Author Topic: Famous Temples Of Bhagwati Mata - उत्तराखंड मे देवी भगवती के प्रसिद्ध मन्दिर  (Read 125825 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
आपका दिन माता के इन विभिन्न नामों के स्मरण के साथ शुभ होवे....
मेरे प्रोफाइल चित्र में नजर आ रहे रहस्यमयी स्थान के बारे में आप जरूर जानना चाह रहे होंगे।
यह चित्र माता के देवभूमि उत्तराखण्ड में ही मौजूद 'भद्रकाली' स्वरुप के स्थान के हैं, जहाँ माता भद्रकाली वैष्णो देवी की तरह माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली के त्रि-पिंडी स्वरूप में साथ विराजती हैं। इस स्थान के बारे में इस लिंक पर विस्तार से पढ़ सकते हैं @ नवीन समाचार @ https://navinsamachar.wordpress.com/2016/01/17/bhadrakali/
भद्रकालीः जहां वैष्णो देवी की तरह त्रि-पिंडी स्वरूप में साथ विराजती हैं माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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वरदानी माता भगवती

पिथौरागढ़ – चंडाक मोटर मार्ग पर वरदानी मंदिर स्थित है जो माता भगवती का है. इस मंदिर के ठीक नीचे बजेटी गाँव बसा है. इस मंदिर में माता भगवती अपने कई गणों के साथ विराजमान है. बताया जाता है कि गजेन्द्र बहादुर थापा व भागीरथी थापा ने इस मंदिर कि स्थापना की थी. उन्हें माता भगवती ने स्वप्न में दर्शन देकर अपने यहाँ होने के प्रमाण दिए थे. इस मंदिर में देवलाल जाति के लोग पुजारी होते हैं. बजेटी गाँव के लोग माता भगवती की ही आराधना करते हैं. विषुवत संक्रांति को मंदिर में माता का डोला उठता है जिससे मंदिर की परिक्रमा की जाती है. पिथौरागढ़ शहर से यह मंदिर देखा जा सकता है. भव्य मंदिर का निर्माण मैग्नेसाईट फैक्ट्री के मालिक जे. के. झुनझुनवाला ने करवाया था. मंदिर के मख्य द्वार पर दो शेर व छत पर आठ शेर स्थापित किये गये हैं. यहाँ से पिथौरागढ़ शहर की सुन्दरता का आनंद उठाया जा सकता है. हर वर्ष गांववासी हिलजात्रा का आयोजन करके माता का आशीर्वाद लेते हैं.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bhagati Temple - Jarti District Bageshwar Uttarakhand



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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**पाषाण देवी मैय्या नैनीताल**
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नैनीताल में स्थित माँ पाषाण देवी के बारे में कहा जाता है कि सच्चे मन से पूजा करने पर यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। इससे माता में भक्तों की अटूट श्रद्धा है। मंदिर की स्थापना कुमाऊं के पहले कमिश्नर जीडब्ल्यू ट्रेल ने करवाई थी। सन् 1823 में जब कुमाऊं कमिश्नर ट्रेल कुमाऊं के अस्सी साला भूमि बंदोबस्त के लिए नैनीताल पहुंचे। तो उन्होंने ठंडी सड़क पर गुजरते समय एक गुफा से घंटी की आवाज सुनी। साथ चल रहे हिंदू पटवारी से पाषाण देवी मंदिर स्थापना के लिए कहा। इसके बाद से मंदिर अस्तित्व में आया।
मन्दिर स्थापना के बाद एक अंग्रेज अफसर यहां से गुुजर रहा था। कुछ लिखने के लिए उसने माता की मूर्ति में कालिख पोत दी। तब तमाम कोशिशों के बावजूद उसका घोड़ा आगे नहीं बढ़ा। इसके बाद उसे गलती का एहसास हुआ और स्थानीय महिलाओं के सहयोग से उसने माता को सिंदूर का चोला पहनाया। तब घोड़ा आगे बढ़ा। इसके बाद से यहां पर माँ का श्रृंगार सिंदूरी चोले से किया जाता है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार व हर नवरात्र पर मां को चोली पहनाने की परंपरा है।
दूर-दूर से लोग माता के दरबार में आकर मन्नतें मांगते हैं। पाषाण देवी मंदिर की विशेषता यह है कि झील के पत्थर में उनकी कुदरती आति बनी है और इसमें पिंडी के रूप में माता के नौ रूप हैं। माँ के इन्हीं नौ रूपों की पूजा एक साथ करने श्रद्धालु दूर- दूर से आते हैं। पाषाण देवी माता का अभ्युदय कब हुआ इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। लेकिन कहा जाता है कि माता की पादुकाएं नैनी झील में झील के भीतर हैं। इसलिए झील के जल को कैलास मानसरोवर की तरह पवित्र माना जाता रहा है। इस नदी के पानी को लोग घर भी लेकर जाते हैं। माना जाता है कि इस नदी के पानी को घर में रखने से घर में सुख शांति बनी रहती है। इसलिए लोग हर साल बड़ी संख्या में यहां आते हैं और जल भरकर ले जाते हैं।
पहाड़ों में गाय के संतान देने पर नये दूध से देवों का अभिषेक करने की परंपरा है। ऐसे देवता ‘बौधांण देवता’ कहे जाते हैं। लेकिन नैनीताल संभवतया अकेला ऐसा स्थान है जहां नया दूध एवं घी, दही, मक्खन व छांछ जैसे दुग्ध उत्पाद बौधांण देवता के बजाय बौधांण देवी के रूप में पाषाण देवी को चढ़ाये जाते थे, और आज भी ग्रामीण लोग पाषाण देवी की इसी रूप में पूजा करते हैं ।
पाषाण देवी की महिमा अपरमपार है । माँ दुर्गा के वाहन शेर यहां पर कई बार दिन में भी घूमता मिल जाता है। इतना ही नहीं बिना किसी को नुकसान पहुंचाये अचानक आंखों से ओझल भी हो जाता है। कहते हैं अगर आपके मन में पाप हो तो वह आपको नुकसान भी पंहुचा सकता है। लेकिन आज तक इस तरह की कोई घटना वहां नहीं हुई है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jivan Pathak
 
बागेश्वर जिले के भद्रकाली गांव में रचा-बसा प्राचीन भद्रकाली मंदिर प्रसिद्ध है। यहां गुफाओं से गुजरती भद्रेश्वर गंगा के ऊपर स्थित शिव प्रतिमा और उसके ऊपर स्थित माता का मंदिर देवभूमि के कण-कण में देवताओं का वास होने का आभास दिलाता है। कहा जाता है कि यहां दो सौ मीटर लंबी गुफा में माता की सवारी बाघ भी रहता है, जिसकी गर्जना यहां अक्सर सुनाई देने के लोग दावे करते हैं। गुफा में जैसे-जैसे अंदर की ओर प्रवेश करते हैं, विशाल पत्थरों में बाघ जैसी ही आकृतियां दिखने लगती हैं। कुमाऊं के दूर-दराज क्षेत्र में स्थित इस शक्तिपीठ के बारे में अब से दस वर्ष पूर्व तक गांव सहित आसपास के लोग ही जानते थे। भद्रकाली गांव तक अब सड़क मार्ग पहुँचने से यहां भक्त आसानी से पहुँचने लगे हैं।
नवरात्रों में माता भद्रकाली के इस मंदिर का बहुत महत्व है। मान्यता है कि अष्टमी को रात-भर मंदिर में अखंड दीपक जलाने से मनवांछित कामना पूर्ण होती है। कहतें हैं कि जब प्रजापति दक्ष द्वारा शिव का अपमान किये जाने पर पार्वती सती अग्निकुंड में कूदकर सती हो गई थीं, क्रोधित शिव पार्वती के शरीर को आकाश मार्ग से कैलाश की ओर ले जाने लगे, तभी भयानक अनिष्ठ की आशंका से भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इस बीच माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गये। मां के चरण और ग्रिअंग(गले से नीचे का हिस्सा) गिरने से यह स्थान भद्रकाली कहलाया। इसका वर्णन श्रीमद्भागवत, बाल्मिकी रामायण, सप्तसती जैसे पुराणों में इसका वर्णन मिलता है। यहां गुफा का वर्णन गर्भ ग्रह के रूप में किया गया है। मंदिर के प्राकृतिक स्वरूप की रचना अनादिकाल से हुई मानी जाती है।
वहीं अन्य मान्यतानुसार देवी भद्रकाली को ब्रह्मचारिणी होने के कारण सभी देवी-देवताओं में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। किवदंती है कि त्रेता युग में नागों के देव खैरीनाग ने मां भद्रकाली से विवाह का प्रस्ताव रखा था। माता ने आदिकाल से ब्रह्माचारिणी होने के कारण इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस अपमान को सहन ना कर पाने पर नागदेवता खैरीनाग ने गंगा का अविरल प्रवाह माता के पीछे प्रवाहित कर दिया। कहा जाता है कि इस स्थान के समीप माता ने विशाल गुफा में शरण ली और यहां रह कर नौ माह तक तपस्या की। इसके परिणामस्वरूप उनकी माया से गुफा में मौजूद पानी आगे बढ़ गया। आगे चलकर गुफा से होकर गुजरती गंगा को भद्रेश्वर गंगा का नाम दिया गया है। तभी से विशाल गुफा के ऊपर से मंदिर की स्थापना की गई। स्कंद पुराण के अनुसार तभी से नाग देवता खैरीनाग की पूजा नहीं की जाती है। कहते हैं कि इस स्थान पर आदि गुरू शंकराचार्य के चरण पड़े थे। उन्होंने यहां पूर्व में प्रचलित बलि प्रथा को बंद करवाया। अन्य मान्यतानुसार गुफा में मौजूद विशाल जलकुंड को शक्तिकुंड कहा जाता है, जहां माता स्नान करती हैं। शक्तिकुंड को पूर्व में दूध से भरा हुआ बताया जाता था। कहते हैं कि एक साधु द्वारा इसकी खीर बनाकर खाने से कुंड साधारण पानी में तब्दील हो गया। आज भी घोर-अंधेरी गुफा में स्थित इस कुंड को तैर कर पार नहीं किया जाता है। शक्तिकुंड के उस पार माता की सवारी शेर का निवास कहा जाता है, जो ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप के बाद अक्सर सुनाई पड़ता है। गुफा के दूसरे हिस्से में विशाल शिव लिंग की आकृतियां नीचे की ओर लटकी हुई अवस्था में नजर आती हैं। यहां सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ भी मौजूद हैं। अब यहां शिव की मूर्ति स्थापित की गई है। इसके आगे ही माता भद्रकाली की शक्ति पीठ स्थित है। गुफा के प्रवेश द्वार पर विशाल पत्थर पर बना झरना यहां आने वाले श्रद्धालुओं की थकान मानो चुटकी में दूर कर देता है।माँ के दर्शन एक बार जरूर करें ,जय भद्रकाली मैय्या तेरी सदा जयजयकार हो ।

Bhishma Kukreti

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प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर ( खोह नदी क निकट, दुगड्डा )
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सरोज शर्मा गढ़वाली पाॅप लिटरेचर संख्या- 208
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उत्तराखंड थैं देवभूमि क नाम से जंणे जांद, मान्यता च यख देवताओ क वास च ,यै कारण देवभूमि पर कैकि बुरी नजर नि लगदी, इन त सैकड़ो मंदिर छन जौंकि अलग अलग मान्यता च पर पौढी गढ़वाल जिला क कोटद्वार से बस 13 किलोमीटर दूर एक इन मंदिर च जख माता रानी का दर्शन खुण शेर भि आंद, ब्वलेजांद शेर मंदिर मा माथा टेकिक चल जांद, कैथैं नुकसान नि पौंछान्द, कोटद्वार पौड़ी मोटर मार्ग पर कोटद्वार से 13 किलोमीटर दूर खोह नदी क किनरा समुद्र की सतह से 600 मीटर कि ऊंचै पर मुख्य मार्ग मा दुर्गा देवी मंदिर स्थित च, आधुनिक मंदिर सड़क क पास च पर प्राचीन मंदिर थोड़ा ताल 12 फीट लम्बी गुफा च जै मा शिवलिंग स्थित च, स्थानीय निवासि यै मंदिर मा बडी श्रद्धा भक्ती से देवी पूजन करदिन, ऊंक विश्वास च मां दुर्गा जीवन मा आण वला हर संकट से बचान्द, चैत्रीय और शरदीय नवरात्रो मा यख भक्त जनो क तांता लगद, यै दौरान श्रद्धालु भंडारा कु आयोजन भि करदिन, श्रावण मास क सोमवार और शिवरात्रि मा बडी संख्या मा लोग भगवान शंकर का जलाभिषेक करण कु अंदिन, यै अवसर मा देवी का दर्शन करणा भि नि भूलदिन, यख गुफा मा दीर्घकाल से निरंतर धूनी जलणी रैंद, ब्वलेजांद कि दुर्गा कु वाहन शान्त भाव से मां क दर्शन कैरिक लौट जांद, यख रैण वला महात्माओ पर वैल कभी कुदृष्टि नि डालि,
देवी मंदिर क निर्माण मा एक रोचक घटना छिपीं च,ब्वलेजांद कि मंदिर पैल छवटा आकार मा छाई, दुगड्डा कोटद्वार क बीच सड़क निर्माण मा बाधा आण क कारण ठेकेदार न भव्य मंदिर क स्थापना कैर फिर कार्य तेजी से सम्पन्न ह्वाई, मंदिर का आसपास हैरा भरा जंगल ताल नदी और किनारो मा विशाल चट्टान छन, जु ये कि सुन्दरता मा चार चांद लगंदिन, सप्ताहांत मा लोग यख पर्यटन हेतु भि अंदिन, मंदिर देखंण मा छवटू च,पर रमणीक स्थल म च गुफा मा जाणकि इजाजत नी च अगर आप माता राणि क दर्शन करण चंदौ और साथ मा प्राकृतिक अनुभव करण चंदौ त एक बार जरूर दुर्गा देवी मंदिर जावा, मंदिर से अगनै दुगड्डा कस्बा च और वख से कुछ किलोमीटर दूर लैंसीडौन च,इति


Bhishma Kukreti

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ज्वाल्पा  देवी सिध्द पीठ कु पौराणिक महत्व
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सरोज शर्मा-गढ़वाली पोपुलर  लिटरेचर-210
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उत्तराखंड का पौड़ी स्थित पौडी कोटद्वार मार्ग मा नयार नदी का तट पर स्थित ज्वालपा देवी सिध्द पीठ कु पौराणिक महत्व च,ऐ पीठ का बार मा प्रसिद्ध च कि यख आणवलों की मनोकामना पूर्ण हुंदिन,
ऐ सिध्द पीठ मा चैत्र और शारदीय नवरात्र मा विषेश पाठ कु आयोजन हूंद, ऐ मौका पर देश विदेश से श्रद्धालु पौंचदिन,
विषेश कैरिक कुमारी कन्यायें सुयोग्य वर की कामना से यख अंदिन,
ज्वालपा थपलियाल और बिष्ट जाती का लोगों की कुलदेवी च।
स्कंदपुराण का अनुसार, सतजुग मा दैत्यराज पुलोम कि पुत्री शची ल देवराज इन्द्र थैं पतिरूप मा पाणकु यख नयार नदी का किनर ज्वलपाधाम मा पार्वती की तपस्या कैर,
मां पार्वती न प्रसन्न ह्वै कि ज्वालेशवरी का रूप म दर्शन देकि मनोकामना पूर्ण कैर, ज्वाला का रूप मा दर्शन दीणक कारण ऐ स्थान कु नाम ज्वालपा प्वाड़।
देवी क ज्वाला क रूप मा प्रकट हूणका प्रतीक स्वरूप अखंड दीपक निरंतर प्रज्वलित रैंद। यै प्रथा यथावत रखणखुण प्रचीन काल से निकटवर्ती मवालस्यूं, घुड़दौडस्यूं, कफोलस्यूं, खातस्यूं, रिंगवाड़स्यूं, और गुराडस्यूं पट्टीयो का गौं से सरसों इकठ्ठा कैरिक मां क अखंड दीप प्रज्वलित रखणखुण तेल कि व्यवस्था करै जांद,
18 वीं शताब्दी मा गढ़वाल क राजा प्रद्युम्न शाह न मंदिर खुण 11 '82 एकड़ सिंचित भूमी दान कैर, ताकि यख तेल कि व्यवस्था हेतु सरसों क उत्पादन ह्वै सक, बोलै जांद कि यख आदि गुरू शंकराचार्य न भि मां की पूजा करि छै, मां न ऊंथै दर्शन भि दिन।
सिध्द पीठ ज्वालपा मंदिर काफी सुगम स्थान म च,
मंदिर का एक ओर मोटर मार्ग और दुसरी ओर नयार नदी बैणी च, ज्वालपाधाम पौड़ी से 33 किलोमीटर दूर कोटद्वार से 73 किलोमीटर दूर स्थित च सतपुली लगभग 17 किलोमीटर च।लोग दूर दूर से अपणि इचछाओ की पूर्ति खुण नवरात्र का मा एक विशेष पूजा कु अंदिन। पर्यटक विश्राम घर और धर्मशाला भि यख उपलब्ध छन


Bhishma Kukreti

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चौन्दकोट कु प्रसिद्ध मां दीबा मंदिर

सरोज शर्मा गढ़वाली पाॅप लिटरेचर-211
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मां दीबा मंदिर एक यन मंदिर च जख से सरया चौन्दकोट क्षेत्र की ( गढ़वाल कि 52 गढ़ो मे से एक) आस्था जुड़ी च। यी मंदिर जिला पौड़ी गढ़वाल क ब्लाक पोखड़ा का ग्राम झलपनि से लगभग आठ किलोमीटर खड़ी चढ़ै मा पहाड़ कि सबसे ऊंची चोटी मा स्थित च। ऐ जगा मा मां दीबा भगवती थैं रशूलाण दीबा भगवती क नाम से भि जणै जांद। ई एक इन मंदिर च जख रात कु नंगा पैर से चढ़ै हूंद। ऐ मंदिर से सरया क्षेत्र वासियों की अनेक मान्यता जुडीं छन।
मां दीबा मंदिर पुराण
ब्वले जांद कि उत्तराखंड मा गोरखाओ कु अत्याचार भौत बड़ ग्या छा। गोरखा अपण कुकर्मो क चरम पर छा ई लोगों का घौर मा चोरी डकैती और ऊंक गौशालाओ मा आग लगै दींद छाई, इतगा हि ना बल्कि छोटा छोटा नवजात बच्चों थैं ओखली मा कूट दींद छाई, ताकि आणवली पीढ़ी थैं खत्म कैर सकां, दीबा न तब ऐ स्थान मा अवतार ल्याई, जब गोरखाओ न पट्टी खाटली पर आक्रमण कैर वै समय मां दीबा न एक पुजरी का स्वीणमा ऐकि पहाड़ कि सबसे ऊंची चोटी म मंदिर बणाण क बोलि,
पुजारी न इन्नी कैर, यू काम असान नि छाई, यू यन्न स्थान च जख से चारों तरफ दूर दूर तक नजर प्वडदि छै पर ऐ स्थान थैं हर जगा से नि दिखै जा सकदु छाई।
ऐका बाद जब भी गोरखा क्षेत्र वासियों क दगड़ कुछ भि अन्याय करण जांद छा दीबा ऊंक स्वीणा मा आकि आगाह कैर दिंदी छै। आखिर अंत मा मां न पट्टी खाटली थैं गोरखाओ का आत्याचार से मुक्त करै। ब्वले जांद कि भौत पैलि मंदिर का पास एक इन डुंग छाई कि जै थैं कै भि दिशा मा घुमै दयाव वै दिशा मा बरखा ह्वै जांद छै। आज भि ऐ जगा मा दीबा मां कि पौराणिक मूर्ति स्थित च मूर्ती क ताल गुफा च जु अब ढकै ग्या ।
मां दीवा मंदिर पौंछणा कु सुगम मार्ग
मां दीवा मंदिर उत्तराखंड का पौड़ी जिला क ब्लाक पोखड़ा क अन्तर्गत आंद। यख जांणकु कोटद्वार ह्वै कि चौबटया खाल से अगनै झलपाणि गौं खुण निकलण पव्ड़द फिर कोटद्वार से संगलाकोटि, पोखड़ा, और गवणि गौं ह्वै कि झलपाणि पौंछिक दीवा कि पैदल यात्रा शुरू हूंद। यात्रा क दौरान ध्यान रखण च कि यख क्वी खाण पीण की व्यवस्था नी च। घौर बटिक ही वयवथा कैरिक जांण चैंद, लगभग एक किलोमीटर चढ़ै क बाद पाणि कु स्त्रोत आंद, जु फारू हूंद यानि कि प्यास बुझाई सकदौ,
यख सुबेर सुबेर क सूर्य देवता का दर्शन कि मान्यता च।
यै कारण मंदिर मा रात मा ही जयै जांद। यै जगा से देखेंण मा सूर्य का उदय हूण का वक्त सूर्य तीन रूप बदलदु च मई जून का मैना मंदिर जाणकु सबसे बेहतर मौसम च यख कड़कडी ढंठ पव्ड़द कम्बल लिजांण जरूरी च

Bhishma Kukreti

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द्वापर युग क सुखरौदेवी मंदिर
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सरोज शर्मा- गढ़वाली जन साहित्य 214
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देवभूमि उत्तराखंड क प्रवेश द्वार कोटद्वार मा लालढांग मार्ग, देवीरोड मा स्थित च माता सुखरौदेवी मंदिर। पौराणिक जनश्रुतियो क अनुसार जख सुखरौदेवी मंदिर च वै स्थान म द्वापर युग म महाराजा दुष्यंत द्वारा सर्व प्रथम मंदिर कि स्थापना करै ग्या। वै समय यी स्थान जंगल छाई ऐ स्थान मा वट और पीपल क युगल वृक्ष छा जै स्थान मा कण्वाश्रम जांणवला विश्राम करदा छा, ऐ कण्वाश्रम थैं महाराज भरत की जन्मस्थली मने जांद। समय क दगड़ बस्तियो क निर्माण हूंद ग्या और पेड़ कटदा गैन। ऐ स्थान मा लोगों न मंदिर क अवशेष दय्खिन त पूजा अर्चना करण लगिन।
प्राप्त जानकारियों क अनुसार द्वी छवट छवट आलों मा मूर्ती रखीं छैं जौंकि लोग पूजा करदा छा।
यी जानकारी भि मिल कि यख बाबा इन्द्र गिरी झोंपड़ी बणै क रैंद छा ऊं न एक महिला की सहायता से द्वी छवट छवट मंदिर बणै जु काफी जीर्ण शीर्ण ह्वै ग्या छाई ऐ मंदिर मा देवी क गर्भ गृह कटयां पत्थरों से बण्यू छाई, भैर कु प्रकोष्ठ ईंटो से निर्मित छा, गर्भ गृह से पता चलद कि गर्भ गृह ही पैल बण ह्वालु, धीरे धीरे मंदिर क उत्थान खुण समिती की स्थापना करै ग्या, स्थानीय नागरिको द्वारा मंदिर क उत्थान मा काफी योगदान किये ग्या, ऐ योगदान से ही धर्म शाला और पुस्तकालय कु भि निर्माण किये ग्या, लोगों की मंदिर मा अटूट श्रद्धा च, मंदिर मा दुर्गा, पार्वती, राधाकृष्ण, शिव और सब्या देवी देवताओं कि मनमोहक मूर्ति और चित्र लग्या छन, इति।


Bhishma Kukreti

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मां भुवनेश्वरी सिध्द पीठ सांगुड़ा
सरोज शर्मा क जनप्रिय लेखन श्रंखला

बिलखेत सतपुली,पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल क बिलखेत, सागुंडा स्थित मां भुवनेश्वरी सिध्द पीठ पौंछण खुण राष्ट्रीय राजमार्ग 119 पर कोटद्वार पौड़ी क मध्य कोटद्वार से लगभग 54 किलोमीटर और पौड़ी से 52 किलोमीटर कि दूरी म स्थित एक सतपुली पौंछण पव्ड़द, सतपुली से बांघाट, ब्यास चट्टी, देवप्रयाग, मार्ग म लगभग आठ किलोमीटर कि दूरी म प्राकृतिक सुन्दरता और भव्यता न परिपूर्ण सांगुड़ा नामक स्थान म मां भुवनेश्वरी क सिध्द पीठ स्थित च।
लोकश्रुतियो क अनुसार जब विदेशी आक्रमणकारियों न पूजा स्थान थैं अपवित्र और खंडित कैर त पांचो देवियों न वीर भैरव क दगड़ केदारखण्ड कि तरफ प्रस्थान कार,
मां आदिशक्ति, भुवनेश्वरी, मां ज्वालपा, मां बाला सुंदरी, मां बालकुंवरी, और मां राजराजेश्वरी अपण यात्रा क दौरान नजीबाबाद पौंछिन, नजीबाबाद वै समय भौत बड़ी मंडी हूंद छै, संपूर्ण गढ़वाल म यखी बटिक सामान जांद छा,
पौड़ी जनपद का मनियारस्यूं पट्टी ग्राम सैनार का नेगी बंधु नजीबाबाद सामान लीण कु अयां छा, थकान क कारण मां भुवनेश्वरी मातृ लिंग क रूप म लूणकि बोरी म प्रविष्ट ह्वै गैं, अपण अपण समान लेकि नेगी बंधु कोटद्वार दुगड्डा ह्वैकि सांगुड़ा पौंछिन, सांगुडा म भगवान सिंह नेगी न दयाख वैकि लूण कि बोरी म एक पिण्डी च जै थैं ऊन ढुंग समझिक चुटा द्या, रात्री म मां भुवनेश्वरी न नेगी थैं सुपिणां म दर्शन दीं और आदेश दयाई कि मातृलिंग थैं सांगुड़ा म स्थापित किए जा,
नैथाना गौं का श्री नेत्रमणि नैथानी थैं भि ई आदेश ह्वा, तत्पश्चात विधि-विधान से मंत्रोच्चार सहित मां कि पिंडी कि स्थापना सांगुड़ा म करै गै,
मंदिर क भूमि क बार मा मतभेद च कुछ बव्लदिन मंदिर कि भूमि नैथना गौं कि ही च,कुछ बव्लदिन ई भूमि रावतों की च।
खूबसूरत घाटी सांगुड़ा म स्थित श्री भुवनेश्वरी सिध्द पीठ क एक ओर नयार और दूसर ओर हरा भरा खेत और समणि पहाड़ियो क दृष्य अनुपम सौंदर्य प्रदान करद, गर्भ गृह छोड़िक मंदिर क जीर्णोद्धार 1981 तथा1983 म ह्वाई, ऐ मंदिर क पुजरी ग्राम सैली का सेलवाल छन,
मंदिर क प्रबंधन एवं व्यवस्था नैथानी जाति क लोग करदिन, श्री भुवनेश्वरी ग्राम नैथाना, धारी कुण्ड, बिलखेत, दैसंण, सैली, सैनार, गोरली, आदि गौं का प्रमुख मंदिर छन। मकर संक्रांति क दिन यख गिन्दी क मेला भि लगद, जु भौत प्रसिद्ध च, सिध्द पीठ क उचित प्रबंधन खुण वर्ष 1991 मा एक समिती कि स्थापना करै ग्या, जीर्णोद्धार क अलावा सौंदर्यीकरण खुण भि योजनाएं चलयै गैन।सरया साल दर्शनार्थ मंदिर खुलयूं रैंद, पर अगस्त से मार्च तक मनोरम वातावरण रैंद, मंदिर परिसर म श्रद्धालुओ खुण धर्मशाला कि व्यवस्था च, पर भोजन जलपान कि व्यवस्था अफ्वी करण पव्ड़द। मंदिर से आठ किलोमीटर दूर सतपुली बजार च वख होटल रेस्टोरेंट व ठैरणा कि व्यवस्था आराम से ह्वै जांद

 

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