Author Topic: REMARKABLE ACHIEVEMENTS BY UTTARAKHANDI - उत्तराखंड के लोगों की उपलब्धियाँ  (Read 76285 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Deep Joshi, 61
Founder, NGO Pradan
After getting educated at Massachusetts Institute of Technology in the US,   Deep Joshi didn’t hesitate to go back to working in the villages. He hails from   a village in Uttarakhand and he knew the other India needed educated people like   him. That understanding became the cornerstone of his work — “civil society   needs to have both head and heart” — and fetched him the Magsaysay award in 2009   and Padma Shri this year. “I was educated not to go back to the village, a   notion we have nurtured in the society. For educated, we only think of modern   sector jobs. 70 per cent of our country is still rural and we should realise   that they need us,” says Joshi.
In 1983, he had started an NGO called professional assistance for development   action (PRADAN) that recruits university-educated youth and grooms them to do   grassroots work (he is an advisor to it now). The Magsaysay citation credits him   for “bringing professionalism to the NGO movement in India by effectively   combining ‘head’ and ‘heart’ in the transformative work of rural development”.   
His nomination to the NAC seems only natural. What issues would he take up?   “I have no idea what the council is supposed to do. I keep giving inputs to the   government whenever I can but this is a formal opportunity at the highest level   to do that,” he says. What would he be looking to work on? “My interests have   been the management of national schemes and social sector schemes. Schemes are   good but the problem seems to be in implementation,” he says. What if he doesn’t   have the kind of freedom, which he had so far? “If I can’t say what I feel like   or give inputs honestly then I won’t be there.”

पंकज सिंह महर

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-चावल की महक तो देशभर में फैलाई, पर खुद हैं अनजान -
तराई के कृषक इंद्रासन सिंह ने ही विकसित की थी प्रजाति ,
रुद्रपुर: गरीबों का बासमती कहलाने वाले इंद्रासन धान की महक लगभग पूरे देश में फैली हुई है, लेकिन विडंबना देखिए,इस धान को खोजने व विकसित करने वाले कृषक इंद्रासन सिंह गुमनाम हैं। इंद्रासन प्रजाति का धान पूरे देश में उगाया तथा बड़े चाव से खाया जाता है। अखबारों में मंडी के भावों में इसका प्रमुख स्थान होता है, लेकिन इस सबसे दूर इस प्रजाति को विकसित करने वाला कृषक आज भी सरकारी सम्मान का मोहताज है। सरकार ने तो नहीं, नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन अहमदाबाद ने जरूर वर्ष 2005 में मेधा की पहचान कर उसे तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों सम्मान दिलाया। उत्तराखंड के तराई में स्थित ऊधम सिंह नगर जिला खेती के मामले में काफी समृद्ध है। दूर तक फैले खेत तथा हरियाली यहां की विशेषता है। जिला मुख्यालय रुद्रपुर से करीब 14 किलोमीटर दूर इंद्रपुर गांव है। इसी गांव में रहते हैं इंद्रासन सिंह। वह आजादी के बाद 1952 में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से यहां आकर बसे थे। स्वतंत्रता आंदोलन में 1942 के दौरान जेल जाने के एवज में सरकार की ओर से आवंटित 15 एकड़ भूमि पर खेती करने लगे। बाद में वह 25 वर्षाे तक इंद्रपुर गांव के ग्राम प्रधान भी रहे। 1972 की बात है, एक दिन वह अपने खेत में टहल रहे थे तो रत्ना नामक धान के खेत में उन्हें कुछ ऐसे पौधे दिखाई दिये जो अन्य की अपेक्षा लंबे व स्वस्थ तो थे ही, उनकी बालियां भी चमकदार व हृष्टपुष्ट थीं। इंद्रासन इन पौधों की बढ़वार से आकर्षित होकर उनकी खास देखभाल करने लगे। जब यह धान तैयार हुआ तो उन्होंने कौतूहलवश उसकी बालियां तोड़कर अलग रख दीं। अगले वर्ष उनसे निकला बीज अलग खेत में बोया। पहले वर्ष इसका बीज एक खेत के लायक ही हुआ। बाद में वह साल दर साल इसके बीज को बोते चले गये। इस धान के पौध की लंबाई व बाली देखकर आसपास के किसान भी इससे आकर्षित हुए बिना नहीं रह सके। धीरे-धीरे यह धान समूचे इलाके में बोया जाने लगा। इसके धान का छिलका पतला व चावल चमकदार होने के कारण लोग इसमें खूब दिलचस्पी लेने लगे। यह धान इलाके में बोया तो जा रहा था, लेकिन तब तक इसका कोई नाम नहीं था। इस पर 1978 में गांव के कृषक डॉ.हरवंश ने एक बैठक बुलाई। चूंकि यह प्रजाति इंद्रासन सिंह के प्रयास से ही विकसित हुई थी, इसलिए उन्होंने इसका नामकरण इंद्रासन कर दिया। तब से यह धान इंद्रासन नाम से ही जाने जाना लगा। इसी दौरान इंद्रासन धान के बारे में पंतनगर विश्वविद्यालय की मासिक पत्रिका किसान भारती में एक लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को पढ़कर बिहार, उड़ीसा, पंजाब, महाराष्ट्र समेत अन्य प्रदेशों के प्रगतिशील कृषकों ने इंद्रासन सिंह को पत्र भेजकर धान का बीज मंगवाया। धीरे-धीरे इस धान का पूरे देश में उत्पादन किया जाने लगा। चूंकि यह बासमती से मिलता-जुलता था, लिहाजा इसे गरीबों का बासमती भी कहलाया जाने लगा। विडंबना यह है कि जिस धान को आज समूचे देश में बोया अथवा खाया जाता है, उसी धान को विकसित करने वाला कृषक गुमनामी में जीने को विवश है। सरकार ने उसे कोई पुरस्कार देना तो दूर सम्मानित करना तक उचित नहीं समझा। यह कृषक सरकारी उपेक्षा के कारण अपने गांव में परिवार के साथ रह रहा है। पंतनगर विवि के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार इंद्रासन सिंह ने भले ही विज्ञान के दृष्टिकोण से कोई नई खोज नहीं की हो, लेकिन धान की एक प्रजाति तो विकसित की ही है। इस लिहाज से वह सम्मान व पुरस्कार के हकदार हैं।

हेम पन्त

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इन्द्रासन सिंह

-चावल की महक तो देशभर में फैलाई, पर खुद हैं अनजान -
तराई के कृषक इंद्रासन सिंह ने ही विकसित की थी प्रजाति ,
रुद्रपुर: गरीबों का बासमती कहलाने वाले इंद्रासन धान की महक लगभग पूरे देश में फैली हुई है, लेकिन विडंबना देखिए,इस धान को खोजने व विकसित करने वाले कृषक इंद्रासन सिंह गुमनाम हैं। इंद्रासन प्रजाति का धान पूरे देश में उगाया तथा बड़े चाव से खाया जाता है। अखबारों में मंडी के भावों में इसका प्रमुख स्थान होता है, लेकिन इस सबसे दूर इस प्रजाति को विकसित करने वाला कृषक आज भी सरकारी सम्मान का मोहताज है। सरकार ने तो नहीं, नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन अहमदाबाद ने जरूर वर्ष 2005 में मेधा की पहचान कर उसे तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों सम्मान दिलाया। उत्तराखंड के तराई में स्थित ऊधम सिंह नगर जिला खेती के मामले में काफी समृद्ध है। दूर तक फैले खेत तथा हरियाली यहां की विशेषता है। जिला मुख्यालय रुद्रपुर से करीब 14 किलोमीटर दूर इंद्रपुर गांव है। इसी गांव में रहते हैं इंद्रासन सिंह। वह आजादी के बाद 1952 में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से यहां आकर बसे थे। स्वतंत्रता आंदोलन में 1942 के दौरान जेल जाने के एवज में सरकार की ओर से आवंटित 15 एकड़ भूमि पर खेती करने लगे। बाद में वह 25 वर्षाे तक इंद्रपुर गांव के ग्राम प्रधान भी रहे। 1972 की बात है, एक दिन वह अपने खेत में टहल रहे थे तो रत्ना नामक धान के खेत में उन्हें कुछ ऐसे पौधे दिखाई दिये जो अन्य की अपेक्षा लंबे व स्वस्थ तो थे ही, उनकी बालियां भी चमकदार व हृष्टपुष्ट थीं। इंद्रासन इन पौधों की बढ़वार से आकर्षित होकर उनकी खास देखभाल करने लगे। जब यह धान तैयार हुआ तो उन्होंने कौतूहलवश उसकी बालियां तोड़कर अलग रख दीं। अगले वर्ष उनसे निकला बीज अलग खेत में बोया। पहले वर्ष इसका बीज एक खेत के लायक ही हुआ। बाद में वह साल दर साल इसके बीज को बोते चले गये। इस धान के पौध की लंबाई व बाली देखकर आसपास के किसान भी इससे आकर्षित हुए बिना नहीं रह सके। धीरे-धीरे यह धान समूचे इलाके में बोया जाने लगा। इसके धान का छिलका पतला व चावल चमकदार होने के कारण लोग इसमें खूब दिलचस्पी लेने लगे। यह धान इलाके में बोया तो जा रहा था, लेकिन तब तक इसका कोई नाम नहीं था। इस पर 1978 में गांव के कृषक डॉ.हरवंश ने एक बैठक बुलाई। चूंकि यह प्रजाति इंद्रासन सिंह के प्रयास से ही विकसित हुई थी, इसलिए उन्होंने इसका नामकरण इंद्रासन कर दिया। तब से यह धान इंद्रासन नाम से ही जाने जाना लगा। इसी दौरान इंद्रासन धान के बारे में पंतनगर विश्वविद्यालय की मासिक पत्रिका किसान भारती में एक लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को पढ़कर बिहार, उड़ीसा, पंजाब, महाराष्ट्र समेत अन्य प्रदेशों के प्रगतिशील कृषकों ने इंद्रासन सिंह को पत्र भेजकर धान का बीज मंगवाया। धीरे-धीरे इस धान का पूरे देश में उत्पादन किया जाने लगा। चूंकि यह बासमती से मिलता-जुलता था, लिहाजा इसे गरीबों का बासमती भी कहलाया जाने लगा। विडंबना यह है कि जिस धान को आज समूचे देश में बोया अथवा खाया जाता है, उसी धान को विकसित करने वाला कृषक गुमनामी में जीने को विवश है। सरकार ने उसे कोई पुरस्कार देना तो दूर सम्मानित करना तक उचित नहीं समझा। यह कृषक सरकारी उपेक्षा के कारण अपने गांव में परिवार के साथ रह रहा है। पंतनगर विवि के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार इंद्रासन सिंह ने भले ही विज्ञान के दृष्टिकोण से कोई नई खोज नहीं की हो, लेकिन धान की एक प्रजाति तो विकसित की ही है। इस लिहाज से वह सम्मान व पुरस्कार के हकदार हैं।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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                सल्ट के लाल ने किया कमाल        

          





मौलेखाल,सल्ट : विकास खंड सल्ट के मोहित भंडारी ने भारतीय रक्षा   अकादमी में प्रवेश लेकर सल्ट का नाम रोशन किया है। भंडारी के एनडीए में चयन   से पूरे क्षेत्र में हर्ष का माहौल है। सल्ट के अनेक लोंगों ने मोहित की   इस उपलब्धि पर शुभकामनायें दी हैं।





 मौलेखाल में उद्यान विभाग में कार्यरत दीवान सिंह भंडारी के पुत्र   मोहित भंडारी ने इस वर्ष भारतीय रक्षा अकादमी की प्रवेश परीक्षा में भाग   लिया था। विगत दिनों परीक्षा के  परिणाम घोषित होने व अन्य औपचारिकताएं   पूरी होने के बाद मोहित ने खड़कवासला पूना में प्रवेश ले लिया है। मोहित ने   अपनी प्राथमिक स्तर की पढ़ाई अखंड योग विद्या मंदिर बागेश्वर तथा कैम्पस   स्कूल कटारमल, जूनियर स्तर की पढ़ाई सैनिक स्कूल घोड़ाखाल व इंटरमीडिएट की   शिक्षा हिलग्रोव पब्लिक स्कूल दिल्ली से पूरी की। मोहित की दो बहनें भी   हैं। जो अभी अध्ययनरत हैं।
 मोहित ने अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, मामा कुलदीप व अमित   ब्रहमचारी समेत अपने शिक्षकों को दिया है। मोहित को इस सफलता के लिये सल्ट   के विधायक रंजीत सिंह रावत, ब्लाक प्रमुख वीना रावत, उतराखंड प्रवासी एवं   समन्वय समिति के उपाध्यक्ष पूरन चन्द्र नैलवाल ने शुभकामनायें दी हैं।
   http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6590499.html

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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साथियों एक सुभ समाचार है हमारे श्री मीर रंजन नेगी जी भारतीय महिला टीम के कोच बन गए है..
बहुत बहुत सुभकामनाये नेगी जी..

आशा करते है हमारी भारतीय महिला टीम आपके नेत्रित्व में एक नए मुकाम पर जरुर पहुचेगी,
 ऐसा हम सभी मानते है

जय उत्तराखंड .. जय भारत

हेम पन्त

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बहुत अच्छी खबर है..मुंह मीठा करवाना पड़ेगा मोहन दा आपको सबका..

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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jarur hemu kyon nahi .

बहुत अच्छी खबर है..मुंह मीठा करवाना पड़ेगा मोहन दा आपको सबका..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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डा. जोशी को मिलेगा राष्ट्रपति पुरस्कार

चम्पावत। राजकीय इंटर कालेज चम्पावत के प्रवक्ता डा. भुवनचंद्र जोशी का चयन   राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए हुआ है। यह पुरस्कार उन्हें शिक्षक दिवस के   मौके पर पांच सितम्बर को दिल्ली में समारोहपूर्वक राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल   द्वारा दिया जाएगा। डा. जोशी का इस पुरस्कार के लिए चयन होने पर जनपद के   शिक्षकों ने खुशी का इजहार किया है। जीआईसी में राजकीय शिक्षक संघ के ब्लाक   अध्यक्ष उमेदसिंह बिष्ट की अध्यक्षता और मंत्री अशोक खर्कवाल के संचालन   में एक बैठक का आयोजन कर इसे विद्यालय के लिए गौरवपूर्ण बताया गया। इस मौके   पर तमाम शिक्षकों ने अपने विचार रखते हुए कहा कि जोशी मेहनत व लगन के साथ   विद्यार्थियों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने का कार्य करते आए हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6649557.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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बंशीधर पोखरियाल को मलासी साहित्य सम्मान
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आवाज साहित्य संस्था द्वारा हिंदी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में शिक्षाविद् तथा साहित्यकार बंशीधर पोखरियाल को द्वारिका प्रसाद मलासी साहित्य सम्मान प्रदान किया गया।

मुनिकीरेती स्वामी भूवालका जूनियर हाईस्कूल में आवाज संस्था द्वारा हिंदी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस अवसर पर कवि सम्मेलन में कवियों ने व्यवस्था तथा वर्तमान परिदृश्य पर एक से बढ़कर एक रचनाएं प्रस्तुत कीं। कवि अशोक क्रेजी, प्रबोध उनियाल, पूनम उनियाल, सुनील थपलियाल, नरेंद्र रयाल, रामकृष्ण पोखरियाल, सतेंद्र चौहान, महेश चितकारिया, राजेंद्र बहुगुणा, विनोद बिजल्वाण आदि ने काव्य रचनाएं प्रस्तुत कीं। इस मौके पर आवाज द्वारा प्रकाशित काव्य संकलन अनुत्तरित प्रश्न का भी विमोचन किया गया। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि हिंदी अपनाने में हमें गौरव महसूस करना चाहिए। हिंदी आज विश्व की भाषा बनने जा रही है। कार्यक्रम में राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सलाहकार समिति के अध्यक्ष ज्ञान सिंह नेगी, गुरु प्रसाद बिजल्वाण, सुदर्शन मैठाणी, ग्राम प्रधान रोशन रतूड़ी, कैप्टन डीडी तिवारी, आरपी उनियाल आदि ने विचार व्यक्त किए।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6724383.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Govind Ram Ghildiyal : First Garhwali Graduate
                                  Bhishma Kukreti
                   Govind Prasad ghildiyal has many distinctions in Garhwal and among Garhwalis. Govind Prasad was first Garhwali who passed Intermediate and Govind Prasad Ghildiyal is also first Garhwali who became Graduate .

Rai Bahadur Govind Prasad Ghildiyal is the first Garhwali who became Deputy Collector .

Govind Ghildiyal was born in Dang , near Shrnagr , Pauri Garhwal, Uttarakhand on 24th May, 1870.

Govind Ghildiyal was also first Garhwali personality who published book in Garhwali prose and George Griyerson referred the work of Ghildiyal in his famous work in ‘Linguistic survey of India’ .

Govind Ghildiyal is the first Garhwali who published translation of Hitopadesh in Garhwali, which means he is the first person who initiated Garhwali language prose.

Govind Ram Ghildiyal published the translation of the works of Shakespeare (Othello) and Goldsmith (Hermit) in Hindi. He also published a fine commentary book ‘ Garhwali Rajputon aur Brahmanon ki Sainik Seva’
Govind Ram Ghildiyal expired on 19th July, 1922 in Lansdowne.
Jugraj Rayna

 

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