इस पवित्र स्थल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का पता चलता है जिसमें इसके धार्मिक स्वरूप के दर्शन प्राप्त होते हैं. इस स्थल के बारे में एक कथा जुडी हुई है कहते हैं जब अगस्त्य ऋषि इस स्थान पर तप करने के लिए आए तब यहां पर आतापी-वातापी नामक दैत्य भाइयों ने कोहराम मचा रखा था यह राक्षस भेष बदल कर लोगों अपने निवास स्थान पर बुलाते तथा उन्हें भोजन का निमंत्रण देते इस पर भोले भाले ऋषि इनका निमंत्रण स्वीकार कर लेते थे.
और जब वह इनके निवास में भोजन करने जाते तो रूप बदले इन राक्षसों में से एक दैत्य अपना आकार छोटा करके खाने छुप जाता व जब लोग भोजन ग्रहण करते तो राक्षस उनके उदर में प्रवेश कर जाता था और बाहर बैठे दैत्य के बुलाने पर दूसरा दैत्य उदर को चीरकर बाहर निकल आता और दोनो राक्षस उस मृत व्यक्ति को निगल जाते थे. दैत्य भाइयों के इस आतंक से सभी जन त्रस्त थे तब सभी ने मुनी अगस्त्य के पास जाकर दैत्यों का अंत करने का निवेदन किया.
ऋषि ने उन्हें आश्वासन दिया और दैत्यों के निवास पर भोजन करने हेतु पहूँचे. इस पर राक्षसों ने वही चाल चली तब अगस्त्य ऋषि ने भेद जानकर उसी क्षण मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया तथा दैत्य को जठराग्नि से नष्ट कर दिया तब दूसरे दैत्य भाई ने अगस्त्य जी से युद्ध किया और ऋषि अगस्त्य ने उस राक्षस का भी अंत कर दिया तथा सभी निवासियों को राक्षसों के आतंक से मुक्त किया.