धारचूला परंपरा से व्यापारिक शहर रहा है तथा जब तिब्बत के साथ व्यापार शिखर पर था शहर में बड़ी संख्या में भोटिया व्यापारी आते थे जो यहां अपना माल बेचने तथा आवश्यक सामग्रियों की खरीद कर तिब्बत लौट जाते।
भोटिया जाति के लोग, पर्वतों पर अपना घर बर्फ से ढके जाने पर इसे ग्रीष्मकालीन पड़ाव बना लेते। परंतु वर्ष 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद यह व्यापारीक धंधा बंद हो गया तथा कई भोटिया लोग धारचूला एवं इसके आस-पास आकर बस गये। रंग भोटिया जनजाति के अलावा धारचूला में काफी बड़ी आबादी कुमाऊंनी ब्राह्मणों एंव राजपूतों की भी है।