Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Famous Temples Of Bhagwati Mata - उत्तराखंड मे देवी भगवती के प्रसिद्ध मन्दिर

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
आपका दिन माता के इन विभिन्न नामों के स्मरण के साथ शुभ होवे....
मेरे प्रोफाइल चित्र में नजर आ रहे रहस्यमयी स्थान के बारे में आप जरूर जानना चाह रहे होंगे।
यह चित्र माता के देवभूमि उत्तराखण्ड में ही मौजूद 'भद्रकाली' स्वरुप के स्थान के हैं, जहाँ माता भद्रकाली वैष्णो देवी की तरह माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली के त्रि-पिंडी स्वरूप में साथ विराजती हैं। इस स्थान के बारे में इस लिंक पर विस्तार से पढ़ सकते हैं @ नवीन समाचार @ https://navinsamachar.wordpress.com/2016/01/17/bhadrakali/
भद्रकालीः जहां वैष्णो देवी की तरह त्रि-पिंडी स्वरूप में साथ विराजती हैं माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
वरदानी माता भगवती

पिथौरागढ़ – चंडाक मोटर मार्ग पर वरदानी मंदिर स्थित है जो माता भगवती का है. इस मंदिर के ठीक नीचे बजेटी गाँव बसा है. इस मंदिर में माता भगवती अपने कई गणों के साथ विराजमान है. बताया जाता है कि गजेन्द्र बहादुर थापा व भागीरथी थापा ने इस मंदिर कि स्थापना की थी. उन्हें माता भगवती ने स्वप्न में दर्शन देकर अपने यहाँ होने के प्रमाण दिए थे. इस मंदिर में देवलाल जाति के लोग पुजारी होते हैं. बजेटी गाँव के लोग माता भगवती की ही आराधना करते हैं. विषुवत संक्रांति को मंदिर में माता का डोला उठता है जिससे मंदिर की परिक्रमा की जाती है. पिथौरागढ़ शहर से यह मंदिर देखा जा सकता है. भव्य मंदिर का निर्माण मैग्नेसाईट फैक्ट्री के मालिक जे. के. झुनझुनवाला ने करवाया था. मंदिर के मख्य द्वार पर दो शेर व छत पर आठ शेर स्थापित किये गये हैं. यहाँ से पिथौरागढ़ शहर की सुन्दरता का आनंद उठाया जा सकता है. हर वर्ष गांववासी हिलजात्रा का आयोजन करके माता का आशीर्वाद लेते हैं.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Bhagati Temple - Jarti District Bageshwar Uttarakhand


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
**पाषाण देवी मैय्या नैनीताल**
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नैनीताल में स्थित माँ पाषाण देवी के बारे में कहा जाता है कि सच्चे मन से पूजा करने पर यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। इससे माता में भक्तों की अटूट श्रद्धा है। मंदिर की स्थापना कुमाऊं के पहले कमिश्नर जीडब्ल्यू ट्रेल ने करवाई थी। सन् 1823 में जब कुमाऊं कमिश्नर ट्रेल कुमाऊं के अस्सी साला भूमि बंदोबस्त के लिए नैनीताल पहुंचे। तो उन्होंने ठंडी सड़क पर गुजरते समय एक गुफा से घंटी की आवाज सुनी। साथ चल रहे हिंदू पटवारी से पाषाण देवी मंदिर स्थापना के लिए कहा। इसके बाद से मंदिर अस्तित्व में आया।
मन्दिर स्थापना के बाद एक अंग्रेज अफसर यहां से गुुजर रहा था। कुछ लिखने के लिए उसने माता की मूर्ति में कालिख पोत दी। तब तमाम कोशिशों के बावजूद उसका घोड़ा आगे नहीं बढ़ा। इसके बाद उसे गलती का एहसास हुआ और स्थानीय महिलाओं के सहयोग से उसने माता को सिंदूर का चोला पहनाया। तब घोड़ा आगे बढ़ा। इसके बाद से यहां पर माँ का श्रृंगार सिंदूरी चोले से किया जाता है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार व हर नवरात्र पर मां को चोली पहनाने की परंपरा है।
दूर-दूर से लोग माता के दरबार में आकर मन्नतें मांगते हैं। पाषाण देवी मंदिर की विशेषता यह है कि झील के पत्थर में उनकी कुदरती आति बनी है और इसमें पिंडी के रूप में माता के नौ रूप हैं। माँ के इन्हीं नौ रूपों की पूजा एक साथ करने श्रद्धालु दूर- दूर से आते हैं। पाषाण देवी माता का अभ्युदय कब हुआ इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। लेकिन कहा जाता है कि माता की पादुकाएं नैनी झील में झील के भीतर हैं। इसलिए झील के जल को कैलास मानसरोवर की तरह पवित्र माना जाता रहा है। इस नदी के पानी को लोग घर भी लेकर जाते हैं। माना जाता है कि इस नदी के पानी को घर में रखने से घर में सुख शांति बनी रहती है। इसलिए लोग हर साल बड़ी संख्या में यहां आते हैं और जल भरकर ले जाते हैं।
पहाड़ों में गाय के संतान देने पर नये दूध से देवों का अभिषेक करने की परंपरा है। ऐसे देवता ‘बौधांण देवता’ कहे जाते हैं। लेकिन नैनीताल संभवतया अकेला ऐसा स्थान है जहां नया दूध एवं घी, दही, मक्खन व छांछ जैसे दुग्ध उत्पाद बौधांण देवता के बजाय बौधांण देवी के रूप में पाषाण देवी को चढ़ाये जाते थे, और आज भी ग्रामीण लोग पाषाण देवी की इसी रूप में पूजा करते हैं ।
पाषाण देवी की महिमा अपरमपार है । माँ दुर्गा के वाहन शेर यहां पर कई बार दिन में भी घूमता मिल जाता है। इतना ही नहीं बिना किसी को नुकसान पहुंचाये अचानक आंखों से ओझल भी हो जाता है। कहते हैं अगर आपके मन में पाप हो तो वह आपको नुकसान भी पंहुचा सकता है। लेकिन आज तक इस तरह की कोई घटना वहां नहीं हुई है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Jivan Pathak
 
बागेश्वर जिले के भद्रकाली गांव में रचा-बसा प्राचीन भद्रकाली मंदिर प्रसिद्ध है। यहां गुफाओं से गुजरती भद्रेश्वर गंगा के ऊपर स्थित शिव प्रतिमा और उसके ऊपर स्थित माता का मंदिर देवभूमि के कण-कण में देवताओं का वास होने का आभास दिलाता है। कहा जाता है कि यहां दो सौ मीटर लंबी गुफा में माता की सवारी बाघ भी रहता है, जिसकी गर्जना यहां अक्सर सुनाई देने के लोग दावे करते हैं। गुफा में जैसे-जैसे अंदर की ओर प्रवेश करते हैं, विशाल पत्थरों में बाघ जैसी ही आकृतियां दिखने लगती हैं। कुमाऊं के दूर-दराज क्षेत्र में स्थित इस शक्तिपीठ के बारे में अब से दस वर्ष पूर्व तक गांव सहित आसपास के लोग ही जानते थे। भद्रकाली गांव तक अब सड़क मार्ग पहुँचने से यहां भक्त आसानी से पहुँचने लगे हैं।
नवरात्रों में माता भद्रकाली के इस मंदिर का बहुत महत्व है। मान्यता है कि अष्टमी को रात-भर मंदिर में अखंड दीपक जलाने से मनवांछित कामना पूर्ण होती है। कहतें हैं कि जब प्रजापति दक्ष द्वारा शिव का अपमान किये जाने पर पार्वती सती अग्निकुंड में कूदकर सती हो गई थीं, क्रोधित शिव पार्वती के शरीर को आकाश मार्ग से कैलाश की ओर ले जाने लगे, तभी भयानक अनिष्ठ की आशंका से भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इस बीच माता के अंग जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गये। मां के चरण और ग्रिअंग(गले से नीचे का हिस्सा) गिरने से यह स्थान भद्रकाली कहलाया। इसका वर्णन श्रीमद्भागवत, बाल्मिकी रामायण, सप्तसती जैसे पुराणों में इसका वर्णन मिलता है। यहां गुफा का वर्णन गर्भ ग्रह के रूप में किया गया है। मंदिर के प्राकृतिक स्वरूप की रचना अनादिकाल से हुई मानी जाती है।
वहीं अन्य मान्यतानुसार देवी भद्रकाली को ब्रह्मचारिणी होने के कारण सभी देवी-देवताओं में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। किवदंती है कि त्रेता युग में नागों के देव खैरीनाग ने मां भद्रकाली से विवाह का प्रस्ताव रखा था। माता ने आदिकाल से ब्रह्माचारिणी होने के कारण इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस अपमान को सहन ना कर पाने पर नागदेवता खैरीनाग ने गंगा का अविरल प्रवाह माता के पीछे प्रवाहित कर दिया। कहा जाता है कि इस स्थान के समीप माता ने विशाल गुफा में शरण ली और यहां रह कर नौ माह तक तपस्या की। इसके परिणामस्वरूप उनकी माया से गुफा में मौजूद पानी आगे बढ़ गया। आगे चलकर गुफा से होकर गुजरती गंगा को भद्रेश्वर गंगा का नाम दिया गया है। तभी से विशाल गुफा के ऊपर से मंदिर की स्थापना की गई। स्कंद पुराण के अनुसार तभी से नाग देवता खैरीनाग की पूजा नहीं की जाती है। कहते हैं कि इस स्थान पर आदि गुरू शंकराचार्य के चरण पड़े थे। उन्होंने यहां पूर्व में प्रचलित बलि प्रथा को बंद करवाया। अन्य मान्यतानुसार गुफा में मौजूद विशाल जलकुंड को शक्तिकुंड कहा जाता है, जहां माता स्नान करती हैं। शक्तिकुंड को पूर्व में दूध से भरा हुआ बताया जाता था। कहते हैं कि एक साधु द्वारा इसकी खीर बनाकर खाने से कुंड साधारण पानी में तब्दील हो गया। आज भी घोर-अंधेरी गुफा में स्थित इस कुंड को तैर कर पार नहीं किया जाता है। शक्तिकुंड के उस पार माता की सवारी शेर का निवास कहा जाता है, जो ज्यादा मानवीय हस्तक्षेप के बाद अक्सर सुनाई पड़ता है। गुफा के दूसरे हिस्से में विशाल शिव लिंग की आकृतियां नीचे की ओर लटकी हुई अवस्था में नजर आती हैं। यहां सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ भी मौजूद हैं। अब यहां शिव की मूर्ति स्थापित की गई है। इसके आगे ही माता भद्रकाली की शक्ति पीठ स्थित है। गुफा के प्रवेश द्वार पर विशाल पत्थर पर बना झरना यहां आने वाले श्रद्धालुओं की थकान मानो चुटकी में दूर कर देता है।माँ के दर्शन एक बार जरूर करें ,जय भद्रकाली मैय्या तेरी सदा जयजयकार हो ।

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