Author Topic: Do you know this Religious Facts About Uttarakhand- उत्तराखंड के धार्मिक तथ्य  (Read 27933 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 दोस्तों,

उत्तराखंड के धरती देवी देवताओ की धरती रही है, यहाँ पर कई देवताओ ने अवतार लिया है, यहाँ महादेव ने सती पार्वती से विवाह किया है !

There are many facts which you might not be knowing about Uttarakhand. We will provide exclusive religious facts related to Uttarakhahnd Devbhoomi

Hope you would also share the related information here.

Regards,

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मन्सार (जहाँ अंतिम बार सीता माता धरती में धरती में समाई थी)
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सीता माता अंतिम बार धरती में धरती में समाई थी! वे जगह है उत्तराखंड के पौडी जिले के संसार (falswara) में है! जहाँ हर साल एक मेला भी लगता है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Triyuginarayan Temple - Place of Shiva and Parvati Marraige
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Triyuginarayan Temple (Sanskrit: त्रियुगी-नारायण) is a Hindu temple located in the Triyuginarayan village in Rudraprayag district, Uttarakhand. it is said that Lord Shiva and Parvati Mata performed Marriage here.



Akhand Dhuni temple.

A special feature of this temple is a perpetual fire, that burns in front of the temple. The flame is believed to burn from the times of the divine marriage.[3] Thus, the temple is also known as Akhand Dhuni temple.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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BHAGWAAN GANESH KO JAHAN HAATHI KA SIR SE JIWIT KIYA GAYA - GAURI KUND
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This place is also associated with the legend of how Ganesha acquired his elephant head. While bathing in the kund, Goddess Parvati fashioned Ganesha from the soap suds on Her body, breathed life into Him and placed Him at the entrance as Her guard. Lord Shiva happened to arrive at the spot suddenly and He was stopped by Ganesha. Indignant at this affront, Shiva cut off Ganesha's head and Parvati was inconsolable. She insisted that the boy be brought back to life and Shiva took the head of a wandering elephant and placed it on Ganesha's body. Parvati had Her son back and Ganesha acquired the persona by which He is known all over the Hindu world since then.


This place is in Rudraprayag Distt of Uttarakhand

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भगवान् विष्णु को प्राप्त हुआ था यही पर सूर्यदर्शनचक्र
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कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मंदिर : यह श्रीनगर का सर्वाधिक पूजित मन्दिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र मिला था भगवान् शंकर से!

कार्तिक महीने (अक्टूबर-नवम्बर) में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन कमलेश्वर महादेव मंदिर एक बड़े मेले का ... कमलेश्वर मंदिर से संबद्ध अन्य प्रसिद्ध उत्सव होता है

MORE DETAILS
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यह श्रीनगर का सर्वाधिक पूजित मंदिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र प्राप्त करने के लिये भगवान शिव की आराधना की। उन्होंने उन्हें 1,000 कमल फूल अर्पित किये (जिससे मंदिर का नाम जुड़ा है) तथा प्रत्येक अर्पित फूल के साथ भगवान शिव के 1,000 नामों का ध्यान किया। उनकी जांच के लिये भगवान शिव ने एक फूल को छिपा दिया। भगवान विष्णु ने जब जाना कि एक फूल कम हो गया तो उसके बदले उन्होंने अपनी एक आंख (आंख को भी कमल कहा जाता है)चढ़ाने का निश्चय किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान कर दिया, जिससे उन्होंने असुरों का विनाश किया।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नैना देवी मंदिर, नैनीताल
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नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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NANDA RAAT JAAT HELD AFTER EVERY 12 YRS - WORLD BIGGEST RELIGIOUS JOURNEY
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Nanda Devi Raj Jaat is organized once in 12 years. The Jaat starts from Nauti village near Karnprayag and goes up to the heights of Roopkund and Homekund with a four horned sheep. After the havan - yagna is over, the sheep is freed with decorated ornaments, food and clothing’s and the other offerings are dischared. People also celebrate the annual Nanda Jaat. Though in the Johar region there is no tradition of Nanda Raj Jaat but the worship, dance and the ritual of collecting Bramhakamal (it is called Kaul Kamphu) is part of Nanda festivals.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अनसूइया माता ने बनाया था ब्रह्म, विष्णु एव महेश को बालक
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यहां पर अनसूइया नामक एक छोटा सा गांव है जहां पर भव्य मंदिर है। मंदिर नागर शैली में बना है। ऐसा कहा जाता है जब अत्रि मुनि यहां से कुछ ही दूरी पर तपस्या कर रहे थे तो उनकी पत्नी अनसूइया ने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए इस स्थान पर अपना निवास बनाया था। कविंदती है कि देवी अनसूइया की महिमा जब तीनों लोकों में गाए जाने लगी तो अनसूइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को विवश कर दिया। पौराणिक कथा के अनुसार तब ये त्रिदेव देवी अनसूइया की परीक्षा लेने साधुवेश में उनके आश्रम पहुंचे और उन्होंने भोजन की इच्छा प्रकट की। लेकिन उन्होंने अनुसूइया के सामने पण (शर्त) रखा कि वह उन्हें गोद में बैठाकर ऊपर से निर्वस्त्र होकर आलिंगन के साथ भोजन कराएंगी। इस पर अनसूइया संशय में पड गई। उन्होंने आंखें बंद अपने पति का स्मरण किया तो सामने खडे साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खडे दिखलाई दिए। अनुसूइया ने मन ही मन अपने पति का स्मरण किया और ये त्रिदेव छह महीने के शिशु बन गए। तब माता अनसूइया ने त्रिदेवों को उनके पण के अनुरूप ही भोजन कराया। इस प्रकार त्रिदेव बाल्यरूप का आनंद लेने लगे। उधर तीनों देवियां पतियों के वियोग में दुखी हो गई। तब नारद जी कहने पर वे अनसूइया के समक्ष अपने पतियों को मूल रूप में लाने की प्रार्थना करने लगीं। अपने सतीत्व के बल पर अनसूइया ने तीनों देवों को फिर से पूर्व में ला दिया। तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई।


This place is in Chamoli Distt of Uttarakhand.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 डोईवाला :  लक्ष्मण ने भी यहीं प्रायश्चित किया था। (Dehradoon)

भगवान दत्तात्रेय के 2 शिष्यों की निवास भूमि है डोईवाला। यही नहीं, भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने भी यहीं प्रायश्चित किया था।

यहां प्रचल‍ित कहानी के अनुसार, योगियों और संतों के महान गुरु भगवान दत्तात्रेय के 84 शिष्य थे, जिन्हें भगवान ने शिक्षा और अपनी शक्ति दी। इनमें से चार शिष्य देहरादून इलाके में ही बस गए।

बाद में इन चारों के निवास स्थान (लक्ष्मण सिद्ध, कालू सिद्ध, मानक सिद्ध और मंदू सिद्ध) सिद्ध स्थान के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनमें से दो लक्ष्मण सिद्ध और कालू सिद्ध डोईवाला क्षेत्र में स्थित हैं।

ऐसी मान्यता है कि भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ब्रह्म हत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए “लक्ष्मण सिद्ध” आए थे।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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श्रीनगर, उत्तराखंड :

हिन्दुओं के पौराणिक लेखों में इसे श्री क्षेत्र कहा गया है जो भगवान शिव की पसंद है। किंवदन्ती है कि महाराज सत्यसंग को गहरी तपस्या के बाद श्री विद्या का वरदान मिला जिसके बाद उन्होंने कोलासुर राक्षस का वध किया। एक यज्ञ का आयोजन कर वैदिक परंपरानुसार शहर की पुनर्स्थापना की। श्री विद्या की प्राप्ति ने इसे तत्कालीन नाम श्रीपुर दिया। प्राचीन भारत में यह सामान्य था कि शहरों के नामों के पहले श्री शब्द लगाये जांय क्योंकि यह लक्ष्मी का परिचायक है, जो धन की देवी है।

 

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