Author Topic: CHAR DHAM OF UTTARAKHAND - BADRINATH, KEDARNATH, GANGORTI & YAMNOTRI  (Read 71333 times)

पंकज सिंह महर

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Re: CHAR DHAM OF UTTARAKHAND - BADRINATH, KEDARNATH, GANGORTI & YAMNOTRI
« Reply #30 on: January 02, 2008, 03:10:12 PM »
भारत की सर्वाधिक प्राचीन और पवित्र नदियों में गंगा के समकक्ष ही यमुना की गणना की जाती है। भगवान कृष्‍ण की लीलाओं की साक्षी रही यह नदी ब्रज संस्‍कृति की संवाहक है। भारतवासियों के लिए यह सिर्फ एक नदी नहीं है, भारतीय संस्‍कृति में इसे माँ का दर्जा दिया गया है।

यमुना नदी का उद्गम हिमालय के पश्चिमी गढ़वाल क्षेत्र में स्थित यमनोत्री से हुआ है। हिन्दू धर्म के चार धामों में यमनोत्री का भी स्‍थान है। आइए, हम अपने शब्‍दों के माध्‍यम से आपको यमनोत्री की सैर करवाते हैं।
यमुना नदी की तीर्थस्‍थली यमनोत्री हिमालय की खूबसूरत वादियों में स्थित है। यमुना नदी का उद्गम कालिंद नामक पर्वत से हुआ है। हिमालय में पश्चिम गढ़वाल के बर्फ से ढँके श्रंग बंदरपुच्‍छ जो कि जमीन से 20,731 फुट ऊँचा है, के उत्‍तर-पश्चिम में कालिंद पर्वत है। इसी पर्वत से यमुना नदी का उद्गम हुआ है। कालिंद पर्वत से नदी का उद्गम होने की वजह से ही लोग इसे कालिंदी भी कहते हैं।
 यमुना नदी का वास्‍तविक स्रोत कालिंद पर्वत के ऊपर बर्फ की एक जमी हुई झील और हिमनद चंपासर ग्‍लेश्यिर है। यह ग्‍लेश्यिर समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसी ग्‍लेश्यिर से यमुना नदी निकलती है और ऊँचे-नीचे, पथरीले रास्‍तों पर इठलाती, बलखाती हुई पर्वत से नीचे उतरती है।

यमुना नदी के इस शुद्ध निर्मल जल और स्‍वछंद प्रवाह के दर्शन करने अनेक तीर्थयात्री और पर्यटन हर साल हजारों की संख्‍या में यमनोत्री धाम पहुँचते हैं। भक्तिभाव से यमुना नदी के दर्शन करने आने वालों के साथ-साथ एडवेंचर के शौकीनों और प्रकृतिप्रेमियों के लिए यह जगह किसी स्‍वर्ग से कम नहीं है।

तीर्थयात्री और पर्यटक देवी यमुना के मंदिर तक ही आते हैं। यह मंदिर पहाड़ी पर वास्‍तविक ग्‍लेश्यिर से कुछ नीचे स्थित है। इस मंदिर तक पहुँचने का मार्ग अत्‍यंत खूबसूरत है। इस मंदिर की चढ़ाई करते हुए आस-पास की हिमाच्‍छादित पहाडि़यों के मनोहारी दृश्‍य यात्रियों की सारी थकान को हर लेते हैं। जो लोग पहाड़ी पर चढ़ने में समर्थ नहीं होते उनके लिए यहाँ टट्टू और पालकी की सुविधा उपलब्‍ध है।
अन्‍य आकर्षण : यमुना नदी के मंदिर के अतिरिक्‍त यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है- सूर्यकुंड। यह गर्म पानी का कुंड है जिसका पानी 80 डिग्री सेल्सियस तक गर्म रहता है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु इस कुंड में आलू और चावल उबालकर उसका भोग यमुना देवी को लगाते हैं।

दिव्‍यशिला : सूर्यकुंड के समीप एक शिला है, जिसे दिव्यशिला या ज्‍योतिशिला भी कहा जाता है। श्रद्धालु यमुना मैया की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं।

कब जाएँ : यमनोत्री के पट हर साल हिन्दू कैलेंडर के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन खोले जाते हैं। अक्षय तृतीया की तिथि प्रतिवर्ष अप्रैल या मई माह के दौरान आती है। यमनोत्री के पट नवंबर माह तक दर्शनों के लिए खुले रहते है। अप्रैल से सितंबर के मध्‍य यहाँ यात्रा करना मौसम और जलवायु की दृष्टि से सुविधाजनक होता है।

सितंबर के बाद यहाँ की जलवायु बहुत अधिक ठंडी हो जाती है। दिसंबर से मार्च तक यह पूरा मार्ग बर्फ से ढँक जाता है इसलिए दर्शनार्थियों को यहाँ जाने की अनुमति नहीं मिलती।

कैसे पहुँचें : ऋषिकेश से 220 किमी का सड़क मार्ग तय करने के बाद फूलचट्टी नामक स्‍थान से यमनोत्री की चढ़ाई प्रारंभ होती है। फूलचट्टी तक श्रद्धालु अपनी इच्‍छानुसार बस या निजी वाहन से पहुँच सकते हैं।

समीपस्‍थ हवाई अड्डा : देहरादून स्थित जौलीग्रांट सबसे समीप स्थित हवाई अड्डा है।

सड़क मार्ग : ऋषिकेश से यहाँ आने के लिए बस एवं जीप आदि वाहनों की सुविधा उपलब्‍ध होती है।

कहाँ ठहरें : यात्रियों के ठहरने के लिए यमनोत्री और इसके पूरे मार्ग पर यात्री विश्रामगृह, निजी विश्रामगृह और धर्मशालाएँ उपलब्‍ध हैं।

सावधानियाँ :
यमनोत्री की यात्रा पर जाने से पूर्व अपने साथ गर्म कपड़े अवश्‍य रखें।
पैरों में डिजाइनर चप्‍पलों या सैंडल की बजाए स्‍पोर्टस शू पहनें तो चढ़ाई करने में आसानी रहेगी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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'Gates of God'
« Reply #31 on: February 16, 2008, 12:39:12 PM »
'Gates of God'
By Amar Grover

Published: February 16 2008 02:00 | Last updated: February 16 2008 02:00

Hindu pilgrimages have thrived in India for about 4,000 years through an elaborate network of sacred trails and spiritual nodes. The most famous and longest circuit, the Char Dham or "Four Abodes", encompasses the Subcontinent's four cardinal points. I came for part of the Himalayan Char Dham, a hardly less famous but much shorter and more spectacular version confined to the upper Garhwal region of Uttarakhand state.

Many ancient texts laud the act of pilgrimage: "Flower-like are the heels of the wanderer,/ Thus his body grows and is fruitful,/ All of his sins disappear,/ Slain by the toil of his journeying" rather sets the tone.

The Himalayan Char Dham comprises Yamunotri and Gangotri - the respective traditional sources of the Yamuna and Ganges Rivers, and setting for pivotal godly myths - and the temple sites of Kedarnath and Badrinath.

Most pilgrims come in this sequence even though Badrinath, the northern point of the great all-India route, is the most visited and important. I, however, chose to go to Gangotri because it is a little less commercial than the others, and the source of India's iconic river has an aesthetic, if not atheistic, appeal.

Having dipped my toes and paid my dues on the plains at Haridwar, the so-called "Gates of God" that provide the launch pad for pilgrims, I set off through Rishikesh and the tortuous road deep into the hills. For centuries, these Himalayan routes were used solely by ragged mendicants and hardy travellers prepared to brave the demanding and sometimes dangerous terrain.

Much has changed: army-built roads blasted through the valleys now link settlements previously days' walk apart. Today's modern pilgrims mainly come by bus and jeep, and you are as likely to see middle-class families from Delhi, Varanasi and Mumbai as country folk from the foothills.

Gradually leaving behind the warm and golden terraces of lowland wheat, my rickety bus rattled up the long, theatrical road to Gangotri amid forests of pine and cedar. Dotted with lively hamlets and villages, the route follows the Ganges (or, strictly, that river's principal tributary known on this youthful stretch as the Bhagirthi) all the way, crossing several times on narrow bridges and climbing two-dozen steep hairpin bends to Sukhi Top, only to plunge into the valley once more.

Gangotri village stands at 3,048m, or 10,000ft, so it's quite possible you will awake with a headache in the morning, if you haven't arrived with one in the evening.

Morning dawned crisp and clear with a dazzling cluster of snowy peaks filling the valley's head. It's a busy little place with western hikers rubbing shoulders with shopkeepers and sadhus , wandering ascetics with shaggy beards and brilliant saffron robes.

Pilgrims milled about, thronging the bazaar and filling the main temple, some later casting adrift little flower-laden, candle-lit leaf-rafts on the surging Bhagirthi as priests conducted arcane rituals unchanged for centuries.

Few head up to the river's main source 19km away at Gaumukh, or "cow's mouth". At nearly 4,000m (13,000ft), this vast glacier is the journey's true climax. As I hiked up-valley, coniferous forest faded into strands of straggly birch and I paused occasionally to fuel up with tea and instant noodles at rudimentary tentcafés. A handful of frozen-looking pilgrims were riding on ponies but even they had to stop at Bhojbasa, just 5km short of Gaumukh.

I chose to stay at a simple ashram. At dinner, about 20 of us sat cross-legged on the floor. Obligatory prayers were offered - several Hindi words at a time, like at school, so everyone could follow - and then chapatis and lentils were slopped into steel bowls.

Amid a glorious amphi-theatre of 6,000m peaks, including the much-admired Shivling, the path climbs steadily to Gaumukh at the retreating snout of Gangotri Glacier. Pilgrims traditionally bathe in the frigid river as it emerges from a blue-tinged ice cave. A few even venture madly into its mouth, blissfully ignoring the risk of falling ice, to fill vials and containers with water. For a while, I perched on a nearby boulder before moving to the riverbank to warm in the sun, alongside men nonchalantly drying themselves with tea-towels.

Minutes later, though, that warmth treacherously loosened some huge rocks and ice that crashed down just yards from where I had sat. I would surely have leapt in panic and - who knows - broken a leg or cracked my skull.

Was I lucky to escape or unlucky with time and place? Is the glass ever half-empty or half-full? In the Himalayas, perhaps fate really is in the hands of the gods.

http://www.ft.com/cms/s/0/9c1f8aaa-dc31-11dc-bc82-0000779fd2ac.html

पंकज सिंह महर

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Re: CHAR DHAM OF UTTARAKHAND - BADRINATH, KEDARNATH, GANGORTI & YAMNOTRI
« Reply #32 on: March 19, 2008, 10:29:47 AM »
श्रद्धालु घर बैठे कर सकेंगे चार धाम के दर्शन

देहरादून। देवभूमि के पवित्र धामों बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन लाखों श्रद्धालु घर बैठे ही कर सकेंगे। सरकार चार धामों के कपाट खुलने के कार्यक्रम का टीवी पर सीधा प्रसारण करने पर विचार कर रही है।

चार धाम यात्रा के पारंपरिक स्वरूप में श्रद्धालुओं की जरूरतों के मुताबिक तब्दीली की जा रही है। इस मामले में सरकार की संजीदगी का अंदाजा नए यात्रा सीजन की तैयारियों को देखकर लगाया जा सकता है। कई स्तरों पर तैयारी देश-विदेशों के श्रद्धालुओं को ध्यान में रखकर की गई हैं, जबकि अब एक नई पहल प्रदेश के श्रद्धालुओं के लिए की जा रही है। सरकार की कोशिश है कि राज्यवासी घर बैठे ही चारों धामों के दर्शन कर सकें। पवित्र धामों के कपाट खुलने के कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण टीवी पर करने की दिशा में विचार किया जा रहा है। इसके लिए विभिन्न एजेंसियों व टीवी चैनलों से भी संपर्क साधा जा रहा है। इस बाबत पर्यटन मंत्रालय को प्रस्ताव भी मिला है। मंत्रालय विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर इस पर मंथन चल रहा है। सीधे प्रसारण में होने वाले व्ययभार को देखते हुए मंत्रालय कम व्यय पर प्रसारण में रुचि लेने वाली एजेंसियों के विकल्प पर भी विचार कर रहा है। पर्यटन, तीर्थाटन व धर्मस्व मंत्री प्रकाश पंत स्वीकार करते हैं कि चार धामों के कपाट खुलने के कार्यक्रम के सीधे प्रसारण की योजना पर विचार किया जा रहा है। कुछ टीवी चैनलों से भी बातचीत हुई है। इस बाबत अगले माह के पहले हफ्ते तक निर्णय लिया जाएगा। यात्रा मार्ग पर जन सुविधा मुहैया कराने के लिए 25 पड़ावों पर हाईटेक शौचालय व रैन बसेरे बनाए जाएंगे। शौचालय निर्माण का जिम्मा सुलभ इंटरनेशनल को सौंपा गया है। धार्मिक पर्यटन व तीर्थाटन के माध्यम से स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने की योजना तैयार की गई है। योजना कारगर रही तो ग्रामीण कलाकारों की माली हालत में सुधार नजर आएगा। पर्यटन मंत्री के मुताबिक चार धाम समेत राज्य के प्रमुख तीर्थ स्थलों की लकड़ी व सोप स्टोन की प्रतिकृति तैयार करने के लिए कारीगरों को प्रोत्साहित किया जाएगा। इन प्रतिकृतियों को पर्यटक खासा पसंद करते हैं और बतौर यादगार इसे सहेज कर रखना चाहते हैं। इस योजना से अन्य प्रमुख तीर्थ स्थलों के बारे में भी देश-विदेश के श्रद्धालुओं को जानकारी मिलेगी।

हेम पन्त

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Uttarakhand to restrict tourist flow to Gangotri glacier
« Reply #33 on: April 04, 2008, 02:10:33 PM »
Dehra Dun: With alarm bells ringing over the rapid melting of glaciers in the Himalayas, the Uttarakhand Government has decided to regulate tourist flow to the protected areas of Gangotri National Park, including Gomukh.

The Government would now restrict the number of tourists visiting the origin of the holy river Ganga to 150 per day.


The new regulations would come into effect from the next season beginning in April, said Chief Forest Conservator of Uttarakhand B. S. Barfal.

According to officials, on a single day in the annual Kanwad season (July-August), nearly 2,000 to 3,000 Kawadias, devotees of Lord Shiva, visit the area causing ecological concerns.

The entry of mules and horses has also been banned in Gangotri area, Barfal said. To discourage tourists from visiting Gangotri regularly, the entry fee is also being hiked.

पंकज सिंह महर

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Re: CHAR DHAM OF UTTARAKHAND - BADRINATH, KEDARNATH, GANGORTI & YAMNOTRI
« Reply #34 on: April 22, 2008, 03:33:55 PM »
उत्तर भारत के दो तीर्थस्थल बद्रीनाथ एवं केदारनाथ संपूर्ण भारतवासियों के प्रमुख आस्था-केंद्र हैं। धामों की संख्या चार है, बद्रीनाथ, द्वारका,रामेश्वरम् एवं जगन्नाथपुरी।ये धाम भारतवर्ष के क्रमश:उत्तरी, पश्चिमी, दक्षिणी एवं पूर्वी छोरों पर स्थित है।
      बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ के कपाट शरद् ऋतु में बंद हो जाते हैं और ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ में खुलते हैं। शेष तीन धामों की यात्रा पूरे वर्ष चलती रहती है। उत्तर के दो तीर्थ स्थल बद्रीनाथ और केदारनाथ किन्हीं दृष्टियोंसे एक-दूसरे से भिन्न हैं। पहली भिन्नता तो यह है कि बद्रीनाथ धाम है और केदारनाथ तीर्थस्थल है। दूसरी भिन्नता यह है कि बद्रीनाथ में विष्णु के विग्रह की पूजा होती है और केदारनाथ में शिव के विग्रह की पूजा। तीसरी भिन्नता यह है कि शीतकाल में बद्रीनाथ से भगवान विष्णु का विग्रह उठाकर ऊखीमठमें ले जाया जाता है। ऊखीमठमें भगवान की पूजा नहीं होती है। इसके विपरीत केदारनाथ में शिव का विग्रह यथावत् यथास्थान पर बना रहता है और कपाट बंद हो जाने पर विग्रह की पूजा नहीं होती है।

पंकज सिंह महर

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Re: CHAR DHAM OF UTTARAKHAND - BADRINATH, KEDARNATH, GANGORTI & YAMNOTRI
« Reply #35 on: April 22, 2008, 03:40:26 PM »
केदारनाथ में शिव के विग्रह की पूजा होती है। सामान्यत:शिव की पूजा शिवलिंगके रूप में होती है, पर केदारनाथ में शिव के विग्रह का स्वरूप भैंसेकी पीठ के ऊपरी भाग की भांति हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा आती है। महाभारत के बाद परिवारजनों के हत्याजनितपाप से मुक्ति के लिए पांडव प्रायश्चित-क्रम में भगवान शिव के दर्शन करना चाहते थे। भगवान शिव पांडवों से रुष्ट थे। वे उन्हें पापमुक्तनहीं करना चाहते थे। पांडवों की खोजी दृष्टि बचने के लिए भगवान शंकर ने महिष का रूप धारण कर लिया और महिष दल में सम्मिलित हो गए। भगवान शंकर को खोजने का काम भीम कर रहे थे। किसी तरह भीम ने यह जान लिया कि अमुक महिष ही भगवान शंकर हैं। वह उनके पीछे दौडा। भीम से बचने के क्रम में भगवान शंकर पाताल लोक में प्रवेश करने लगें। कहा जाता है कि पाताल लोक में प्रवेश करते हुए भगवान शंकर के पृष्ठ भाग को पकड लिया और उन्हें दर्शन देने के लिए बाध्य कर दिया। अंतत:भगवान शंकर के दर्शन से सभी पांडव पापमुक्तहो गए। इस घटना के बाद लोक में महिष के पृष्ठभाग के रूप में भगवान शंकर की पूजा होने लगी। केदारनाथ में महिष का पृष्ठभाग ही शिव-विग्रह के रूप में स्थापित है। यह घटना जिस क्षेत्र में हुई उसे गुप्त काशी कहा जाता है।

पंकज सिंह महर

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       मनुष्य ही नही बल्कि देवता भी जिनके दर्शनों के लिए समय- समय पर धरती पर अवतरित होते है ऐसे पवित्र धामों गंगोत्री व यमुनोत्री मंदिर के कपाट सात मई को अक्षय तृतीया के दिन श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएगें। वेदों व पुराणों में इन मंदिरों की स्तुति के साथ उल्लेख है कि कपाट खुलने पर अखंड़ ज्योति के प्रथम दर्शन करने से समस्त कष्टों का निवारण होता है।
       सीमांत जनपद उत्तरकाशी के टकनौर क्षेत्र में स्थित पुण्य धाम गंगोत्री समुद्रतल से 3140 मीटर की ऊचाई पर स्थित है। महाभारत में इस तीर्थ का परिचय गरूड ने गालव ऋषि से इस प्रकार किया कि इसी स्थल पर त्रिलोकीनाथ भगवान शंकर ने राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर आकाश से गिरती गंगा को अपने जटाओं में धारण किया और धरती पर जन कल्याण के लिए उतार दिया। यह पवित्रतम तीर्थ स्थान अत्यंत रहस्यमयी है पर्वतों से घिरे भारी शिलाखंडों और धरातलीय स्थितियों के कारण जब तक गंगोत्री के निकट नही पंहुच जाता तब तक इस तीर्थ स्थल का बोध नही होता इस रहस्यमयी स्थान मे न तो भैरोंवघाटी की भयावहता है और न गर्जन तर्जन ही है । पूर्व दिशा को छोड़कर चारों और चट्टानों वाले पहाड़ खड़े है जो एक परम शांत व अध्यात्म का केन्द्र है। 

हेम पन्त

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रुद्रप्रयाग। भगवान शिव के ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ के कपाट खुलते ही यात्रा पड़ावों सहित केदारपुरी में देश-विदेश के श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। इस बार जहां गौरीकुण्ड से केदारनाथ तक के चौदह किमी पैदल यात्रा को प्रशासन द्वारा सुगम बनाने के पूरे प्रयास किए गए है, वहीं हवाई सेवाओं में बढ़ोत्तरी होने से पिछले वषरें की अपेक्षा यात्रियों की संख्या में इजाफा होने के आसार है।

बुधवार को केदारनाथ के कपाट खुलते ही यात्रा पड़ावों के साथ ही केदारपुरी में रौनक दिख रही है। इस वर्ष कपाट खुलने के पहले दिन ही केदारपुरी में भक्तों की भीड़ जमा रही, जबकि अभी यहां का मौसम काफी सर्द है। गत वर्षो की अपेक्षा इस वर्ष यात्रियों की संख्या में भी इजाफा रहेगा। वहीं जिला प्रशासन द्वारा गौरीकुंड से केदारनाथ तक के पैदल यात्रा को सुगम बनाने के लिए काफी प्रयास किए गए है। गत वर्ष जहां इस मार्ग पर घोड़े-खच्चरों की अव्यवस्थित आवाजाही के कारण यात्रियों को पैदल चलने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था, इस बार प्रशासन द्वारा घोडे़-खच्चरों का प्रीप्रेड व्यवस्था पर संचालन किया जा रहा है। वहीं केदारनाथ धाम के लिए हवाई सेवाएं दे रही प्रभातम व केंद्र सरकार के उपक्रम पवन हंस ने भी यात्रियों की सुविधा के लिए अपनी सेवाओं में बढ़ोत्तरी की है। प्रभातम के जहां दो हेलीकाप्टर फाटा से यात्रियों को भोले के दर्शन करवा रहे है वहीं पवन हंस भी दस मई से अगस्त्यमुनि व फाटा से दो हैलीकाप्टरों के साथ यात्रियों को भगवान केदारनाथ के दर्शन कराएगी। हवाई सेवाओं में हुई बढ़ोत्तरी से भी गत वर्ष की अपेक्षा अधिक देशी-विदेशी तीर्थ यात्री भोले दर्शनों को पहुंचने की संभावना है। बद्री-केदार मंदिर समिति के उप मुख्य कार्याधिकारी जेपी नंबूरी का कहना है कि समिति द्वारा इस बार केदारपुरी में यात्रियों को अलाव सहित अन्य जरुरी सुविधाएं मुहैया करायी जा रही है, ताकि उन्हे परेशानी का सामना न करना पड़े।

पंकज सिंह महर

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मुनस्यारी(पिथौरागढ़)। मुनस्यारी से मिलम जाने वाले पैदल मार्ग को दो स्थानों पर आये विशाल ग्लेशियरों ने अवरुद्ध कर दिया है। इसके चलते इस वर्ष माइग्रेसन पर जाने वाले परिवारों को भारी परेशानी उठानी पड़ सकती है। लोक निर्माण विभाग ने मार्ग में जमा बर्फ को हटाने के लिये मजदूर भेज दिये है।
मालूम हो कि मुनस्यारी से मिलम तक 65 किमी लम्बे पैदल मार्ग से होकर मल्ला जोहार के माइग्रेसन वाले परिवार हर वर्ष आवाजाही करते है। लगभग 12 ग्राम सभाओं के दर्जनों परिवार जाड़ा शुरू होते ही मुनस्यारी आ जाते है और मई माह में वापस ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चले जाते है। यह परिवार मई माह से माइग्रेसन पर चले जाते है। परन्तु इस वर्ष मौसम के विपरीत होने से समय रहते इन परिवारों के मल्ला जोहार के बुग्यालों तक पहुंचने की कम सम्भावना है। जानकारी के अनुसार इस समय इस पैदल अश्व मार्ग में मुनस्यारी से लगभग 40 किमी दूर छिरकानी और लास्पा गाड़ी नामक स्थानों पर विशाल ग्लेशियरों के कारण मार्ग अवरुद्ध है। इन स्थानों पर कुछ ही लोग बमुश्किल आवाजाही कर पा रहे है। जबकि सामान से लदे घोड़ों व खच्चरों का प्रवेश नहीं हो पा रहा है। इसके चलते इस वर्ष माइग्रेसन पर जाने वाले परिवारों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इस संबंध में लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता योगेश लाल साह ने बताया कि मार्ग खोलने के लिये गैंग उस क्षेत्र में भेज दी गयी है। विभाग के एक जेई को भी निर्देशित किया गया है। यदि मौसम ने साथ दिया तो मार्ग को 15 मई तक आवाजाही के लायक बना दिया जायेगा।

हेम पन्त

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रुद्रप्रयाग। केदारनाथ में दर्शन के लिए बैक एंट्री को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कुछ दिन पूर्व हुए विवाद के बाद शुक्रवार को सुबह पुन: खूब बवाल हुआ। इस घटना में दोनों पक्षों के कुछ लोगों को चोट लगने की सूचना है। हालांकि पुलिस ने विवाद को मामूली बताकर मामला शांत होने की बात कही है।

केदारनाथ दर्शन करने वाले यात्रियों की संख्या में लगातार इजाफा होने से भोले बाबा के दर्शनों के लिए लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। इस स्थिति में बैक डोर एंट्री से कुछ लोगों द्वारा अपने यात्रियों को दर्शन कराने से यह समस्या पैदा हो रही है। शुक्रवार को सुबह इसी मुद्दे को लेकर केदारनाथ मंदिर परिसर में यात्रियों व स्थानीय लोगों में बीच विवाद हो गया। केदारनाथ तीर्थ पुरोहित समाज के प्रवक्ता जयप्रकाश शुक्ला ने कहा कि यात्री की गलती के कारण यह विवाद हुआ। उन्होंने कहा कि बैक एंट्री पूरी तरह बंद होनी चाहिए। इसके लिए पुलिस प्रशासन व मंदिर समिति को विशेष पहल की आवश्यकता है। साथ ही वीआईपी को निर्धारित समय पर ही दर्शन कराने चाहिए। हेलीकाप्टर से आने वाले दर्शनार्थियो के लिए भी विशेष समय पर ही दर्शन कराने चाहिए। सैकड़ों की संख्या में प्रत्येक दिन आ रहे यात्रियों से समस्या पैदा हो रही है।


 

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