Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां
Devbhumi Uttarakhand - ऎसे ही नही कहते है उत्तराखंड को देव भूमि
Devbhoomi,Uttarakhand:
YE BHI SHIRF UTTARAKHAND MAIN HI HOTA ISILIYE ISE DEVBHOOMI UTTARAKHAND KAHA JAATAA HAI
[youtube]http://www.youtube.com/watch?v=UOAsQHLsrH8&feature=related
Devbhoomi,Uttarakhand:
गेंदी का खकोटी मेला
देवभूमि ऐसे ही नहीं कहते हैं उत्तराखंड को ये हैं उत्तराखंड में मनाये जाने वाला मेला जिसकी शुरुआत पांडवों से ही हुयी है !
इस मेले की परम्परा पाण्डवों से जुड़ी है। मानना है कि महाभारत काल में राजा पाण्डु श्राद्ध तर्पण हेतु यज्ञ करवाता था। विधान के अनुसार गेंदी (मादा गेंडा) की खकोटी (खाल) खीचने का प्रावधान है। गेंदी को पाने के लिए पाण्डवों को कई दिन नागमल से युद्ध करना पड़ा था । बाद में अर्जुन गेंदी पर अपने धनुष के प्रहार कर मारने में सफल हो जाता है। इसी में पाण्डु के श्राद्ध तर्पण का विधिवत् समापन होता है।
इसी परम्परा को पौड़ी के समीप सते गांव के लोग आज भी बनाए रखे हैं। मेले में पांच युवक पाण्डव बनते हैं, एक युवक नागमल और एक युवती नागमती की भूमिका अदा करती है। मेले के आयोजन से 3 दिन पूर्व रात को देवी-देवताओं को अवतारित कराया जाता है। ढोल दमाऊ की ताल पर लोग रात भर चौपुला व झुमैलो नृत्य करते है।
इस उत्सव के अन्तिम दिन वैशाखी को दिन भर घर-घर जाकर पारम्परिक गीत गाए जाते हैं। पारम्परिक ढोल नगाड़ों के साथ नृत्य करते हुए कलाकार गांव के देवी मन्दिर में जमा होते है। काफी देर तक नृत्य के माध्यम से युद्ध की भंगिमाएँ अदा करते हैं। नागमती बनी युवती के गोद में गेंदी का प्रतीक होता है, जिसे कद्दू या लौकी से बनाया जाता है।
नागमती गेंदी को पांचों पाण्डवों से बचाने का प्रयास करती है और पाण्डव अस्त्रों से प्रहार का अभिनय करते हैं। पाण्डवों के प्रहार के साथ ही नृत्योत्सव का समापन होता है। यह उत्सव बसन्त पंचमी से वैशाखी तक चलता है।
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कण्वाश्रम कोटद्वार उत्तराखंड
गढ़वाल जनपद में कोटद्वार से १४ किमी दूर शिवालिक पर्वत श्रेणी के पाद प्रदेश में हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्तिथ कण्वाश्रम ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दिर्ष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है!
पुन्य सलिला मालिन के तट पर स्तिथ यह आश्रम चक्रवर्ती सम्राट भरत (जिनके नाम पर भारतवर्ष का नाम रखा गया है ) की शैशव किर्डास्थली दुष्यंत शकुन्तला की प्रणय स्थली,मह्रिषी कण्व,गोतम और विश्वामित्र की तपोभूमि तथा कविकुल शिरोमणि महकवि कालिदास के महाकाब्य "अभिज्ञान शाकुंतलम" का प्रेरणा स्रोत है !
पुरातत्वा वेताओं के अनुसार इस क्षेत्र में मालिनी -सभ्यता के प्रतीक स्वरूप १५०० साल पूर्व भाबी मंदिर एवं आश्रम थे !महाकवि कालिदास इसे किसलय प्रदेश के रूप में ब्यक्त करते हैं !
अभिज्ञान शाकुनतम में कण्वाश्रम का परिचय इस प्रकार है "एस कण्व खलु कुलाधिपति आश्रम " धार्मिक तथा तिर्थ्तन की दिर्ष्टि से कण्वाश्रम की गौरभशाली पौराणिक गाथा तथा मालिन का गंगा सदिर्स्य महत्व रहा है !
तत:सर्वे कण्वाश्रम गत्वा,बदरीनाथ क्षेत्र के तत:!
तपेशु सर्वेषु स्नान चैतर्म यथाविधि तत :!
Devbhoomi,Uttarakhand:
प्राचीनकाल से ही मानशखंड तथा केदारखंड की यात्राएं श्रधालुओं द्वारा पैदल संपन्न की जाती थी हैद्वार गंगाद्वार से कण्वाश्रम,महावगढ़,ब्यासघाट,देवप्रयाग होते हुए चारधाम यात्रा अनेक कष्ट सहकर पूर्ण की जाती थी !स्कन्द पुराण केदारखंड के ५७ वें अध्याय में इस पुन्य क्षेत्र का उल्लेख निम्नत किया गया है !
कण्वाश्रम समारम्य याव नंदा गिरी भवेत !
यावत क्षेत्रम परम पुण्य मुक्ति प्रदायक !!
सन १९५५ में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सम्पूर्नान्द के प्रयासों से कण्वाश्रम का जीर्णोद्वार किया गया था !वर्तमान में गढ़वाल मंडल विकास निगम कण्वाश्रम विकास समिति तथा साश्कीय प्रयासों से इस स्थल की उचित देख-रेख होती है !भरत स्मारक के साथ-साथ यहाँ पुरातविक महत्व की अनेक मूर्तियाँ सुरक्षित हैं !
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dev Nitrya
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