कैलाश चन्द्र पाण्डे जी द्वारा त्रिपाठी जी को काव्य श्रद्धांजलि
भूमि पर भूडोल आया, गगन भी रोने लगा,
देव भू का लाल जब, पंचत्त्व में सोने लगा,
क्यों ग्या तू छोड़कर, निर्मोहिया बलता हमें?
मृदृल से मृदृ संत था, हां सोच का ही पंथ था,
प्रस्तर कठोर किशोर था, सिद्धान्त हेतु अकम्प था,
आपातकाल को याद कर, जब गया तू जेल था,
उद्दण्ड शासन विमुख होना, क्या तनिक सा खेल था?
तू लड़ा जन के लिये, प्रवाह ना की प्राण की,
जनत्रांण की तू अलख लेकर, गति पकड़कर वाण की,
आगे बढ़ा बढ़्ते गया, ओ! गगन मस्तक छू गया,
दिल हम सबों के ले गया, सिद्धान्त पक्के दे गया।
भू-माफियों को भेदकर, तस्कर तरेरे भूमि से,
हक-हकूकों को हमें, तू दे गया संघर्ष से।
आपात कारागार से तू, मुक्त होकर बढ़ चला,
उस छटा को शब्द देना, सामर्थ्य बाहर हो चला,
ढोल दन-दन बज रहे, सैलाब स्वागत आन थी,
बीएन सुन में तान प्यारी, झंकार की क्या बात थी,
सर्वहारा का हितैषी, राज्य का आधार था,
अब यह सहा जाता नहीं, पर काल की गति सत्य है।
अर्पित करुं श्रद्धा सुमन, अश्रुपूरित नेत्र से,
यशःकाया से रहेगा, तू अमर ही क्षेत्र से।