Author Topic: Badrinath Temple - भारतवर्ष के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम  (Read 62113 times)

पंकज सिंह महर

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बदरीनाथ धाम के कपाट आज बंद होंगे

देहरादून। बदरीनाथ के कपाट सोमवार को शीतकाल के लिए बंद करने की तैयारियां पूर्ण हो गई हैं। वहां मुख्य मंदिर के अलावा बाकी मंदिर बंद हो गए हैं। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के विशेष कार्याधिकारी लोकानन्द सती के अनुसार 17 नवम्बर को बदरीधाम के कपाट बंद होने से पहले रविवार को लक्ष्मी पूजन की औपचारिकता पूरी हो गई हैं। इससे पहले वहां गणेश मंदिर और केदारेश्वर मंदिर के साथ ही खाना पुस्तक को बंद कर दिया गया था। बदरीनाथ के कपाट सोमवार को शीतकाल के लिए सोमवार को अपराहन दो बजे कर 42 मिनट पर बंद हो जाएंगे। जिस तरह बदरीनाथ के कपाट खोलने की तैयारियां व धार्मिक औपचारिकताएं कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। उसी तरह बंद करने की औपचारिकताएं भी 13 नवम्बर से शुरू हो गई थीं। बदरीनाथ मंदिर परिसर में ही गणेश का भी मंदिर है, वह भी शनिवार को बंद हो गया है। इस वर्ष मई से लेकर अब तक लगभग नौ लाख श्रद्धालुओं ने बदरीनाथ के दर्शन किए जो कीर्तिमान है। (एजेंसी)

पंकज सिंह महर

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हिमालय पर्वत के अगणित हिमानी शिखरों और नर-नारायण पर्वतों के मध्य बसी भूवैकुंड बद्रीनाथपुरी में भगवान बदरी विशाल जी का भव्य मंदिर और युगों से बहती आ रही गंगा (अलकनंदा) मानव की धार्मिक चेतना और उसके आध्यात्मिक स्त्रोत की पुण्य स्थली रही है। जनश्रुति है कि देवताओं के सहयोग से बदरीनाथ जी का मंदिर बनाया गया था।
शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ तपोभूमि बदरीकाश्रम और देश के चारों धामों में श्रेष्ठ बद्रीनाथ धाम है। उस पुण्यभूमि के विषय में कहा गया है।
बहूनिसंतितीथानि दिवि बूगौ रसासु च
बद्री सदृशं तीर्थ न भूतो न भविष्यति


श्री बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु का मंदिर है। बदरीनाथ पुरी के चारों ओर ऊंची-ऊंची बर्फ से ढंकी पर्वत श्र्ृंखलाएं हैं, जिनसे पुरी का दृश्य अत्यंत आकर्षक व मनोहारी लगता है। भगवान बदरीनाथ की मूर्ति के विषय में माना गया है कि सतयुग में भगवान की आज्ञानुसार ब्रह्मादि देवता बड़े उत्साह से बद्रीकाश्रम पहुंचकर उत्सव के साथ नारद कुंड से भगवान की मूर्ति को निकाल कर स्थापित करते थे। यथा समय दर्शन लाभ प्राप्त कर पाप-पुण्य रहित होते थे। कुछ काल के उपरांत ब्रह्मा जी ने बदरीनाथ धाम की मानव एवं देवताओं में पूजा अर्चना का समय निर्धारित किया। विभाजननुसार देवता वैशाख मास के शुभारंभ पर मानवों को पूजा भार सौंपकर अपने स्थान को प्राप्त करते हैं व पुनः कार्तिक में मनुष्य से पूजा भार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार वैशाख से कार्तिक तक नर पूजा एवं मागीशीर्ष से चैत तक नारायण पूजा।
कई विद्वानों का मत है कि कालांतर में भगवान का बुद्घावतार हुआ, जिसमें भगवान बौद्घ धर्म को प्रचारित कर स्वयं ही मूर्ति पूजा का विरोध करते रहे। बौद्घ धर्म में हीनयान व महायान संप्रदायों के पारस्परिक संघर्ष ने बद्रिकाश्रम को भी अपने प्रभाव से ग्रस्त किया, फलर्त‍ भगवान की उक्त मूर्ति को नारद कुंड में डालकर इस धाम से पलायन किया।
कालांतर में भगवान आशुतोष दक्षिण भारत के कालड़ी स्थान में ब्राह्मण भैरवनाथ शिवगुरू के घर मां अम्बिका के जठर में जन्म प्राप्त कर शंकराचार्य के नाम से विख्यात हुए। जगदगुरू शंकराचार्य द्वारा संपूर्ण भारत वर्ष के अव्यवस्थित तीथोंर् का सुव्यवस्थित सुदृढ़ीकरण, बौद्ध मत का खंडन और वैदित मत का मंडन सर्वविदित है। शंकराचार्य 11 वर्ष की उम्र में बद्रीकाश्रम पहुंचे और नारदकुंड से भगवान की दिव्य मूर्ति का उद्घार कर पुर्न‍ स्थापित किया। वर्तमान समय में जगदगुरू शंकराचार्य के द्वारा निर्धारित वैरनानस परंपरानुसार नंबूरीपाद एवं डिमरी ब्राह्मणों द्वारा भगवान बदरी विशाला की पूजा अर्चना होती है। भगवान बदरीनाथ की दिव्य मूर्ति किसी शिल्पी द्वारा निर्मित न होकर स्वयं भू मूर्ति है। बद्रीनाथ धाम के समीप और भी कई प्रसिद्घ तीर्थर् स्थल हैं।

ब्रह्मकपाल
इस तीर्थ का पुराणों में बहुत महात्मय बताया गया है। पितरोद्घार व ब्रह्मत्या पर्वत पर मुख्य मंदिर से एक फलांग दूरी पर है।

बसुधारा
श्री बदरीनाथ पुरी से आठ किमी. की दूरी पर अत्यंत रमणीय व प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण है।

संतोपंथ
पुरी से लगभग 22 किमी. दूरी पर सुंदर सरोवर त्रिकोण आकार का है। स्कंद पुराण में उल्लिखित है कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु एवं अन्य देवता गण इस सरोवर में स्नान करते हैं।

चरणपादुका
भगवान बदरीनाथ के मंदिर से तीन किमी. दूर नारायण पर्वत पर एक मैदान है। यहां एक शिला पर जो चरण चिह्न हैं, वे भगवान के चरण हैं।

शेषनेत्र
बदरीनाथ पुरी से मात्र एक किमी. दूरी पर परमार्थ लोक के पीछे माणा जाने वाले मार्ग पर स्थित है। यहां पर एक शिला पर भगवान जी के नेत्र साफ दिखाई देते हैं।

व्यास गुफा
पुरी से तीन किमी. दूर माणा गांव के पास स्थित है। श्री द्वैपायन व्यास जी ने इस गुफा में महाभारत व अष्टादश पुराणों की रचना की थी। इसी गुफा के समीप गणेश गुफा भी है।

भविष्य बदरी
जोशीमठ से 17 किमी. दूर तपोवन धौली गंगा के मार्ग में नीति घाटी की ओर है। इस स्थान के करीब एक गरम जल कुंड है।
आदि बदरी
कर्णप्रयाग से दक्षिण दिशा की ओर गैर सैण मार्ग पर लगभग 17 किमी. की दूरी पर आदि बदरी का भव्य मंदिर है।[/b][/color]

पंकज सिंह महर

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ऋषिकेश (एसएनबी)। विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम के कपाट एक मई को सुबह 9:10 मिनट पर खुलने की घोषणा बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर नरेन्द्रनगर स्थित राजमहल में टिहरी नरेश स्व. मानवेन्द्र शाह के पुत्र मनुजयेंद्र शाह ने की है।
बसंत पंचमी के अवसर पर आदिकाल से बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की घोषणा टिहरी नरेश राजा मानवेन्द्र शाह करते आएं हैं। उनके निधन के बाद उनके पुत्र मनजेंद्र शाह ने नरेन्द्रनगर स्थित राजमहल में शनिवार को विधि विधान के साथ राज पुरोहित शिवप्रसाद जोशी ने भगवान बदरीनाथ व मनजेंद्र की जन्मपत्री को देखकर एक मई को कपाट खुलने की घोषणा की। कपाट एक मई को सुबह 9:10 मिनट पर खोले जाएंगे जबकि गाडूघडी ले जाने की तिथि 17 अप्रैल को निर्धारित की गई है।
बदरीनाथ धाम के कपाट कि तिथि की घोषणा के लिए डिमरी पंचायत के सदस्य ने मनुजेन्द्र शाह को राजमहल में न्योता देकर की। जहां एक राज की भांति मनुजेन्द्र शाह राजमहल से ढोल नगाडों के साथ आकर मंत्रोच्चारण तथा विविविधान पूर्वक कपाट खुलने की तिथि को बताया। तिथि घोषित होते ही समूचा राजमहल जय बदरी विशाल के जयघोष से गूंज उठा। महारानी राजलक्ष्मी द्वारा भगवान श्री बदरीनाथ के श्रृगांर में प्रमुख होने वाला तिलों का तेल पिरोया जाएगा, जिससे बदरीनाथ धाम का दीपक जलाया जाएगा। इस अवसर पर
बदरीनाथ मंदिर समिति के अधिकारियों सहित डिमरी केन्द्रीय पंचायत के पदाधिकारी गाडूघडी (तेल कलश) लेकर समारोह में शामिल हुए।
इस अवसर पर पर समिति की उपाध्यक्ष दर्शनी रावत, मंदिर समिति के कार्याधिकारी अनिल शर्मा, प्रचार अधिकारी एमपी जमलोकी, जेपी सती, वेद पाठी भुवन उनियाल, लोकानंद, सुनील तिवारी, हरीश गौड़, डिमरी पंचायत अध्यक्ष दिवस्पति डिमरी, उपाध्यक्ष हरीश डिमरी सहित दीपचंद डिमरी, आशुतोष डिमरी,नरेन्द्र डिमरी आदि मौजूद थे।

manesh.bhatt

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इस अत्यन्त महत्वपूर्न जानकारी के लिये आप सभी का धन्यवाद।
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Devbhoomi,Uttarakhand

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देवभूमि, पुण्यभूमि बद्रीनाथ, केदारनाथ

उत्तर भारत के दो तीर्थस्थलबद्रीनाथ एवं केदारनाथ संपूर्ण भारतवासियों के प्रमुख आस्था-केंद्र हैं। धामों की संख्या चार है, बद्रीनाथ, द्वारका,रामेश्वरम्एवं जगन्नाथपुरी।ये धाम भारतवर्ष के क्रमश:उत्तरी, पश्चिमी, दक्षिणी एवं पूर्वी छोरों पर स्थित है। बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ के कपाट शरद् ऋतु में बंद हो जाते हैं और ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ में खुलते हैं। शेष तीन धामों की यात्रा पूरे वर्ष चलती रहती है। उत्तर के दो तीर्थस्थलबद्रीनाथ और केदारनाथ किन्हीं दृष्टियोंसे एक-दूसरे से भिन्न हैं। पहली भिन्नता तो यह है कि बद्रीनाथ धाम है और केदारनाथ तीर्थस्थलहै। दूसरी भिन्नता यह है कि बद्रीनाथ में विष्णु के विग्रह की पूजा होती है और केदारनाथ में शिव के विग्रह की पूजा। तीसरी भिन्नता यह है कि शीतकाल में बद्रीनाथ से भगवान विष्णु का विग्रह उठाकर ऊखीमठमें ले जाया जाता है। ऊखीमठमें भगवान की पूजा नहीं होती है। इसके विपरीत केदारनाथ में शिव का विग्रह यथावत् यथास्थान पर बना रहता है और कपाट बंद हो जाने पर विग्रह की पूजा नहीं होती है।


बद्रीनाथ क्षेत्र में बदरी(बैर) के जंगल थे, इसलिए इस क्षेत्र में स्थित विष्णु के विग्रह को बद्रीनाथ की संज्ञा प्राप्त हुई। किसी कालखंडमें बद्रीनाथ के विग्रह को कुछ अनास्थाशीलतत्वों ने नारदकुंडमें फेंक दिया। आदिशंकराचार्यभारत-भ्रमण के क्रम में जब यहां आए, तो उन्होंने नारदकुंडमें प्रवेश करके विष्णु के इस विग्रह का उद्धार किया और बद्रीनाथ के रूप में इसकी प्राण-प्रतिष्ठा की। बद्रीनाथ के दो और नाम हैं, बदरीनाथएवं बद्रीविशाल।

केदारनाथ में शिव के विग्रह की पूजा होती है। सामान्यत:शिव की पूजा शिवलिंगके रूप में होती है, पर केदारनाथ में शिव के विग्रह का स्वरूप भैंसेकी पीठ के ऊपरी भाग की भांति हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा आती है। महाभारत के बाद परिवारजनों के हत्याजनितपाप से मुक्ति के लिए पांडव प्रायश्चित-क्रम में भगवान शिव के दर्शन करना चाहते थे। भगवान शिव पांडवों से रुष्ट थे। वे उन्हें पापमुक्तनहीं करना चाहते थे।

पांडवों की खोजी दृष्टि बचने के लिए भगवान शंकर ने महिष का रूप धारण कर लिया और महिष दल में सम्मिलित हो गए। भगवान शंकर को खोजने का काम भीम कर रहे थे। किसी तरह भीम ने यह जान लिया कि अमुक महिष ही भगवान शंकर हैं। वह उनके पीछे दौडा। भीम से बचने के क्रम में भगवान शंकर पाताल लोक में प्रवेश करने लगें। कहा जाता है कि पाताल लोक में प्रवेश करते हुए भगवान शंकर के पृष्ठ भाग को पकड लिया और उन्हें दर्शन देने के लिए बाध्य कर दिया। अंतत:भगवान शंकर के दर्शन से सभी पांडव पापमुक्तहो गए। इस घटना के बाद लोक में महिष के पृष्ठभाग के रूप में भगवान शंकर की पूजा होने लगी। केदारनाथ में महिष का पृष्ठभाग ही शिव-विग्रह के रूप में स्थापित है। यह घटना जिस क्षेत्र में हुई उसे गुप्त काशी कहा जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर के पास ब्रह्मकपालनामक एक स्थान है। यहां पितरोंके लिए पिंडदान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिन पितरोंका श्राद्ध यहां हो जाता है, वह देवस्थितिमें आ जाते हैं। उन्हें गया अथवा अन्य स्थान पर पिंडदान की आवश्यकता नहीं होती।

बद्रीनाथ का वर्तमान मंदिर अधिक प्राचीन नहीं है। आज जो मंदिर विद्यमान है, उसके प्रधान शिल्पी श्रीनगर के लछमूमिस्त्री थे। इस मंदिर को रामनुजसंप्रदाय के स्वामी वरदराजकी प्रेरणा से गढवाल नरेश ने पंद्रहवींशताब्दी में बनवाया। मंदिर पर सोने का छत्र और कलश इंदौर की महारानी अहिल्याबाईने चढवाया। मंदिर में वरिष्ठ और कनिष्ठ दो रावल (पुजारी) होते हैं। दोनों का चयन केरल के नम्बूदरीपाद ब्राह्मण परिवार से होता है।


बद्रिकाश्रमक्षेत्र में बद्रीनाथ धाम के अतिरिक्त और बहुत से ऐसे तीर्थस्थलहैं, जहां कम यात्री पहुंच पाते हैं। व्यासगुफाएक ऐसा ही स्थान है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है। ढाई किलोमीटर तक यात्री लोग वाहन से जा सकते हैं। इसके बाद चढाई प्रारंभ हो जाती है और यात्रियों को पैदल चलना पडता है। व्यासगुफावह स्थान है, जहां महर्षि वेदव्यासने ब्रह्मसूत्र की रचना द्वापर के अंत और कलियुग के प्रारंभ (लगभग 5108वर्ष पूर्व) में की थी। मान्यता है कि आदिशंकराचार्यने इसी गुफामें ब्रह्मसूत्र पर शरीरिकभाष्यनामक ग्रंथ की रचना की थी। व्यासगुफाके पास ही गणेशगुफाहै। यह महर्षि व्यास के लेखक गणेश जी का वास स्थान था।

बद्रिकाश्रमक्षेत्र में अलकनंदानदी है। अलकनंदाका उद्गम-स्थान अलकापुरीहिमनद है। इसे कुबेर की नगरी कहा जाता है। अलकापुरीहिमनद से निकलने के कारण इस नदी को अलकनंदाकहा जाता है। इसी क्षेत्र में सरस्वती नदी भी प्रभावित होती है। अलकनंदाऔर सरस्वती का संगम मांणानामक ग्राम के पास होता है, जो भारत के उत्तरी छोर का अंतिम ग्राम है। मांणाग्राम की उत्तरी सीमा पर सरस्वती नदी के ऊपर एक शिलासेतुहै। इसे भीमसेतुकहा जाता है। मान्यता है कि पांडव लोग सरस्वती नदी के जल में पैर रखकर उसे अपिवत्रनहीं करना चाहते थे। इसलिए भीम ने एक विशाल शिला इस नदी पर रखकर सेतु बना दिया। इसी सेतु से होकर पांडव लोग हिमालय क्षेत्र में हिममृत्युका वरण करने के लिए गए थे। इसे संतोपथअथवा सत्यपथकहा जाता है। भीम-शिला के पास ही भीम का एक मंदिर है।

पंकज सिंह महर

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देहरादून। चार मुख्य तीर्थों में से एक बद्रीनाथ के कपाट आज भक्तों के लिए खुल गया। इसके खुलने के साथ ही चार धामों की यात्रा शुरू हो जाएगी।
छह महीने से बंद बद्रीनाथ के कपाट आज सुबह भक्तों के लिए खोल दिए गए। भगवान श्री विष्णु को समर्पित यह मंदिर हिंदू धर्म के चार मुख्य तीर्थों में से एक है। परंपरा के मुताबिक वसंत पंचमी के पावन मौके पर भगवान बद्रीनाथ के कपाट खुलने का समय निश्चित कर दिया गया था। परंपरा रही है कि वसंत पंचमी के दिन ही कपाट खुलने की तारीख और मुहूर्त तय किया जाता है। बद्रीनाथ के कपाट खुलने का दिन तय होने के बाद ही तीन धामों के कपाट खुलने का दिन तय होता है।
इसके साथ ही यहां आज से तीर्थयात्रीयों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया जो नवंबर तक जारी रहेगा।
गौरतलब है कि इससे पहले 17 नवंबर को बद्रीनाथ के कपाट बंद कर दिए गए थे। बद्रीनाथ के द्वार खुलने से पहले तीन धाम गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ के द्वार खुल चुके हैं।


हरिद्वार तथा ऋषिकेश तक रेल मार्ग है, उससे आगे का रुट निम्नवत है-

हरिद्वार से ऋषिकेश (23 किमी) - शिवपुरी (13 किमी) - बयासी (4 किमी) - कौदियाला (17 किमी)- देवप्रयाग (36 किमी)- श्रीनगर (38 किमी)- कालिया सौर(10 किमी) - रूद्रप्रयाग (35 किमी) - गौचर(10 किमी) - कामप्रयाग (10 किमी)- नंदरप्रयाग (21 किमी)- चमौली (10 किमी) - पीपलकौटी (17 किमी) - जोशीमठ(13 किमी) - विष्णुप्रयाग (12 किमी)- गोविंदघाट (7 किमी)- पाण्डुकेश्वर (2 किमी)- बद्रीनाथ (23 किमी)।
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Devbhoomi,Uttarakhand

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बद्रीनाथ के कपाट खुलते ही चार धाम यात्रा जोरों पर

देहरादून। उत्तराखंडमें यमुनोत्री,गंगोत्री और केदारनाथ धामों के कपाट खुल जाने के बाद हिन्दुओं के सर्वोच्च तीर्थ बद्रीनाथ धाम के कपाट खुल जाने से राज्य में चार धाम यात्रा शुक्रवार से पूरे जोर-शोर से शुरू हो गई।

ब्रदीनाथ-केदारनाथसमिति के अध्यक्ष अनुसूइयाप्रसाद भट्ट ने आज यहां बताया कि बद्रीनाथ कपाट आज नौ बजकर 10मिनट पर वैदिक मंत्रों के बीच पूरी नीति रिवाज के साथ आम जनता के दर्शन के लिए खोल दिए गए। इस अवसर पर सैकडों की संख्या में श्रद्धालु बद्रीनाथ का दर्शन करने के लिए पहले से ही पहुंचे हुए थे।



पवित्र अलकनंदाके किनारे करीब 12000फीट की ऊंचाई पर बद्रीनाथ धाम नीलकंठ श्रृंखला की पृष्ठभूमि में स्थित है। मान्यताओं के अनुसार किसी समय यह क्षेत्र बेर के पेडों से आच्छादित था इसी से इसका नाम बद्रीनाथ पडा है।

इस अवसर पर ढोल-नगाडे की थाप और पारंपरिक पूजा पाठ के साथ मंदिर के दरवाजे खोले गए। इसके पूर्व मंदिर को फूल-माला, तोरणोंऔर बिजली के झालरों से भव्य ढंग से सजाया गया था।

हेम पन्त

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On May 1, 2009 Star News channel there was a live telecast of "Kapat Opening Ceremaony" from Badrinath Dham. Famous journalist of Uttarakhand origin Shri Rajendra Dhasmana was invited by Star News to discuss Historical and spiritual importance of Badrinath Dham.

Some snaps from TV program.
 



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वाल के विभिन्न भागों में लगभग 61 मुख्य विष्णु मन्दिर स्थापित हैं। इनमें से कुछ को नीचे सूचीबद्ध किया गया है।
बद्रीनाथ का बद्रीविशाल मन्दिर
विष्णु प्रयाग में विष्णु मन्दिर
मन्द प्रयाग का नारायण मन्दिर
चन्द्रपुरी (मन्दाकिनी घाटी) का मुरलीमनोहर मन्दिर
तपोवन के निकट सुभेन नामक स्थल पर स्थित भविष्य बद्री मन्दिर
पान्डुकेश्वर का ध्यान बद्री या योग बद्री मन्दिर
जोशीमठ का नरसिंह मन्दिर

purushotamsati

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Badarinath Dham is considered as one of the most sacred centres of pilgrimage situated in the lofty Himalayan heights in the Garhwal hill tracks (Uttarakhand). Situated at the height of 3133 m (10248 feet) above sea level. The route to Badarinath is one of the most fascinating one due to the lofty hilly terrain, curves and cliffs amidst the most scenically beautiful place on the earth.

Throughout the route to Badarinath there are numerous pilgrimage sites at Deo Prayag, Rudraprayag, Karnaprayag, Nandaprayag and Vishnuprayag; as well as Pandukeswar where king Pandu observed Tapasya with his queen Madri and where his sons Pandavas, stayed during their pilgrimage to heaven, and the site where Bhima and Hanuman (sons of Vayu) met.

At Badarinath Lord MahaVishnu is believed to have done his penance. Seeing the Lord doing his penance in the open, Goddess Mahalaxmi is believed to have assumed the form of Badari tree to provide him shelter to face the onslaught of the adverse weather conditions, therefore the name Badari Narayan. It is believed that Lord Vishnu revealed to Narad rishi that Nar & Naryans forms were his own. It is also believed that Narad rishi, who also did his penance here, is even now worshipping the supreme God with Ashtakshara mantras.

The image of Badarinarayan here is fashioned out of Saligramam. Badarinarayan is seen under the Badari tree, flanked by Kuber and Garuda, Narad, Narayan and Nar. Mahalakshmi has a sanctum outside in the parikrama. There is also a shrine to Adi Sankara at Badarinath.

Behind the temple of Lord Badarinarayan is the Lakshmi Narsimh mandir, with shrines to Desikacharya and Ramanujachary.At Badarinath one can witness one of the greatest wonders of Nature in the Hot water springs of Taptkund on the banks of ice chilled river Alaknanda. The temperature of the water in the Kund is 55 degree centigrade whereas the normal temperature in this region for most part of the year remains at 9-10 degree centigrade to sub-zero levels. Before visiting the temple the pilgrims take a holy bath in the Taptkund.

The Temple's present structure was built by the Kings of Garhwal. The Temple has three sections - Garbhagriha (Sanctum), the Darshan Mandap, and Sabha Mandap. The Garbhagriha (Sanctum) houses Lord Badari Narayan, Kuber (God of wealth), Narad rishi, Udhava, Nar & Narayan.

Lord Badari Narayan (also called as Badari Vishal) is armed with Shankh (Conch) and Chakra in two arms in a lifted posture and two arms rested on the lap in Yogamudra.The principal image is of black stone and it represents Vishnu seated in meditative pose. The temple also houses Garuda (Vehicle of Lord Narayan). Also here are the idols of Adi Shankar, Swami Desikan and Shri Ramanujam. Guru-Shisya parampara is supposed to have its roots here.

Kapat Opening:- The kapat of Shri Badrinath Temple has been opened on 1st May 2009 at 9:10 AM.

Best Time to visit:- The ideal time or peak season to go for a Char Dham Yatra is from May to October, except monsoons. This is because; all the four sacred sites are perched in Garhwal Himalayas, which is prone to heavy snowfall. As a result, all the passage leading to the shrines are blocked. Moreover, during the monsoon season, there is undue threat of having landslides, which can further disrupt the journey. For safety reasons, the gates of the temples are also closed for this period of time and the idols are shifted to nearby pilgrim points.



 

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