Author Topic: Pundit Nain Singh Rawat - पंडित नैन सिंह रावत  (Read 14340 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]पंडित नैन सिंह रावत की गिनती उन भारतीयों में की जाती है जिन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा से अंग्रेजों को अपना कायल बना दिया था। पढ़े लिखे न होने के बावजूद पंडित नैन सिंह रावत अंग्रेजों की नजरों में किसी शिक्षाविद् से कम न थे। अपनी अद्भुत इच्छाशक्ति के दम पर 19वीं शताब्दी के इस महान अन्वेषक ने पैदल 13 हजार मील से अधिक दूरी तय कर मध्य एशिया का कालजयी मानचित्र तैयार किया था।
21 अक्टूबर 1830 में उत्तराखंड के सुदूरवर्ती मिलम गांव के एक गरीब लाटा बूढ़ा के घर जन्मे पंडित नैन सिंह रावत ने किताबों से नहीं बल्कि अनुभव से शिक्षा प्राप्त की। आर्थिक तंगी के चलते 1852 में घर छोड़कर व्यापार शुरू कर दिया। व्यापार के सिलसिले में कई बार तिब्बत गए जहां उनकी मुलाकात यूरोपीय लोगों से होती रही। इन्हीं से उन्होंने जीवन की असल शिक्षा ली। उन्हें तिब्बती, हिन्दी, अंग्रेजी और फारसी का अच्छा ज्ञान था। 1855 में रॉयल जियोग्राफिकल सर्वे ऑफ लंदन ने उन्हें मध्य हिमालय के पूर्ण सर्वे का जिम्मा सौंपा। उनकी प्रतिभा को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें चीफ पंडित के विशेष नाम से नवाजा। पंडित नैन सिंह ने 1855 से 1865 के बीच पैदल कुमाऊं से काठमांडू, मध्य एशिया से ठोक-ज्यालुंग और यारकंद खोतान की तीन जोखिम भरी यात्राएं की। केवल कंपास, बैरोमीटर और थर्मामीटर की मदद से उन्होंने संपूर्ण मध्य एशिया का विज्ञान और भूगोल से जुड़ा मानचित्र तैयार कर दिया। इस मानचित्र ने आधुनिक युग में न केवल भारतीय उप महाद्वीप बल्कि मध्य एशिया में विज्ञान से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को समझने में बड़ी भूमिका अदा की। 1895 में इस विलक्षण व्यक्तित्व ने संसार को अलविदा कह दिया।


नैनीताल। पंडित नैन सिंह रावत के जीवन पर एशिया की पीठ पर किताब लिखने वाली डीएसबी परिसर हिन्दी विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापिका प्रो.उमा भट्ट बताती हैं कि नैन सिंह ने मानचित्र में दूरी की गणना अपने कदमों से की थी। वह 33 इंच का कदम रखते और 2 हजार कदमों को एक मील मानते थे। इसके लिए उन्होंने 100 मनकों की माला का प्रयोग किया। वह 100 कदम चलने पर एक मनका गिरा देते थे। पूरी माला जपने तक 10 हजार कदम यानी 5 मील तय हो जाते थे।

स्रोत - अमर उजाला

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Google Doodle: 'हिमालय पुत्र' नैन सिंह रावत ने जब पहाड़ों में नई राहों की खोज की
गूगल हर खास अवसर पर डूडल तैयार करता है. लेकिन शनिवार को जब डूडल पर सबकी नजर गई तो किसी को समझ नहीं आया कि पहाड़ों पर खड़े शख्स की आकृति किसकी है.
नई दिल्ली: गूगल हर खास अवसर पर डूडल तैयार करता है. लेकिन शनिवार को जब गूगल डूडल पर सबकी नजर गई तो किसी को समझ नहीं आया कि पहाड़ों पर खड़े शख्स की आकृति किसकी है. आकृति में दिख रहे व्यक्ति नैन सिंह रावत हैं. ये वो भारतीय हैं, जिनका नाम अंग्रेजी हुकुमत के लोग भी सम्मान के साथ लेते थे. इन्होंने बिना किसी आधुनिक उपकरण के पूरे तिब्बत का नक्शा तैयार किया था. ये वो समय था जब तिब्बत में किसी भी विदेशी के आने पर मनाही थी. यदि वहां छिपकर पहुंच भी जाएं लेकिन बाद में पकड़ में आ जाएं तो इसकी सजा सिर्फ मौत ही होती थी. ऐसी स्थिति के बावजूद नैन सिंह रावत न सिर्फ इस फॉरबिडन लैंड में पहुंचे बल्कि सिर्फ रस्सी, कंपस, थर्मामीटर और कंठी के जरिए पूरा तिब्बत नाप कर आ गए. तो चलिए जानते हैं एक्सप्लोरर नैन सिंह रावत के बारे में खास बातें.
- 19वीं शताब्दी में अंग्रेज़ भारत का नक्शा तैयार कर रहे थे और लगभग पूरे भारत का नक्शा बना चुके थे. वे आगे बढ़ते हुए तिब्बत का नक्शा चाहते थे, लेकिन फॉरबिडन लैंड कहे जाने वाली इस जगह पर किसी भी विदेशी के जाने पर मनाही थी. ऐसे में किसी भारतीय को ही वहां भेजने की योजना बनाई गई. इसके लिए लोगों खोज शुरू हुई. आखिरकार 1863 में कैप्टन माउंटगुमरी को दो ऐसे लोग मिल ही गए. ये थे उत्तराखंड निवासी 33 साल के पंडित नैन सिंह और उनके चचेरे भाई मानी सिंह.
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- दोनों भाइयों को ट्रेनिंग के लिए देहारदून लाया गया. उस समय दिशा और दूरी नापने के यंत्र काफी बड़े हुआ करते थे. लेकिन उन्हें तिब्बत तक ले जाना खतरनाक था. क्योंकि इन यंत्रों के कारण पंडित नैन सिंह और मानी सिंह दोनों ही पकड़े जाते. ऐसा होता तो उन्हें मौत की सजा पाने से कोई नहीं रोक सकता था. ऐसे में तय किया गया कि दिशा नापने के लिए छोटा कंपास और तापमान नापने के लिए थर्मामीटर इन भाइयों को सौंपा जाएगा.
- दूरी नापने के लिए नैन सिंह के पैरों में 33.5 इंच की रस्सी बांधी गई ताकि उनके कदम एक निश्चित दूरी तक ही पड़ें. हिंदुओं की 108 की कंठी के बजाय उन्होंने अपेन हाथों में जो माला पकड़ी वह 100 मनकों की थी ताकि गिनती आसान हो सके. 1863 में दोनों भाइयों ने अलग-अलग राह पकड़ी. नैन सिंह रावत काठमांडू के रास्ते और मानी सिंह कश्मीर के रास्ते तिब्बत के लिए निकले. हालांकि, मानी सिंह इसमें असफल रहे और वापस आ गए, लेकिन पंडित नैन सिंह रावत ने अपनी यात्रा जारी रखी.
- नैन सिंह सफलतापूर्वक तिब्बत पहुंचे और पहचान छिपाने के लिए बौद्ध भिक्षु के रूप में वहां घुल-मिल गए. वह दिन में शहर में टहलते और रात में किसी ऊंचे स्थान से तारों की गणना करते. इन गणनाओं को वे कविता के रूप में याद रखते.
- नैन सिंह रावत ने ही सबसे पहले दुनिया को ये बताया कि लहासा की समुद्र तल से ऊंचाई कितनी है, उसके अक्षांश और देशांतर क्या है. यही नहीं उन्होंने ब्रहमपुत्र नदी के साथ लगभग 800 किलोमीटर पैदल यात्रा की और दुनिया को बताया कि स्वांग पो और ब्रह्मपुत्र एक ही नदी है. उन्होंने दुनिया को तिब्बत के कई अनदेखे और अनसुने रहस्यों से रूबरू कराया.
- 1866 में नैन सिंह यादव मानसरोवर के रास्ते भारत वापस आ गए. साल 1867-68 में वह उत्तराखण्ड में चमोली जिले के माणा पास से होते हुए तिब्बत के थोक जालूंग गए, जहां सोने की खदानें थीं. उनकी तीसरी बड़ी यात्रा साल 1873 -74 में की गई शिमला से लेह और यारकंद की थी.
- उनकी आखिरी और सबसे अहम यात्रा साल 1874-75 में हुई. जिसमें वे लद्दाख से लहासा गए और फिर वहां से असम पहुंचे. इस यात्रा में नैन सिंह रावत ऐसे इलाकों से गुजरे, जहां दुनिया का कोई आदमी नहीं पहुंचा था.
- पंडित नैन सिंह रावत के इस काम को ब्रिटिश राज में भी सराहा गया. अंग्रेजी सरकार ने 1877 में बरेली के पास 3 गांवों की जागीरदारी उन्हें उपहार स्वरूप दी. इसके अलावा उनके कामों को देखते हुए कम्पेनियन ऑफ द इंडियन एम्पायर का खिताब दिया गया.

http://zeenews.india.com/hindi/india/google-doodle-celebrates-birthday-of-indian-explorer-nain-singh-rawat/347272

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Google Doodle marks 187th birth anniversary of Indian explorer Nain Singh Rawat
Google marked Indian explorer Nain Singh Rawat’s 187th birth anniversary on Saturday with a Doodle featuring an illustration of a silhouette of a man looking over mountains.

Rawat, born in 1830, belonged to the Johar Valley of Kumaon in Uttarakhand. He was the first to find the location and altitude of Lhasa .He mapped the course of Tsangpo river and the trade route between Nepal and Tibet.

The Doodle, designed by Hari and Deepti Panicker, portrays Rawat “as he might have looked on his travels — solitary and courageous, looking back over the distances he had walked, rosary beads in hand, and staff by his side,” reads Google’s description of the explorer.

Rawat, who was recruited by the British for mapping, used to disguise as a Tibetan monk and walk as far as Kathmandu in Nepam, Lhasa in Tibet and Tawang in Arunachal Pradesh. He concealed instruments like a compass in his prayer wheel and hid his travel records as prayers. His pace during his travels remained uniform and he measures his steps using a rosary.

Rawat was also recruited by German geographers, the Schlagintweit brothers, in 1855, according to an NDTV report.

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He was awarded the Patron’s Medal in 1877 by the Royal Geographical Society for his explorations. British Colonel Henry Yule advocated for awarding Rawat and spoke about him during the medal presentation ceremony. He said the explorer “is not a topographical automaton, or merely one of a great multitude of native employees with an average qualification. His observations have added a larger amount of important knowledge to the map of Asia then those of any other living man”, a Frontline article said.

A book on Rawat titled ‘Asia Ki Peeth Par’ (On the Back of Asia) was published in 2006, illuminating the writings and life of the 19th century Indian explorer.

Rawat died of a heart attack while visiting Jagir, a village gifted to him by the British, in 1895.

Google marks significant events and honours the achievements of people from different walks of life. On Thursday, the Doodle marked the 107th birth anniversary of Subrahmanyan Chandrasekhar, the first astrophysicist to have won a Nobel Prize for his theory on the evolution of stars.

http://www.hindustantimes.com/india-news/google-doodle-marks-birth-anniversary-of-indian-explorer-nain-singh-rawat/story-ivsdp3O1BbxGOiTQPBAqIM.html

 

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