Author Topic: Do you know this Religious Facts About Uttarakhand- उत्तराखंड के धार्मिक तथ्य  (Read 27953 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Kukuchhina
=========

There is ahead of Dwarahaat called Kukuchhina. It is said during the exile of Pandavas. A dog followed Pandava then this mountain was named "Kukuchhina.

The word Kuku is derived from Kukuar.. In local language Dog is called Kukur there.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

MAHA KAVI KALI DAS BORN IN UTTARAKHAND
======================================

गुप्तकाशी/ ऊखीमठ (रुद्रप्रयाग)। महाकवि कालिदास की जन्मस्थली कविल्ठा!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

क्या आप जानते है!

राजा भरत के नाम से हमारा देश का नाम भारत पड़ा था!राजा भरत के जनम स्थली उत्तराखंड के कोटद्वार के समीप कालागढ़ी नामक स्थान पर हुवा था! यह स्थान. मुख्य कोटद्वार शहर से १७ किलोमीटर आगे है! 

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 669
  • Karma: +4/-2
कुमायू के अल्मोरा जिले मैं दूनागिरी एक पर्वत हैं जिसमें संजीविनी बूटी अभी भी है ऐसा लोगो का विस्वास है कहते हैं की जब हनुमान जी को हिमालय पर्वत पर संजीविनी पहचानी नहीं गए तो वो पुरे पर्वत को ही उठा लाये उसका एक टुकड़ा दूनागिरी के रूप में वहां पर गिर गया उसमें भी संजीविनी बूटी विद्यमान है अगर आज भी कोई सुसेन वैद्य मिल जाय तो संजीविनी बूटी पहचानी जा सकती है

सत्यदेव सिंह नेगी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 771
  • Karma: +5/-0
आधुनिक सुषेन वैध्य हैं न आचार्य बालकृष्ण जी महाराज बाबा रामदेव जी के पार्टनर

Pawan Pahari/पवन पहाडी

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 115
  • Karma: +1/-0
 ऐसे तो पता नहीं कितने वैद्ध पड़े है  बाबा रामदेव जैसे और बालकृष्ण जैसे.

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
देहरादून को महाभारत कालीन गुरु द्रोणाचार्य की तपस्थली माना जाता है। शहर से कोई ३-४ कि०मी० दूरी पर टपकेश्वर महादेव का मन्दिर है, ऐसा माना जाता है कि यहीं पर गुरु द्रोण ने शिवजी आराधना की। यहां पर गुफा से पानी टपक क शिवलिंग पर गिरता रहता है। ऐसा माना जाता है कि माता-पिता के तपस्या में लीन रहने पर अश्वश्थामा को जब भूख लगी और वे रोने लगे तो महादेव ने इस गुफा में दूध टपकाना शुरु कर दिया। कालान्तर में दूध की जगह से पानी गिरने लगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
रुद्रनाथ मंदिर में मिला था नारद को संगीत ज्ञान

          रुद्रप्रयाग। जिला मुख्यालय के अलकनंदा व मंदाकिनी के संगम पर स्थित   प्राचीन रुद्रनाथ मंदिर धार्मिक दृष्टि से अपना विशिष्ट महत्व रखता है।   भगवान शिव की स्थली होने के साथ ही यह देव ऋषि नारद के सौ वर्षो तक तपस्या   का गवाह स्थल भी है। यहीं पर भगवान शिव ने संगीत ज्ञान के बाद नारद को वीणा   प्रदान की थी।
 अलकनंदा व मंदाकिनी के संगम स्थल रुद्रप्रयाग को स्कंद पुराण के   केदारखंड में पांच मुख्य स्थान माया क्षेत्र हरिद्वार, कुब्जा क्षेत्र   ऋषिकेश, देव क्षेत्र देवप्रयाग, श्री क्षेत्र श्रीनगर में से प्रमुख स्थान   दिया गया है। यहां संगम स्थल पर स्थिति रुद्रनाथ मंदिर कई पौराणिक   मान्यताओं को समेटे हुए हैं। केदारखंड में लिखा गया है कि भगवान शिव ने   माता पर्वती के सती हो जाने पर विरह में वर्षो तक स्तुति की थी और यहां पर   उनके अंश्रू भी गिरे, जिससे इसका नाम रुद्र पड़ा तथा प्रयाग जुड़ने से   रुद्रप्रयाग हो गया। वहीं रुद्रनाथ मंदिर देवर्षि नारद की संगीत शिक्षा का   गवाह भी है। यहां पर सौ वर्षो तक भगवान नारद ने शिव की तपस्या की थी, जिसके   बाद शिव ने यहां पर उन्हें दर्शन दिए। नारद ने संगीत सीखने का वर मांगा   जिस पर शिव ने उन्हें पूरा संगीत ज्ञान प्रदान किया और खुश होकर वरदान के   रुप में महति नामक वीणा प्रदान की थी। आज भी संगम स्थल पर नारद शिला स्थित   है। श्रावण मास में यहां पर रोजना भक्तों की भीड़ लगी रहती है। आज भी   प्रतिदिन लोग भारी संख्या में रुद्रनाथ मंदिर में जाकर भगवान शिव का   जलाभिषेक करते हैं। कहा जाता है कि यहां पर श्रावण मास में मन से शिव भक्ति   करने पर हर मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर के मंहत धर्मानंद का कहना है कि   रुद्रनाथ मंदिर धार्मिक क्षेत्र में अलग स्थान रखता है। यह स्थान भोले   बाबा की स्थली है तथा नारद ने यहां पर संगीत ज्ञान प्राप्त किया था।   उन्होंने बताया हर वर्ष श्रावण मास में मंदिर में भारी संख्या में   श्रद्धालु पहुंचते हैं।
   
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6603154.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Centuries old (about 12th century) Trident (Trishul) about 5 ft., in the   Gopinath Temple courtyard at Gopeshwar.  It is believed that it is made   of about 8 different metals, and any kind of wheather has no effect on   it till date. Even the forceful wind is unable to uproot it. As per   locals, the trident was fixed at this place when Lord Shiva threw it at   Kamdeva to kill hi
    photo                                              Gopinath

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
          श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली  रही सेम मुखेमलम्बगांव (टिहरी)। घने   जंगलों के बीच समुद्रतल से करीब नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सेममुखेम   में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर हर साल मेला आयोजित होता है। पुराणों   के मुताबिक यह स्थल श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली भी रहा है।
 जिला मुख्यालय टिहरी से 175 किलोमीटर दूरी पर स्थित यह स्थल धार्मिक   एवं आध्यात्मिक शान्ति का अनूठा केन्द्र है। किंवदंती है कि द्वापर युग में   कृष्ण जन्म के बाद भागवत गीता के 18 वें अध्याय में इस तीर्थ का उल्लेख   किया गया है कि यमुना नदी पर एक कालिया नाग वास करता था, जिससे यमुना नदी   का जल दूषित होने के साथ-साथ यमुनावासियों के लिए यमुना के दर्शन बड़े   दुर्लभ हो गए थे। तब भगवान ने यमुना वासियों के दुख दर्द को समझते हुए अपने   ग्वाल बाल साथियों के साथ यमुना तट पर गेंद खेलने का बहाना बनाया तथा गेंद   को जानबूझकर यमुना नदी में फेंक दिया। गेंद लाने के बहाने श्रीकृष्ण ने   यमुना में छलांग लगाकर उस कालिया नाग के सिर पर जा बैठे। श्रीकृष्ण ने   कालिया नाग को यमुना छोड़ने को कहा, तो उसने कहा कि वह उन्हें कोई दूसरा   स्थान बता दें, जहां पर वह रह सके, क्योंकि उसने कोई अन्य स्थान नहीं देखा   है। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण कालिया नाग को लेकर सेम मुखेम में पहुंचे,   जहां पर उन दिनों अहंकारी शासक गंगू रमोला का शासन था। जनता गंगू रमोला के   उत्पीड़न से काफी परेशान थी। भगवान श्रीकृष्ण ने गंगू रमोला के आतंक से   लोगों को भी मुक्ति दिलाई थी। माना जाता है कि तभी से जन्माष्टमी के अवसर   पर सेममुखेम में हर वर्ष मेला आयोजित होता है। इस मेले में दीन गांव,   घंडियाल, सेमवाल गांव, मुखमाल, खंबाखाल, कंडियाल गांव के ग्रामीणों के   अलावा दूर-दूर के लोग भी पहुंचते हैं।


Source : Dainik Jagran

   

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22