हजारों लोगों की भीड़ महादेव की जय-जयकार करते हुए विशाल मंदिर की ओर प्रस्थान कर रही है। लोग श्री बिनसर महादेव के दर्शन को बेचैन हो रहे हैं। हालांकि मंदिर के द्वार सर्दी, गरमी और बरसात तीनों मौसमों में खुले रहते हैं, लेकिन उस दिन लोगों की भीड़ का अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल था। कुछ लोग हाथों में पूजा की थाल लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे, कुछ नंगे पांव तेजी से कदम बढ़ाते हुए मंदिर की ओर जा रहे थे, तो कुछ लोग महादेव की भक्ति भावना में लीन होकर नाच रहे थे।
फिर अचानक मंदिर का मेन गेट खुला और शिवलिंग से परदा हटाया गया। अब तक अपने महादेव के दर्शन के लिए खड़ी भक्तजनों की भीड़ अधीर होने लगी थी। वे महिलाएं जो कि काफी समय से हाथ में जल लेकर खड़ी थीं, धीरे-धीरे जल चढ़ाने लगीं। सभी महिलाएं रंगीन पिछौड़ा ओढ़े हुए थीं। यह दृश्य देखने लायक था।
कुछ समय बाद लंबी दाढ़ी-मूछों और गेरुए रंग के वस्त्र धारण किये हुए एक महात्मा शिवलिंग के चक्कर लेने लगे। उनके पीछे-पीछे सारे भक्त महादेव की जय-जयकार करते हुए फेरे ले रहे थे।
आज श्रीमद् भागवत की कथा का भण्डारा था। इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा भीड़ अधिक थी। लाखों श्रद्धालु बिनसर महादेव की पूजा-अर्चना कर अपने मंगलमय भविष्य की कामना कर रहे थे। महादेव के भण्डारे के प्रसाद के लिए अमीर-गरीब आपस में बिना भेद-भाव किये जमीन पर बैठे थे।
यह भक्तिपूर्ण दृश्य श्री बिनसर महादेव के मंदिर का है। श्री बिनसर महादेव का मंदिर अल्मोड़ा जिले की पर्यटन नगरी रानीखेत से केवल 14 किमी दूर स्थित है। यह घने जंगलों में बाज बुरांस, चीड़ तथा देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ एक सुगम्य स्थल है। मंदिर सफेद पत्थरों से बनाया गया है।
यहां के शांत वातावरण, प्राकृतिक सौंदर्य और शिव की महिमा को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। यह शिव मंदिर कभी एक छोटे से शिवालय के नाम से जाना जाता था लेकिन आज वही शिवालय विशाल शिव मंदिर बन चुका है। इसके पीछे एक प्रचलित कथा यह है कि यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था। एक बार मनिहार नाम के कम बुद्धि वाले एक ग्वाले ने अपनी कुल्हाड़ी से उस पर वार कर दिया। ऐसा उसने इसलिए किया क्योंकि उसकी एक गाय रोज संध्या काल में उस पत्थर पर आती थी। वहां गाय के थनों से अपने आप दूध की धाराएं निकलकर उस पत्थर पर गिर जाती थीं। एक दिन जब मनिहार ने यह दृश्य देखा तो इसी पत्थर को गाय के दूध न देने का दोषी मान कर अपनी कुल्हाड़ी से प्रहार किया। पत्थर का टुकड़ा अलग हो गया और अचानक क्षतिग्रस्त हिस्से से रक्त की धारा बहने लगी। इस घटना को लगभग 500 साल हो चुके हैं, लेकिन इस विशाल शिवलिंग में प्रहार के कारण एक जगह से भंग होने का निशान आज भी है।
श्री बिनसर महादेव के विशाल शिव मंदिर में महादेव स्वर्गाश्रम, गीता भवन, दत्तात्रेय मंदिर, काल भैरव मंदिर, पूजा गृह, यज्ञशाला, धर्मशालाएं, व्यास मंच, महारा की धूनी आदि सम्मिलित हैं। मंदिरों में सुन्दर मूर्तियां प्रतिष्ठापित की गयी हैं। गीता भवन के ऊपर संपूर्ण कलाओं से युक्त भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए दर्शाये गए हैं। संपूर्ण रथ के साथ घोड़ों की सुन्दर कलाकृतियां, अत्यंत कुशलता से बनायी गई हैं। गीता भवन के अन्दर श्रीमद् भागवत गीता के सभी अट्ठारह अध्याय मूल श्लोक, अर्थ, प्रसंग व चित्रों के साथ अंकित किए गए हैं। कुछ भूमिगत कक्ष भी एकांत साधकों के लिए र्निमित हैं। ब्रह्मलीन महंत शरणगिरि की स्मृति में आज भी एक गुरुकुल विालय चल रहा है।
बिनसर महादेव अब श्री बिनसर महादेव स्वर्गाश्रम के नाम से उत्तर भारत का प्रसिद्ध आस्था स्थल बन चुका है। वर्ष भर चलने वाले र्धमिक आयोजनों में यहां लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। बिनसर महादेव शिव के चमत्कार से ही झाडि़यों में छिपा यह शिवलिंग आज विशाल मंदिर का रूप ले चुका है। बिनसर एक रमणीय स्थल भी है। यहां कई फिल्मों और धारावाहिकों की शूटिंग भी हुई है।