Author Topic: Badrinath Temple - भारतवर्ष के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम  (Read 62110 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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                                         तप के चमत्कार का प्रतीक है बद्रीनाथ धाम
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बद्रीनाथ धाम हिमालय पर्वत की श्रेणी पर नर और नारायण पर्वतों के बीच अलकनंदा नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित है। शास्त्रों में इसे विशालपुरी भी कहा गया । यह वैष्णव धाम है। अर्थात् यहां भगवान विष्णु की पूजा होती है । भारत की उत्तर दिशा में हिमालय पर स्थित हिंदुओं के सबसे प्राचीन तीर्थों में एक है। बद्रीनाथ का मंदिर समुद्र तट से लगभग ३५८३ मीटर की ऊंचाई पर है।

 पौराणिक मान्यताओं में बद्रीनाथ की स्थापना सतयुग में मानी जाती है । वेदों में भी बद्रीकाश्रम का वर्णन आया है । मंदिर में वर्तमान में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति को आठवीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने नारदकुंड से निकालकर तप्तकुंड के पास गरुड़ गुफा में बद्रीविशाल के रूप में प्रतिष्ठित किया था। इसके बाद मंदिर का प्रशासन टेहरी गढ़वाल के महाराजा के पास आया । उनके द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया । मंदिर के मुख्य द्वार पर सुंदर चित्रकारी है ।

 इसे सिंहद्वार कहते हैं । मंदिर के गुम्बज पर होल्कर रानी अहिल्याबाई द्वारा भेंट किया गया सोने का कलश आज भी स्थित है । बद्रीनाथ मंदिर में चार भुजाओं की काले पाषाण की बहुत छोटी मूर्ति है। भगवान पद्मासन की स्थिति में हैं । उनके मस्तक पर हीरा लगा है। मुकुट स्वर्ण मंडित है। इस मूर्ति के आस-पास नर-नारायण, उद्धवजी, कुबेर और नारदजी की मूर्ति है। मंदिर के समीप अलकनंदा के तट पर तप्त कुंड है, जिसका जल बहुत गरम होता है ।

 महत्व :- बद्रीनाथ में भगवान विष्णु का तीर्थ होने से इसका महत्व वैकुंठ की तरह माना जाता है। यहां वेदों का संपादन करने वाले वेदव्यास मुनि का आश्रम था । यहां से कुछ दूर स्थित माना गांव में गणेश गुफा एवं व्यास गुफा है । ऐसी मान्यता है कि यहीं सरस्वती नदी के तट पर वेद व्यास ने महाभारत एवं श्रीमद्भागवत की रचना की ।

यह केशव प्रयाग के नाम से जाना जाता है । नारद मुनि नेभी यहां तपस्या की थी, जिससे यह क्षेत्र शारदा क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है । भगवान कृष्ण के मित्र उद्धव भी यहां तपस्या के लिए आए। बद्रीनाथ के पास ही अन्य धार्मिक एवं दर्शनीय स्थान है- जिनमें नारद कुंड, पंच शिला, वसुधारा, ब्रह्मकपाल, सोमतीर्थ, माता मूर्ति, शेष नेत्र, चरण पादुका, अलकापुरी, पंचतीर्थ व गंगा संगम आदि प्रमुख हैं।

 बद्रीनाथ तीर्थ के लगभग ५ किमी आगे भारत का अंतिम गांव माना या मणिभद्रपुर स्थित है । इसके बाद तिब्बत-चीन की सीमा है। अत: इस तीर्थ का सामरिक महत्व भी है।



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कथाबद्रीनाथ क्षेत्र को अनादि क्षेत्र कहा जाता है । पौराणिक कथा है कि भगवान विष्णु का निवास क्षीरसागर में माना जाता है । जहां वह शेष शैय्या पर लेटे रहते हैं । जहां देवी लक्ष्मी उनके पैर दबाती हैं ।

एक बार इस पर ऋषि नारद के टिप्पणी करने पर भगवान विष्णु का मन आहत हुआ । इसके बाद भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को नागकन्या के यहां भेज दिया और स्वयं हिमालय पर तपस्या करने के लिए चले गए ।

हिमालय में भगवान विष्णु बैर अर्थात् बदरी को खाते रहे, और तपस्या करते रहे । इधर नागकन्याओं के यहां से देवी लक्ष्मी लौटी और क्षीरसागर में भगवान विष्णु को न पाकर वह हिमालय में आई । वहां देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बैर या बद्री के जंगलों में तपस्या करते देखा । तब उन्होंने भगवान को बद्रीनाथ अर्थात् बैरों के वन के बीच तपस्या में लीन स्वामी, नाम से पुकारा । तब से ही इस क्षेत्र का नाम बद्रीनाथ हुआ।

पहुंच के संसाधनबद्रीनाथ जाने का मुख्य मार्ग ऋषिकेश से है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी २९५ किमी है। ऋषिकेश के आस-पास बस सेवा व हवाई सेवाएं उपलब्ध हैं। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की यात्रा डेढ़ दिन की है। किंतु पहले केदारनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री रुद्रप्रयाग वापस लौटें और फिर बद्रीनाथ जाएं।

यात्रा का समयमंदिर के कपाट नवंबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में बंद होते हैं । मान्यता है कि इस अवधि में भगवान योग ध्यान मुद्रा में रहते हैं और उनकी पूजा देवता करते हैं। बर्फ गिरने के कारण भी बद्रीनाथ धाम सर्दी में छह महीने बंद रहता है।

 नवंबर से मई माह के बीच भी यहां बेहद सर्दी होती है। मंदिर के पट अप्रैल के अंतिम या मई के प्रथम सप्ताह में खुलते हैं। मंदिर खुलने के दिन अखंड ज्योति के दर्शन का बहुत महत्व है । सलाह - यह पहाड़ी यात्रा है । ऋषिकेश से बद्रीनाथ की यात्रा के रास्ते में खान-पान, ठहरने का समुचित प्रबंध है ।

लेकिन पानी उबालकर पीना चाहिए। बद्रीनाथ मार्ग में आस-पास बर्फ चट्टानें खिसकना आम बात है। इसलिए प्राकृतिक संकट के प्रति सावधान रहना आवश्यक है । कार या अन्य निजी वाहन से जाते समय पहाड़ी क्षेत्र में वाहन की गति धीमी रखें।



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                                      श्रीबदरीधाम की ओर बढ़े अवधूतों के पग
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गोपेश्वर (चमोली)। महाकुंभ हरिद्वार में अंतिम शाही स्नान के बाद बड़ी संख्या में साधु-संतों ने श्रीबदरीनाथ धाम का रुख कर लिया है। श्रीबदरीनाथ धाम के कपाट खुलने में अभी एक माह का वक्त शेष है, लिहाजा साधुजनों ने यात्रा रूट पर पड़ने वाले मंदिर व धर्मशालाओं को अस्थाई ठिकाना बना लिया है।

महाकुंभ हरिद्वार में बैशाखी के दिन अंतिम शाही स्नान का मुहूर्त था। वहां गस्नान के बाद साधु-संत श्रीबदरीनाथ धाम के दर्शन कर दोहरा पुण्य कमाना चाहते हैं। हालांकि, कपाट एक माह बाद 19 मई को खुलने हैं, लेकिन संतों ने बड़ी संख्या में धाम का रुख करना शुरू कर दिया है। कई साधु जहां धाम के लिए हरिद्वार से पैदल यात्रा पर निकल चुके हैं, वहीं सैकड़ों वाहनों के जरिए चमोली पहुंच चुके हैं।

 अधिकांश साधुओं ने 19 मई तक के लिए यात्रा रूट पर पड़ने वाले विभिन्न मंदिर-मठ व धर्मशालाओं को अपना अस्थाई ठिकाना बना लिया है। ऐसे में स्थानीय मंदिरों की रौनक काफी रौनक बढ़ गई है। मंदिरों में जप, तप और ईश्वर के भजनों की वजह से वातावरण भक्तिमय बना हुआ है। रतलाम मध्य प्रदेश से गोपेश्वर पहुंचे गोपालगिरी महाराज का कहना है कि वह पिछले कई वर्षो से श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ धाम की यात्रा कर रहे हैं।

 इस बार कुंभ में स्नान के चलते उन्हें जल्दी यहां आना पड़ा। उन्होंने बताया कि कपाट खुलने तक वह स्थानीय मंदिरों में शरण लेकर ईश्वर का भजन करेंगे। इसी तरह भड़ूच गुजरात से आए संत आनंदमणि ने कहा कि वह श्रीबदरीनाथ धाम के कपाट खुलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। वह भी एक स्थानीय मंदिर में ठहरे हुए हैं।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6351988.html

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                        बदरीनाथ में लागू होगी वन वे व्यवस्था
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श्रीबदरीनाथ धाम में अबकी बार पुल पर पैदल चलने की वन-वे व्यवस्था लागू की जाएगी। अलकनंदा नदी पर लगभग सवा करोड़ की लागत से नया पुल बनकर तैयार हो चुका है। नई व्यवस्था के तहत यात्री नए पुल से मंदिर की ओर जाएंगे, जबकि पुराने से वापस लौटेंगे। इस बार मंदिर की ओर जाने वाले यात्रियों को सुरक्षा की दृष्टि से मैटल डिटेक्टर से होकर गुजरना पड़ेगा।

बदरीनाथ धाम में मंदिर तक पहुंचने के लिए यात्रियों को अलकनंदा नदी पर बने एकमात्र पुल से होकर गुजरना पड़ता है। पीक सीजन में इस पुल से होकर प्रतिदिन हजारों यात्री गुजरते हैं, लिहाजा इस संकरे पुल पर अक्सर जाम की स्थिति बन जाती है। अब पुराने पुल के ही पास अलकनंदा नदी पर एक और पुल का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। लगभग सवा करोड़ की लागत से बने रहे इस पुल का निर्माण सीपीडब्लूडी करवा रहा है।

 गत 22 अप्रैल को जिलाधिकारी नीरज सेमवाल ने बदरीनाथ धाम के दौरे के समय इस पुल का भी निरीक्षण किया। उन्होंने सीपीडब्लूडी के अधिकारियों को निर्देश दिए की पुल का निर्माण कार्य कपाट खुलने की तिथि 19 मई से पूर्व ही पूर्ण कर लिया जाए।

 ताकि कपाट खुलने के दिन से ही इसे उपयोग में लाया जा सके। डीएम सेमवाल का कहना है कि पुल का निर्माण पूरा होते ही बदरीनाथ धाम में पैदल चलने की वन-वे व्यवस्था लागू कर दी जाएगी।

Rajen

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एक सप्ताह में पौने दो लाख यात्री पहुंचे बदरी-केदार (Amar Ujala 25.5.2010)


गोपेश्वर। चारधाम यात्रा शुरू होने के एक सप्ताह में पौने दो लाख श्रद्धालुओं ने बदरीनाथ और केदारनाथ धामों के दर्शन किए। श्रद्धालुओं की उमड़ रही भीड़ से यात्रा मार्ग पर रौनक लौट आई है। चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम के साथ ही रुद्रनाथ, तुंगनाथ, अनुसूया देवी, ज्योर्तिमठ, पांडुकेश्वर, गोपीनाथ, उमा देवी, नृसिंह मंदिर सहित यात्रा मार्ग के कई मंदिरों में दर्शनों के लिए इन दिनों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। भले ही चार धाम के कपाट देरी से खुले हों, लेकिन श्रद्धालुओं की श्रद्धा में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही है। मंदिरों के दर्शनाें के साथ-साथ तीर्थ यात्री पर्यटक स्थल चोपता, ग्वालदम, औली सहित कई अन्य बुग्यालाें की ओर रुख कर रहे हैं। होटल, लाज, जीएमवीएन, धर्मशालाएं तीर्थ यात्रियाें से भरे हैं वहीं वाहनों के लिए यात्रियाें को घंटो इंतजार करना पड़ रहा है। केदारनाथ के कपाट १८ मई को खुले थे जहां अब तक ७० हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। जबकि बदरीनाथ धाम के कपाट १९ मई को खोले गए थे। यहां अब तक एक लाख से अधिक तीर्थ यात्री दर्शनाें के लिए पहुंच चुके हैं।

धनेश कोठारी

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Badrinath 2010

धनेश कोठारी

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rimjhim barish ke beech khule badrinath ke kapat

हेम पन्त

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Full view of above photos by Sri Dhanesh Kothari ji during Kapat Opening Ceremony at Sri Badri Kedar Dham
 
 
रिमझिम बारिश के बीच बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने का दृश्य-
 

 

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