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Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य / Re: Articles & Poem by Sunita Sharma Lakhera -सुनीता शर्मा लखेरा जी के कविताये
« Last post by Sunita Sharma Lakhera on May 14, 2023, 03:52:37 PM »कविता - पहाड़ी मां
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हालातों का झीना गिलाफ़ ओढ़े बैठी
मौन रहती अक्सर मगर नि:शब्द नहीं
भावनाओं के झरने सी निरंतर बहती
नित्य अश्रुधार लिए भीतर - बाहर
मनन करती कर्मों को बोलती कुछ नहीं
गुजरे दौर के उमंगों से आज भी भरी हुई
मगर आवेग के आवेश में उठती नहीं
तानों में तपी जो बचपन से हरदम
हौसलों के दम पर कहीं रुकी नहीं
कष्टों से भरी मां अभिशाप देती नहीं
पहाड़ों में एकाकी जीवन जीने को मजबूर
मगर किसी से कोई उम्मीद करती नहीं
जीवन भर पहाड़ का बोझ सहती रही
पहाड़ पर पहाड़ सा जीवन कटता नहीं
जीवन झंझवातों में हमेशा डटी रही
किसी भी उलझन से कभी डरी नहीं
बीच मंझदार छोड़ गए रोजगार के बहाने
वो जो उसके अपने थे बने अब सब सपने
जीवन मरण की जद्दोजहद शेष अभी बाकी
गांव में अब आदमी हुए कम बाघ हैं काफी
अपने दम पर जीती आसानी से हारती नहीं
मां तो मां होती बच्चों के जीवन में बाधा बनती नहीं
©® सुनीता शर्मा ' नन्ही '
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हालातों का झीना गिलाफ़ ओढ़े बैठी
मौन रहती अक्सर मगर नि:शब्द नहीं
भावनाओं के झरने सी निरंतर बहती
नित्य अश्रुधार लिए भीतर - बाहर
मनन करती कर्मों को बोलती कुछ नहीं
गुजरे दौर के उमंगों से आज भी भरी हुई
मगर आवेग के आवेश में उठती नहीं
तानों में तपी जो बचपन से हरदम
हौसलों के दम पर कहीं रुकी नहीं
कष्टों से भरी मां अभिशाप देती नहीं
पहाड़ों में एकाकी जीवन जीने को मजबूर
मगर किसी से कोई उम्मीद करती नहीं
जीवन भर पहाड़ का बोझ सहती रही
पहाड़ पर पहाड़ सा जीवन कटता नहीं
जीवन झंझवातों में हमेशा डटी रही
किसी भी उलझन से कभी डरी नहीं
बीच मंझदार छोड़ गए रोजगार के बहाने
वो जो उसके अपने थे बने अब सब सपने
जीवन मरण की जद्दोजहद शेष अभी बाकी
गांव में अब आदमी हुए कम बाघ हैं काफी
अपने दम पर जीती आसानी से हारती नहीं
मां तो मां होती बच्चों के जीवन में बाधा बनती नहीं
©® सुनीता शर्मा ' नन्ही '