Author Topic: Badrinath Temple - भारतवर्ष के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम  (Read 61285 times)

पंकज सिंह महर

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Re: Badrinath Temple
« Reply #10 on: November 01, 2007, 02:42:20 PM »
भगवान की परिक्रमा में स्थित देवता 
 
 
गरुड़
 हनुमान
  गणपति
 महालक्ष्मी
 शंकराचार्य
 धर्मशिला 
 चरणामृत
 घण्टाकर्ण
 
पुराण प्रसिद्ध मुक्ति-प्रदा नामक इसी अंचल का अवलम्ब लेकर भगवान वेदव्यासजी वेदों का विभाजन करते हैं। 18 पुराण एवं महाभारत की रचना व्यास जी द्वारा इसी स्थल पर होती है। स्मृतियों के वक्ता आचार्यों ने भी इसी भूखण्ड की शरण में दिव्य ज्ञान प्राप्त किया और भगवान शंकर भी इसी स्थल विशेष के सानिध्य में ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होते हैं। भगवान राम एवं देवराज इन्द्र को भी ब्रह्महत्या से मुक्त होने के लिए बदरिकाश्रम का सेवन करना पडा। वस्तुतः इस क्षेत्र की विशेषता है कि-
 
क्षेत्र दर्शन मात्रेण प्राणिनां नास्ति पातकम
 

अतः इस क्षेत्र के दर्शन मात्र से मानव निष्पाप हो जाता है। मानव इस पुण्य क्षेत्र के दर्शनों के उपरान्त पंच तीर्थ में स्नान-मार्जन कर पुण्यसलिला अलकनन्दा के दर्शनों के पश्चात् भगवान के मन्दिर की परिक्रमा करता है वह पापों से मुक्त होकर पुण्य का भागी बनता है और विष्णुलोक को प्राप्त करता है।

बदरीनाथ पुरी के चारों ओर ऊंचे-ऊंचे हिमाच्छादित शैलशिखर हैं। जिससे पुरी का दृश्य अत्यन्त आकर्षक एवं मनोहारी लगता है। बदरीधाम पहुंचते ही भू-बैकुण्डकी कल्पना साकार हो जाती है। प्रकृति ने अपने सम्पूर्ण वैभव से अत्यन्त उदारमना होकर इसे सुसज्जित किया है। पुरी के निकट अनेक सौन्दर्य स्थल है जो मन को मुग्ध कर देते हैं।

 साभार :  http://www.uttara.in/hindi/bktc/char_dham/badrinath_intro.html

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: Badrinath Temple
« Reply #11 on: November 01, 2007, 05:26:27 PM »
Wah Mahar ji +1 karma aapko is info ke liye.

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Re: Badrinath Temple
« Reply #12 on: November 07, 2007, 12:22:02 PM »
Mahar ji
Your information is very useful.
Jai Badri Vishal

पंकज सिंह महर

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Re: Badrinath Temple
« Reply #13 on: November 07, 2007, 12:27:32 PM »
Mahar ji
Your information is very useful.
Jai Badri Vishal


धन्यवाद जोशी जी,
इंटरनेट पर जो भी सामग्री उपलब्ध है, उसे आप लोगों के पास पहुंचाना ही मेरा काम है.   ;D  ;D  ;D

Uttarakhandi

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Re: Badrinath Temple
« Reply #14 on: November 07, 2007, 09:55:48 PM »
बद्रीनाथ धाम में पुजारी केरल के ब्राह्मण होते हैं. मंदिर में पूजा करने का अधिकार सिर्फ़ इन्हें ही होता है.
हिमालय के मंदिर में सुदूर दक्षिण के पुजारी को नियुक्त करने की ये परंपरा शंकराचार्य ने डाली थी जो आज तक अबाध रूप से चली आ रही है.
बर्फीली चोटियों पर हिंदी और गढ़वाली बोली में बात करते गोरे पहाड़ी चेहरों के बीच बद्रीनाथ धाम में जब टूटी-फूटी हिंदी में बात करते माथे पर तिलक लगाए एक दक्षिण भारतीय पुरोहित से सामना होता है तो क्षणभर के लिए कोई भी ठिठक सकता है.
कोई भी सोच सकता है कि समुद्र तट के किसी इलाक़े से आए इस ब्राह्मण का आखिर यहां क्या काम.
लेकिन सच तो ये है कि भगवान बद्रीनारायण की पूजा अर्चना के मुख्य अधिकारी सिर्फ़ केरल के ये नंबूदरीपाद ब्राह्मण ही हैं. इन्हें शंकराचार्य का वंशज माना जाता है और ये रावल कहलाते हैं.
आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में जिन चार धामों की स्थापना की थी बद्रीनाथ उनमें से एक हैं.

शंकराचार्य खुद केरल के कालडी गांव के थे जहां से उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ पूरे देश में वैदिक धर्म के उत्थान और प्रचार का अलख जगाया.

  परंपरा


  हिंदू धर्म के पुनरूत्थान और हिंदू धर्मावलंबियों को एकजुट करने के लिये शंकराचार्य ने ये व्यवस्था की थी कि उत्तर भारत के मंदिर में दक्षिण का पुजारी हो और दक्षिण भारत के मंदिर में उत्तर का हो

वर्त्तमान रावल बद्रप्रसाद नंबूदरी को इस बात का गर्व है कि वो सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा के वाहक हैं,'' ये सहिष्णुता और सदाशयता का प्रतीक है.मुझे विश्वास है कि जब तक वैदिक धर्म रहेगा ये वयवस्था भी बनी रहेगी.''

केरल के नंबूदरीपाद ब्राह्मणों में से रावल का चयन बद्रीनाथ मंदिर समिति ही करती है.

इनकी न्यूनतम योग्यता ये है कि इन्हें वहां के वेद-वेदांग विद्यालय का स्नातक और कम से कम शास्त्री की उपाधि होने के साथ ब्रह्मचारी भी होना चाहिए.

नये रावल की नियुक्ति में त्रावणकोर के राजा की सहमति भी ली जाती है.

साल के छह महीने जब भारी हिमपात के कारण मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं तब रावल वापस अपने घर केरल चले जाते हैं और कपाट खुलने की तिथि आते ही वापस बद्रीनाथ आ जाते हैं.

बद्रीनाथ में पूजा जहां केरल के ये रावल करते हैं वहीं स्थानीय डिमरी समुदाय के ब्राह्मण इनके सहायक होते हैं.

पंडित बच्चीराम डिमरी बताते हैं,'' दरअसल डिमरी भी मूल रूप से दक्षिण भारतीय ही हैं जो शंकराचार्य के साथ ही सहायक अर्चक के तौर पर आए थे लेकिन यहां से वापस नहीं गये और कर्णप्रयाग के पास डिम्मर गांव में रहने लगे इसलिए डिमरी कहलाए. बद्रीनाथ में भोग बनाने का अधिकार सिर्फ़ इन डिमरी पंडितों को ही होता है.''

लगभग 1200 साल पुराना बद्रीनारायण का मंदिर कई बार उजड़ा और कई बार बना लेकिन इस परंपरा पर आज तक आंच नहीं आई है. न ही कभी स्थानीय पुरोहितों से इसे चुनौती मिली.
बद्रीनाथ में वेदपाठी ब्राह्मण भुवनचंद नौटियाल कहते हैं,'' पहाड़ में रावल को लोग भगवान की तरह पूजते हैं. उन्हें पार्वती का रूप भी माना जाता है.''

इस मान्यता की वजह से ही बद्रीनाथ में एक अनोखा धार्मिक संस्कार भी होता है.जिस दिन कपाट खुलते हैं उस दिन रावल साड़ी पहन पार्वती का श्रृंगार करके गर्भगृह में प्रवेश करते हैं.

हालांकि ये अनुष्ठान सभी नहीं देख सकते हैं.


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sanjupahari

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Re: Badrinath Temple
« Reply #15 on: January 02, 2008, 08:50:28 PM »
thnx for the info on Badrinath.....JAI BADRIVISHAL

पंकज सिंह महर

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Re: Badrinath Temple
« Reply #16 on: April 08, 2008, 11:12:43 AM »
बदरीशधाम की तेल-कलश यात्रा का कार्यक्रम घोषितकर्णप्रयाग (चमोली)। बदरीशधाम की गाडूघड़ी पवित्र तेल कलश यात्रा कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही मंदिर के कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। तेल कलश शोभायात्रा के लिए 11 अप्रैल को पवित्रधाम के डिमरी पुजारी टिहरी नरेश के राजदरबार नरेंद्र नगर जाएंगें, जहां मंत्रोच्चार व पूजा अर्चना के बाद तेल कलश डिमरी पुजारियों को सौंप दिया जाएगा।

उमट्टा-डिम्मर डिमरी पंचायत के सरपंच वसंत लाल डिमरी व उपसरपंच भगवती प्रसाद डिमरी ने शोभायात्रा कार्यक्रम की जानकारी देते हुए बताया कि 11 अप्रैल को तेल कलश नरेंद्र नगर से सांय ऋषिकेश मंदिर समिति के विश्राम गृह चेला चेतराम में पूजा अर्चना के लिए रखा जाएगा, जहां रात्रि को तेलकलश की विशेष पूजा अर्चना कीर्तन भजन होंगें, 12 अप्रैल को प्रात: पूजा-अर्चना व भोग लगने के बाद ऋषिकेश के विभिन्न मार्गो पर तेल कलश शोभा यात्रा निकल कर भरत मंदिर में श्रद्धालुओं के दशनार्थ रखी जाएगी। जबकि 13 को वैशाखी पर्व के अवसर पर गाडू घड़ी कलश शिवपुरी, ब्यासी, देवप्रयाग, कीर्तिनगर होते हुए रात्रि विश्राम को श्रीनगर में विश्राम करेगी। 14 अप्रैल को तेल कलश की विधिवत पूजा के बाद श्रीकोट, कलियासौण, रूद्रप्रयाग, घोलतीर , कमेडा, गौचर होते हुए कर्णप्रयाग नगर में कलश यात्रा निकाली जाएगी। तदोपरांत कलश यात्रा डिम्मरी पुजारियों के मूल गांव डिम्मर के प्राचीन ऐतिहासिक लक्ष्मी नारायण मंदिर में पांच मई तक रखी जाएगी। पंचायत के पदाधिकारियों ने बताया कि गत दिवस सिमली के विद्यापीठ में आयोजित बैठक में डिमरी समुदाय के लोगों के हक-हकूकों के साथ कई अन्य समस्याओं पर चर्चा की गई।

पंकज सिंह महर

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Re: Badrinath Temple
« Reply #17 on: April 15, 2008, 04:26:03 PM »
बद्री विशाल की जय


पंकज सिंह महर

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Re: Badrinath Temple
« Reply #18 on: April 15, 2008, 04:26:50 PM »
रात में बद्रीनाथ जी


पंकज सिंह महर

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बद्रीनाथ क्षेत्र में बदरी(बैर) के जंगल थे, इसलिए इस क्षेत्र में स्थित विष्णु के विग्रह को बद्रीनाथ की संज्ञा प्राप्त हुई। किसी कालखंडमें बद्रीनाथ के विग्रह को कुछ अनास्थाशीलतत्वों ने नारदकुंडमें फेंक दिया। आदिशंकराचार्यभारत-भ्रमण के क्रम में जब यहां आए, तो उन्होंने नारदकुंडमें प्रवेश करके विष्णु के इस विग्रह का उद्धार किया और बद्रीनाथ के रूप में इसकी प्राण-प्रतिष्ठा की। बद्रीनाथ के दो और नाम हैं, बदरीनाथएवं बद्रीविशाल।

 

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