को देखकर प्रशासन व राजनीतिक दल सन्न रह गये. उनके आह्वान पर पिथौरागढ के ही नहीं उत्तराखण्ड के अन्य जिलों की छात्रशक्ति व आम जनता आन्दोलन में कूद पङे. मैने पण्डित को इस दौर में स्वयं देखा है. छोटी कद काठी व सामान्य डील-डौल के निर्मल दा का पिथौरागढ में इतना प्रभाव था कि प्रशासन के आला अधिकारी उनके सामने आने को कतराते थे. कई बार तो आम जनता की उपेक्षा करने पर सरकारी अधिकारियों को सार्वजनिक तौर पर निर्मल दा के क्रोध का सामना भी करना पङा था.

राज्य आन्दोलन के समय पिथौरागढ में भी उत्तराखण्ड के अन्य भागों की तरह एक समानान्तर सरकार का गठन किया गया था, जिसका नेतृत्व निर्मल दा के हाथों मे था. उस समय पिथौरागढ के हर हिस्से में निर्मल दा को कफन के रंग के वस्त्र पहने देखकर बच्चों से लेकर वृद्धों को आन्दोलन में कूदने का नया जोश मिला. इस दौरान उन्हें गिरफ्तार करके फतेहपुर जेल भी भेजा गया.

आन्दोलन समाप्त होने पर भी आम लोगों के हितों के लिये पण्डित का यह जुनून कम नहीं हुआ. अगले जिला पंचायत चुनावों में वह जिला पंचायत सदस्य चुने गये. शराब माफिया और खनन माफिया के खिलाफ उन्होने अपनी मुहिम को ढीला नहीं पडने दिया.27 मार्च 1998 को शराब के ठेकों के खिलाफ अपने पूर्व घोषित आन्दोलन के अनुसार उन्होने आत्मदाह किया. बुरी तरह झुलसने पर पिथौरागढ में कुछ दिनों के इलाज के बाद उन्हें दिल्ली लाया गया.16 मई 1998 को जिन्दगी मौत के बीच झूलते हुए अन्ततः उनकी मृत्यु हो गयी.

निर्भीकता और जुझारुपन निर्मल दा की पहचान थी. उन्होने अपना जीवन माफिया के खिलाफ पूर्णरूप से समर्पित कर दिया और इनकी धमकियों के आगे कभी भी झुकने को तैयार नहीं हुए. अन्ततः उनका यही स्वभाव उनकी शहीद होने का कारण बना.

इस समय जब शराब और खनन माफिया उत्तराखण्ड सरकार पर हावी होकर पहाङ को लूट रहे हैं, तो पण्डित की कमी खलती है.उनका जीवन उन युवाओं के लिये प्रेरणा स्रोत है जो निस्वार्थ भाव से उत्तराखण्ड के हित के लिये काम कर रहे हैं.

हेम पन्त

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #111 on: July 28, 2008, 01:03:25 PM »
उत्तराखण्ड के लोग क्रान्तिकारी निर्मल पण्डित को अभी भूले नही हैं. उनके समान निर्भीक व संघर्षशील क्रान्तिकारी की इस दौर में फिर से जरूरत है....


पंकज सिंह महर

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #112 on: July 31, 2008, 03:43:38 PM »
उत्तराखण्ड के लोग क्रान्तिकारी निर्मल पण्डित को अभी भूले नही हैं. उनके समान निर्भीक व संघर्षशील क्रान्तिकारी की इस दौर में फिर से जरूरत है....



निर्मल दा के व्यक्तिव से फोरम को परिचित कराने के लिये हेम दा का कोटिशः धन्यवाद। निर्मल दा मूलतः पिथौरागढ़ जिले की छात्र राजनीति के केन्द्र थे। मुझे उनसे मिलने और समाजिक मुद्दों पर चर्चा का काफी अवसर मिला। छात्र संघ के महामंत्री रहते हुये अपनी स्पष्टवादिता के कारण जिले के सभी हुक्मरान उनसे मिलने से कतराते थे। आरक्षण आन्दोलन के दौरान उन्होंने तत्कालीन ए०डी०एम० को शहर की बीचोबीच गांधी चौक पर अपशब्द कहने पर झापड़ भी रसीद कर दिया था।
    उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान कफन पहने निर्मल दा ने सबसे पहले पिथौरागढ़ में समानान्तर सरकार की घोषणा कर स्वयं को मुख्यमंत्री तक घोषित कर दिया। उन दिनों वह दिन भर आन्दोलन करते थे और रात-रात पैदल चलकर लोगों में उत्तराखण्ड आन्दोलन के लिये वे समर्थन मांगते थे। उनकी जनप्रियता और उनके नेतृत्व में धधक रहा पृथक राज्य आन्दोलन की तपिश जब लखनऊ तक पहुंची तो उनके एनकांउटर के आदेश दे दिये गये थे] लेकिन उन्हें इसका भान हो गया और सरकार को उन्हें गिरफ्तार करके ही संतोष करना पड़ा।
उन्होंने छात्रों की और जनता की मांग के लिये कई बार आत्मदाह किया और अंतिम आत्मदाह में जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण एक गंभीर राजनीतिग्य को हमने खो दिया।
    लेकिन जो लौ निर्मल दा ने जलाई है, उसका अनुसरण सभी को करना चाहिये, तभी हम अपने सपनों के उत्तराखण्ड को पा सकेंगे।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #113 on: July 31, 2008, 03:51:43 PM »
Dhanyavaad Joshi ji, Hem bhai aur Mahar bhai in mahaan vyaktion ke baare main jaankaari pradaan karne ke liye.

हेम पन्त

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उत्तराखण्ड के जन-सरोकारों से जुडा,  शायद ही कोई मुद्दा हो जो गिर्दा की कलम से अछूता रहा हो. सरकारी व्यवस्था से उपजे गुस्से को तथा उत्तराखण्ड में हुए जनान्दोलनों को लेकर लिखे गये उनके गीतों में पीङा है, आह्वान है तथा उज्वल भविष्य की आस है. जहाँ भी जनसंघर्ष था गिर्दा उन सभी जगहों पर कवि-गायक-नायक के रूप में अनिवार्य रूप से विद्यमान रहे.

गिरीश चन्द्र तिवाङी 'गिर्दा' का जन्म 1945 में ज्योली हवालबाग में श्री हंसादत्त तिवाङी तथा श्रीमती जीवन्ती तिवाङी के घर पर हुआ. छठे दशक में पीलीभीत जिले में पीडब्ल्यूडी में नौकरी के दौरान गिर्दा का सम्पर्क कवि सम्मेलनों के माध्यम से अनेक हस्तियों से हुआ. 28 नवम्बर 1967 को वह गीत एवं नाट्य प्रभाग से जुडे. 1977 में भारतेन्दु हरिशचन्द्र का "अन्धायुग" नाटक निर्देशित किया. गिर्दा द्वारा लिखा एक नाटक "नगाङे खामोश हैं" काफी चर्चित है. 1978 में गिर्दा की सामाजिक कविताओं पर आधारित कविताओं को "पहाङ" ने "हमारी कविता के आंखर" नाम से प्रकाशित किया.

1999 में दुर्गेश पन्त के साथ गिर्दा ने "शिखरों के स्वर” नामक कविता संग्रह संपादित किया.

पिछले वर्ष उत्तराखण्डी प्रवासियों के संगठन UANA द्वारा गिर्दा,शेखर पाठक जी तथा नरेन्द्र सिंह नेगी जी को अपने 10वें वार्षिक समारोह में विशेष अतिथि के तौर पर अमेरिका बुला कर सम्मानित किया गया.

प्रसिद्ध वीरगाथा गायक झुसिया दमाई पर गिर्दा ने 400 पन्नों का एक शोध किया. उनके अनुसार तीजन बाई की पण्डवानी तथा झुसिया दमाई की वीरगाथाओं में काफी समानताएं हैं.

"नशा नही रोजगार दो आन्दोलन" के दौरान "जन एकता कूच करो, मुक्ति चाहते हो तो आओ संघर्ष में कूद पडो"  गाकर आम जनता से आन्दोलन में भागीदारी का आह्वान किया.

मजदूर-किसानों के हक दिलाने के लिए इस तबके के लोगों में जोश भरने का काम उनके इस गीत ने किया.

हम ओङ-बारूङि, ल्वार-कुल्ली-कभाङि, जधीन यो दुनी थैं हिसाब ल्यूंलो.
एक हांगो नै मांगू, एक ठांगो नै मांगूं, पूरो खाता-खतौनी को हिसाब ल्यूंलो

इसी दौरान जनता के बीच आशा का संचार करता गिर्दा का यह गीत आया जो आने वाले कई पीढियों तक आन्दोलन गीत बन कर गाया जाता रहेगा

जैंता एक दिन त आलो ये दुनी में
चाहे हम ने ल्या सकूं, चाहे तुम नि ल्या सको
जैंता क्वै न क्वै त ल्यालो, ये दुनी में
जैंता एक दिन त आलो ये दुनी में……


पंकज सिंह महर

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धन्यवाद हेम दा,
        श्री गिरीश तिवाड़ी "गिर्दा" उत्तराखण्ड आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर तो हैं ही साथ ही उत्तराखण्ड के जन सरोकारों को कविताओं के माध्यम से भी वह लगातार उठाते रहे हैं। उत्तराखण्ड आन्दोलन में तो वह आन्दोलनकारियों के लिये एक संबल का काम करते थे।
सरजू-गुमती संगम में गंगजली उठूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
उतरैणिक कौतीक हिटो वै फैसला करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूंलो 'बैणी' उत्तराखण्ड ल्हयूंलो

उत्तराखण्ड बनने के बाद राजधानी पर कैसे ना-नुकुर होगी और हमें क्या करना होगा यह भी गिर्दा ने सितम्बर, २००० मे ही बता दिया था।
कस होलो उत्तराखण्ड, कां होली राजधानी,
राग-बागी यों आजि करला आपुणि मनमानी,
यो बतौक खुली-खुलास गैरसैंण करुंलो।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

टेम्पुरेरी-परमानैन्टैकी बात यों करला,
दून-नैनीताल कौला, आपुंण सुख देखला,
गैरसैंण का कौल-करार पैली कर ल्हूयला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

वां बै चुई घुमाल यनरी माफिया-सरताज,
दून बै-नैनताल बै चलौल उनरै राज,
फिरि पैली है बांकि उनरा फन्द में फंस जूंला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

’गैरसैणाक’ नाम पर फूं-फूं करनेर,
हमरै कानि में चडि हमने घुत्ति देखूनेर,
हमलै यनरि गद्दि-गुद्दि रघोड़ि यैं धरुला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

गिर्दा का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।[/b][/color]

पंकज सिंह महर

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गिर्दा की कविताओं में उत्तराखण्ड का दर्द झलकता है-

आज हिमाल तुमन के धत्यूंछौ, जागौ-जागौ हो म्यरा लाल,
नी करण दियौ हमरी निलामी, नी करण दियौ हमरो हलाल।
विचारनै की छां यां रौजै फ़ानी छौ, घुर घ्वां हुनै रुंछौ यां रात्तै-ब्याल,
दै की जै हानि भै यो हमरो समाज, भलिकै नी फानला भानै फुटि जाल।
बात यो आजै कि न्हेति पुराणि छौ, छांणि ल्हियो इतिहास लै यै बताल,
हमलै जनन कैं कानी में बैठायो, वों हमरै फिरी बणि जानी काल।
अजि जांलै कै के हक दे उनले, खालि छोड़्नी रांडा स्यालै जै टोक्याल,
ओड़, बारुणी हम कुल्ली कभाणिनाका, सांचि बताओ धैं कैले पुछि हाल।
लुप-लुप किड़ पड़ी यो व्यवस्था कैं, ज्यून धरणै की भें यौ सब चाल,
हमारा नामे की तो भेली उखेलौधें, तैका भितर स्यांणक जिबाड़ लै हवाल।
भोट मांगणी च्वाख चुपड़ा जतुक छन, रात-स्यात सबनैकि जेड़िया भै खाल,
उनरै सुकरम यौ पिड़ै रैई आज, आजि जांणि अघिल कां जांलै पिड़ाल।
ढुंग बेच्यो-माट बेच्यो, बेचि खै बज्याणी, लिस खोपि-खोपि मेरी उधेड़ी दी खाल,
न्यौलि, चांचरी, झवाड़, छपेली बेच्या मेरा, बेचि दी अरणो घाणी, ठण्डो पाणि, ठण्डी बयाल।

उत्तराखण्ड के अमर शहीदों को प्रसिद्द जनकवि गिरीश तिवारी "गिर्दा" की श्रद्दांजलि
थातिकै नौ ल्हिन्यू हम बलिदानीन को, धन मयेड़ी त्यरा उं बांका लाल।
धन उनरी छाती, झेलि गै जो गोली, मरी बेर ल्वै कैं जो करी गै निहाल॥
पर यौं बलि नी जाणी चैनिन बिरथा, न्है गयी तो नाति-प्वाथन कैं पिड़ाल।
तर्पण करणी तो भौते हुंनी, पर अर्पण ज्यान करनी कुछै लाल॥
याद धरो अगास बै नी हुलरौ क्वे, थै रण, रणकैंणी अघिल बड़ाल।
भूड़ फानी उंण सितुल नी हुनो, जो जालो भूड़ में वीं फानी पाल।।
आज हिमाल तुमन के धत्यूछौ, जागो-जागो हो म्यरा लाल....!

हिन्दी भावार्थ-
नामयहीं पर लेते हैं उन अमर शहीदों का साथी, कर प्राण निछावर हुये धन्य जो मां के रण-बांकुरे लाल।
हैं धन्य जो कि सीना ताने हंस-हंस कर झेल गये गोली, हैं धन्य चढ़ाकर बलि कर गये लहू को जो निहाल॥
इसलिए ध्यान यह रहे कि बलि बेकार ना जाये उन सबकी, यदि चला गया बलिदान व्यर्थ युगों-युगों पड़ेगा पहचान।
तर्पण करने वाले तो अपने मिल जायेंगे बहुत, मगर अर्पित कर दें जो प्राण, कठिन हैं ऎसे अपने मिल पाना॥
ये याद रहे आकाश नहीं टपकता है रणवीर कभी, ये याद रहे पाताल फोड़ नहीं प्रकट हुआ रणधीर कभी।
ये धरती है, धरती में रण ही रण को राह दिखाता है, जो समर भूमि में उतरेगा, वही रणवीर कहाता है॥
इसलिए, हिमालय जगा रहा है तुम्हें कि जागो-जागो मेरे लाल........!
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प्रहलाद तडियाल

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #117 on: August 13, 2008, 12:51:32 PM »
उत्तराखण्ड आन्दोलन का गिर्दा द्वारा लिखित कविता ! (बागस्यरौक गीत)
सरजू-गुमती संगम में गंगजली उठूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
उतरैणिक कौतीक हिटो वै फैसला करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूंलो 'बैणी' उत्तराखण्ड ल्हयूंलो
बडी महिमा बास्यरै की के दिनूँ सबूतऐलघातै उतरैणि आब यो अलख जगूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो धन -मयेडी छाति उनरी,धन त्यारा उँ लाल, बलिदानै की जोत जगै ढोलि गै जो उज्याल खटीमा,मंसुरि,मुजफ्फर कैं हम के भुली जुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'चेली'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
कस हो लो उत्तराखण्ड,कास हमारा नेता, कास ह्वाला पधान गौं का,कसि होली ब्यस्था
जडि़-कंजडि़ उखेलि भली कैं , पुरि बहस करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो वि कैं मनकसो बैंणूलोबैंणी फाँसी उमर नि माजैलि दिलिपना कढ़ाई
रम,रैफल, ल्येफ्ट-रैट कसि हुँछौ बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'ज्वानो' उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
मैंसन हूँ घर-कुडि़ हौ,भैंसल हूँ खाल, गोरु-बाछन हूँ गोचर ही,चाड़-प्वाथन हूँ डाल
धूर-जगल फूल फलो यस मुलुक बैंणूलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'परु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
पांणिक जागि पांणि एजौ,बल्फ मे उज्याल, दुख बिमारी में मिली जो दवाई-अस्पताल सबनै हूँ बराबरी हौ उसनै है बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
सांच न मराल् झुरी-झुरी जाँ झुट नि डौंरी पाला, सि, लाकश़ बजरी चोर जौं नि फाँरी पाला
जैदिन जौल यस नी है जो हम लडते रुंलो उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
लुछालुछ कछेरि मे नि हौ, ब्लौकन में लूट, मरी भैंसा का कान काटि खाँणकि न हौ छूट
कुकरी-गासैकि नियम नि हौ यस पनत कँरुलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
जात-पात नान्-ठुल को नी होलो सवाल, सबै उत्तराखण्डी भया हिमाला का लाल
ये धरती सबै की छू सबै यती रुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
यस मुलूक वणै आपुँणो उनन कैं देखुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो

प्रहलाद तडियाल

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #118 on: August 13, 2008, 12:52:44 PM »

गैरसैंण के बारे में गिर्दा के छन्द
२४ सितम्बर, २००० को गिर्दा ने गैरसैंण रैली में यह छ्न्द कहे थे, जो सच भी हुये

कस होलो उत्तराखण्ड, कां होली राजधानी,
राग-बागी यों आजि करला आपुणि मनमानी,
यो बतौक खुली-खुलास गैरसैंण करुंलो।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

टेम्पुरेरी-परमानैन्टैकी बात यों करला,
दून-नैनीताल कौला, आपुंण सुख देखला,
गैरसैंण का कौल-करार पैली कर ल्हूयला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

वां बै चुई घुमाल यनरी माफिया-सरताज,
दून बै-नैनताल बै चलौल उनरै राज,
फिरि पैली है बांकि उनरा फन्द में फंस जूंला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

’गैरसैणाक’ नाम पर फूं-फूं करनेर,
हमरै कानि में चडि हमने घुत्ति देखूनेर,
हमलै यनरि गद्दि-गुद्दि रघोड़ि यैं धरुला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

प्रहलाद तडियाल

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #119 on: August 13, 2008, 12:54:05 PM »

उत्तराखण्ड के अमर शहीदों को प्रसिद्द जनकवि गिरीश तिवारी "गिर्दा" की श्रद्दांजलि

थातिकै नौ ल्हिन्यू हम बलिदानीन को, धन मयेड़ी त्यरा उं बांका लाल।
धन उनरी छाती, झेलि गै जो गोली, मरी बेर ल्वै कैं जो करी गै निहाल॥
पर यौं बलि नी जाणी चैनिन बिरथा, न्है गयी तो नाति-प्वाथन कैं पिड़ाल।
तर्पण करणी तो भौते हुंनी, पर अर्पण ज्यान करनी कुछै लाल॥
याद धरो अगास बै नी हुलरौ क्वे, थै रण, रणकैंणी अघिल बड़ाल।
भूड़ फानी उंण सितुल नी हुनो, जो जालो भूड़ में वीं फानी पाल।।
आज हिमाल तुमन के धत्यूछौ, जागो-जागो हो म्यरा लाल....!

हिन्दी भावार्थ-

नामयहीं पर लेते हैं उन अमर शहीदों का साथी, कर प्राण निछावर हुये धन्य जो मां के रण-बांकुरे लाल।
हैं धन्य जो कि सीना ताने हंस-हंस कर झेल गये गोली, हैं धन्य चढ़ाकर बलि कर गये लहू को जो निहाल॥
इसलिए ध्यान यह रहे कि बलि बेकार ना जाये उन सबकी, यदि चला गया बलिदान व्यर्थ युगों-युगों पड़ेगा पहचान।
तर्पण करने वाले तो अपने मिल जायेंगे बहुत, मगर अर्पित कर दें जो प्राण, कठिन हैं ऎसे अपने मिल पाना॥
ये याद रहे आकाश नहीं टपकता है रणवीर कभी, ये याद रहे पाताल फोड़ नहीं प्रकट हुआ रणधीर कभी।
ये धरती है, धरती में रण ही रण को राह दिखाता है, जो समर भूमि में उतरेगा, वही रणवीर कहाता है॥
इसलिए, हिमालय जगा रहा है तुम्हें कि जागो-जागो मेरे लाल........!

 

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