Author Topic: Chandrabadni Temple tehri Uttarakhand,चन्द्रबदनी मंदिर टिहरी उत्तराखंड  (Read 44765 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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टिहरी मार्ग पर चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित लगभग आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है सिद्धपीठ मां चन्द्रबदनी मंदिर। देवप्रयाग से 33 किमी की दूरी पर यह सिद्धपीठ स्थित है। धार्मिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक दृष्टि में चन्द्रबदनी उत्तराखंड की शक्तिपीठों में महत्वपूर्ण है।

स्कंदपुराण, देवी भागवत व महाभारत में इस सिद्धपीठ का विस्तार से वर्णन हुआ है। प्राचीन ग्रन्थों में भुवनेश्वरी सिद्धपीठ के नाम से इसका उल्लेख है। पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान शंकर का सती की मृत देह के प्रति मोह समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने सती के पार्थिव काया को सुदर्शन चक्र से कई भागों में बांट दिया था।

सती का कटीभाग चन्द्रकूट पर्वत पर गिरने से यहां पर भुवनेश्वरी सिद्धपीठ स्थापित हुई। कालांतर में भगवान शंकर इस स्थल पर आए। सती के विरह से व्याकुल भगवान शिव यहां सती का स्मरण कर सुदबुद खो बैठे। इस पर महामाया सती यहां अपने चन्द्र के समान शीतल मुख के साथ प्रकट हुई। इसको देखकर भगवान शंकर का शोक मोह दूर हो गया और प्रसन्नचित हो उठे। देव-ग‌र्न्धवों ने महाशक्ति के इस रूप का दर्शन कर स्तुति की।

इसके बाद से यह तीर्थ चन्द्रबदनी के नाम से विख्यात हुआ। महाभारत कीएक कथा के अनुसार चन्द्रकूट पर्वत पर अश्वत्थामा को फेंका गया था। चिरंजीव अश्वत्थामा अभी भी हिमालय में विचरते हैं यह माना जाता है। गर्भगृह में भूमि पर भुवनेश्वरी यंत्र स्थापित है। जबकि ऊपर की ओरस्थित यंत्र सदा ढका रहता है। पुजार गांव निवासी ब्राहमण ही मंदिर में पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।

 

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