कोई मुद्दा हवा में न उड़ जाए
यह रिश्ता जिंदगी को जीने लायक बनाता है
दुनिया के सारे रिश्ते एक तरफ हैं और मां-बच्चे का रिश्ता एक तरफ। दरअसल, ईश्वर ने ही इस रिश्ते को प्राकृतिक और भावनात्मक रूप से अनोखा बनाया है। मां का अहसास हमारे अवचेतन मन से ही हमारे साथ होता है। इस रिश्ते की किसी भी रिश्ते से तुलना नहीं कर सकते। किसी भी जाति, धर्म और संप्रदाय के लोग हों, उनमें मां और बच्चे के बीच एक ही तरह का जुड़ाव होता है। एक बच्चा जब न किसी धर्म को समझता है, न कोई भाषा समझता है, न भावनाएं और न ही लोरी समझता है, तब भी उसे मां के स्पर्श का पूरा ज्ञान होता है।
यही वजह है कि यह रिश्ता उसके अवचेतन में समा जाता है। यही एक वजह है कि इस रिश्ते के लिए मेरी कलम हमेशा से कुछ न कुछ लिखती रही है। मेरा हमेशा इस बात में भरोसा रहा है कि मां से जुड़ी कोई भी बात हो, वह दिल से निकलती है और सीधे दिल तक पहुंचती है। यही वजह है कि मैंने जब 'तुझे सब है पता, मेरी मां' लिखा तो मुझे जबर्दस्त कामयाबी मिली। मां और बच्चे के रिश्ते पर मैं लिखता रहा हूं और आगे भी लिखता रहूंगा। इस रिश्ते पर लिखी मेरी रचनाएं इसलिए बेहतरीन बन पड़ीं कि उस रिश्ते का अहसास मेरे भीतर तक समाया है। यह एक ऐसा रिश्ता है जो जीवन को जीने लायक बनाता है। यही वह रिश्ता है जहां आप जिंदगी के असल मायने सीखते हैं। मां और बच्चे का रिश्ता हर लेन-देन से परे है। आज जहां हर चीज का बाजारीकरण कर दिया गया है, वहां यही एक रिश्ता है जो बिना शर्त प्रेम में बंधा है।
हमारे यहां कहा जाता है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, मगर माता कुमाता नहीं हो सकती। लेकिन मैं इस बात से सरोकार नहीं रखता। मेरा मानना है कि जिस तरह माता कुमाता नहीं होती, उसी तरह पुत्र भी कुपुत्र नहीं होता। यह बात अलग है कि पुत्र उस प्रेम को जाहिर नहीं कर पाता। अपने भीतर से वह भी अपनी मां से उसी प्रेम के साथ जुड़ा होता है। एक कवि होने के नाते मैं यह मानता हूं कि यही एक ऐसा रिश्ता है जिसके बारे में मेरे विचार हमेशा वही रहते हैं।
मेरे लिखे गीत 'तुझे सब है पता, मेरी मां' बहुत ही साधारण लाइन है लेकिन इन शब्दों में सबसे बड़ा सच छुपा है। यह सच शायद हर मां और हर बच्चे को पता है। ये भावना सभी में होती है, मैंने बस इन्हें शब्द दे दिए। इसी वजह से लोग इस गीत से इतना जुड़ पाए। भले ही वह जानवरों की मां हो या इंसानों की, जब वह अपने बच्चों को दूध पिलाती है तो ऐसा कभी नहीं हुआ कि लड़के को ज्यादा पिलाए और लड़की को कम। उसके लिए अपने बच्चों में कोई फर्क नहीं होता।
दुनिया में हर रिश्ते को समझने की जरूरत हमें पड़ती है लेकिन मां और बच्चे के रिश्ते को कभी दोबारा खोजना या समझना नहीं पड़ता। इस स्नेह को कसौटी पर रखने की जरूरत ही नहीं पड़ती। मुझे नहीं लगता कि मां और बच्चे के रिश्ते को सेलिब्रेट करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत है। हालांकि मुझे उन लोगों से कोई परहेज नहीं जो 'मदर्स डे' मनाते हैं। मेरे खयाल से यह हमारी अपनी चॉइस होनी चाहिए। मदर्स डे का चलन वेस्टर्न कल्चर से आया है। वहां इसकी जरूरत भी है क्योंकि उन्हें रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए सामने वाले को खास महसूस करवाना पड़ता है, जबकि हम भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हैं। हमारी कलेक्टिव सोसायटी है। यहां की संस्कृति में ही रक्षाबंधन और करवाचौथ जैसे त्योहार हैं जिनमें भाई और पति अपने आपको खास महसूस करते हैं। मैं तो यही कहूंगा कि मदर्स डे हो या साल के बाकी दिन, बस मां का साथ बना रहना चाहिए। इसी रिश्ते को मेरी कुछ लाइन समर्पित-
जिंदगी रफ्तार लेती जा रही है,
तेज उसकी धार होती जा रही है।
रोज रिश्तों के नये मतलब निकलते जा रहे हैं,
पर अभी भी थपकियों की गति वही है, लय वही है,
और ममता से भरा स्पर्श भी बिल्कुल वही है।
शुक्र है सूरज वहीं है, चंद्रमा भी है अभी तक
शुक्र है जिंदा है लोरी, है जहां में मां अभी तक।
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