Author Topic: Personalities of Uttarakhand/उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध/महान विभूतियां  (Read 147976 times)

पंकज सिंह महर

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #60 on: November 22, 2007, 04:28:02 PM »
महान भौतिकविद डॉक्टर डी. डी. पंत
(आप रौशनी हैं हमारे लिए) by ashutosh


यह वाकया उस जमाने का है, जब देश को आजादी मिली ही थी। हिमालय के दूर-दराज गांव के अत्यंत विपन्न परिवार का एक छात्र नोबेल विजेता और महान भौतिकविद सर सी.वी. रमन की प्रयोगशाला (रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेंगलूर) में अपना शोधकार्य समेट रहा था। घर की माली हालत बेहद खराब थी। रमन साहब ने उसे भारतीय मौसम विभाग की शानदार नौकरी कर लेने का सुझाव दिया। गांधी को अपना आदर्श मानने वाले छात्र को निर्देशक का प्रस्ताव कुछ जंचा नहीं- मैं आपकी तरह शिक्षक बनना चाहता हूं। रमन साहब हंस पड़े, बोले- तब तुम जीवन भर गरीब और उपेक्षित ही रहोगे।


रमन साहब की बात सचमुच सही साबित हुई। हजारों छात्रों के लिए सफलता की राह तैयार करने वाले प्रो. देवी दत्त पन्त अपने जीवन की संध्या में आज भी लगभग गुमनाम और उपेक्षित हैं। बीती सदी के पांचवें दशक में जब नैनीताल में डीएसबी कालेज की स्थापना हुई तो प्रो. पन्त भौतिकविज्ञान विभाग का अध्यक्ष पद संभालने आगरा कालेज से यहां पहुंचे। वह स्पेक्ट्रोस्कोपी के आदमी थे और उन्होंने यहां फोटोफिजिक्स लैब की बुनियाद डाली। जाने-माने भौतिकशास्त्री और इप्टा (इंडियन फिजिक्स टीचर्स ऐसोसिएशन) के संस्थापक डी.पी. खण्डेलवाल उनके पहले शोधछात्र बने। उस जमाने में शोध को आर्थिक मदद देने वाली संस्थाएं नहीं थीं। दूसरे विश्वयुद्ध के टूटे-फूटे उपकरण कबाडि़यों के पास मिल जाया करते थे और पन्त साहब अपने मतलब के पुर्जे वहां जाकर जुटा लेते थे। कबाड़ के जुगाड़ से लैब का पहला टाइम डोमेन स्पेक्ट्रोमीटर तैयार हुआ। इस उपकरण की मदद से पन्त और खण्डेलवाल की जोड़ी ने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण शोधकार्य किया। यूरेनियम के लवणों की स्पेक्ट्रोस्कोपी पर हुए इस शोध ने देश-विदेश में धूम मचाई। इस विषय पर लिखी गई अब तक की सबसे चर्चित पुस्तक (फोटोकैमिस्ट्री ऑफ यूरेनाइल कंपाउंड्स, ले. राबिनोविच एवं बैडफोर्ड) में पन्त और खण्डेलवाल के काम का दर्जनों बार उल्लेख हुआ है। शोध की चर्चा अफवाहों की शक्ल में वैज्ञानिक बिरादरी से बाहर पहुंची। आज भी जिक्र छिड़ने पर पुराने लोग बताते हैं- प्रो. पन्त ने तब एक नई किरण की खोज की थी, जिसे `पन्त रे´ नाम दिया गया। इस मान्यता को युरेनियम लवणों पर उनके शोध का लोकfप्रय तर्जुमा कहना ठीक होगा।

for complete article click here
http://www.creativeuttarakhand.com/celebrities/d_d_pant.html
सराहनीय कार्य शैलेश, डा० पंत उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे हैं, १९७९ में उनकी अध्यक्षता में मसूरी में इस दल का गठन किया गया था. +१ कर्मा के भी तुम हकदार हो......

पंकज सिंह महर

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #61 on: November 22, 2007, 04:32:31 PM »
विलियम सैक्स

प्रोफ़ेसर विलियम सैक्स उर्फ़ बद्री प्रसाद नौटियाल वैसे तो जर्मनी की हिडेलबर्ग युनिवर्सिटी के दक्षिण एशियाई संस्थान में एंथ्रोपोलॉजी विभाग के अध्यक्ष हैं.
लेकिन पहाड़ की संस्कृति से उनका इतना गहरा लगाव है कि उनको जागर नंदा रज्जत और पाँडव जैसी लोक परंपराओं में महारथ हासिल है.
रिचुअल हीलिंग पर काम कर रहे प्रोफ़ेसर सैक्स का कहना है कि इन परंपराओं में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का राज़ छिपा है.
पहाड़ी वेशभूषा में जब प्रो. विलियम सैक्स गढ़वाली बोली में धाराप्रवाह जागर सुनाते हैं तो लगता है सुदूर पहाड़ी गाँव से आया कोई निपुण लोकगायक देवताओं का आह्वान कर रहा है.

स्थानीय परंपराओं के प्रति उनके समर्पण से अभिभूत होकर एक स्थानीय बुज़ुर्ग ने बद्री प्रसाद नौटियाल का नाम दिया.


प्रो. सैक्स ने 'द माउंटेन गॉडेस' और 'डांसिंग द सेल्फ़' के नामों से यहाँ की लोकसंस्कृति पर किताब भी लिखी है.

प्रोफ़ेसर सैक्स के साथ मिलकर उत्तराँचल के लोक नाट्य कला पर काम कर रहे सुरेश काला के शब्द कुछ यूँ हैं,"हमारे देवी-देवताओं को आस्था ने जन्म दिया है. मैदानों की ओर चले गए पहाड़ियों में अब आस्था नहीं बची है और जिनकी है भी वह भय की है, और प्रोफ़ेसर सैक्स की आस्था प्रेम की है".

for complete article go to this link
http://www.creativeuttarakhand.com/celebrities/williamsax.html
प्रो. सैक्स ने 'द माउंटेन गॉडेस' और 'डांसिंग द सेल्फ़' के नामों से यहाँ की लोकसंस्कृति पर किताब भी लिखी है.

उनके ख़ास मित्र और हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में अँग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर डी आर पुरोहित उनके बारे में कहते हैं,"ये आदमी असाधारण बुद्धि रखता है और आम आदमी की तरह जीता है. गढ़वाल की संस्कृति का उन्हें तो ऐसा ज्ञान है कि गुप्तकाशी में जब एक आचार्य से उन्हें मिलाया तो आचार्य चकित रह गए".

प्रोफ़ेसर सैक्स के साथ मिलकर उत्तराँचल के लोक नाट्य कला पर काम कर रहे सुरेश काला के शब्द कुछ यूँ हैं,"हमारे देवी-देवताओं को आस्था ने जन्म दिया है. मैदानों की ओर चले गए पहाड़ियों में अब आस्था नहीं बची है और जिनकी है भी वह भय की है, और प्रोफ़ेसर सैक्स की आस्था प्रेम की है".

प्रोफ़ेसर सैक्स की एक जर्मन शिष्या कैरन पोलित भी रिचुअल हीलिंग के उनके शोध में उनकी मदद कर रही हैं और वे भी पिछले डेढ साल से यहीं हैं.

प्रो. सैक्स गढ़वाल यूनिवर्सिटी में लोक केंद्र की स्थापना पर भी काम कर रहे हैं
.




पंकज सिंह महर

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #62 on: November 22, 2007, 04:38:53 PM »
Prof. Dr. William Sax 
 
 SAI Room 507
+49 (0)6221 – 54 8836
william.sax@urz.uni-heidelberg.de

consultation hours :

Tu 1-3 pm
 
current Research Projects:
Prof. Sax’s research focuses on affliction amongst the lowest castes in the Central Himalayan region of north India. This involves research into various forms of black magic, exorcism, and sorcery, as well as medical anthropology, notions of selfhood, the body, gender, and caste

Memberships:
1. American Anthropological Association
2. American Academy of Religion
3. American Ethnological Society
4. Amnesty International
5. Association of University Staff of New Zealand
6. Association for Asian Studies
7. Association for Asian Studies in New Zealand (National Secretary)
8. Center for the Study of World Religions
9. New Zealand Associations of Social Anthropologists (National Executive)
10. New Zealand India Society
11. Phi Beta Kappa (Alpha of Washington)
12. Society for Tantrik Studies

Curriculum vitae

1957
born in Colville (Washington)

1978
Hindi Diploma at the Benares Hindu University (Varanasi, India)

1980
B.A., South Asian Studies, University of Washington (Seattle)
B.A., Asian Languages and Literatures, University of Washington (Seattle)

1982
M.A. in Anthropology at the University of Chicago with the title: ‘The Ramnagar Ramlila: a Theatre of Pilgrimage.’ Advisors: Ralph Nicholas (chairperson), Bernard Cohn, R.T. Smith

1985-1987
Teaching Assistant at the Universität of Chicago

1987
Ph.D. in Anthropology at the University of Chicago (Seattle) on the relationship between the cult of a regional Hindu goddess and the lives of local peasant women. Title of the doctoral thesis: ‘Chaya Maya: the Songs and Journeys of Nandadevi.’ Advisors: Ralph Nicholas (co-chairperson), McKim Marriott (co-chairperson), Paul Friedrich, Wendy Doniger (ne O’Flaherty)

1987-1989
Postdoctoral Fellow at the Harvard Academy for International and Area Studies

1988-1989
Lecturer at the Department of Anthropology, Havard University

1989-2000
Senior Lecturer for Philosophy und Religious Studies at the University of Canterbury

since 2000
Head of Department of Anthropology, South Asia Insitut, University of Heidelberg

 
 

पंकज सिंह महर

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #63 on: November 28, 2007, 12:10:18 PM »
बैरिस्टर मुकुंदीलाल (वर्ष 1885-1982)

वर्ष 1885 में मुकुंदीलाल का जन्म गढ़वाल के चमोली जिले के पाटली गांव में हुआ था। वर्ष 1905 में गढ़वाली पत्रिका में वन विभाग पर थोपे गये नियमों तथा नियमनों से संबंधित उनका प्रथम लेख प्रकाशित हुआ। पत्रिका के संपादक श्री चंदोली युवा मुकुंदीलाल से प्रभावित हुए तथा उन्होंने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए इंगलैंड भेजने के खर्चे का प्रबंध किया।

ब्रिटेन में कानून की पढ़ाई करते हुए उनकी मुलाकात लोकमान्य तिलक से हुई और उनके साथ उन्होंने भारत स्वाधीनता से संबद्ध मसलों पर बातचीत की। इस प्रकार वे अंग्रेजों के प्रशासन की नजर में आये और वर्ष 1919 में उनके भारत लौटने पर गिरफ्तार कर इलाहाबाद जेल भेज दिया गया। 15 दिनों बाद उन्हें छोड़ा गया।

वे गढ़वाल वापस आये तथा निरंतर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए कार्य किया तथा वर्ष 1921 में कुली बेगार पद्धति के खिलाफ आंदोलन शुरू किया जिसके फलस्वरूप वर्ष 1923 में इस पद्धति को समाप्त करना पड़ा।

वर्ष 1926 में उन्हें विधान परिषद् का सदस्य चुना गया। आजादी के बाद स्वतंत्र उम्मीदवार की तरह उन्होंने चुनाव जीता तथा वर्ष 1967 तक विधान सभा के सदस्य रहे।

इसके अलावा उन्होंने गढ़वाली संस्कृत एवं कला को पुनर्जीवित करने के लिए अपना काफी समय लगाया तथा यह पूरी तरह उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि मौला राम की कला को प्रसिद्धि मिली। लंबी बीमारी के कारण वर्ष 1982 में वे चल बसे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #64 on: November 28, 2007, 12:27:36 PM »

Mahar Ji,

Very good information.

बैरिस्टर मुकुंदीलाल (वर्ष 1885-1982)

वर्ष 1885 में मुकुंदीलाल का जन्म गढ़वाल के चमोली जिले के पाटली गांव में हुआ था। वर्ष 1905 में गढ़वाली पत्रिका में वन विभाग पर थोपे गये नियमों तथा नियमनों से संबंधित उनका प्रथम लेख प्रकाशित हुआ। पत्रिका के संपादक श्री चंदोली युवा मुकुंदीलाल से प्रभावित हुए तथा उन्होंने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए इंगलैंड भेजने के खर्चे का प्रबंध किया।

ब्रिटेन में कानून की पढ़ाई करते हुए उनकी मुलाकात लोकमान्य तिलक से हुई और उनके साथ उन्होंने भारत स्वाधीनता से संबद्ध मसलों पर बातचीत की। इस प्रकार वे अंग्रेजों के प्रशासन की नजर में आये और वर्ष 1919 में उनके भारत लौटने पर गिरफ्तार कर इलाहाबाद जेल भेज दिया गया। 15 दिनों बाद उन्हें छोड़ा गया।

वे गढ़वाल वापस आये तथा निरंतर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए कार्य किया तथा वर्ष 1921 में कुली बेगार पद्धति के खिलाफ आंदोलन शुरू किया जिसके फलस्वरूप वर्ष 1923 में इस पद्धति को समाप्त करना पड़ा।

वर्ष 1926 में उन्हें विधान परिषद् का सदस्य चुना गया। आजादी के बाद स्वतंत्र उम्मीदवार की तरह उन्होंने चुनाव जीता तथा वर्ष 1967 तक विधान सभा के सदस्य रहे।

इसके अलावा उन्होंने गढ़वाली संस्कृत एवं कला को पुनर्जीवित करने के लिए अपना काफी समय लगाया तथा यह पूरी तरह उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि मौला राम की कला को प्रसिद्धि मिली। लंबी बीमारी के कारण वर्ष 1982 में वे चल बसे।


पंकज सिंह महर

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #65 on: November 28, 2007, 04:12:14 PM »
अनुसूया प्रसाद बहुगुणा

नन्दप्रयाग के रहने वाले श्री अनुसूया प्रसाद बहुगुणा जी ने कांग्रेस के लाहौर सम्मेलन में गढ़वाल का प्रतिनिधित्व किया तथा वे जवाहर लाल नेहरू तथा उनके दृष्टिकोण के बहुत निकट थे। अनुसूया प्रसाद बहुगुणा एक सामाजिक कार्यकर्त्ता भी थे तथा घृणित कुली-बेगार प्रथा की समाप्ति के सूत्रधार थे। उनके भतीजे राम प्रसाद बहुगुणा जो स्वयं एक बुद्धिजीवी थे, ने स्वाधीनता संग्राम में योगदान किया और जब वे 8वीं कक्षा के छात्र थे तभी उन्हें कारागार भेज दिया गया। उन्होंने समाज नाम से एक हस्तलिखित पत्रिका आरंभ की जो लोगों द्वारा पढ़कर एक से दूसरे को पहुंचाया जाता था। वर्ष 1953 में उन्होंने दूसरा समाचार पत्र देवभूमि निकाला। बिनोवा भावे एवं जयप्रकाश नारायण अन्य स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने नंदप्रयाग के लोगों को प्रेरित किया। वास्तव में, ऐसा कहा जाता था कि अंग्रेज अधिकारियों पर बहुगुणा समुदाय का इतना खौफ था कि शहर के बाहर ही घोड़े से उतर कर पैदल जाते न कि घोड़े पर।

Rajneesh

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #66 on: November 30, 2007, 08:21:12 PM »
A Star TV interview with Kalawati Joshi, a remarkable woman from Uttarkhand who has been active in almost every social movement since independence.

http://www.youtube.com/watch?v=2_3mI0vi-gs

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #67 on: November 30, 2007, 08:55:58 PM »
Great work Rajneesh bhai.

Rajneesh

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Re: Personalities of Uttarakhand
« Reply #68 on: November 30, 2007, 08:59:45 PM »

Uttaranchali Nauni

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Nirmal Pandey
« Reply #69 on: December 06, 2007, 11:51:37 AM »
Regarding Nirmal Pandey ...

He is from Nainital ..A product of NSD (national school of Drama).
A male actor who holds a unique record for winning a best 'actress' award for his portrayal of a transvestite in Daayraa (1996). He shared the Best Actress award with the female lead of the film Sonali Kulkarni at the Valenciennes Film Festival (France, 1997).

Something which he said on one of his Interview "But I am not a hero at all, was never one. I am a pahadi, I was born in Nainital. So my looks are genetic. But it’s a good thing I look different, as people admire my looks and find them appealing. For me my pahad is my teacher..."

He got married in 1997 with his Islamic , writer wife Kausar Munir . Its great in a very conservative pahadee society ...

 

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