धारचूला को कैलाश-मानसरोवर यात्रा का प्रवेश द्वार माना जाता है तथा इस क्षेत्र को सदैव ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त क्षेत्र माना गया है। कई प्राचीन मुनियों ने इसे अपनी तपोस्थली, बनाया जिनमें व्यासमुनि सर्वाधिक विख्यात थे। वास्तव में, इस शहर का नाम भी मुनि की किंवदन्ती से ही जुड़ा हुआ है।
धारचूला दो शब्दों से बना है "धार" या किनारा/पर्वत एवं चूला या चुल्हा या स्टोव। कहा जाता है कि जब व्यास मुनि अपना भोजन पकाते थे तो धारचूला के इर्द-गिर्द तीन पर्वतों के बीच अपना चुल्हा जलाते थे और इसीलिये यह नाम पड़ा।कहा जाता है कि पांडव भी अपनी 14 वर्ष के वनवास की अवधि में यहां आये थे।
इससे संबद्ध एक अन्य पौराणिक कथा कंगदाली उत्सव से जुड़ी है, जो शौका या रंग भोटिया लोगों द्वारा मनाया जाता है एवं जिनका धारचूला में सबसे बड़ा आवास है। कथा है कि अपने फोड़े पर एक बालक ने कंग-दाली झाड़ी की जड़ों के लेप का इस्तेमाल किया और उसकी मृत्यु हो गयी।
क्रोधित होकर उसकी मां ने जड़ी को शापित किया तथा शौका-महिलाओं को आदेश दिया कि वे कंग-दाली पौधे की जड़ों को उखाड़ फेंकें, जब वह पूर्ण-रूप से पल्लवित हो, जो 12 वर्षों में एक बार होता है।