Author Topic: Badrinath Temple - भारतवर्ष के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम  (Read 69253 times)

purushotamsati

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http://www.badrinath-kedarnath.gov.in/badarinath-aarti.aspx

this is the links from where you can enjoy the Shree Badree Nath Aarti........

purushotamsati

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HOT SPRING

Tapt Kund and Narad Kund
Badrinath temple and its surroundings provide access to many natural thermal springs. The most famous springs are Tapt Kund, Suraj Kund and Narad Kund. It is customary to take bath in these hot spring water kunds, before offering prayer to Shri Badrinathji temple. It is of highly religious and medicinal value too.

Tapt Kund: Located just below the temple, the meeting point of Alaknanda and Rishi Ganga rivers, this thermal spring of hot sulphurous water has inviting freshwater pool. The bathing area, 16.1/2 feet by 14.1/4 feet, has separate arrangements for men and women. Although the normal temperature is 55°c, the water temperature keeps rising gradually during the day. It is considered to have high medicinal value. A dip here is considered to be a good cure for skin diseases.

Narad Kund: Located near Tapta Kund, this kund is believed to be the recovery source of the Badrinath idol. The hot water springs comes out from beneath the Garur Shila and falls into a tank. Darshan of Badrinath is always preceded by a holy dip in this kund.Apart from that there are many other hot water springs. Devotees take a dip in them for their religious and medicinal value. Suraj Kund in Badrinath and Gauri Kund in Kedarnath are another famous Kunds.

Caution: Avoid staying more than five minutes at a stretch inside the hot spring water pool to avoid dizziness.
 

purushotamsati

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Administration

Under The Uttar Pradesh Act No. 30/1948 the administration of Kedarnath was included in the Badarinath Temple Act no. 16,1939 and it came to be called Shri Badarinath and Shri Kedarnath Mandir Act. The same Samiti (committee) now governs both the temples. Further amended in 2002 after the formation of the 27th state of union of India, the act provides provisions of increasing the number of members, one vice chairman and adding Government officials to the committee.

purushotamsati

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The list of Chief Executive officers, Shri Badarinath-Kedarnath Temple Committee 
S.No Name Period
 1   Shri Partap Singh Chauhan ( O.S.D and Secretary)   1940 To 1941  And  1941 To 1946 
 2   Shri Ram Dutt Pandey, Secretary   1946 To 1947 
 3   Shri Purshotam Bagwari, Secretary   1947 To 1964 
 4   Shri Ganesh Dutt Punetha, Interim Chief Executive officer       1964 To 1966 
 5   Shri Jamuna Pd. Tripathi, IPS Chief Executive officer   1966 To 1968 
 6   Shri Krishan Kumar Govila, PCS   1968 To 1970 
 7   Shri Dhirendra Dutt Bahuguna, PCS   1970 To 1972 
 8   Shri Puran Singh Mehta, MA, LLB   1973 To 1977 
 9   Shri Ganesh Pd. Ghildiyal, PCS   1977 To1981 
 10   Shri Puran Singh Mehta, MA, LLB   1981 To 1983 
 11   Shri Shankratt Joshi, PCS   31/03/1983 To 1985 
 12   Shri Surendra Pal Singh Rawat, PCS   30/01/1985 To 26/06/1987 
 13   Shri Ghanshayam Pant, PCS (Rtd.)   27/06/1987 To 31/03/1989 
 14   Shri R.C Tiwari, PCS   1/04/1989 To 14/08/1991 
 15   Shri Mahidhar Semwal   15/08/1991 To 7/09/1991 
 16   Shri Ajay Nabiyal, PCS, SDM   8/09/1991 To 3/07/1992 
 17   Shri Arun Kumar Dhaundiyal, PCS   17/11/1991 To 3/07/1992 
 18   Shri MahiDhar Semwal, Acting Chief Executive officer   4/07/1992 To 3/01/1993 
 19   Shri Harsh Tankha, PCS  4/01/1993 To 6/03/1993 
 20   Shri R.C Pandey, PCS, SDM Joshimath   7/03/1994 To 3/05/1994 
 21   Shri Ramakant Pandey, PCS, SDM  4/05/1994 To 23/111994 
 22   Shri Chandra Mohan Barthwal   29/11/1994 To 24/04/1995 
 23   Shri Ramakant Pandey PCS, SDM  15/04/1995 To 16/06/1996 
 24   Shri Ramyagya Mishra, PCS, SDM Joshimath   17/06/1996 To 23/08/1996 
 25   Shri Chandra Mohan Barthwal   24/08/1996 To 21/08/1997 
 26   Shri Jagat Singh Bisht   22/08/1997 To 10/09/1997 
 27   Shri Chandra Mohan Barthwal   11/09/1997 To 21/05/1998 
 28   Shri Jagat Singh Bisht   22/05/1998 To 31/03/2002 
 29   Shri Madan Singh, IAS, DM Chamoli   1/04/2002 To 3/03/2003 
 30   Shri Jagat Singh Bisht   4/03/2003 To  May 2004 
 31   Shri Puran Mal Sharma, P.C.S  June 2004 To Nov 2004
 32   Shri Vijay Kumar Dhaundiyal, P.C.S  Nov 2004 To 5/8/2005
 33   Shri Indrajeet Malhotra  6/8/2005 To 25/9/2005
 34   Shri Shailesh Bagoli, I.A.S  26/9/2005 To 23/2/2006
 35   Shri Balbir Singh Chauhan, ADM, Gopeshwar  24/2/2006 to 11/6/2006
 36   Shri Jagdamba Prasad Namboori, Acting Chief Executive officer  12/6/2006 to 11/9/2006 
 37   Shri Puran Mal Sharma, P.C.S  12/9/2006 to 20/6/2007
 38   Shri Bhagwat Kishore Mishra, S.D.M  21/6/2007 to till date
 

purushotamsati

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The list of Deputy Chief Executive officers, Shri Badarinath-Kedarnath Temple Committee 
S.No Name Period
 1  Shri Govind Prasad Dimri, Dy. Executive officer   -----------------------------
 2  Shri Ayodhya Prasad Sati, Dy Executive officer   1982 To 1984 
 3  Shri Mahidhar Semwal, Dy chief Executive officer   1984 To 1993 
 4  Shri Khimanand Painuli   1993 To 1994 
 5  Shri Jagat Singh Bisht   Jan 1993 To May 1997 
 6  Shri Jagdamba Prasad Namburi, Executive officer   May 1997 To 2001 
 7  Shri Mahimanand Dewrani, OSD  2001 To 2002 
 8  Shri Jagdamba Prasad Namburi, Dy chief Executive  officer   March 2002 To till date 
 

हेम पन्त

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श्रोत : दैनिक जागरण, 06 जून 2009

बदरीनाथ (चमोली)। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने भगवान बदरी विशाल के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित किया। इस दौरान उन्होंने विधि-विधान से पूजन भी किया। बाद में पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार उन्होंने पितरों के पिंडदान कराने के अलावा 51 ब्राह्माणों को भोज भी कराया। इस दौरान उत्ताराखंड के राज्यपाल बीएल जोशी व राज्य मंत्री श्रीमती विजया बड़थ्वाल भी मौजूद थे।

राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल रविवार सुबह माणा स्थित सेना के हेलीपैड पर पहुंचीं। यहां बदरीनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अनुसूया प्रसाद भट्ट, जिला पंचायत अध्यक्ष विजया रावत, जिलाधिकारी अरुण कुमार ढौंडियाल, एसपी विम्मी सचदेवा रमन व सेना के उच्चाधिकारियों ने राष्ट्रपति की अगवानी की। यहां से राष्ट्रपति कार से साकेत तिराहे तक पहुंची और फिर करीब पांच सौ मीटर पैदल चलकर बदरीनाथ मंदिर पहुंची। मंदिर में रावल केशव प्रसाद नंबूदरी व धर्माधिकारी जगदंबा प्रसाद सती ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजन संपन्न कराया। इसके बाद वह मंदिर समिति के नारायण हाल में पहुंची, जहां 51 ब्राह्माणों को भोज कराया गया। इसके बाद वीआईपी गेस्ट हाउस में राष्ट्रपति के तीर्थ पुरोहित प्रकाश नारायण सत्यनाराण बाबुलकर शास्त्री व आचार्य शैलेन्द्र शास्त्री ने धार्मिक रीति रिवाजों के अनुसार अन्य पूजाएं संपन्न करवाई। पूजन के बाद राष्ट्रपति सपरिवार ब्रह्माकपाल पहुंचीं और पितरों के पिंडदान की रस्में निभाने के बाद वापस हेलीपैड रवाना हो गई। यहां से उन्होंने हेलीकाप्टर के जरिए गौचर के लिए प्रस्थान किया। बदरीनाथ से लौटते हुए राष्ट्रपति आईटीबीपी मुख्यालय में विश्राम के लिए 50 मिनट तक रुकीं। इस दौरान आईटीबीपी के महानिदेशक विक्रम श्रीवास्तव के आग्रह पर उन्होंने हिंदवीर जवानों, अधिकारियों व केन्द्रीय विद्यालय गौचर के छात्र-छात्राओं से मुलाकात की।

धनेश कोठारी

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स्वर्ग शायद ऐसा ही..........
   ‘घाम पाणि स्याळौ ब्यो’ पहाड़ की एक प्रचलित कहावत है यह। जिसमें धूप और बरसात के एक साथ नजारा होने पर ‘सियार’ की शादी की कल्पना की जाती है। लेकिन यदि प्रकृति का अंदाज इससे जुदा यानि ‘घाम-बरफ त कैकु न्यो’ हो तो इसे किसका निसाब कहेंगे। कुछ ऐसा ही नजारा बदरीनाथ में अक्टूबर-नवम्बर में अक्सर दिखायी देता है।
   इन दिनों दोपहर के वक्त आसमान पर बादल तेज हवाओं के साथ दौड़ने भाग्ने लगते हैं। जहां उनका मन चाहा पसर गये या फ़िर पहाड़ियों पर लद गये या कि किसी बच्चे की उच्छादियों (शरारतों) की तरह पहाड़ों के कुछ हिस्से को उघाड़ा छोड़ दिया। बादलों के करतब यहीं नहीं रुकते, बल्कि शैल शिखरों पर बर्फ़ की झड़ी भी लगा देते हैं। तो, वहीं चटख धूप को पसरने के लिए अपनी खिड़कियों को भी खुला छोड़ देते हैं। हालांकि इन्हीं दिनों तलहटी में बारिश की रिमझिम फ़ुहारों से माहोल की तासीर भी ठंडी हो उठती है। तब भी रोमांचित करती किलोलें अहसासों को ठंडा नहीं होने देते। हिमालय के मिजाज का यह किस्सा यों तो निरा गासिप या परिकल्पना की हरकत माना जाये। किंतु, हकीकत में कुदरत का ऐसा बिगरेला छंद इन्हीं हिमालयी उपत्यकाओं में जब-तब देखने को मिल जाता है।
   सैलानियों की नजरों में प्रकृति के इस अनोखे मगर विस्मय प्रकट करने वाले परिदृश्यों के परिप्रेक्ष्य में आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रियायें सामने आती हैं कि ‘स्वर्ग शायद ऐसा ही होता है’। वहीं दूसरी ओर यहां के वाशिन्दों के खिलंदड़ अंदाज में कहें तो ‘ठंडो रे ठंडो मेरा पाड़ै कि हवा ठंडी............’ की टेर शुरू हो उठती है। और फ़िर, इन नजारों के कुछ ही दिनों बाद यानि नवम्बर के आसपास बदरी धाम के पर्वत शिखर बर्फ़ की श्वेत ध्वल चादर ओढ़ लेते हैं। तब यहां का नैसर्गिक सौंदर्य शब्दों की बनिस्पत अहसास की गहराईयों में अधिक गहरे उतरने का मादा रखता है।
अक्टूबर-नवम्बर भले ही भीड़ नही होती मगर जो लोग पहुंच पाते हैं उन्हें मिलता है इन अनोखे नैसर्गिक सौंदर्य का आनन्द।

धनेश कोठारी

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Devbhoomi,Uttarakhand

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अरुन्धती जी ने कहा हे स्वामिन! सर्व प्राणियों के हित की इच्छा और मेरी प्रीति के लिए श्री बद्रीनाथ महात्म्य को कृपा पूर्वक कहिए, जिस महात्म्य को शिवाजी ने पार्वती जी से कहा था। हे तपोनिधे! वह बद्री क्षेत्र कितना बड़ा है और वहां जाने से क्या-क्या फल प्राप्त होते हैं ? इस सब को विस्तार पूर्वक मेरे से करिए।

सूतजी बोले है शौनक! इस प्रकार अरूधंती के वचन सुनकर क्षण मात्र भगवान का ध्यान कर वशिष्ट जी कहने लगे कि हे प्रिये! यर्व साधारण व्यक्ति भी श्री बद्रीनाथ के दर्शन कर मुक्ति को प्राप्त हो जाता है। जिसने सैंकड़ों जन्म भगवान की आराधना की हो, उसी को श्री बद्रीनारायण भगवान के दर्शन होते है। वह एक ही जन्म में बिना जप,तप मोक्ष पद को प्राप्त हो जाता है। जो कोई प्रसंग से ही बद्री-बद्री  जो पुरुष महापापी हो और कहीं भी उसके पाप नष्ट न हों यहां आने मात्र से उस पातकी के सारे पाप क्षण भर में ही छूट जाते हैं।

 जो कोई श्री बद्रीनाथ भगवान को पंचगव्य से स्नान कराकर वस्त्राभूषण भेंट करता है, वह सदा बैकुण्ठ में वास करता है। हे अरुंधती! जो कोई एक मुट्ठी भर भी नैवेध अर्पित करता है वह एक राज्य का अधिकारी हो जाता है और जो कोई अखण्ड दीपदान करता है वह बड़ा भाग्यवान होता है। जिस प्रकार भगवान विष्णु के बराबर अन्य कोई देवता नहीं है।

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देवभूमि उत्तराखंड ही ऐसी जगह है जहां प्रकृति और उसका कृतिकार दोनों एक साथ मौजूद हैं। पहाड़, नदी, झरने, हर तरफ हरियाली तथा सुंदर मौसम सभी यहां एक साथ उपलब्ध हैं। धामों के साथ-साथ यहां कई प्राकृतिक और ऐतिहासिकस्थल भी दर्शनीय है।

 हमने अपनी यात्रा दिल्ली से शुरू की, यहां से भारत के अंतिम गांव माणा की दूरी 533 किलोमीटर है।

 दिल्ली से माणा के रास्ते पर हरिद्वार और ऋषिकेश सहित पांच प्रयाग तथा बद्रीनाथ व केदारनाथ जैसे धार्मिक-आध्यात्मिक मह्त्व के कई तीर्थ पड़ते हैं। इस रास्ते में छोटे-बड़े मंदिरों और धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व के अन्य दर्शनीय स्थानों की गिनती तो करनी ही मुश्किल है।

हम पहले बद्रीनाथ के लिए सीधी सड़क पर चले। इस रास्ते पर चलकर हम सीधे देव प्रयाग पहुंचे यहां भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता है। पहाड़ी नदियों का संगम देखने का यह पहला अनुभव था।

 इसका दर्शन हमें प्रकृति के प्रति न केवल रोमांच अपितु एक अलग तरह की आध्यातमिक अनुभूति से भर देता है। ये संगम देखने के बाद हम आगे बढ़े रात्रि विश्राम हमने पौड़ी जिले के श्रीनगर में किया। विश्राम के लिए यहां कई धर्मशालाओं एवं होटलों की व्यवस्था है। यहां से फिर हम आगे बढ़े और रूद्रप्रयाग पहुंचे।

 अलकनंदा और महानंदा के संगम पर बसे इस कस्बे में कई देव स्थल हैं। प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है। हम यहां से केदारनाथ की तरफ बढ़े। रास्ते में सोमप्रयाग नामक तीसरे संगम को भी देखने का सुख मिला। यह सोनगंगा व मंदाकिनी नदियों का संगम है। यहां से आगे बढ़ते है तो गुप्तकाशी नामक दर्शनीय तीर्थस्थल है।

 रूद्रप्रयाग से कुल 76 किलोमीटर की दूरी तय कर हम गौरी कुण्ड पहुंचे। कहा जाता है कि मां गौरी ने इसी स्थल पर बैठकर तपस्या की थी। इसीलिए यह स्थल विशेष पूजनीय है।



 

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