Author Topic: REMARKABLE ACHIEVEMENTS BY UTTARAKHANDI - उत्तराखंड के लोगों की उपलब्धियाँ  (Read 76402 times)

हेम पन्त

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Anil Joshi ji : HESCO: - Bringing back Himalayan watermills to life
« Reply #230 on: June 21, 2011, 02:27:40 AM »
Source - http://www.business-standard.com/india/news/bringing-back-himalayan-watermills-to-life/439822/

A few years ago, Anil P Joshi, a social activist from the Kotdwar area of Uttarakhand, took up the task of bringing back to life defunct watermills in Uttarakhand, with the aim of producing green power.

Joshi, who heads Hesco, a Dehradun-based NGO, carried out research work to revive the age-old watermills in the hill state as well as elsewhere in the Himalayan region.
 
The watermill, an eco-friendly device, can harness the power of water to grind wheat and generate one to three Kw of power. There are currently 200,000 watermills in the Himalayan region. Hesco estimates that they can generate 2,500 Mw of power.

A watermill works on the same principle as a hydroelectric power plant. Water from a stream is tapped and routed through a chute. There is a wheel at the centre. Flat blades are fixed at the wheel. The force of water falling from a certain height rotates the wheel and powers a turbine.

As the concept of watermills caught the fancy of the state government, an Asian Development Bank-funded survey was carried out in Uttarakhand. The survey revealed that in 2003 there were a total of 15,449 watermills in the state, of which nearly 7,000 were defunct.

Later, the Uttarakhand Renewable Energy Development Agency (Ureda) took on the responsibility of reviving the defunct watermills.

According to officials here, the Centre provides a subsidy of Rs 1.10 lakh for electric generation from a watermill while the subsidy is only Rs 35,000 for mechanical functions like the grinding of wheat.

Until now, an estimated 753 watermills have been revived, with Ureda setting a target of reviving another 500 this year.

The Uttarakhand government has also facilitated the process of setting up nine companies which are now upgrading the state’s watermills. “The basic concept behind the revival of these watermills is to make them cottage industries,” said N K Jha, director of Ureda.

According to Jha, a watermill not only produces green power for a couple of houses but also provides employment opportunities to people in small businesses like the grinding of wheat, spices and oilseeds. Kyarkuli near the hill resort of Mussoorie is one such example where the watermill is working well, said Jha.

Hesco runs a training centre at its office in the Shuklapur area of Dehra Dun. Already, people from Jammu & Kashmir, Arunachal Pradesh and Himachal Pradesh have taken training in operating watermills.

Hesco, in close partnership with the Indian Army, is also reviving watermills in the border villages of Jammu & Kashmir, most of them badly hit by the turmoil in the state.

Villages in areas such as Kupwara, Baramulla, Kargil, Batalik, Dras, Poonch and Rajouri in J&K have benefited from the revival of watermills, Joshi said. “Under different programmes, we have so far facilitated the revival of nearly 4,000 watermills in India,” he said.

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 नैनीताल के छायाकार बृजमोहन डायमंड ग्रेडिंग में शामिल         - इंडिया इंटरनेशनल फोटोग्राफी काउंसिल ने किया चयनित
 
 
नैनीताल: उत्तराखंड की लोक संस्कृति को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित करने वाले स्वतंत्र छायाकार बृजमोहन जोशी भी अब डायमंड ग्रेडिंग में शामिल हो गए हैं। उन्हें यह अवार्ड इंडिया इंटरनेशनल फोटोग्राफी काउंसिल (आइआइपीसी) दिल्ली की ओर से प्रदान किया गया है। इससे पूर्व प्रसिद्ध छायाकार अनूप साह को यह उपलब्धि हासिल हो चुकी है।
श्री जोशी को आइआइपीसी ने वर्ष 06 में ब्रांज ग्रेडिंग, 07 में सिल्वर, 08 में गोल्ड तथा 09 में प्लेटिनम ग्रेडिंग अवार्ड से सम्मानित कर चुका है। श्री जोशी का नाम आइआइपीसी के दस सर्वश्रेष्ठ छायाकारों की सूची में शामिल हो गया है। वह अब तक विभिन्न शहरों में करीब 75 फोटो प्रदर्शनी व स्लाइड शो कर चुके हैं। श्री जोशी वर्ष 1979 में एक रंगकर्मी के रूप में अखिल भारतीय हिन्दी नाटकों से जुड़े और उन्होंने कलाकार के रूप में उत्तराखंड की लोक गाथाओं का मंचन किया और परंपरा पत्रिका के 8 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। उन्हें हालिया इंदिरा गांधी मुक्त विवि के गुरू शिष्य परंपरा पाठयक्रम क लिए उत्तर मध्य क्षेत्र पारम्परिक लोकाचार विषय पर लेखन कार्य को चुना गया।
 
(Source - Dainik Jagran)
 

Devbhoomi,Uttarakhand

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भावी भारत के लिए खुद कुर्बान
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जमाना जिस तेजी के साथ करवट बदल रहा है, उसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, विनोवा भावे व सरला बेन के सिद्धांतों की बात भले ही कुछ लोगों को बेमानी लगती हो। मगर, खादी के परिवेश में ढ़ली 63 वर्षीय शीला रतूड़ी इन सिद्धांतों की चलती फिरती पाठशाला हैं। उच्चतर प्राथमिक बालिका विद्यालय खारास्रोत, मुनिकीरेती प्रधानाध्यापिका पद से सेवानिवृत्त शीला रतूड़ी का चार दशक का सेवाकाल एक मिसाल है।

शिक्षा का उजियारा समाज के हर तबके तक पहुंचाने का यह उनका जज्बा ही तो है, कि अपनी तनख्वाह भी गरीब बच्चों की फीस पर खर्च करती रहीं। परिवार इसमें आड़े न आए, शीला ने शादी ही नहीं की। शिक्षा उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य रहा। स्कूल को ही उन्होंने परिवार माना।

आठ अप्रैल 1948 को घोंटी घनसाली के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पुरुषोत्तम दत्त रतूड़ी (मास्टर जी) के घर जन्मी शीला के तीन भाई व तीन बहने हैं। ब्रह्मा देवी कन्या प्राथमिक विद्यालय ऋषिकेश में दूसरी कक्षा तक पढ़ने के बाद शीला अपने जीजा सर्वोदय कार्यकर्ता कामेश्वर प्रसाद बहुगुणा व बहन प्रेम सुमन बहुगुणा के साथ कौसानी चली गई। कौसानी में लक्ष्मी नारायण आश्रम में उन्होंने पांचवीं तक की शिक्षा ग्रहण की।
आचार्य विनोवा भावे व सरला बेन के सिद्धांतों पर चलने वाले इस विद्यालय ने उनके जीवन की धारा बदल दी। विद्यालय में खादी के प्रति दीक्षा ने इतना प्रेरित किया कि बाल्याकाल से ही खादी धारण कर लिया। बीए व एमए व बीएड करने के बाद 1972 में उच्चतर बालिका प्राथमिक विद्यालय खारास्रोत में प्रधानाध्यापिका पद पर नियुक्ति पाई। विनोवा भावे व सरला बेन की प्रेरणा ने ऐसी गहरी छाप छोड़ी कि शिक्षा को ही अपना परिवार मान लिया।

नौकरी पाते वक्त वेतन 158 रुपये था और 39 साल बाद सेवानिवृत्ति के समय 26 हजार रुपए, पर उन्होंने यह राशि हमेशा ही गरीब बच्चों पर खर्च की। शीला के लिए अपने वेतन का मतलब गरीब बच्चों की फीस देकर उन्हें स्कूल तक लाना रहा। स्कूल का जीर्णोद्धार हो या बच्चों के लिए पंखे की सुविधा जुटाना।

परिवार के मुखिया की तरह स्कूल व बच्चों की बेहतरी के लिए समर्पित भाव से काम करती। जब कोई बच्चा स्कूल से गैर-हाजिर होता, तो वह बेचैन हो उठती और घर जाकर बच्चे को स्कूल ले आती।

घर पर फ्री टयूशन चलता, तो बोर्ड के एग्जाम में बच्चों को वह देर रात तक पढ़ाती। स्कूल में नि:शुल्क सांध्यकालीन कक्षाएं भी चलाई। सेवानिवृत्ति के बाद भी शिक्षा के प्रति पूरी तरह समर्पित भाव से काम कर रही हैं।
Jagaran News

विनोद सिंह गढ़िया

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महेंद्र सिंह धोनी के बाद उत्तराखंड ने दिया टीम इंडिया को एक और सितारा

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के बाद उत्तराखंड ने भारतीय क्रिकेट टीम को दूसरा सितारा दिया है। जूनियर इंडिया क्रिकेट टीम की कमान बीसीसीआई ने कुमाऊं के उन्मुक्त चंद को सौंपी है। 2012 में आस्ट्रेलिया में होने वाले अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप के लिए पिथौरागढ़ के इस युवा खिलाड़ी को कप्तान बनाया गया है। उन्मुक्त अभी दिल्ली में रहते हैं और सेंट स्टीफंस कालेज में बीए प्रथम वर्ष के छात्र हैं। इन दिनों चंद नेशनल क्रिकेट अकादमी बंगलूरू में अभ्यास में व्यस्त हैं। उल्लेखनीय है कि पहले महाराष्ट्र के अंकि त बावने को जूनियर टीम इंडिया का कप्तान घोषित कर दिया गया था। लेकिन प्रमाण पत्रों में अंकित की उम्र 19 वर्ष से अधिक पाए जाने पर उन्मुक्त को जूनियर टीम इंडिया की कमान सौंप दी गई। मूल रूप से पिथौरागढ़ के खड़क्यू भल्या गांव निवासी उन्मुक्त चार साल की उम्र से क्रिकेट खेल रहे हैं। 14 साल की उम्र में उन्मुक्त दिल्ली के अंडर-15 टीम में आ गए थे। इसके बाद अंडर-16 में भी उन्मुक्त ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। इसी आधार पर वीनू मांकड अंडर-19 क्रिकेट कप में उन्मुक्त को दिल्ली का कप्तान बनाया गया था। इसके बाद रणजी में शानदार खेल की बदौलत उन्मुक्त का आईपीएल में दिल्ली डेयर डेविल्स के लिए चयन हुआ।


हालांकि, उन्हें डेविल्स से खेलने के बहुत अधिक मौके नहीं मिले, लेकिन बाद के मैचों में उनके बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए बीसीसीआई ने उन्मुक्त पर भरोसा जताया है।


पेशे से अध्यापक उन्मुक्त के पिता भरत चंद ठाकुर ने बताया कि उन्मुक्त की स्कूलिंग दिल्ली में हुई है। उसने 8वीं तक की पढ़ाई नोएडा में की। इसके बाद इंटरमीडिएट दिल्ली से किया। अभी उन्मुक्त सेंट स्टीफेंस कालेज में बीए प्रथम वर्ष में पढ़ता है। भरत चंद ने बताया कि खेल के साथ-साथ उनका बेटा पढ़ाई में भी अव्वल है। बेटे को जूनियर टीम इंडिया की कप्तानी मिलने से उत्साहित भरत कहते हैं कि बेटे के करियर को लेकर ही उन्होंने अपना गांव छोड़ा था, लेकिन पिथौरागढ़ से उनका लगाव बराबर रहा है। उन्मुक्त के आस्ट्रेलिया जाने से पहले वह अपने गांव जाएंगे।

http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  बागेश्वर के पंकज ने जीता बेस्ट शूटर का खिताब    Nov 08, 11:08 pm   बताएं            जागरण कार्यालय,बागेश्वर: जनपद के दोफाड़ निवासी व 2 नागा में तैनात सिपाही पंकज सिंह कालाकोटी ने राष्ट्रीय निशानेबाज प्रतियोगिता में बेस्ट शूटर का खिताब प्राप्त किया है। इस उपलब्धि पर उनकी रेजीमेंट के ले. जनरल नरेश मारवा (कर्नल आफ रेजीमेंट कुमाऊं) ने सम्मानित किया। इससे गांव में भी खुशी की लहर व्याप्त है।
दोफाड़ क्षेत्र के ग्राम कक्ड़ात निवासी त्रिलोक सिंह कालाकोटी के पुत्र पंकज कालाकोटी वर्ष 2005 में सेना में भर्ती हुए थे। भर्ती होने के बाद से ही होनहार पंकज ने कई प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग किया। पंकज को निशानेबाजी में दक्षता हासिल है। उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें आर्मी की मऊ स्थित आर्मी शूटिंग टीम में भेज दिया गया था। पंकज अपनी 6 वर्ष की सेवा में निशानेबाजी में राष्ट्रीय स्तर पर 9 मेडल प्राप्त कर चुके हैं। जिसमें 5 स्वर्ण, 2 कांस्य व 2 रजत पदक प्राप्त कर चुके हैं। श्री कालाकोटी की इस उपलब्धि पर उन्हें गत दिवस रानीखेत में ले. जनरल नरेश मारवा ने पदक देकर सम्मानित किया। उनकी इस उपलब्धि पर गांव में खुशी का माहौल है। पंकज के मित्रों ने बताया कि पंकज के पिता भी सेना में रह चुके हैं तथा उनके जज्बे को देखकर पंकज में बचपन से ही देश सेवा व खेलों के प्रति रूचि थी। इधर पंकज के राष्ट्रीय ओपन गेम में यह उपलब्धि पाने पर गांव में खुशी की लहर है।

Devbhoomi,Uttarakhand

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कथाकार नौटियाल को इफको साहित्य सम्मान
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इस वर्ष का 'श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान' हिंदी के विशिष्ट कथाकार विद्यासागर नौटियाल को प्रदान किया जाएगा। दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में 24 नवंबर को कृषि मंत्री शरद पवार उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान करेंगे।

अपने कार्यव्यवहार और कार्य प्रकृति के अनुरूप गांव, किसान व कृषि जीवन से संबंधित यथार्थवादी एवं उत्कृष्ट कलात्मक साहित्य को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर को-ऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने 'श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान' की शुरुआत की। यह सम्मान प्रतिवर्ष उस साहित्यकार को प्रदान किया जाता है, जिसका हिंदी भाषा एवं साहित्य के संव‌र्द्धन में महत्वपूर्ण अवदान रहा हो। साथ ही उसने भारतीय कृषि एवं किसान और ग्रामीण जीवन से जुड़ी समस्याओं, आकांक्षाओं व संघर्षो को अपने साहित्य के माध्यम से मुखरित किया हो।

इफको के प्रबंधक जनसंपर्क हषेंद्र वर्धन के अनुसार इन सभी मानकों पर हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल खरा उतरते हैं। लिहाजा, प्रसिद्ध आलोचक प्रो.नामवर सिंह की अध्यक्षता वाले निर्णायक मंडल ने इस बार पुरस्कार के लिए नौटियाल का चयन किया। पुरस्कार स्वरूप प्रशस्ति पत्र, शील्ड एवं 551000 की राशि नकद प्रदान की जाएगी।

नौटियाल की साहित्यिक यात्रा

साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल की महत्वपूर्ण कृतियों में उनकी लंबी कहानी 'भैंस का कट्या' का विशेष स्थान है। पूर्व में सोवियत संघ प्राच्य विद्या संस्थान के डॉ.वी.चेर्निशोव ने इस कहानी का रूसी अनुवाद कर अपनी लंबी टिप्पणी के साथ एक कहानी संकलन में सम्मिलित किया था। इसके अलावा 'उत्तर बायां है', 'झुंड से बिछड़ा', 'भीम अकेला', 'यमुना के बागी बेटे', '10 प्रतिनिधि कहानियां', 'देशभक्तों की कैद में', 'फट जा पंचधार', 'मेरी कथा यात्रा', 'फुलियारी' आदि नौटियाल की प्रमुख कृतियां हैं।

समारोह में खास

समारोह में देश के सात प्रख्यात कवियों शमशेर बहादुर सिंह, फैज अहमद फैज, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय, केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, गोपाल सिंह नेपाली व असरारुल हक मजाज की जन्मशती के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी होगा।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8511017.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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                    ब्यूटी क्वीन

मिस उत्तराखंड-2011 प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने वाली तान्या नेगी, फ‌र्स्ट रनरअप राजुल गुप्ता और सेकेंड रनरअप सारा आनंद देहरादून में सोमवार, 28 नवंबर को फोटो के लिए पोज देती हुई।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  डॉ. जुयाल को मिलेगा नेशनल जियो साइंस अवार्ड       Jan 25, 05:09 pm    बताएं              गोपेश्वर : डॉ. नवीन जुयाल को वर्ष 2012 नेशनल जियो साइंस अवार्ड के लिए चुना गया है। भूगर्भ विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यो के लिए डॉ. नवीन जुयाल को वर्ष 2012 का नेशनल जियो साइंस अवार्ड दिया जाएगा। यह पुरस्कार उन्हें फरवरी माह में राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के हाथों दिया जाएगा।
सर्वोदयी कार्यकर्ता ओमप्रकाश भट्ट ने बताया कि उत्तराखंड के सुदूर पर्वतीय जनपद चमोली में डॉ. जुयाल ने भूगर्भ के क्षेत्र में अपने कार्यो की शुरुआत की। चिपको आंदोलन के प्रणेता व पद्मविभूषण चंडी प्रसाद भट्ट के साथ मिलकर अलकनंदा घाटी के दूरस्थ गांवों में पांच सालों तक उन्होंने ग्राम्य विकास और हरियाली को बढ़ाने के लिए विशेष कार्य किए। उन्होंने बताया कि हिमनदों और तापीय बदलाव पर पिछले दो दशक से हिमालय से लेकर कश्मीर तक डॉ. जुयाल ने कई खोजें की। कैलाश मानसरोवर के हिमनदों को लेकर किया गया इनका शोध कार्य पूरी दुनिया में चर्चित भी रहा।


source - dainik jagran

   

विनोद सिंह गढ़िया

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फिनलैंड में बढ़ाया उत्तराखंड का मान


 लगभग साढ़े तीन दशक से फिनलैंड में रह रहे भवाली के बेटे ने अपनी कला और लेखन से सात समंदर पार न केवल उत्तराखंड का मान बढ़ाया बल्कि लेखनी और रंगों ने उन्हें दूर देश में एक अलग पहचान भी दिलाई है। मातृभूमि से वर्षों तक दूर रहने वाले यह कवि और चित्रकार हैं भवाली के रेहड़ गांव निवासी शेख सईद। वह इन दिनों यहां आए हुए हैं और जल्द ही स्थाई तौर पर वतन लौटने वाले हैं।
शेख सईद का जन्म 15 अगस्त 1941 को रेहड़ (भवाली) में हाफिज अब्बास के परिवार में हुआ। उन्होंने भवाली से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और वर्ष 1966 में डीएसबी परिसर नैनीताल से विज्ञान में स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद रोजी रोटी की तलाश में दिल्ली चले गए। उन्होंने सोवियत सूचना विभाग नई दिल्ली में बतौर फ्रीलांस अनुवादक के रूप में काम किया। इस दौरान वह साप्ताहिक पत्रिका दिनमान में विज्ञान और कला समीक्षा के स्तंभों में नियमित रूप से लेख भी लिखते रहे। उनकी कविताएं भी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। तीन साल दिल्ली में रहने के बाद शेख पश्चिमी जर्मनी चले गए और पांच साल तक वहां रहे।
मंगलवार को अमर उजाला से विशेष भेंट में शेख सईद ने बताया कि वर्ष 1977 में वह तुर्कू (फिनलैंड) चले गए। 1978 में उन्होंने फिनलैंड में ही सीरपा नामक युवती से विवाह कर लिया। कुछ समय वहां जलपोत निर्माणशाला और फिर तुर्कू महानगर परिषद में नौकरी की। साढ़े तीन साल पहले ही शेख तुर्कू महानगर परिषद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्होंने बताया कि वह अब तक फिनीय भाषा के तीन प्रमुख उपन्यासों का हिंदी में अनुवाद कर चुके हैं जबकि एक उपन्यास अभी प्रकाशित होना है। इसके अलावा एक कला संकलन के अनुवाद के साथ-साथ शेख फिनलैंड के प्रमुख कवियों की कविताओं का भी अनुवाद कर चुके हैं। उनके द्वारा अनुवादित लघु कथाएं फिनलैंड में द पब्लिक अजेंडा में प्रकाशित हुईं।
शेख सईद को पेंटिंग में भी महारथ हासिल है। वह फिनलैंड के जाने माने कवियों के कविता संग्रह के कवर के लिए भी चित्रकारी कर चुके हैं। वर्ष 1967 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में और वर्ष 2009 में मंडी हाउस दिल्ली में दो कला प्रदर्शनियां भी लगा चुके हैं।


शेख सईद का कहना है कि जो आत्मीयता अपने देश में मिलती है वह और कहीं नहीं मिल सकती। यही कारण है कि जन्म भूमि का प्रेम उन्हें बार-बार यहां खींच लाता है। उन्होंने बताया कि अब वह जल्द ही स्वदेश वापसी करेंगे। उनका प्रयास है कि कला और लेखन के माध्यम से दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक गतिविधियों का आदान-प्रदान किया जाए ताकि लोग एक दूसरे की संस्कृति को जान और समझ सकें।
एक सवाल के जवाब में शेख सईद ने कहा कि रचनाकार के मन में हमेशा ही आत्मसंघर्ष चलता रहता है और इसी से उसे ऊर्जा प्राप्त होती है। शेख इस बात को लेकर व्यथित नजर आए कि मौजूदा दौर में लेखकों और कवियों की स्थिति अच्छी नहीं है। उनका कहना है कि वैश्वीकरण के दौर में हिंदी लुप्त हो रही है और हिंदी के शब्दों को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। समय रहते हिंदी को नहीं बचाया गया तो भावी पीढ़ी को हिंदी के सही शब्द भी नहीं मिल पाएंगे। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वह खुद्दारी विकसित करें और अपनी संस्कृति को कभी न भूलें। पश्चिम के खोखले आकर्षण से खुद को बचाकर रखें तभी जीवन में तरक्की संभव होगी।

स्रोत-अमर उजाला

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एआईपीएमटी में छाया उत्तराखंड का होनहार
  Story Update : Monday, June 04, 2012     1:53 AM 
     

  [/t][/t]   देहरादून। आल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) की मेरिट लिस्ट में उत्तराखंड का होनहार सर्वोच्च स्थान पर रहा। 480 में से 470 अंक हासिल कर रुड़की के ऋषभ जैन ने अखिल भारतीय स्तर पर पहली रैंक प्राप्त की। ऋषभ का कहना है कि उन्हें टाप रैंक की उम्मीद थी, लेकिन अपने रोल नंबर के आगे पहली रैंक लिखा देखकर जो अनुभूति हुई वह बिलकुल अलग रही। बचपन से ही डाक्टर बन समाजसेवा का सपना देखने वाले ऋषभ का लक्ष्य कार्डियोलॉजिस्ट बनना है।

पहली पसंद होगा एम्स
एआईपीएमटी में तो पहला रैंक पा लिया, लेकिन अभी ऋषभ का दिल एम्स के रिजल्ट के लिए धड़क रहा है। ऋषभ का कहना है, मेरी पहली पसंद एम्स ही है अभी उसके परिणाम का इंतजार कर रहा हूं। इससे पूर्व ऋषभ को एएफएमसी से भी इटंरव्यू कॉल आ चुकी है। यही नहीं, उन्होंने आईपीयू, मणिपाल यूनिवर्सिटी, बीएचयू मेन्स आदि परीक्षाओं में भी क्वालीफाई किया है।

परिवार के साथ से खुली राह
ऋषभ के पिता डॉ. रवि जैन कार्डियोलॉजिस्ट हैं और मां डॉ. रेणु जैन गाइनेकोलॉजिस्ट। रुड़की में वरदान नर्सिंग होम चलाने वाले डॉ. रवि बताते हैं कि ऋषभ को कभी पढ़ने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ी। वह पांचवीं कक्षा से ही डॉक्टरी के बारे में प्रश्न पूछने लगा था। वह कहते हैं कि ऋषभ ने उनका नाम रोशन किया है। उसकी उपलब्धि पर पूरा परिवार उत्साहित है। ऋषभ बताते हैं कि मम्मी-पापा के साथ ही इंजीनियर दादा एसएस जैन से भी मेहनत और कुछ अलग कर दिखाने की प्रेरणा मिली।

 

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