वृद्धबदरी
हेलंग चट्टी से 3 किमी बदरीनाथ यात्रा मार्ग में अणीमठ नामक का स्थल है। यहां पंचबदरी के अन्तर्गत भगवान वृद्धबदरी रूप से विराजमान है। राजा मान्धाता के वानप्रस्थावस्था की साधना स्थली जाना जाता है। मन्दिर के समीप एक पुरातन पीपल का वृक्ष दूर से ही दृष्टिगत होता है। इसी पीपल के समीप वृद्धबदरी का दिव्य मन्दिर है, मन्दिर के गर्भगृह में लक्ष्मीनारायण भगवान की बडी दिव्य पुरातन मूर्ति है। भगवान का स्वरूप चतुर्भुज है तथा शंख-चक्र-गंदा-पद्म, भुजाओं से सुशोभित है। मूर्ति की ऊंचाई डेढफीट है। भगवान के साथ गरुड़, कुबेर और नारदजी विराजमान है। परिसर में नर-नारायण भी तपस्वी के रूप में अंकित है। साथ ही गणेश एवं लक्ष्मी भी विद्यमान है।
बदरीनाथ क्षेत्र अत्यन्त ठंडा होने से वानप्रस्थियों को अनुकूल नही था , अतः वृद्ध वानप्रस्थियों ने इस स्थान की प्रकृति को अपने अनुकूल पाकर इस क्षेत्र को अपनी साधना का आश्रय बनाया। इसलिए वृद्धों के इष्ट नारायण यहां वृद्धबदरी रूप में अवस्थित हुए। वृद्ध बदरी भगवान के समीप ही दायें भाग में भगवान केदारेश्वर शिव का भी सुन्दर
छोटा सा मन्दिर है। हिमालय के तीर्थो में वैष्णव-शैव मतावलम्बी सम्प्रदायों का सामंजस्य मिश्रित रूप से एक उच्च आदर्श का प्रतीक है। यह मन्दिर शैव नाकुलीस मत से सम्बद्ध है शिव मन्दिर में मण्डप नही है, जबकि वृद्ध बदरी मन्दिर से छोटा सा मण्डप भी है।
वृद्ध बदरी भगवान जिस पहाड़ों पर है उससे ऊपर पैना गांव है। पैना गांव से ऊपर पर्वत की चोटी में भगवती अपर्णा-पर्णखण्डा देवी का दिव्य मन्दिर है। भगवती पार्वती ने इसी स्थल पर भगवान शिव की प्राप्ति हेतु तप किया था। तपस्या में निरत पार्वती कभी देह रक्षा हेतु सूखे पत्ते भोजन स्वरूप प्राप्त करती रहीं परन्तु यहां तपोरत अपर्णा रहीं। यानि पत्ते चबाना भी त्याग दिए थे, इसीलिए अपर्णा नाम पडा पर्णखण्डा देवी के ही नाम से इस परगने को कालान्तर में पैनखण्डा के नाम से जाना गया, जिसका मुख्यालय जोशीमठ है।