उत्तराखंड की पावन धरती में भगवान शंकर सहित ३३ कोटि देवताओं के दर्शन होते हैं। आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने स्वयं को इसी भूमि पर ही पधारकर धन्य मानते हुए कहा कि इस ब्रह्मांड में उत्तराखंड के तीर्थों जैसी अलौकिकता और दिव्यता कहीं नहीं है। इस क्षेत्र मेंशक्तिपीठों की भरमार है। सभी पावन दिव्य स्थलों में से तत्कालिक फल की सिद्धि देने वाली माता कोकिला देवी मंदिर का अपना दिव्य महात्म्य है।
इन्हें कोटगाड़ी देवी भी कहा जाता है, कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन से निष्ठा पूर्वक की गई पूजा-आराधना का फल तुरंत मिलता है और अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।
किवदंतियों के अनुसार, जब उत्तराखंड के सभी देवता विधि के विधान के अनुसार खुद को न्याय देने और फल प्रदान करने में अक्षम व असमर्थ मानते हैं और उनकी अधिकार परिधि शिव तत्व में विलीन हो जाती है। तब अनंत निर्मल भाव से परम ब्रह्मांड में स्तुति होती है कोटगाड़ी देवी की। संसार में भटका मानव जब चौतरफा निराशाओं से घिर जाता है और हर ओर से अन्याय का शिकार हो जाता है, तो संकल्प पूर्वक कोटगाड़ी की देवी का जिस स्थान से भी सच्चे मन से स्मरण किया जाता है, वहीं से निराशा के बादल हटने शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि संकल्प पूर्ण होने के बाद देवी माता कोटगाड़ी के दर्शन की महत्वता अनिवार्य है। किसी के प्रति व्यर्थ में ही अनिष्टकारी भावनाओं से मांगी गई मनौती हमेशा उल्टी साबित होती है। इस मंदिर में फरियादों के असं2य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगे रहते हैं। दूर-दराज से श्रद्धालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेज कर मनौतियां मांगते हैं। मनौती पूर्ण होने पर भी माता को पत्र लिखते हैं और समय व मैया के आदेश पर माता के दर्शन के लिए पधारते हैं।
दंत कथाओं के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण ने बालपन के समय में कालिया नाग का मर्दन किया और तब उसे परास्त कर जलाशय छोडऩे को कहा, तो कालिया नाग और उसकी पत्नियों ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना कर प्रार्थना की कि हे प्रभु, हमें ऐसा सुगम स्थान बताएं, जहां हम पूर्णत: सुरक्षित रह सकें। तब भगवान श्रीकृष्ण ने इसी कष्ट निवारिणी माता की शरण में कालिया नाग को भेजकर अभयदान प्रदान किया था। कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाड़ी से थोड़ी ही दूर पर पर्वत की चोटी पर स्थित है। इस मंदिर की शक्ति लिंग पर किसी शस्त्र के वार का गहरा निशान दिखाई देता है।
किंवदंतियों के अनुसार किसी ग्वाले की गाय इस शक्ति लिंग पर आकर अपना दूध स्वयं दुहाकर चली जाती थी। ग्वाले का परिवार बहुत आश्चर्य में था कि आखिर गाय का दूध रोज कहां चला जाता है। एक दिन ग्वाले की पत्नी ने चुपचाप गाय का पीछा किया। जब उसने यह दृश्य देखा, तो धारदार शस्त्र से शक्ति पर वार कर दिया। कहा जाता है कि इस वार से खून की तीन धाराएं बह निकलीं, जो क्रमश: पाताल, स्वर्ग और पृथ्वी पर पहुंचीं। पृथ्वी पर आने वाली धारा यहां विज्ञमान है। वार वाले स्थान पर आज भी कितना भी दूध क्यों न चढ़ा दिया जाए दूध शक्ति के आधे भाग में ही शोषित हो जाता है।