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प्रकृति पीड़
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सुन रे मानव!
 पहाड़ चिरशांति का उद्बोधक
कोलाहल तुम्हारा हो या औजारों का
उसके अनहद को भंग करता होगा
मानवीय क्रिया- कलापों पर सिर धुनता होगा
सहनशीलता की भी एक उम्र होती है...
फिर क्रोध का आवेग उसमें भी जन्मेगा..
ज्वालामुखी की शक्ल में सबकुछ लीलने को आतुर...!

विकास के हर एक उद्भव  का अंत मिट्टी है..
मिट्टी का वजूद मिट्टी  पहाड़ हो या मैदान ..
आक्षेपों के आवरण में लिपटी परियोजनाएं..
अपनी असफलता गीत गाती है ..
इंसान प्रकृति के न्याय के आगे हतप्रभ...
शहर के बसने से जमींदोज़ होने तक के सफर में ...
बेवक्त मिले बिछोह सहने को मजबूर..
अपनी असफलताओं पर हाथ मलता है !

विकास पीड़ की अंतहीन वेदना सहते हुए..
अपने वज़ूद के दरकने की आवाज़...
कब तक चेताएगी संवेदनशील प्रकृति?
जो छिन जाए वो टीस  बन ही जाएगी...
तृष्णाओं की संवेदनहीन मकड़जाल पर  ...
फिर मिट्टी में विलीन हो जाएगी मिट्टी बनकर !

हर बरस आग- बाढ़ का बोझ सह- सह कर ...
मैदानों में उतर आते हैं पहाड़ी लोग ...
अपने सपनो के बसेरे को खो देते विकास के नाम पर ....
और जारी रहता है मिट्टी का सफर मिट्टी बनाने तक ....!


त्रासदी का एक ही  झटका छीन लेती कमाई उम्र भर की...
पीछे छोड़ जाती मजबूरियों ,वीरानियों सा नीरस जीवन ...
जारी रहता प्रकृति का न्यायिक  चक्र अनवरत ...
इसलिए मात्र एक ही समाधान शेष..
आपदा आये जब कभी भी तुम निराश मत होना!

प्रकृति से छेड़खानी की कहानी यूंही नहीं भुलाई जा सकती ...
मिट्टी के वजूद भर इंसान की बिसात एक दिन मिट्टी में मिल जाती..
ये तो प्रकृति उपक्रम  हर बरस चलचित्र दिखाती..
सुनो ! तुम बस कभी आंसू मत बहाना
नव जीवन संचार का  इंतज़ार करना!

प्रकृति के लेन -देन में भेदभाव नहीं दिखता
जैसा बोएंगे वैसा ही तो काटेंगे फसल
सपनो के नीड़ फिर बस जाएंगे
चहुं ओर सुख - संपदा की गीत गाए जाएंगे
बस प्रकृति के गर्भ पर प्रहार मत करना
सृजन स्वर युगों से वो गा रही, गाती रहेगी !

सुनीता शर्मा ' नन्ही '
प्रतिष्ठित हलंत में पूर्व प्रकाशित
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हार्दिक धन्यवाद भाई Mahi Mehta जी ,आज काफी समय बाद आज पुनः यहां जुड़ी।  mera pahad forum पर कार्यरत सभी कलमकारों को सादर नमस्कार 😊🙏
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चार आखरों की माया


चार आखरों की माया च
वा बाटो हेरदा.... हेरदा थकि जालि
जिकुड़ी ते बुते ..... बुते ...वा
राति -बै-राति जगै-सुलै -रुवै सरि जालि

पैल भंडया विन धीर देन
वे बाद विन अधीर कैन
क्या क्या छिन-बिन- विन कैन
घर-बार दुनियादारी सबि क्षीण वैन
चार आखरों की माया च ....

बुद्धी बोनी बौल्या रे तू
विल अबि परति कि कबि नि ऐण
विं ते मिलगै औरी गैण
जिकोड़िळ तबै बि विंकी फिकर कैन
चार आखरों की माया च ....

हैरि जाळु अफि से ज्ब
यकूल रै जाळु जग्वाळ कनू
भैर से भीतर देखिले अफि
जंतर मंतर सबि देखि जाळू
चार आखरों की माया च ....

यन उन हताश होळू अफि से तू
अफि अफ मा तू बिरडी जाळू
सूद-बुध ख्वै जाली ते से अफि
चार आखरों की माया तू पै जालि
चार आखरों की माया च

© बालकृष्ण डी. ध्यानी
https://dhyani1971.blogspot.com/2023/01/blog-post_71.html
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
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चार आखरों की माया


चार आखरों की माया च
वा बाटो हेरदा.... हेरदा थकि जालि
जिकुड़ी ते बुते ..... बुते ...वा
राति -बै-राति जगै-सुलै -रुवै सरि जालि

पैल भंडया विन धीर देन
वे बाद विन अधीर कैन
क्या क्या छिन-बिन- विन कैन
घर-बार दुनियादारी सबि क्षीण वैन
चार आखरों की माया च ....

बुद्धी बोनी बौल्या रे तू
विल अबि परति कि कबि नि ऐण
विं ते मिलगै औरी गैण
जिकोड़िळ तबै बि विंकी फिकर कैन
चार आखरों की माया च ....

हैरि जाळु अफि से ज्ब
यकूल रै जाळु जग्वाळ कनू
भैर से भीतर देखिले अफि
जंतर मंतर सबि देखि जाळू
चार आखरों की माया च ....

यन उन हताश होळू अफि से तू
अफि अफ मा तू बिरडी जाळू
सूद-बुध ख्वै जाली ते से अफि
चार आखरों की माया तू पै जालि
चार आखरों की माया च

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मायाजाळ

सब्यू  ते .....  ते यख
लाइक ,कमेन्ट...  शेयर चैन्दु
यूँ  रगरायाट अंख्यूं  ते
क न  यु सुख चैन  चैन्दु
सब्यू  ते .....  ते यख

स्वप्नयाळी आँखि थक गैनी
जग्वाळ  देख कैरी कैरी
क्वी त  होलो दगड़्या बिन पड़ी
लाइक ,कमेन्ट...  शेयर करलू ..... हरी हरी
सब्यू  ते .....  ते यख

बडू  टैम  ह्वैगे
कैल  बि वै  पोस्ट ते ख्वगेल ना
निराशा व्हाई क्वी बी ऐना
ऐना  दिख्या  ग्याई मि भिर-भिराट  कैरि
सब्यू  ते .....  ते यख

अप्डू  सुख  अफ दगडी हि  छा
मिल वै  ते  खोजी भैर  भैर
अब बी  नि  व्हाई  देर
झट स्वप्नियु  मा  ख्वै जै कैर अप्डी ..... केयर
सब्यू  ते .....  ते यख

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
https://dhyani1971.blogspot.com/
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मायाजाळ

सब्यू  ते .....  ते यख
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यूँ  रगरायाट अंख्यूं  ते
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सब्यू  ते .....  ते यख

स्वप्नयाळी आँखि थक गैनी
जग्वाळ  देख कैरी कैरी
क्वी त  होलो दगड़्या बिन पड़ी
लाइक ,कमेन्ट...  शेयर करलू ..... हरी हरी
सब्यू  ते .....  ते यख

बडू  टैम  ह्वैगे
कैल  बि वै  पोस्ट ते ख्वगेल ना
निराशा व्हाई क्वी बी ऐना
ऐना  दिख्या  ग्याई मि भिर-भिराट  कैरि
सब्यू  ते .....  ते यख

अप्डू  सुख  अफ दगडी हि  छा
मिल वै  ते  खोजी भैर  भैर
अब बी  नि  व्हाई  देर
झट स्वप्नियु  मा  ख्वै जै कैर अप्डी ..... केयर
सब्यू  ते .....  ते यख

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लड़ी ले जिकोडि तू हिमत भोरिकि

ना ऐ पिछने तू इन पाठ फिरैकि
लड़ी ले जिकोडि तू हिमत भोरिकि

जैल ऐ बि बुरू टैम थोडु टैम लगे दि
अपडो परयों कि बल खुद लगे कि
ध्यान धैर ध्यानी ऐ आखेर नि छ
डैरी डैरी कि हि  सै ते थे बाट देखेलि

ना ऐ पिछने तू इन पिठ फिरैकि
लड़ी ले जिकोडि तू हिमत भोरिकि

पता छे ते वै समण तू ठैर निसकदु
कुच निछ ते पास वै दगड़ लड़णा कुन
फिर बि वैते चित्कारी ललकार देणु रे
बिच बिच मां तू वै ते हुंकार देणु रे

ना ऐ पिछने तू इन पिठ फिरैकि
लड़ी ले जिकोडि तू हिमत भोरिकि

ध्यान धरि ऐ समै क्या शिक्षा देणु
हरेक बेल ऊ तुमरी परीक्षा लेणु
उपयोग मा ले अफ ते सक्षम कना कुन
कु छु मि ? अर क्या ह्वै सक्दु ऐ जण ना कुन

ना हात-खुथी गालि वै कु रूप देखिकि 
स्वार हवैजा वै पर लड़णु छ ऐ ठरैकि
ना ऐ पिछने तू इन पिठ फिरैकि
लड़ी ले जिकोडि तू हिमत भोरिकि

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ना ऐ पिछने तू इन पाठ फिरैकि
लड़ी ले जिकोडि तू हिमत भोरिकि

जैल ऐ बि बुरू टैम थोडु टैम लगे दि
अपडो परयों कि बल खुद लगे कि
ध्यान धैर ध्यानी ऐ आखेर नि छ
डैरी डैरी कि हि  सै ते थे बाट देखेलि

ना ऐ पिछने तू इन पिठ फिरैकि
लड़ी ले जिकोडि तू हिमत भोरिकि

पता छे ते वै समण तू ठैर निसकदु
कुच निछ ते पास वै दगड़ लड़णा कुन
फिर बि वैते चित्कारी ललकार देणु रे
बिच बिच मां तू वै ते हुंकार देणु रे

ना ऐ पिछने तू इन पिठ फिरैकि
लड़ी ले जिकोडि तू हिमत भोरिकि

ध्यान धरि ऐ समै क्या शिक्षा देणु
हरेक बेल ऊ तुमरी परीक्षा लेणु
उपयोग मा ले अफ ते सक्षम कना कुन
कु छु मि ? अर क्या ह्वै सक्दु ऐ जण ना कुन

ना हात-खुथी गालि वै कु रूप देखिकि 
स्वार हवैजा वै पर लड़णु छ ऐ ठरैकि
ना ऐ पिछने तू इन पिठ फिरैकि
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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19
जय गोलू देबता

हमरी पीड़ा अफि मा जा तू समै
क्या पाई तिल यखमा रैकि यख रुपै
गोलू देबता लगे हमुन फिर ते थे  धे
दौडी ऐजा हमते लिजा ते दगडी सरे

दुई हात जोड़ि कि हम छा बैथयां
अपडा से एकमत ह्वैकि हम छा बैथयां
तेरु ही धास तेर सार अब हमते लग्युं छा
चिट्ठी मा स्वाल लिखी सब्बि छा बैथयां

मनोकामना सबै कि पूरी व्है जाली
न्याय देबता जबै तू सबते न्याय देलि
घांट चिट्ठी मिल बि गेड़ी च मंदिर मा
तू मिते ना  कै ते ना अब ना तू बिसरे

हमरु उत्तराखंड को चितई गोलू देवता
तेरू जय जयकरा रै  हमरा मुखम सदै
हम सबु ते तू सत बुद्धि सत मार्ग बते
छोड़ि  कि गयां सबु ते पाड़ों मा परते

हमरी पीड़ा अफि मा जा तू समै  ....
जय गोलू देबता
बालकृष्ण डी ध्यानी
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जय गोलू देबता

हमरी पीड़ा अफि मा जा तू समै
क्या पाई तिल यखमा रैकि यख रुपै
गोलू देबता लगे हमुन फिर ते थे  धे
दौडी ऐजा हमते लिजा ते दगडी सरे

दुई हात जोड़ि कि हम छा बैथयां
अपडा से एकमत ह्वैकि हम छा बैथयां
तेरु ही धास तेर सार अब हमते लग्युं छा
चिट्ठी मा स्वाल लिखी सब्बि छा बैथयां 

मनोकामना सबै कि पूरी व्है जाली
न्याय देबता जबै तू सबते न्याय देलि
घांट चिट्ठी मिल बि गेड़ी च मंदिर मा
तू मिते ना  कै ते ना अब ना तू बिसरे

हमरु उत्तराखंड को चितई गोलू देवता
तेरू जय जयकरा रै  हमरा मुखम सदै
हम सबु ते तू सत बुद्धि सत मार्ग बते
छोड़ि  कि गयां सबु ते पाड़ों मा परते

हमरी पीड़ा अफि मा जा तू समै  ....
जय गोलू देबता
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