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ग्युं क पंजरी,  हलवा आदि  विवरण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद २६९   बिटेन  २७०  तक
  अनुवाद भाग -  ३३६
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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ग्युं क आटो म घी मथिक (मिलैक )  या घी म पकैक नाना प्रकार का जो भि पकवान पकाये जान्दन यी सब गुण तृप्तिकारी , वीर्यवर्धक व खाणम आनंददायी हूंदन।  इनि ग्यूं  आदि पदार्थुं  तै  बिंदी देर तक अग्नि संयोग से पकाये जांद  त ग्युं गन गुरु से लघु ह्वे जांद।  इनि ग्यूंकी पीठि (लोई ) . धान्य पर्पट , भारी  हूंदन किन्तु संस्कार से लघु करे जांदन।  इलै वैद्य तैं संस्कारों विचार कौरि गुणों निश्चय करण  चयेंद।  २६९ -२७०। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३६२
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ

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Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters, and Traditional Plays

                   गढवाली लोक नाटकों / लोक  गीतों में    अवहित्थ     भाव

Review of Characteristics of Garhwali Folk Drama, Folk Theater/Rituals and Traditional Plays part -45

                                    Bhishma Kukreti

                According to Bharat’s Natyashastra (7/79); dissimulation sentiment is demonstrated in drama by irrelevant talk, looking down, broken speech and pretended patience
        Dissimulation sentiment in drama is to show the deceptive quality of a character. To show dissimulation characters the performer changes the subject of talk immediately, speaks differently or irrelevant talks.
          I remember a mini Garhwali folk drama played by Badi-Badan in Jaspur, Malla Dhangu, Pauri Garhwal, North India in the month of Chait (15th March-14th April) in 1964-65. 
                     एक गढवाली लोक नाटक में अवहित्थ     भाव
 पंडी जी (व्यासपीठ से ) - सुणो ! चोरी करण माहापाप च। चोरी करण से नरक मिल्द ।
एक शिल्पकार (दर्शक दीर्घा से भैर  )- पण पंडी जी परसि त तुम गलादार  जीक मूळा चुराणा छया। 
पंडी जी ( इना उना दिखद )- ऊँ ऊँ  …मूळा … की चोरी चोरी नि बुले जांद। चलो अब कृष्ण सद्भामा विवाह की कथा सुणो
   In this mini drama a Pundit is preaching about the sins of theft. Suddenly a Shilpkar reminds the Pundit that day before Pundit Ji was stealing radish from village council chief.
Pundit replies that stealing radish is not theft. The role of Pundit was played by a Badi was marvelous in showing the sentiment of dissimulation. Performer (Badi) was able to show concealing the intensions. 
  Badis (a professional class –caste) were great dramatists to show the negativity in the society.


Copyright@ Bhishma Kukreti 22/11/2013

Review of Characteristics of Garhwali Folk Drama, Community Dramas; Folk Theater/Rituals and Traditional to be continued in next chapter.

                 References
1-Bharat Natyam
2-Steve Tillis, 1999, Rethinking Folk Drama
3-Roger Abrahams, 1972, Folk Dramas in Folklore and Folk life 
4-Tekla Domotor , Folk drama as defined in Folklore and Theatrical Research
5-Kathyrn Hansen, 1991, Grounds for Play: The Nautanki Theater of North India
6-Devi Lal Samar, Lokdharmi Pradarshankari Kalayen 
7-Dr Shiv Prasad Dabral, Uttarakhand ka Itihas part 1-12
8-Dr Shiva Nand Nautiyal, Garhwal ke Loknritya geet
9-Jeremy Montagu, 2007, Origins and Development of Musical Instruments
10-Gayle Kassing, 2007, History of Dance: An Interactive Arts Approach
11- Bhishma Kukreti, 2013, Garhwali Lok Natkon ke Mukhya Tatva va Charitra, Shailvani, Kotdwara
12- Bhishma Kukreti, 2007, Garhwali lok swangun ma rasa ar Bhav , Chithipatri
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Notes on Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Haridwar Garhwal; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Dehradun Garhwal; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Tehri Garhwal; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Uttarkashi Garhwal; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Chamoli Garhwal; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Rudraprayag Garhwal; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Pauri Garhwal; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Garhwal, Uttarakhand; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Garhwal, Himalaya; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Garhwal, North India; Dissimulation Sentiment in Garhwali Folk Dramas, Folk Rituals, Community Theaters and Traditional Plays from Garhwal South Asia
गढवाली लोक नाटकों में अवहित्थ   भाव; टिहरी गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में  अवहित्थ भाव;उत्तरकाशी गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में  अवहित्थ  भाव;हरिद्वार गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में अवहित्थ   भाव;देहरादून गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में  अवहित्थ  भाव;पौड़ी गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में  अवहित्थ  भाव;चमोली गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में    अवहित्थ भाव; रुद्रप्रयाग गढ़वाल के गढवाली लोक नाटकों में   अवहित्थ भाव;

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Protection of Regional Traditional Laws and Culture
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Duties (Raj dharma) of the Chief Executive Officer -38   
Judiciary System in the Organization /Country

Guidelines for Chief Officers (CEO) Series –446       
       Bhishma Kukreti (Marketing Strategist)
s= आधी –अ
येषां परम्पराप्राप्ताः पुर्वजैरप्यनुष्ठिता: II
त एव तैर्नं दुष्येयुराचारान्नेतरस्य तु I
Those customs are received by those citizens (discussed earlier) from their ancestors and the ancestors practice those customs regularly. Those citizens should not be punished fro following their customs.
 (Shukraniti, Raj dharma Nirupan or “The Duties of a King” –50 , 51    )
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Reference:
Shukraniti, Manoj Pocket Books, Delhi pp259
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2021
Strategies for Executive for marketing warfare
Tactics for the Chief Executive Officers responsible for Marketing
Approaches   for the Chief Executive Officers responsible for Brand Image
Strategies for the Chief Executive Officers responsible for winning Competitors
Immutable Strategic Formulas for Chief Executive Officer
(CEO-Logy, the science of CEO’s working based on Shukra Niti)
(Examples from Shukra Niti helpful for Chief executive Officer)
Successful Strategies for successful Chief executive Officer
Duties (Raj dharma) of the Chief Executive Officer   

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  मेरग  ( जोशीमठ , चमोली ) में एक भवन में  पारम्परिक गढ़वाली शैली की  काष्ठ कला अलंकरण, उत्कीर्णन  अंकन,
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Traditional House Wood Carving Art from  Merag,  Chamoli   
 गढ़वाल,कुमाऊंकी भवन (तिबारी, निमदारी,जंगलादार मकान, बाखली,खोली) में पारम्परिक गढ़वाली शैली की  काष्ठ कला अलंकरण, उत्कीर्णन  अंकन, - 624
( काष्ठ कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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मेरग  के आस पास के भवनों की सूचना मिली हैं।   मेरग  ( जोशीमठ , चमोली )  का  प्रस्तुत  भवन  दुखंड व दुपुर  भवन है जिसके उबर में (दान ) भंडार व गौशाला होगी।  तल मंजिल में काष्ठ कला दर्शाने हेतु कुछ महत्वपूर्ण आकृति नहीं है।
भवन के पहले तल में बरामदे पर जंगला  बंधा है।  जंगला आकर्षक है।  जंगल में ६ से अफिक  स्तम्भ /खम्भे हैं जो चौखट व सपाट हैं।  आधार में एक उप जंगल अन्य बंधा है।  दो लकड़ी की डंडियों या कड़ियों के मध्य XIX जैसे आकृति स्थापित है जो आकर्षक है। 
  मेरग  ( जोशीमठ , चमोली )  के   प्रस्तुत  भवनमें केवल ज्यामितीय कटान  की कला उपस्थित है व प्राक्रितिक , मानवीय अलंकरण नहीं दिखे। 
सूचना व फोटो आभार: सूरज राणा
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तु स्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन ,   श्रंखला जारी   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला,   ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला,  ;  नीति,   घाटी में भवन काष्ठ  कला,    ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला,   , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला,   श्रृंखला जारी  रहेगी

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वियतनाम हिन्दू संस्कृति का चिन्ह ( पराक्रम से संकटो से पार पए जांद)
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सरोज शर्मा-जनप्रिय लेखन श्रंखला

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वियतनाम एशिया क इन देश च जैल संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा का पांच स्थाई देशों म से तीन फ्रांस, अमेरिका व चीन क आक्रमण थैं नेस्तनाबूद करण मा सफलता हासिल कैर।
बगैर आधुनिक अस्त्र-शस्त्र क केवल अपण संकल्प का बल पर यूं महाशक्तियो क मानमर्दन करणवल राष्ट्र वियतनाम से क्या भारत थैं प्रेरणा लींण चैंद?ई प्रश्न इलै उठणु च कि चीन कि विस्तार वादी नीति से मुकाबला करण मा भारत हिचकिचाहट क अनुभव करद दिखेंणु च, वियतनाम क महान नेता हो ची मिन्ह क कथन स्वतंत्रता एवं स्वावलंबन से मूल्यवान कुछ नी, वियतनाम से भारत का रिश्ता हमेशा मधुर रैं,
वियतनाम थैं दृढ़ संकल्प कि प्रेरणा कख बटिक मिलद?ऐकु उत्तर जांणिक आपथैं आश्चर्य ह्वाल, वियतनाम म दुसरी शताब्दि का शिलालेख मिलीं जु संस्कृत और ब्रह्मी लिपी मा छन। ई सरया दक्षिण पूर्व एशिया मा प्राचीन समय मा हिन्दुओ की मौजूदगी क प्रमाण च। वियतनाम कि शक्ति क मूल हिन्दू दर्शन और संस्कृति छै।
वियतनाम कि लोक आस्था क अनुसार तिन्या लोको म वास करणवली देवी मां कि पूजा कनकी यूनेस्को द्वारा मान्यता दियै गै छै।
वियतनाम का नामदिन्ह राज्य म मानवीय संस्कृति कि अनमोल धरोहर क रूप म यूनेस्को द्वारा धार्मिक आस्था कु प्रमाण पत्र प्रदान कियै ग्या छा, देवी पूजा प्राचीन समय का ऊं विश्वासो पर आधारित च जै म विभिन्न देवी देवताओ क अवतार कि अराधना क माध्यम से लोगों थैं अच्छु स्वास्थ्य संपत्ति प्राप्त हूंद छै, नामदिन्ह प्रान्त, वियतनाम कि राजधानी हनोई का दक्षिण मा 80 किलोमीटर दूर पव्ड़द, ई देवी मां संबधित पूजा करण वलों खुण सबसे बड़ तीर्थ स्थल क केन्द्र क रूप म जंणै जांद। ऐ राज्य मा 287 मंदिर व अन्य धार्मिक मान्यताओ संबधित अवशेष मौजूद छन,
इतिहास बतांद कि दक्षिण पूर्व एशिया म हिन्दुओ से संपर्क का चलदा शैव धर्म कु प्रसार ह्वाई। वियतनाम कु इतिहास 2700 वर्षो से भि ज्यादा पुरण च। वियतनाम क प्राचीन नौं चम्पा छाई, चम्पा का नागरिक चाम ब्वलेजांद छा,यूंक राजा शैव छा, द्वितीय शताब्दि म स्थापित चम्पा हिन्दू संस्कृति क प्रमुख केन्द्र छा,स्थानीय चाम नागरिको न हिन्दू धर्म भाषा, सभ्यता अपणै, भाषाई दृष्टि से चम्पा का लोग चाम ( मलय पाॅलिनेशियन) छा।
वर्तमान म चाम वियतनाम व कम्बोडिया सबसे बड़ अल्पसंख्यक छन ,प्रारंभ मा चम्पा का नागरिक व राजा शैव छाया। इस्लाम क उदय क बाद कुछ शताब्दि पैल इस्लाम यख जड़ जमाण बैठ ग्या, ज्यादातर चाम मुस्लिम छन पर हिन्दू और बौद्ध भि छन, जु मुस्लिम छन वू भि हिन्दू संस्कृति से पूरी तरह अलग नि ह्वै न।
हिन्दुओ का आण से यखका पूर्व निवासी हिन्दुओ क संपर्क से सभ्य ह्वै गिन। जु चम नौ से प्रसिद्ध ह्वै गिन। जु बर्बर और हिंसक छा वु चमलेच्छ और किरात नौ से जंणै गैन।
संपूर्ण वियतनाम म चीनी राजवंशो क शासन ज्यादा रै।
हिन्दू धर्म थैं राजधर्म क रूप मा स्थापित करणक बाद चम्पा म संस्कृत शिलालेख बणयै गैं व हिन्दू मंदिरो क निर्माण कियै ग्या। शिलालेखो क अनुसार चम्पा मा पैल महाराज भद्र वर्धन राजा छाई, जौंन 380 ईस्वी से 413 ईस्वी तक शासन कैर। मीशाॅन म राजा भद्र वर्मन न भदरेश्वर नौ क शिवलिंग की स्थापना कैर, भदरेश्वर महादेव कि पूजा सदियों तक जारी छै।
महाराजा रूद्र वर्मन न 529 ईस्वी म नै राजवंश कि स्थापना कैर, ऊंका पुत्र महाराज शंभु वर्मन उत्तराधिकारि बणीं, ऊं न भद्र वर्मन मंदिर क पुनःनिर्माण करै, मंदिर क नौ परिवर्तित कैरिक शम्भू भदरेश्वर राख, 629 म भद्र वर्मन कि मृत्यु ह्वै गै, ऊंका पुत्र कंदर्पधर्म राजा बणी जौंकि मृत्यू पश्चात प्रभाष धर्म उत्तराधिकारि हुंई 645 ईस्वी म मृत्यु ह्वै यूंकि भि ,सातवीं व दशवीं शताब्दि क बीच म राजवंश नौसेना शक्ति क प्रमुख केन्द्र बण ग्या।
चम्पा का बन्दरगाह स्थानीय व विदेशी व्यापारियो क आकर्षकण क केन्द्र बणगैन। चीन,इंडोनेशिया व भारत क मध्य दक्षिण चीन सागर मा मसालों व रेशम क व्यापार क केंद्र चम्पा बण ग्या। चाम हिन्दुओ क स्वर्णिम अतीत रै।
चम्पा साम्राज्य दक्षिण वियतनाम व लाओस का कुछ हिस्सों तक फैलयूं छाई। चम्पा कु राजा शैव धर्मावलम्बी छा और अनेक मंदिरो कु निर्माता छाई, हिन्दू संसकृति का चिन्ह आज भि हिन्दू मूर्तियो व लाल ईंट का मंदिरो मा आज भि देख सकदौ।1471 मा उत्तरी दिशा बटिक वियतनामी सम्राट न आक्रमण कैर जैमा चम्पा कि हार ह्वै। युद्ध म 1,20,000 लोग युद्ध बन्दी हुंई या मरे गैं। इन अनुमान लगयै जांद चम्पा क राजा महाजन थैं युद्ध बंधी बणयै ग्या। चाम हिन्दुओ न ऐ भाग म अपण नियंत्रण ख्वै द्या ।पुनः ऐ पर काबिज नि ह्वै सका। आठवीं शताब्दि से हि अरब का व्यापारी चम्पा पौंछण लगीं, मुसलमानो न चाम मा अपण धर्म प्रचार शुरू कैर, सतरहवी शताब्दि तक चाम क शाही परिवार न इस्लाम स्वीकार कैर, धीरे धीरे शैव ब्राह्मणो और नागवंशीय क्षत्रियों थैं छोड़िक अधिकांश चम इस्लाम का अनुयाई बणि गैं।वस्तुस्थिति या च कि वियतनामी चम मा मुस्लिम बहुसंख्यक छन। आज भि वियतनाम क मध्य क्षेत्रीय प्रान्तो म चाम का स्मारको और मंदिरो का भग्नावशेष मौजूद छन। वियतनाम मा चाम का सैकड़ो हजारों वंशज मौजूद छन, जु सदियों से आपस मा विवाह और सामाजिक एकीकरण कि प्रक्रिया मा वियतनामियो क दगड़ एकाकार ह्वै गिन। ई निम्न आर्थिक स्थिति वला क्षेत्रो मा रैंदिन ।
वियतनाम सरकार अपण नागरिकों कि जातीय व सांस्कृतिक पछयाण थैं मान्यता दीण म ऊंकि सहायता करण कि नीति क पालन करद।
चाम संस्कृति कि नृत्य कला व परंपरा अच्छी तरह से संरक्षित छन। पोलिश व भारतीय पुरातत्विदो कि सहायता से चाम स्मारको कि देखरेख व संरक्षण कियै जांद। चाम क पुरातत्विक स्थल मीशान या मायसन थैं यूनेस्को द्वारा धरोहर घोषित किए ग्या।
व्यापार समुद्री आवागमन संबंधी सरोकारों और फ्रांसिसी औपनिवेशिक शाशन क अन्तर्गत रोजगार हेतू भारतीय यख पौंछिन। ई भारतीय अपणि मातृभाषा व वियतनामी भाषा, और फ्रेंच भि ब्वलदा छा, ई मुख्यतः उत्तरी शहर हनोई और दक्षिण म साइगाॅन मा बसयां छा,द्वी विश्वयुद्ध क काल म भारतीय भी यख पौंछिन, नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्र नाथ टैगोर भि साइगाॅन पौंछिन। कुछ दिन तक एक परिवार म ठैरिन। आजाद हिन्द फौज कि शौर्य गाथा से वियतनाम भि अछूतू नि रै। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ताईवान यात्रा से पैल साइगाॅन क होटल मा ठैरा छा ।
1975 मा साइगाॅन क पतन व साम्यवाद क उदय क समय दक्षिण वियतनाम म 25,000 लोग भारतीय समुदाय का छा।यूंका खुदरा व्यापार जनकि कपड़ा, हस्तशिल्प, आभूषण, किराना मा वर्चस्व छाई। 1976 म साइगाॅन नाम क नौ हो ची मिन्ह सिटी रखै ग्या। यखका प्राचीन मंदिरो कि देखरेख चेट्टियार समुदाय का वियतनामी वंशज करदिन।
समुद्र क्षेत्र म चीन कि बढ़ती धमक व हिमालय क्षेत्र म बार बार अतिक्रमण कि प्रवृति से भारत म संकट कि स्थिती बणीं रैंद। इनमा वियतनाम, ताईवान, इत्यादि दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों व जापान क माध्यम से भारत चीन थैं सोचणा खुण मजबूर कैर सकद। जतगा ध्यान सरकार पश्चिमी एशिया मा केन्द्रित करद उतगा दक्षिण पूर्व एशियाई देशों म नि करद। वियतनाम क इतिहास हमथैं सबक दींद कि समझौता न पराक्रम से ही संकटो से पार पयै जांद।

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मांस , फल ,वसा, , दुग्ध मिश्रित पेय ,गुड़ ,   शाक गुण  व उपयोग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  २६६  बिटेन  २६८  तक
  अनुवाद भाग -  ३३५
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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फल , मांस , वसा , शाक , तिलौ चूरण , मधु क योग से बण्युं भोजन वीर्यवर्ध , बलकारी , गुरु अर पौष्टिक हूंदन।  वेश वार  या कीमा (बिन हड्डी मांस पत्थर पर पीसी , पीपली , मर्च , गुड़ , घी दगड़ पकायुं  मांस पदार्थ ) गुरु , स्निग्ध , बल व शक्ति वर्धक हूंद।दूध अर  गन्ना  रस से तैयार पदार्थ , गुरु बलकारी, तृप्तकारी , वीर्यवर्धक हूंदन।  गुड़ तिल   , दूध ,  शक़्कर क योग से बण्युं  पदार्थ वीर्यवर्धक , बलकारी , भौत गुरु हूंदन।  २६६-२६८
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  ३६१ 
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022

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चखुटियाखाळ  (पौड़ी )  के  भवन में   काष्ठ कला

 चखुटियाखाळ  (पौड़ी )  के एक भवन में  गढवाली  शैली   की  काष्ठ कला अलंकरण,  उत्कीर्णन , अंकन
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    Tibari, Traditional  House Wood Art in House of Chakhultiakhal, Pauri Garhwal       

गढ़वाल, के  भवनों  (तिबारी,निमदारी,जंगलेदार मकान,,,खोली ,मोरी,कोटिबनाल ) में  गढवाली  शैली   की  काष्ठ कला अलंकरण,  उत्कीर्णन , अंकन 


 संकलन - भीष्म कुकरेती   

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   चखुटियाखाळ(पौड़ी ) का प्रस्तुत भवन दुपुर व दुखंड है।  भवन के उबर तल (ground floor )  गौशाला व भंडार के चिन्ह हैं व इनके दरवाजों की लकड़ी सरल व सपाट हैं।  उबर तल में द्वारों के स्तम्भ बीसपत कटान के ही हैं।  भवन का छज्जा व दास लकड़ी के ही हैं।  लकड़ी के छज्जों पर लकड़ी का जंगला बंधा है।  जंगले में दस से अधिक सपाट , उत्कीर्णन हीन  स्तम्भ हैं ।
निष्कर्ष निकलता है कि   चखुटियाखाळ  (पौड़ी ) के  प्रस्तुत भवन में केवल ज्यामितीय सपाट कटान की कला उपस्थित है। 

सूचना व फोटो आभार: विमल उनियाल

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . भौगोलिक स्थिति व  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी,पौड़ी गढ़वाल के भवनों की काष्ठ कला , उत्तराखंड भवनों की काष्ठ कला    * पौड़ी की लकड़ी  नक्कासी

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बुलडोजर पुराण (इतिहास)
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सरोज शर्मा-जनप्रिय लेख श्रंखला

आजकल अवैध संपति पर बुलडोजर चलाण कि मुहिम छिड़ी च, दिल्ली का जहांगपुरी म अवैध कब्जों म बुलडोजर कि कार्यवाही करै ग्या, उत्तर प्रदेश का सीएम योगी आदित्य नाथ थैं बुलडोजर बाबा त शिवराज सिंह चौहान थैं बुलडोजर ममा बोलै जांणु च, अवैध कब्जा हटाण खुण जै मशीन कु उपयोग हूंणूच वैकु JCB या बुलडोजर ब्वलेजांद।
ऐकु प्रयोग खुदै या तोड़ फोड़ या कै भि चीज थैं हटाण म किए जांद।ये थैं द्विया तरफ बटिक ऑपरेट कियै जा सकद, ई जंबो मशीन कु पीलू रंग हूंद। पैल नीला व लाल रंग भि हूंद छाई, ज्यादातर लोग ऐ थैं जेसीबी बव्लदिन, लेकिन यू ऐकु नाम नी, जेसीबी वु कंपनी च जु या मशीन बंणाद, ऐकु शै नौ बैकहो लोडर च, जेबीसी कंपनी कि नींव 1945 मा रखे ग्या, कंपनी न जु पैल बैकहो लोडर बणाय वु 1953 मा बणै, वु नीला और लाल रंग क छा।ऐका बाद 195म64 मा एक बैकहो लोडर बणयै ग्या जु पीलू रंग कु छाई, ऐका बाद से लगातार पीला रंग कि ही मशीन बणयै जाणी छन ।यख तक कि और कंपनीज भि कंस्ट्रक्शन साइट पर इस्तेमाल हूण वलि मशीनों कु रंग भि पीलू ही रखणा छन। शुरूआत म ऐथैं ट्रैक्टर क साथ जोड़िक बणयै ग्या लेकिन समय क साथ ऐका मॉडल म बदलाव कियै गैन।
लीवर्स से आपरेट हूंद, लोडर लगयूं हूंद, बैकहो लोडर द्विया तरह से काम करद और ऐथैं स्टेयरिंग कि बजाय लीवर्स से आपरेट किए जांद, ऐमा एक तरफ स्टेयरिंग लगीं हूंद, जबकि दूसर तरफ क्रेन क जन लीवर लगयां हुंदिन, ऐका बड़ हिस्सा कि तरफ लोडर लगयूं हूंद, जैसे समान उठयै जांद, ऐका अलावा दूसरी तरफ साइड बकेट लगयूं हूंद,
ब्रिटिश अरबपति क नौ से बणयी गै जेसीबी एक्सावेटर्स लिमिटेड एक ब्रिटिश कंपनी च।
जैक मुख्यालय रोसेस्टर स्टाफोर्डशायर म च, ई कंपनी भारी उपकरण बणाण कु प्रसिद्ध च,ई कंपनी का मालिक और फाउंडर ब्रिटिश अरबपति जोसेफ सायरिल बम्फोर्ट छा,
जोसफ कि मृत्यु 2001म ह्वै गै छै, ऊंका नौ से ही कंपनी क नौ जेसीबी रखे ग्या।
भारत मा जेसीबी कि पांच फैक्ट्रियां और डिजाइन सेंटर छन। भारत मा बणीं मशीनो क निर्यात 110 देशों म कियै। CB क अलावा कई और कंपनियां भि बैकहो लोडर बंणनदिन, इन नी च कि सिर्फ जेसीबी ही बैकहो लोडर बणांद, भारत मा ACE L&T वोल्वो, महिंद्रा एंड महिंद्रा जन कई कंस्ट्रक्शन इक्यूपमेंट मैन्यूफैक्चरिंग कंपनीज छन, जु बैकहो लोडर बंणनदिन, ऐकि कीमत 10 लाख से शुरू ह्वै कि 40- 50 लाख तक हूंद।

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ललाम -मिलाम ( जौहर घाटी पिथौरागढ़ )  घाटी के एक ढाबा से कुमाऊं में भवन विकाश के साक्ष्य

   Traditional House Wood Carving Art  of   , Pithoragarh
कुमाऊँ,के भवनों ( बाखली,तिबारी , निमदारी,छाजो, खोली स्तम्भ) में कुमाऊं शैली की   काष्ठ कला अलंकरण, काष्ठ उत्कीर्णन अंकन -622

 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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लालम मुंसियारी - मिलम  ट्रेक ( जोहर घाटी )  पर यह ढाबा बरबस यात्रियों की भूख तीस ही नहीं अपितु रात को बसेरा भी उपयोग में आता है।  प्रस्तुत ढाबा  की चर्चा काष्ठ कला या उत्कीर्णन हेतु नहीं हो रही है अपितु यह दर्शाने हेतु हो रही है कि  अति ऊँचे  व हिमवंत क्षेत्रों में ब्रटिश काल व उससे पहले आदि कालीन भवन शैली क्या रही होगी।  प्रस्तुत भवन सरल शैली का है जिसमे घर (ढाबे ) के चारों  दीवालें व छत लकड़ी के मोठे डंडों से बनी हैं व डंडों में किसी भी प्रकार का उत्कीर्णन नहीं हुआ है जो आदि कालीन भवनों में काष्ठ प्रयोग कैसे होता था का साक्ष्य देने में समर्थ है।
ढाबे की छत शक्तिशाली कांसे  या बबूल या घास की है।  ऐसे घास कम से कम तीन वर्ष तक चल जाती है व हिम व वर्षा झेलने में सक्षम होती है ।   
सूचना व फोटो आभार:सुभम मानसिंह
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . भौगोलिक मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022   
 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  अंकन -उत्कीर्णन , बाखली कला   ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के बाखली वाले  मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  अंकन उत्कीर्णन   ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त   अंकन -उत्कीर्णन ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  उत्कीर्णन   ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के बाखली वाले मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त   अंकन  ;  House wood Carving  of Bakhali art in Pithoragarh  to be continued ; उत्तराखंड भवनों में काष्ठ कला उत्कीर्णन

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  राइकोट कुंवर  (लोहाघाट  , चम्पावत ) के एक भवन में कुमाऊँ  शैली'   की   काष्ठ कला अंकन , अलंकरण, उत्कीर्णन
(काष्ठ कला पर केंद्रित )
Traditional House Wood carving Art of  Raikot  Kunwar ,   Champawat, Kumaun 
कुमाऊँ ,गढ़वाल, के भवन ( बाखली,   खोली , )  में ' कुमाऊँ  शैली'   की   काष्ठ कला अंकन , अलंकरण, उत्कीर्णन  - 621
 संकलन - भीष्म कुकरेती   
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   राइकोट कुंवर  (लोहाघाट  , चम्पावत )  का प्रस्तुत भवन  दुपुर  व दुखंड भवन है।  प्रस्तुत     राइकोट कुंवर  (लोहाघाट  , चम्पावत )  के आधारिक  तल (ground floor ) पर गौशाला व भंडार (दान )  हैं व् वहां कोई काष्ठ संरचना दृष्टिगोचर नहीं हो रही है।  प्रथम तल की संरचना आधार तल के ऊपर बौळी या शहतीर चौखट है।  संभवतया कभी बौळी पर उत्कीर्णन रहा ही होगा। 
प्रथम  तल पर दो छाज (झरोखनुमा ) व एक कमरे का द्वार दृष्टिगोचर हो रहे हैं।  छाज व उनके सभी भाग सामन्य पारम्परिक कुमाउँनी छाजों  की  शैली में हैं।  छाजों के स्तम्भ व छाजों  के ढक्क्नों व तोरणमों  में काष्ठ अलंकरण उत्कीर्णन हुआ है।
छाजों  के ढक्क्नों के शीर्ष में तोरणम स्थापित हैं।  तोर्न्म के स्कन्धों में  उत्कीर्णन हुआ है।
  छाजों  के निम्न तल के ढक्क्नों में सपाट ज्यामितीय कला दर्शन हो रहे हैं। 
स्तम्भ आम पारम्परिक छाजों  के स्तम्भों जैसे ही हैं व आधार में  अधोगामी पद्म पुष्प दल , ड्यूल व उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल उत्कीर्णन से कुम्भियाँ निर्मित हुयी है व ऐसा ही ऊपर  पुनः दोहराव हुआ है।  स्तम्भों के युगल योग से मोठे स्तम्भ बने हैं।
  कला अलंकरण दृष्टि से  राइकोट कुंवर  (लोहाघाट  , चम्पावत )  के  प्रस्तुत भवन  में ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण कला दृष्टिगोचर हो रहे हैं।   
सूचना व फोटो आभार : सुमन पांडे , रोबिन मेहता
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो   सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022
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