प्रतिमाओं के लिए भी विख्यात है अल्मोड़ाअल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के शारदीय नवरात्र दशहरा महोत्सव व रामलीला के लिए ही नहीं जाने जाते बल्कि पिछले 28 वर्षो से मां दुर्गा की भव्य व कलात्मक प्रतिमाओं के लिए भी जाना जाने लगा है। प्रथम नवरात्र से नगर के गंगोला मोहल्ला, लाला बाजार व राजपुरा में शक्ति स्वरूपा मां की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमा स्थापित कर नवरात्र भर पूजा-अर्चना चलती है। इसी क्रम में प्रत्येक दुर्गा पंडाल के आयोजकों से इस संदर्भ में चर्चा की गई। सर्वप्रथम 1981में गंगोला मोहल्ला से मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण शुरू हुआ। यह क्रम आज भी बदस्तूर जारी है। गंगोला मोहल्ला में इस परंपरा को शुरू करने वाले प्रभात साह गंगोला का कहना है कि इस कार्य की शुरूआत के पीछे उनका ध्येय केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि सारे नगर के आस्थावान व कला के प्रति रुझान रखने वाले लोगों को जोड़ना व आपसी मेल-मिलाप को आपाधापी के युग में बरकरार रखना था। पूछने पर उन्होंने बताया कि नगर के जाने-माने कलाकार ध्रुवतारा जोशी, जो शुरूआत में अकेले मूर्ति निर्माण में जूझते थे, आज उनकी ही प्रेरणा का परिणाम है कि एक नहीं अनेक धु्रवतारा जोशी खड़े हो गए है। उन्होंने बताया कि उनके पंडाल में प्रतिवर्ष नवदुर्गा के एक रूप को दर्शाया जाता है। इसके साथ ही नगर, जिले के शिखरों में शोभित, विराजमान मां के मंदिर व मां की प्रतिमूर्ति बनाने का प्रयास किया जाता है। इस वर्ष नगर के समीपवर्ती शक्तिपीठ माता कसारदेवी के मंदिर का प्रतिरूप दर्शाया गया है। संसाधन के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि कभी भी मां के इस पुनीत कार्य को करने के लिए किसी के आगे जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। यहीं इतना आ जाता है कि सारे कार्यक्रम सहजता से हो जाते है। ऐसा ही कुछ कहना है राजपुरा के मूर्ति निर्माण में मुख्य भूमिका अदा करने वाले कमल किशोर व सुधीर कुमार का। पिछले 15 वर्षो से वहां भी बिना नागा मां भगवती की मूर्ति का निर्माण हो रहा है। हर वर्ष मां के अलग-अलग स्वरूपों को चित्रित किया जाता है।ऐसा ही कुछ लाला बाजार में बनने वाली मां दुर्गा के पंडाल के मुख्य कार्यकर्ता अशोक धवन का कहना है कि उन्हे कभी भी इस आयोजन के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होती। मां की कृपा से सब व्यवस्था हो जाती है। पिछले 16 वर्षो से दुर्गा प्रतिमा का निर्माण हो रहा है। हालांकि इस वर्ष लाला बाजार दुर्गा समिति के लोगों ने मूर्ति बाहर से मंगाई है। ताकि इस परंपरा को बरकरार रखा जा सके।