Author Topic: CHAR DHAM OF UTTARAKHAND - BADRINATH, KEDARNATH, GANGORTI & YAMNOTRI  (Read 71343 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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भविष्य बदरी     

भविष्य बदरी का मंदिर समुद्रतल से 2744 मी0 की ऊंचाई पर स्थित है और घने जंगलो से घिरा है।भगवान बदरी की प्रतिमा यहां स्वयं प्रगट हुई थी। जोशीमठ से 17 किमी पूर्व में लता मलारी रास्ते में तपोवन में स्थित तीर्थयात्रियों को तपोवन के पार धौली गंगा नदी तक पैदल जाना होता है। तपोवन में गंधक के गर्म जलस्त्रोत है। इससे उत्तर का दृश्य
सांसे रोक देने वाला है। ऐसी धारणा है कि जब घोर कलियुग का आगमन होगा, विष्णु प्रयाग के समीप पटमिला में जय और विजय पर्वत ढह जाएंगे तथा बदरीनाथ मंदिर अगम हो जाएगा तब भगवान बदरीनाथ की यहीं पूजा होगी। अतः भविष्य के बदरी का नामकरण हुआ। भविष्य बदरी आज भी सुप्रसिद्ध है। यहां शेर के शीश वाली नंरसिंह की मूर्ति स्थापित है।

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योगध्यान बदरी

पांच बदरियों में से एक योगध्यान बदरी बदरीनाथ ऋषिकेश रास्ते में बदरीनाथ से 24 किमी पहले पांडुकेश्वर के समीप है। 1920 मी0 की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान की योगध्यान मुद्रा में मूर्ति है। मंदिर के चारों ओर का प्रदेश पंचालदेश के नाम से जाना जाता था। विश्वास किया जाता है कि यहीं पांडु ने कुंती से विवाह किया
था। पुराणों के अनुसार महाभारत के युद्ध में विजयी परंतु भावनात्मक रूप से क्षुब्ध पांडव स्वर्गारोहण से पूर्व यहां आए और अपनी राजधानी हस्तिनापुर राजा परिक्षित को सौप गए।



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वृद्धबदरी     

हेलंग चट्टी से 3 किमी बदरीनाथ यात्रा मार्ग में अणीमठ नामक का स्थल है। यहां पंचबदरी के अन्तर्गत भगवान वृद्धबदरी रूप से विराजमान है। राजा मान्धाता के वानप्रस्थावस्था की साधना स्थली जाना जाता है। मन्दिर के समीप एक पुरातन पीपल का वृक्ष दूर से ही दृष्टिगत होता है। इसी पीपल के समीप वृद्धबदरी का दिव्य मन्दिर है, मन्दिर के गर्भगृह में लक्ष्मीनारायण भगवान की बडी दिव्य पुरातन मूर्ति है। भगवान का स्वरूप चतुर्भुज है तथा शंख-चक्र-गंदा-पद्म, भुजाओं से सुशोभित है। मूर्ति की ऊंचाई डेढफीट है। भगवान के साथ गरुड़, कुबेर और नारदजी विराजमान है। परिसर में नर-नारायण भी तपस्वी के रूप में अंकित है। साथ ही गणेश एवं लक्ष्मी भी विद्यमान है।
बदरीनाथ क्षेत्र अत्यन्त ठंडा होने से वानप्रस्थियों को अनुकूल नही था , अतः वृद्ध वानप्रस्थियों ने इस स्थान की प्रकृति को अपने अनुकूल पाकर इस क्षेत्र को अपनी साधना का आश्रय बनाया। इसलिए वृद्धों के इष्ट नारायण यहां वृद्धबदरी रूप में अवस्थित हुए। वृद्ध बदरी भगवान के समीप ही दायें भाग में भगवान केदारेश्वर शिव  का भी सुन्दर
 छोटा सा मन्दिर है। हिमालय के तीर्थो में वैष्णव-शैव मतावलम्बी सम्प्रदायों का सामंजस्य मिश्रित रूप से एक उच्च आदर्श का प्रतीक है। यह मन्दिर शैव नाकुलीस मत से सम्बद्ध है शिव मन्दिर में मण्डप नही है, जबकि वृद्ध बदरी मन्दिर से छोटा सा मण्डप भी है।
वृद्ध बदरी भगवान जिस पहाड़ों पर है उससे ऊपर पैना गांव है। पैना गांव से ऊपर पर्वत की चोटी में भगवती अपर्णा-पर्णखण्डा देवी का दिव्य मन्दिर है। भगवती पार्वती ने इसी स्थल पर भगवान शिव की प्राप्ति हेतु तप किया था। तपस्या में निरत पार्वती कभी देह रक्षा हेतु सूखे पत्ते भोजन स्वरूप प्राप्त करती रहीं परन्तु यहां तपोरत अपर्णा रहीं। यानि पत्ते चबाना भी त्याग दिए थे, इसीलिए अपर्णा नाम पडा पर्णखण्डा देवी के ही नाम से इस परगने को कालान्तर में पैनखण्डा के नाम से जाना गया, जिसका मुख्यालय जोशीमठ है।


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ध्यान बदरी, उर्गम     
हेलंग स्थान पीपलकोटी से लगभग 20 किमी आगे बदरीनाथ यात्रा मार्ग में आता है। यहां से ऐ मार्ग अलकनन्दा नदी पार कर ओर्वाश्रम, वर्तमान नाम उर्गम के लिए जाता है। उर्गम ऐसा स्थान है जहां एक ही स्थान पर पंचकेदार के अन्तर्गत ’कल्पेश्वर‘ कल्पनाथ
जी है। साथ ही पंचबदरी के अन्तर्गत ’योगबदरी‘ का स्थान है। उर्गम इसका अपभ्रंश नाम है वस्तुतः और्व ऋषि की साधनास्थली और जन्मस्थली होने के कारण इस स्थान को ’और्वाश्रम‘ कहा जाता रहा। भृगुवंशी और्व ऋषि का जन्म गर्भ से न होकर माता के उरू से होता है। ये आततायी बने हेहैंय वंशी राजाओं के कोप से अपने वंश की रक्षा करने में सफल होते है। योगबदरी की व्यवस्था श्री बदरीनाथ श्रीकेदारनाथ मन्दिर समिति के अधीन है। ’डिमरी‘ जाति के ब्राह्मण यहां पुजारी है। इस स्थान का भौगोलिक अध्ययन किया जाय तो लगता है कि ये कभी बदरीनाथ यात्रा का भी मार्ग रहा होगा। गोपेश्वर से रूद्रनाथ दर्शन के बाद आसानी से कल्पनाथ या कल्पेश्वर पहुंचा जा सकता है, इसीलिए यहां बदरी तथा केदार की संयुक्त रूप से स्थिति है। इस भूमि को ’केदारारण्य‘ के नाम से भी जाना गया है। यहां से निकलनेवाली धारा ’हिरण्यवती‘ नाम से प्रसिद्ध है जिसे वर्तमान में कल्पगंगा भी कहते है। हेलंग के पास त्रिवेणी बनकर अलकनन्दा में मिल जाती है। इस संगम को त्रिवेणी कहते है क्योकि कर्मनासा, कल्पगंगा तथा अलकनन्दा तीन वेणियां, धाराएं यहां मिलती है। कल्पेश्वर क्षेत्र का दृश्य बडा नयनाभिराम हैं यहां अनेक मन्दिर और चरागाह है। जंगल भाग में सुन्दर दर्शनीय ’वंशीनारायण‘ भगवान का भी मन्दिर यहां है। अभी मोटर मार्ग नही है। पैदल ही यात्रा सम्भव होगी।

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आदि बदरी    


कर्णप्रयाग रानीखेत मार्ग पर 16 छोटे मंदिरों का समूह है जो स्थानीय महत्व का एक प्रमुख यात्रा केन्द्र है। यह मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है और पिरामिड के आकार के ऊंचे चबूतरें पर स्थित है। ऐसा विश्वास है कि इन मन्दिरों के निर्माण की स्वीकृति गुप्तकाल में आदि शंकराचार्य ने दी थी जो कि हिंदू आदर्शों का प्रचार-प्रसार देश के कोने-कोने में करने के लिए उद्यत थे।

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Karanprayag

Karanprayag : Karn Prayag is one of five sites where the confluence of sacred rivers occurs. The five prayags are Vishnuprayag, Nandprayag, Karanprayag, Rudraprayag and Devprayag. Allahabad where the Ganga, Yamuna and mythical Saraswati join is known as Prayag and is one of the holy places of Hindu pilgrimage. The confluence of the Pindari River, which arises from the icy Pindari glacier, and the Alaknanda occurs at Karanprayag.
 
There is a temple dedicated to Karna, a mythical hero from the Mahabharata, at Karanprayag. Karna was the child of Surya the Sun god and Kunti. Karna worshipped his father here and received boons from him of impenetrable armour and protective earrings, which made him unvanquishable.

Karna Prayag is one of five sites where the confluence of sacred rivers occurs. The five prayags are Vishnuprayag, Nandprayag, Karanprayag, Rudraprayag and Devprayag. Allahabad where the Ganga, Yamuna and mythical Saraswati join is known as Prayag and is one of the holy places of Hindu pilgrimage. The confluence of the Pindari River, which arises from the icy Pindari glacier, and the Alaknanda occurs at Karanprayag.

There is a temple dedicated to Karna, a mythical hero from the Mahabharata, at Karanprayag. Karna was the child of Surya the Sun god and Kunti. Karna worshipped his father here and received boons from him of impenetrable armour and protective earrings, which
 


अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर कर्णप्रयाग स्थित है । पिण्डर का एक नाम कर्ण गंगा भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्ण प्रयाग पडा । यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय है ।
अलकनंदा एवं पिंडर नदी के संगम पर बसा कर्णप्रयाग धार्मिक पंच प्रयागों में तीसरा है जो मूलरूप से एक महत्त्वपूर्ण तार्थ हुआ करता था। बद्रीनाथ मंदिर जाते हुए साधुओं, मुनियों, ऋषियों एवं पैदल तीर्थयात्रियों को इस शहर से गुजरना पड़ता था। यह एक उन्नतिशील बाजार भी था और देश के अन्य भागों से आकर लोग यहां बस गये क्योंकि यहां व्यापार के अवसर उपलब्ध थे। इन गतिविधियों पर वर्ष 1803 की बिरेही बाढ़ के कारण रोक लग गयी क्योंकि शहर प्रवाह में बह गया। उस समय प्राचीन उमा देवी मंदिर का भी नुकसान हुआ। फिर सामान्यता बहाल हुई, शहर का पुनर्निर्माण हुआ तथा यात्रा एवं व्यापारिक गतिविधियां पुन: आरंभ हो गयी।




कर्णप्रयाग का नाम कर्ण पर है जो महाभारत का एक केंद्रीय पात्र था। उसका जन्म कुंती के गर्भ से हुआ था और इस प्रकार वह पांडवों का बड़ा भाई था। यह महान योद्धा तथा दुखांत नायक कुरूक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के पक्ष से लड़ा। एक किंबदंती के अनुसार आज जहां कर्ण को समर्पित मंदिर है, वह स्थान कभी जल के अंदर था और मात्र कर्णशिला नामक एक पत्थर की नोक जल के बाहर थी। कुरूक्षेत्र युद्ध के बाद भगवान कृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार कर्णशिला पर अपनी हथेली का संतुलन बनाये रखकर किया था। एक दूसरी कहावतानुसार कर्ण यहां अपने पिता सूर्य की आराधना किया करता था। यह भी कहा जाता है कि यहां देवी गंगा तथा भगवान शिव ने कर्ण को साक्षात दर्शन दिया था।

पौराणिक रूप से कर्णप्रयाग की संबद्धता उमा देवी (पार्वती) से भी है। उन्हें समर्पित कर्णप्रयाग के मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा पहले हो चुकी थी। कहावत है कि उमा का जन्म डिमरी ब्राह्मणों के घर संक्रीसेरा के एक खेत में हुआ था, जो बद्रीनाथ के अधिकृत पुजारी थे और इन्हें ही उसका मायका माना जाता है तथा कपरीपट्टी गांव का शिव मंदिर उनकी ससुराल होती है।
कर्णप्रयाग नंदा देवी की पौराणिक कथा से भी जुड़ा हैं; नौटी गांव जहां से नंद राज जाट यात्रा आरंभ होती है इसके समीप है। गढ़वाल के राजपरिवारों के राजगुरू नौटियालों का मूल घर नौटी का छोटा गांव कठिन नंद राज जाट यात्रा के लिये प्रसिद्ध है, जो 12 वर्षों में एक बार आयोजित होती है तथा कुंभ मेला की तरह महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह यात्रा नंदा देवी को समर्पित है जो गढ़वाल एवं कुमाऊं की ईष्ट देवी हैं। नंदा देवी को पार्वती का अन्य रूप माना जाता है, जिसका उत्तरांचल के लोगों के हृदय में एक विशिष्ट स्थान है जो अनुपम भक्ति तथा स्नेह की प्रेरणा देता है। नंदाष्टमी के दिन देवी को अपने ससुराल – हिमालय में भगवान शिव के घर – ले जाने के लिये राज जाट आयोजित की जाती है तथा क्षेत्र के अनेकों नंदा देवी मंदिरों में विशेष पूजा होती है

पंकज सिंह महर

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भारतीय डाक विभाग ने केदारनाथ पर एक डाक टिकट 22 दिसम्बर 2001 को जारी किया।

हेम पन्त

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Source :Dainik Jagran

रुद्रप्रयाग। तीर्थाटन पर्यटन पर्यावरण चेतना अभियान के तहत भगवती मंडनी केदारनाथ की विरासतीय राज यात्रा रविवार को भव्य पूजा अर्चना के साथ ऊखीमठ से केदारनाथ के लिए रवाना हो गई है। जिला पंचायत अध्यक्ष ने यात्रा का शुभारंभ किया।

रविवार को पंच केदारों के गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में भव्य पूजा अर्चना के साथ ही जिला पंचायत अध्यक्ष चण्डी प्रसाद भट्ट ने राजयात्रा को रवाना किया। यात्रा के साथ कई साधू-संत व स्थानीय लोग चल रहे हैं। सोमवार 13 जुलाई को यात्रा पटुडी पौली में रात्रि विराम करेगी जिसके पश्चात 14 जुलाई को साढ़े तेरह हजार फीट की ऊंचाई द्वारीधार को पार करते हुए खसियाखाल में रात्रि विश्राम करेगी। 15 जुलाई को मंडनी बुग्याल मंदिर में रात्रि विश्राम के पश्चात 16 को श्रावण सक्रांति व कृष्ण नवमी को यहीं पर पूजा अर्चना एवं भण्डारे का आयोजन किया जाएगा। 17 जुलाई को हयूंवूक खाल में विश्राम के पश्चात 18 जुलाई को यात्रा सत्रह हजार फीट ऊंचाई पर महापंथ को पार करके मृगु कुण्ड, चंन्द्रशिला भूखण्ड व भैरव होते हुए केदारनाथ पहुंचेगी।

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Re: CHAR DHAM OF UTTARAKHAND - BADRINATH, KEDARNATH, GANGORTI & YAMNOTRI
« Reply #58 on: November 01, 2009, 10:26:51 PM »
यमुनोत्री मंदिर,

मंदिर प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ है जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री मंदिर परिशर 3235 मी. उँचाई पर स्थित है। यँहा भी मई से अक्टूबर तक श्रद्धालुओं का अपार समूह हरवक्त देखा जाता है।

 शीतकाल मे यह स्थान पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है। मोटर मार्ग का अंतिम विदुं हनुमान चट्टी है जिसकी ऋषिकेश से कुल दूरी 200 कि. मी. के आसपास है। हनुमान चट्टी से मंदिर तक 14 कि. मी. पैदल ही चलना होता था किन्तु अब हलके वाहनों से जानकीचट्टी तक पहुँचा जा सकता है जहाँ से मंदिर मात्र 5 कि. मी. दूर रह जाता है।



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Re: CHAR DHAM OF UTTARAKHAND - BADRINATH, KEDARNATH, GANGORTI & YAMNOTRI
« Reply #59 on: November 01, 2009, 10:29:26 PM »


यह कुंड अपने उच्चतम तापमान 80 डिग्री सेल्लियस के लिए विख्यात है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है। देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्त जन अपने अपने घर ले जाते हैं। इसी प्रसाद को वे अपने मित्रो को भी बांटते हैं। सूर्यकुंड के निकट ही एक शिल है जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण, भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं।

 

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