Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां
Devbhoomi - उत्तराखंड देवीभूमि, तपो भूमि के स्थान जहाँ की ऋषि मुनियों ने तपस्या
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
उत्तराखंड देवीभूमि-तपो भूमि के स्थान जहाँ की ऋषि मुनियों ने तपस्या- Devbhoomi UK
Dosto,
उत्तराखंड की देवभूमि एक तपो भूमि भी जहाँ पर हजारो ऋषि मुनियों ने तप किया और सिध्दिया अर्जित की! यह वही भूमि जहाँ राजा भगीरथ ने गंगा को धरती में लाने के लिए तप हजारो साल तप किया !
We would provide the information such places of Uttarakhand here where Rishi Munies had done long-2 penance to get salvation and in public interest.
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M S Mehta
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
GANGOTRI
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पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18 वी शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया। ऐसी मान्यता है कि देवी भागीरथी ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया। ऐसी भी मान्यता है कि पांडवो ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने परिजनो की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान किया था। यह पवित्र एवं उत्कृष्ठ मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। दर्शक मंदिर की भव्यता एवं शुचिता देखकर सम्मोहित हुए बिना नही रहते।
शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। यह दृश्य अत्यधिक मनोहार एवं आकर्षक है। इसके देखने से दैवी शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। पौराणिक आख्यानो के अनुसार, भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओ को फैला कर बैठ गए और उन्होने गंगा माता को अपनी घुंघराली जटाओ में लपेट दिया। शीतकाल के आरंभ में जब गंगा का स्तर काफी अधिक नीचे चला जाता है तब उस अवसर पर ही उक्त पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते है।
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
BAGESHWAR -
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This is the sacred land where Markandey Rishi did a long penance. Please go through the story .
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सरयू नदी के तट पर बसे बागेश्वर धाम को उत्तराखंड का काशी कहा जाता है|इस तीर्थ की महिमा का वर्णन कर पाना किसी के लिए सम्भव नही है | सरयू के तट पर इस तीर्थ पर भक्तो को मुह मागा वरदान मिल जाता है ऐसा विश्वास किया जाता है |यहाँ पर की गई स्तुति व्यर्थ नही जाती और मन वंचित कामना पूरी होती है|ऐसा प्राचीन समय से कहा जाता है| सदियों से ऋषि मुनियों की तपस्थली रही इस पावन नगरी का पुराणों में भी वर्णन मिलता है |
पुराणों के अनुसार जब भोलेशंकर भगवान शिवशंकर अपनी पत्नी पार्वती के साथ यहाँ पर पधारे तो वह कोई संगम न देखने से मायूस हो गए | यहाँ पर बताते चले की तत्कालीन समय में यहाँ पर गोमती नदी बहती थी जिसके तट पर लखनऊ बसा है | संगम हेतु शिवशंकर भगवान ने वशिस्ट को आदेश दिया की वह यहाँ पर सरयू नदी को उतरे| आदेश का पालन करते हुए वशिस्ट मुनि सरयू लाने चल दिए | लेकिन ऐसा प्रसंग मिलता है की जब वह वापस लौट रहे थे तो बागेश्वर में कार्केंदेस्वर पर अचानक सरयू नदी पर अवरोध आ गया क्युकी नदी के प्रवाह मार्ग पर मार्कंडेय ऋषि का आश्रम था | मुनि का धयान भंग हो जाने से वशिस्ट शाप के डर से काफी दुखी हुए|
कहा जाता है तब वशिस्ट ने शिवशंकर भगवान का स्मरण किया और भोलेनाथ की शरण में जाकर उनसे सहायता मांगी |शंकर ने बाघ और पार्वती गाय का रूप धारण कर मार्कंडेय ऋषि के सामने उतरने का संकल्प किया |दोनों उनके सामने प्रकट हुए| बाघ और गाय के द्वंद युद्ध को देखकर मार्कंडेय ऋषि का तप भंग हो गया और वह अपना आसन छोड़कर गौ माता की रक्षा को दौडे| इसी दौरान सरयू को मार्ग मिल गया | मारकंडेश्वर की उस शिला को आज भी उन्ही के नाम से जाना जाता है| सरयू के आगे बढते मार्कंडेय ऋषि को शिवशंकर भगवान् और उनकी पत्नी पार्वती ने दर्शन दिए| मार्कंडेय ऋषि ने ही इस स्थान का नाम "व्यग्रेश्वर " रखा जो आगे चलकर बागेश्वर हुआ |
इस पावन बागेश्वर की बागनाथ नगरी की महिमा बड़ी निराली है| यहाँ पर आज व्याघ्रः अर्थात बाघ के रूप में शिवशंकर भोलेनाथ भगवान् का स्मरण किया जाता है | इस तीर्थ का वर्णन इस धारा का कोई प्राणी नही कर सकता |धार्मिक मान्यताओ के मुताबिक इस धारा पर दाह संस्कार करने से मरे व्यक्ति को सवर्गकी प्राप्ति होती है | बागनाथ की स्थापना "कत्यूर और चंद" राजाओ के शासन में हुई|ऐसा माना जाता है की चंद वंश के "रुद्रचंद" के बाद रजा "लक्ष्मी चंद" ने १६०२ में बाघ्नाथ मन्दिर जीर्णोधार कर उसको वृहत रूप प्रदान किया | छोटे शिव मन्दिर ने लक्ष्मी चंद के प्रयासों से ही विशाल रूप ग्रहण किया | यह मन्दिर स्कन्द पुराण के मानसखंड में सम्पुण निर्माण कथा और गाथाओ के समेटे हुए है|यही नही बागनाथ के विषय में बहुत सारी लोक कथाये भी प्रसिद्ध है | राजुला मालूशाही में भी बागनाथ के प्रसंगों का वर्णन मिलता है |
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
मुनि की रेती (Which is in Garwal reason of Uttarkahand)
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शालीग्राम वैष्णव ने उत्तराखंड रहस्य के 13वें पृष्ट पर वर्णन किया है कि रैम्या मुनि ने मौन रहकर यहां गंगा के किनारे तपस्या की । उनके मौन तपस्या के कारण इसका नाम मौन की रेती तथा बाद में समय के साथ-साथ यह धीरे-धीरे मुनि की रेती कहलाने लगा।
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
प्राचीन आदि बद्रीनारायण शत्रुघ्न मंदिर (Where Lord Ram did Tyasya)
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प्राचीन मंदिर पौराणिक एवं ऐतिहासिक रुप से मुनि की रेती के लिए एक प्रमुख स्थल है। यह दो मंजिला पार्किंग के नजदीक नव घाट के पास स्थित है। यही वह स्थान है जहां से प्राचीनकाल में कठिन पैदल चार धाम तीर्थ यात्रा शुरु होती थी।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान राम एवं उनके भाई लंका में रावण के साथ युद्ध में हुई कई मृत्यु के पश्चाताप के लिए उत्तराखंड आए तो भरत ने ऋषिकेश में, लक्ष्मण ने लक्ष्मण झुला के पास, शत्रुघ्न ने मुनि की रेती में तथा भगवान राम ने देव प्रयाग में तपस्या की। यह माना जाता है कि मंदिर के स्थल पर ही शत्रुघ्न ने तपस्या की।
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