पौड़ी गढ़वाल, जागरण कार्यालय: कोट विकासखंड का मनसार मेला संस्कृति व धर्म का अनूठा समावेश है। यह मेला हर साल मंगसीर माह की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। देवल मंदिर से ढोल दमाऊ, भंकोर आदि वाद्य यंत्रों के साथ देव यात्रा निकलती है।
मान्यता है कि सीता माता ने एक समय यहां निवास किया। यह मेला उनकी याद में मनाया जाता है। मंडल मुख्यालय से 20 किमी दूरी पर ब्लाक कोट के पलसाड़ी गांव में पिछले 50 वर्ष से अधिक समय से मां सीता का मनसार मेला आयोजित किया जाता है। पहले मेले में कम लोग आया करते थे, लेकिन आज मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि मेले में दो बार आने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। मेले हर वर्ष मंगसीर मास की द्वादशी को आयोजित होता है।
मां सीता का फलसाड़ी में मायका, देवल में ससुराल और कोटसाड़ा में ननिहाल माना जाता है। मां सीता के नाम से ही ब्लाक कोट की सितोन्स्यूं पट्टी का नामकरण किया गया। जिस दिन मेले का आयोजन होता है उस दिन फलसाड़ी गांव के किसी व्यक्ति के सपने सीता माता दर्शन देती है और उन्हें अपने स्वरूप के बारे में बताती है।
दूसरे दिन जिस खेत में मां सीता का पत्थर निकलता है उस दिन खेत की दीवार पर पीपल का पेड़ उगता है और उसके पत्तों पर ओंस की बूंदे रहती हैं। इसके बाद देवल गांव से निशान ढोल दमाऊं के साथ निकलते है और देवल मंदिर से मां सीता के जयजय कारा होता है। फलसाड़ी गांव में निशांन पहुंचने के बाद के खेत में खुदाई होती है। जहंा मां सीता का एक पत्थर निकलता है। जिसके दर्शन का लोग बेसर्बी से इंतजार करते हैं। दर्शन करने के बाद श्रद्धालु बबलू का रेशे छिनते हैं और इसे प्रसाद के रूप में स्वीकार करते हैं। देवल गांव के अतुल उप्रेती बताते हैं कि मेला पचास वर्ष से अधिक समय से मनाया जाता है। मान्यता है कि सीता फलसाड़ी गांव के खेतों में समा गई थी और राम के समाने के समय पर उनके बाल पकड़े थे। इसीलिए मां सीता के दर्शन के बाद बबलू का रेशा खींचा जाता है। पंडित वीरेन्द्र प्रसाद पांडेय बताते हैं देवल गांव में सीता माता ससुराल होने के के कारण यहां से निशान जाते हैं।
(Source - Dainik Jagran