Manila Devi Temple
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मा मानिला- यह मन्दिर बहुत ही पूराना ओर एतिहासिक है| अल्मोड,ा के पाली पछायू क्षेत्र में क‰यूरी राजा सारंग देव के प्रथम पुत्र विरम देव का शासन था। सन् 1488 में चन्द्रवंशी राजा किती–चन्द कुमायू पर अपना शासन की पिपासा से क‰यूरी राज्यों को नरसंहार का क‰लेआम से जीतते हुये, भिकियासैण पहुचकर लखनपुर ह्यविराट नगरी वत–मान चौखुटियाहृ पर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे कि लखनपुर के शासक विरमदेव को ज्ञात होन पर उन्होंने अपने सुख, सुविधा व स्वाभिमान की परवाह किये बिना बेकसुर प्रजा के क‰लेआम से बचने के लिये सन्धि करके, चंदराजा को अपनी प्रजा व राज्य सौंप दिया तब पाली जीता गया। तब यहां के शासक विरमदेव ने सन् 1488 में लखनपुर के किले की तज– पर सयणामानुर में किला बनाकर बसे फिर क‰यूरी कुलदेवी अगनेरी ह्यआग्नेय दिशा में स्थित होने सेहृ की तज– पर मानिला वन में मन्दिर बनाकर "मानिलादेवी" की स्थापना की।
"मां मानिलादेवी" जनश्रुति के आधार पर मां मानिलादेवी के प्राचीन मंदिर से करूणामयी मां के भक्तों के प्रति वा‰सल्य रूप में प्रकट होकर आवश्यक निदे–श देती थी। एक बार दूर प्रदेश से कुछ व्यापारी बैलों के कुछ जोड,े खरीदने के उ¬द्देश्य से यहां आए। उन्हें बैलों का एक जोड,ा बहुत पसंद आया परन्तु उन बैलों के मालिक ने उन्हें वे बैल नही दिये, प्रिय बैलों के न मिलने पर उन्होंने उस बैलों की जोडी को रात में चुराने का निश्चय किया। मां मानिला देवी ने रात में उन बैलों के मालिक को आवाज ह्यधादहृ से जगा दिया कि कुछ लोग तुम्हारे बैलों को चुराने आ रहे हैं। यह आवाज सुनकर, चोर व्यापारी वहा जाने कि हिम्मत नहीं जुटा पाये, इस घटना से उन व्यापारियों को मां की शक्ति का आभास हुआ जैसा कि उन्होंने पहले भी सुन रखा था तब उन्होंने मां की मूति– को अपने प्रदेश में ले जाने का निश्चय किया और मन्दिर से मूति– उखाडने लगे, परन्तु बहुत प्रय‰न करने पर भी वह मूति– उनसे नहीं उठी इसी खीचातानी में मूति– का हाथ टूट गया तब उन्होंने मूति– का हाथ ही लेकर अपने प्रदेश पश्चिम की ओर चले ही थे कि इस हस्त शिला के भार से वे एक के बाद एक हताश होते गये तब चारों व्यापारीयों ने मिलकर भी हाथ उठाने में धीरे–धीरे असफल होते गये, फिर उन्होंने क्षेत्र से खरीदे बैलों की जोडी से भी खिचवाने पर मां की हस्त शिला को मानिला शक्तिपीठ ह्यवत–मान मल्ली मानिला मन्दिरहृ से आगे न ले जा सके। तब से मां की यहां स्थापित होकर दोनों मन्दिरों में पूजा होती है परन्तु मां के प्र‰यक्ष दशी– निदे–शों से क्षेत्र के भक्त वंचित हो गये।