Author Topic: REMARKABLE ACHIEVEMENTS BY UTTARAKHANDI - उत्तराखंड के लोगों की उपलब्धियाँ  (Read 76415 times)

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Devki Devi ji ko MeraPahad ki taraf se haardik badhai aur shubhkamna.

देवकी का तीलू रौतेली पुरस्कार के लिये चयनMar 07, 02:55 am

पिथौरागढ़। नगर की प्रसिद्ध कुमाऊं नमकीन उद्योग की स्वामिनी देवकी देवी को वर्ष 2007-08 में तीलू रौतेली पुरस्कार के लिये चयनित किया गया है। देवकी देवी को यह पुरस्कार रूढि़वादिता और परम्पराओं को तोड़कर उद्यमिता के क्षेत्र में अपनी सफलता सिद्ध करने के लिये प्रदान किया जा रहा है। इस उद्यमी महिला को यह पुरस्कार 8 मार्च को विश्व महिला दिवस के अवसर पर देहरादून में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदेश के मुख्य मंत्री भुवन चन्द्र खण्डूरी प्रदान करेगे। पिथौरागढ़ जनपद की देवकी देवी तीलू रौतेली पुरस्कार के लिये चयनित होने वाली पहली महिला है। देवकी देवी उद्यमिता के क्षेत्र में इससे पूर्व भी अनेक राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय और स्थानीय स्तर पर अपने पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है। महिला शसक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग द्वारा इस आशय का पत्र प्राप्त होने के बाद पुरस्कार प्राप्त करने के लिये देवकी देवी देहरादून रवाना हो गई है।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के शूरवीरों को मिला गाडफ्रे फिलिप्स पुरस्कारMar 08, 02:08 am

देहरादून। गाडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार का आयोजन लखनऊ में किया गया। इस कार्यक्रम में उत्तराखंड के जगत सिंह दशौनी और संदीप कुमार चावला समेत 11 लोगों को बहादुरी पुरस्कार से नवाजा गया। विजेताओं को सेंट्रल कमांड प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल गौतम दत्त ने पुरस्कृत किया।

लखनऊ के एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में उत्तराखंड के शूरवीरों को शारीरिक बहादुरी और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष की श्रेणी में यह पुरस्कार मिला। गाडफ्रे फिलिप्स की ओर से यह पुरस्कार शारीरिक बहादुरी, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष और माइंड ऑफ स्टील नामक तीन श्रेणियों में प्रदान किया जाता है। पिथौरागढ़ की मुनस्यारी तहसील के श्री दशौनी को शारीरिक बहादुरी व गादरपुर, ऊधमसिंह नगर के श्री चावला को सामाजिक बुराईयों के खिलाफ संघर्ष श्रेणी में यह पुरस्कार दिया गया। इन दोनों विजेताओं को तीस-तीस हजार का नकद इनाम व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। 1990 में आरंभ गॉडफ्रे फिलिप्स इंडिया बहादुरी पुरस्कार सिर्फ बहादुरी ही नहीं सुरक्षित व स्वैच्छिक रक्तदान तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी कार्य करता रहा है। समारोह में उत्तराखंड के बहादुरों के साथ स्व. रत्नेश सिंह और स्व. देवेंद्र, मेहराज खान, वाहिद खान, डॉ. टोनी गुप्ता, कपिल कुमार अग्रवाल, राजाराम, राज बहादुर वर्मा, उमा शंकर पांडे, कुमारी सर्वेश तथा प्रो. आरपी सिंह को भी सम्मानित किया गया।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखंड के शूरवीरों को मिला गाडफ्रे फिलिप्स पुरस्कारMar 08, 02:08 am

देहरादून। गाडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार का आयोजन लखनऊ में किया गया। इस कार्यक्रम में उत्तराखंड के जगत सिंह दशौनी और संदीप कुमार चावला समेत 11 लोगों को बहादुरी पुरस्कार से नवाजा गया। विजेताओं को सेंट्रल कमांड प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल गौतम दत्त ने पुरस्कृत किया।

लखनऊ के एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में उत्तराखंड के शूरवीरों को शारीरिक बहादुरी और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष की श्रेणी में यह पुरस्कार मिला। गाडफ्रे फिलिप्स की ओर से यह पुरस्कार शारीरिक बहादुरी, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष और माइंड ऑफ स्टील नामक तीन श्रेणियों में प्रदान किया जाता है। पिथौरागढ़ की मुनस्यारी तहसील के श्री दशौनी को शारीरिक बहादुरी व गादरपुर, ऊधमसिंह नगर के श्री चावला को सामाजिक बुराईयों के खिलाफ संघर्ष श्रेणी में यह पुरस्कार दिया गया। इन दोनों विजेताओं को तीस-तीस हजार का नकद इनाम व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। 1990 में आरंभ गॉडफ्रे फिलिप्स इंडिया बहादुरी पुरस्कार सिर्फ बहादुरी ही नहीं सुरक्षित व स्वैच्छिक रक्तदान तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी कार्य करता रहा है। समारोह में उत्तराखंड के बहादुरों के साथ स्व. रत्नेश सिंह और स्व. देवेंद्र, मेहराज खान, वाहिद खान, डॉ. टोनी गुप्ता, कपिल कुमार अग्रवाल, राजाराम, राज बहादुर वर्मा, उमा शंकर पांडे, कुमारी सर्वेश तथा प्रो. आरपी सिंह को भी सम्मानित किया गया।


इन शूरवीरों का कार्य निश्चित रुप से अतुलनीय एवं सराहनीय है, मेरा पहाड़ परिवार की ओर से सभी सम्मानित वीरों को हार्दिक बधाइयां।

पंकज सिंह महर

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भूगर्भ विज्ञान के शोध छात्रों की नार्वे में अध्ययन की तैयारी   

नैनीताल। कुमाऊं विश्वविद्यालय का क्षेत्र मात्र कुमाऊं तक सीमित नहीं रह गया है। इस विश्वविद्यालय के छात्रों के अध्ययन के लिए विदेशों से प्रस्ताव आने शुरू हो गए है। नार्वे के ट्रांजे विश्वविद्यालय ने कुविवि के भूगर्भ विज्ञान के शोध छात्रों के अध्ययन के लिए प्रस्ताव सोमवार को कुलपति प्रो. सीपी बर्थवाल को सौंपा।

कुलपति प्रो. बर्थवाल ने बताया कि ट्रांजे विश्वविद्यालय के प्रो. कोरे व प्रो. नील पिछले कई दिनों से कुमाऊं भ्रमण पर आए हुए है। भ्रमण के दौरान उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालयों का निरीक्षण किया। इन महाविद्यालयों के पठन-पाठन कार्य से प्रभावित होकर कुलपति प्रो. सीपी बर्थवाल से भेंट की और उनके समक्ष भूगर्भ विज्ञान के शोध छात्रों को नार्वे में अध्ययन के लिए प्रस्ताव दिया। प्रस्ताव में छात्रों को 60 हजार डालर प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति देने की बात कही है।

प्रो. बर्थवाल ने बताया कि इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से पूर्व कुविवि के प्रतिनिधि नार्वे जाएंगे और ट्रांजे विश्वविद्यालय का निरीक्षण करने के बाद अनुबंध करेगे। उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रस्ताव मिलना कुमाऊं विश्वविद्यालय द्वारा दी जा रही शिक्षा की दिशा में उन्नति के संकेत है। विश्वविद्यालय प्रशासन भविष्य में इस दिशा में गंभीरता से कार्य करेगा।

पंकज सिंह महर

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सोलह ग्राम प्रधानों को मिली निर्मल गांव की पुरस्कार राशि

बागेश्वर। जनपद के सोलह ग्राम पंचायतों के ग्राम प्रधानों को सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान को सफल बनाने पर भारत सरकार द्वारा निर्मल गांव पुरस्कार की धनराशि प्रदान की गई। इन ग्राम प्रधानों को पूर्व में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।

जिला पंचायत सभागार में जिला पंचायत अध्यक्ष दीपा आर्या की अध्यक्षता में सम्पन्न समारोह में मुख्य अतिथि विधायक चंदन राम दास ने कहा कि मानव जीवन के लिए स्वच्छता का विशेष महत्व है। उन्होंने स्वजल विभाग द्वारा स्वच्छता अभियान के लिए चलाए गए प्रयासों की सराहना की।

पंकज सिंह महर

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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में दो बार अंग्रेजों को हल्द्वानी से खदेड़ा था

नैनीताल। पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 में उत्तर भारत में जब अंग्रेेजों के खिलाफ जगह-जगह स्वतंत्रता सेनानी लोहा ले रहे थे। उस समय कुमाऊं भी इससे अछूता नहीं रहा। संस्कृति विभाग के पुराने अभिलेखों में कुमाऊं में पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद संघर्ष में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देने का उल्लेख है। साथ ही हल्द्वानी में दो बार कब्जा करने व अंग्रेजों के मैदानी क्षेत्र से जान बचाकर नैनीताल आने का भी उल्लेख स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।

प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा 1857 के संघर्ष की 150 वीं वर्षगांठ में जगह-जगह स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया जा रहा है। संस्कृति विभाग के अभिलेखागार की प्रदर्शनी में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी में लटकाने को लेकर अभिलेख में कहा है 1857 के प्रथम आजादी के संघर्ष के दौरान जब रामजे साहब ने उत्तर भारत का चार्ज लिया। तब स्वतंत्रता संघर्ष चरम पर था। 17 सितंबर को एक हजार लोगों ने हल्द्वानी में कब्जा कर लिया था। अंग्रेज तक मैदानों से भागकर नैनीताल आए। 18 सितंबर को मैक्सवल ने हल्द्वानी में कब्जा किए लोगों को हराया। 16 अक्टूबर को पुन: हल्द्वानी में कब्जा कर लिया। बाद में अंग्रेजों ने छापे मारे। जेल से कैदियों को छुड़ाकर रामजे ने कैदियों से कुली का काम लिया। इस बीच कालाढूंगी में डाकुओं से संघर्ष हुआ। फांसी गधेरे में स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाए जाने का उल्लेख है।

इसके अलावा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 14 जून से 4 जुलाई 1929 तक कुमाऊं की पहली यात्रा को लेकर भी प्रदर्शनी में पुराने फोटो व अन्य सामग्री में 14 जून को नैनीताल, 15 को भवाली, 16 को ताड़ीखेत, 18 को अल्मोड़ा, 21 को कौसानी, 4 जुलाई को काशीपुर पहुंचने व कुमाऊं की दूसरी यात्रा में 18 से 23 मई 1931 तक के भ्रमण का उल्लेख है। इसमें ताकुला में 14 जून 1929 को छोटी सभा व स्व. गोविंद लाल साह के यहां चार दिन ठहरने व 1913 में लाला लाजपत राय के सुनकिया गांव में आगमन, नैनीताल का प्रसिद्ध झंडा सत्याग्रह का उल्लेख है।

इसके अलावा लाला लाजपत राय का कुमाऊँ के क्रांतिकारियों को भेजा पत्र प्रमुख है। जिसमें 4 फरवरी 23 को लिखे पत्र में कहा है कि उन्होंने जो कार्य किया है। उनको हमदर्दी है। मेरी मद्द की जरुरत हो आप मुझे लिखना। इसके अलावा अनेक पुराने ऐतिहासिक चित्रों व अभिलेखों से स्वतंत्रता आंदोलन में कुमाऊं का योगदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

हेम पन्त

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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में काली कुमाऊं के कालू महर ने भी अंग्रेजों से लोहा लिया था...
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में दो बार अंग्रेजों को हल्द्वानी से खदेड़ा था

नैनीताल। पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 में उत्तर भारत में जब अंग्रेेजों के खिलाफ जगह-जगह स्वतंत्रता सेनानी लोहा ले रहे थे। उस समय कुमाऊं भी इससे अछूता नहीं रहा। संस्कृति विभाग के पुराने अभिलेखों में कुमाऊं में पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद संघर्ष में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देने का उल्लेख है। साथ ही हल्द्वानी में दो बार कब्जा करने व अंग्रेजों के मैदानी क्षेत्र से जान बचाकर नैनीताल आने का भी उल्लेख स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।

प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा 1857 के संघर्ष की 150 वीं वर्षगांठ में जगह-जगह स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया जा रहा है। संस्कृति विभाग के अभिलेखागार की प्रदर्शनी में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी में लटकाने को लेकर अभिलेख में कहा है 1857 के प्रथम आजादी के संघर्ष के दौरान जब रामजे साहब ने उत्तर भारत का चार्ज लिया। तब स्वतंत्रता संघर्ष चरम पर था। 17 सितंबर को एक हजार लोगों ने हल्द्वानी में कब्जा कर लिया था। अंग्रेज तक मैदानों से भागकर नैनीताल आए। 18 सितंबर को मैक्सवल ने हल्द्वानी में कब्जा किए लोगों को हराया। 16 अक्टूबर को पुन: हल्द्वानी में कब्जा कर लिया। बाद में अंग्रेजों ने छापे मारे। जेल से कैदियों को छुड़ाकर रामजे ने कैदियों से कुली का काम लिया। इस बीच कालाढूंगी में डाकुओं से संघर्ष हुआ। फांसी गधेरे में स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाए जाने का उल्लेख है।

इसके अलावा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 14 जून से 4 जुलाई 1929 तक कुमाऊं की पहली यात्रा को लेकर भी प्रदर्शनी में पुराने फोटो व अन्य सामग्री में 14 जून को नैनीताल, 15 को भवाली, 16 को ताड़ीखेत, 18 को अल्मोड़ा, 21 को कौसानी, 4 जुलाई को काशीपुर पहुंचने व कुमाऊं की दूसरी यात्रा में 18 से 23 मई 1931 तक के भ्रमण का उल्लेख है। इसमें ताकुला में 14 जून 1929 को छोटी सभा व स्व. गोविंद लाल साह के यहां चार दिन ठहरने व 1913 में लाला लाजपत राय के सुनकिया गांव में आगमन, नैनीताल का प्रसिद्ध झंडा सत्याग्रह का उल्लेख है।

इसके अलावा लाला लाजपत राय का कुमाऊँ के क्रांतिकारियों को भेजा पत्र प्रमुख है। जिसमें 4 फरवरी 23 को लिखे पत्र में कहा है कि उन्होंने जो कार्य किया है। उनको हमदर्दी है। मेरी मद्द की जरुरत हो आप मुझे लिखना। इसके अलावा अनेक पुराने ऐतिहासिक चित्रों व अभिलेखों से स्वतंत्रता आंदोलन में कुमाऊं का योगदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।


पंकज सिंह महर

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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में काली कुमाऊं के कालू महर ने भी अंग्रेजों से लोहा लिया था...
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में दो बार अंग्रेजों को हल्द्वानी से खदेड़ा था

नैनीताल। पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 में उत्तर भारत में जब अंग्रेेजों के खिलाफ जगह-जगह स्वतंत्रता सेनानी लोहा ले रहे थे। उस समय कुमाऊं भी इससे अछूता नहीं रहा। संस्कृति विभाग के पुराने अभिलेखों में कुमाऊं में पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद संघर्ष में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देने का उल्लेख है। साथ ही हल्द्वानी में दो बार कब्जा करने व अंग्रेजों के मैदानी क्षेत्र से जान बचाकर नैनीताल आने का भी उल्लेख स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।

प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा 1857 के संघर्ष की 150 वीं वर्षगांठ में जगह-जगह स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया जा रहा है। संस्कृति विभाग के अभिलेखागार की प्रदर्शनी में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी में लटकाने को लेकर अभिलेख में कहा है 1857 के प्रथम आजादी के संघर्ष के दौरान जब रामजे साहब ने उत्तर भारत का चार्ज लिया। तब स्वतंत्रता संघर्ष चरम पर था। 17 सितंबर को एक हजार लोगों ने हल्द्वानी में कब्जा कर लिया था। अंग्रेज तक मैदानों से भागकर नैनीताल आए। 18 सितंबर को मैक्सवल ने हल्द्वानी में कब्जा किए लोगों को हराया। 16 अक्टूबर को पुन: हल्द्वानी में कब्जा कर लिया। बाद में अंग्रेजों ने छापे मारे। जेल से कैदियों को छुड़ाकर रामजे ने कैदियों से कुली का काम लिया। इस बीच कालाढूंगी में डाकुओं से संघर्ष हुआ। फांसी गधेरे में स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाए जाने का उल्लेख है।

इसके अलावा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 14 जून से 4 जुलाई 1929 तक कुमाऊं की पहली यात्रा को लेकर भी प्रदर्शनी में पुराने फोटो व अन्य सामग्री में 14 जून को नैनीताल, 15 को भवाली, 16 को ताड़ीखेत, 18 को अल्मोड़ा, 21 को कौसानी, 4 जुलाई को काशीपुर पहुंचने व कुमाऊं की दूसरी यात्रा में 18 से 23 मई 1931 तक के भ्रमण का उल्लेख है। इसमें ताकुला में 14 जून 1929 को छोटी सभा व स्व. गोविंद लाल साह के यहां चार दिन ठहरने व 1913 में लाला लाजपत राय के सुनकिया गांव में आगमन, नैनीताल का प्रसिद्ध झंडा सत्याग्रह का उल्लेख है।

इसके अलावा लाला लाजपत राय का कुमाऊँ के क्रांतिकारियों को भेजा पत्र प्रमुख है। जिसमें 4 फरवरी 23 को लिखे पत्र में कहा है कि उन्होंने जो कार्य किया है। उनको हमदर्दी है। मेरी मद्द की जरुरत हो आप मुझे लिखना। इसके अलावा अनेक पुराने ऐतिहासिक चित्रों व अभिलेखों से स्वतंत्रता आंदोलन में कुमाऊं का योगदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

1857 की लड़ाई का नायक कलू माहरा
लोहाघाट (चंपावत)। देश की आजादी की पहली लड़ाई में काली कुमाऊं की अहम भूमिका रही है। यहां से अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ उठा विरोध का स्वर भले ही अंजाम तक न पहुंचा हो, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलाने देने वाले इस विद्रोह ने पूरी क्रांति नया रंग दे दिया और इसी क्रांति के चलते काली कुमाऊं के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी जान देश के लिए न्यौछावर कर दी।
   काली कुमाऊं में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का झंडा कालू सिंह महरा ने बुलंद किया। उन्होंने पहले स्वतंत्रता संग्राम में काली कुमाऊं के लोगों की मंशा को भी विद्रोह के जरिए जाहिर करावा दिया। हालांकि इसकी कुर्बानी उन्हे स्वयं तो चुकानी ही पड़ी साथ ही उनके दो विश्वस्त मित्र आनंद सिंह फत्र्याल व विशन सिंह करायत को अंग्रेजों ने लोहाघाट के चांदमारी में गोली से उड़वा दिया।
   आजादी की पहली लड़ाई में काली कुमाऊं में हुआ गदर आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। यहां कालू सिंह महरा के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ हुई बगावत ने ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला कर रख दी थी। सिर्फ कालू महरा ही नहीं बल्कि आनंद सिंह फत्र्याल और बिशन सिंह करायत ने भी अपने प्राणों की आहुति दी। कालू सिंह महरा का जन्म लोहाघाट के नजदीकी गांव थुआमहरा में 1831 में हुआ। कालू सिंह महरा ने अपने युवा अवस्था में ही अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया। इसके पीछे मुख्य कारण रूहेला के नबाव खानबहादुर खान, टिहरी नरेश और अवध नरेश द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के लिए पूर्ण सहयोग सशर्त देने का वायदा था। इसके बाद कालू माहरा ने चौड़ापित्ता के बोरा, रैघों के बैडवाल, रौलमेल के लडवाल, चकोट के क्वाल, धौनी, मौनी, करायत, देव, बोरा, फत्र्याल आदि लोगों के साथ बगावत शुरू कर दी और इसकी जिम्मेदारी सेनापति के रूप में कालू माहरा को दे दी गई। पहला आक्रमण लोहाघाट के चांदमारी में स्थिति अंग्रेजों की बैरेंकों पर किया गया। आक्रमण से हताहत अंग्रेज वहां से भाग खड़े हुए और आजादी के दिवानों ने बैरोंकों को आग के हवाले कर दिया।
   पहली सफलता के बाद नैनीताल और अल्मोड़ा से आगे बढ़ रही अंग्रेज सैनिकों को रोकने के लिए पूरे काली कुमाऊं में जंग-ए-आजादी का अभियान शुरू हुआ। इसके लिए पूर्व निर्धारित शर्तो के अनुरूप पूरे अभियान को तीनों नवाबों द्वारा सहयोग दिया जा रहा था। आजादी की सेना बस्तिया की ओर बढ़ी, लेकिन अमोड़ी के नजदीक क्वैराला नदी के तट पर बसे किरमौली गांव में गुप्त छुपाए गए धन, अस्त्र-शस्त्र को स्थानीय लोगों की मुखबिरी पर अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया और काली कुमाऊं से शुरू हुआ आजादी का यह अभियान बस्तिया में टूट गया। परिणाम यह हुआ कि कालू माहरा को जेल में डाल दिया गया, जबकि उनके नजदीकी सहयोगी आनंद सिंह फत्र्याल एवं बिशन सिंह करायत को लोहाघाट के चांदमारी में अंग्रेजों ने गोली से उड़ा दिया।
   अंग्रेजों का कहर इसके बाद भी खत्म नहीं हुआ और अस्सी साल बाद 1937 तक काली कुमाऊं से एक भी व्यक्ति की नियुक्त सेना में नहीं की गई। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने यहां के तमाम विकास कार्य रुकवा दिए और कालू माहरा के घर पर धावा बोलकर उसे आग के हवाले कर दिया। यह पूरा संघर्ष 150 साल पहले काली कुमाऊं के लोहाघाट क्षेत्र से शुरू हुआ और आज इसी याद को ताजा करने यहां के लोगों ने अपने अमर शहीदों की माटी को दिल्ली के लिए रवाना किया।

पंकज सिंह महर

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पंकज सिंह महर

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पिथौरागढ़। कहा जाता है सीखने की कोई उम्र नहीं होती है, इसे सार्थक किया है जिले की सीमांत तहसील मुनस्यारी की समाजसेवी श्रीमती तारा पांगती ने जिन्होंने साक्षरता अभियान से प्रेरित होकर अपने पुत्र के साथ हाईस्कूल उत्तीर्ण किया और अब वे अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुकी 59 महिलाओं के साथ ग्रेज्यूट होने की तैयारी में है।

देश में निरक्षरता या पढ़ाई बीच में ही छोड़ देना आज भी एक बड़ी समस्या है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार सर्व शिक्षा अभियान, साक्षरता अभियान जैसे कई कार्यक्रम संचालित कर रही है और इन अभियानों में करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे है। इन अभियानों को लेकर भले ही तमाम सवाल समय-समय पर उठते रहते है बावजूद इसके यह भी हकीकत है कि कई लोग ऐसे अभियानों से प्रेरित भी होते है। ऐसी ही एक शख्सियत है सीमांत तहसील मुनस्यारी की श्रीमती तारा पांगती। जिन्होंने आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। आठवीं पास करने के बाद ही उनकी शादी भी हो गयी, शादी के बाद समाजसेवा और राजनीति में सक्रिय हो गयी। इस दौरान भी उन्हे आगे पढ़ने का विचार नहीं आया।

वर्ष 2000 में साक्षरता अभियान के सम्पर्क में आयी तो उन्होंने भी बीच में छूट गयी पढ़ाई को फिर से शुरू करने का फैसला लिया और अपने बड़े पुत्र के साथ हाईस्कूल की परीक्षा दी। उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने इण्टरमीडिएट किया। इसी दौरान उनके मन में बीच में पढ़ाई छोड़ चुकी महिलाओं को फिर से पढ़ाई से जोड़ने का विचार आया और उन्होंने एक महिला समूह गठित कर लिया। जिसमें दर्जनों महिलायें सदस्य बनायी गयी। समूह में शामिल कई महिलाओं ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। इन महिलाओं को उन्होंने फिर से पढ़ने को तैयार किया और आज समूह की करीब 59 महिलायें उनके साथ बीए की पढ़ाई कर रही है, जल्द ही ये महिलायें स्नातक हो जायेंगी। उनके इन प्रयासों की गुरुवार को मुनस्यारी में सम्पन्न हुई बालिका शिक्षा के राष्ट्रीय कार्यक्रम की समीक्षा बैठक में खासी सराहना की गयी। इस बैठक में बालिका शिक्षा के जिला समन्वयक गणेश प्रसाद ने कहा कि श्रीमती तारा पांगती खुद तो पढ़ ही रही है और को भी शिक्षा से जोड़ रही है। उन्होंने कक्षा पांच के बाद विद्यालय छोड़ चुकी दर्जनों बालिकाओं को आठवीं कक्षा की परीक्षा में बैठाने के लिए श्रीमती तारा पांगती द्वारा किये गये प्रयासों की खासी सराहना की।

 

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