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गन्ना , गुड़ , शक्कर , राव , मधु गुण व यूंसे उपचार
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद २३६ बिटेन २४८ तक
अनुवाद भाग - ३३१
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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अयेक्षु वर्ग -
इक्षुविकार वर्ग- गन्ना तैं दांतुं न चूसि खयूं रस वीर्यवर्धक ,शीतल , रेचक , स्निग्ध , पौष्टिक , मधुर , अर कफकारी हूंद।
कुलड़ो पेल्युं गन्ना रस विदाहयुक्त ह्वे जांद , छिलका अर गाँठ क योग से विदाह उतपन्न हूंद , अर भैर वायु अर घामक योग से बि विदाह उतपन्न ह्वे जांद। नरम छिलका गणना रस बिंडी शीतल , बिंडी निर्मल (प्रसन्नता दायी ) , बिंडी मिट्ठु हूंद। बांस गन्ना यांसे अधिक खसखसो हूंद।
गुड़ - अतिशय , कृमि , मज्जा , रक्त , मेद , अर मांस वर्धक हूंद , काळ रंगो गुड़ क्षुद्र , गुड़ चार भाग से निर्मित गुड़ से अर चार भाग क गुड़ तीन भागक गुड़ से बिंडी गुरु हूंद। साफ़ याने कम मल(गंदगी मिटटी आदि ) से निर्मित गुड़ कम हानिकारक हूंद। राव , खांड , शक्कर उत्तरोत्तर स्वच्छ हूंदन। जन जन यूंमा स्वछता बढ़दि तन्नि शीतलता बि। अर्थात राव से खांड, खंड से शकरर अधिक शीतल हूंद।
गुड़ निर्मित शक्कर वीर्यवर्धक ,क्षीण , उर:क्षत रोगी कुण हितकारी व स्नेहयुक्त हूंद।
घमसा क क्वाथ से निर्मित शक्कर कषाय मधुर रस , शीतल , अर कुछ तिक्त हूंद।
मधु क शक्कर रूखो , वमन , अतिसार , नाशक , कफ तोडू हूंद।
तीस , रक्तपित्त , अर जलन म सब शक्कर हितकारी।
मधु क गुण -
मधुक चार जाति छन -
१- रिंगाळ (बड़ी मधुमक्खी ) अर या चिमुल्ठों निर्मित
२-भौंर (मधुमक्खी ) क निर्मित मधु
३-क्षौद्र )छुटि मधुमक्खी से निर्मित
४- पीली मधुमक्खी निर्मित श्वेत मधु
यूं मदे माक्षिक मधु सर्वश्रेष्ठ हूंद। भौंरों निर्मित शहद गुरु हूंद।
मधु -वायुकारक , गुरु , शीतल ,रक्तपित्त , कफनाशी , व्रणों तै जुड़न वळ , कफ-मेद आदि तै उखाड़न वळ , रुखो , कषाय व मधुर हूंद।
मधु बनि बनि प्रकारौ फूलों से विषैली मधुमखियों द्वारा निर्माण हूंद। इलै गर्म अवश्था म दीणन मार्क हूंद।
मधु गुरु , कषाय रस, शीतल, रूखो हूण से कम मात्रा ही ठीक मात्रा च।
मधु बिंडी सेवन से जु रोग उत्प्पन्न हूंदन वो असाध्य ही हूंदन किलैकि एकी चिकित्सा म विरोध हूंद , इलै विष जन मनुष्य मार दीन्दो । किलैकि आम रोग म उष्ण उपचार करण पड़द जु मधुम विरुद्ध च, अर शीतल हूण से रोग उपचार म अड़चन च। इलै मधु जन्य रोग दुसाध्य छन जु विष जन मनिख तै मार दींदन ।
नाना प्रकारौ ऊर्जा वीर्य युक्त औषधियों युक्त पुष्पों से मधु निर्मित हूंद त मधु म भौत सि शक्ति हूंदन।
इलै अर प्रभावक कारण मधु योगबाही अर्थात वमन कारी , आस्थापन या वृष्य कर्म करण वळ , जै द्रव्य दगड़ दिए जावो स्यु उनी कार्य करद।
ये अनुसार इक्षुविकार वर्ग समाप्त। २३६ -२४८।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३५७-३५८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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