गंगा नदी के भूमि पर आने के विषय में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार राजा भगीरथ माता गंगा को अपनी प्रजा के सुख हेतू धरती पर लाना चाहता था. इसी उद्देश्य से उन्होनें अई वर्षों तक कठोर तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न होकर, देव ब्रह्माजी ने राजा को उनकी मनोकामना पूरी होने का आश्वासन दिया.
इस कामना के पूरे होने के मार्ग में सबसे बडी बाधा थी. की गंगा जी का वेग अत्यधिक है. उनके धरती पर अवतरण से भूमि फट जायेगी. और गंगा पाताल में समा जायेगी. ऎसे में गंगा का धरती पर आना व्यर्थ होगा. सभी देवों में इस विषय में गहन विचार कर यह निर्णय लिया कि गंगा का वेग केवल भगवान शिव ही संभाल सकते है.
समस्या का समाधान करते हुए, 'हे भागीरथ तुम्हें भगवान भोलेनाथ की तपस्या करनी चाहिए. भगवान रुद्र प्रसन्न हों, जाएं, तो इस समस्या का समाधान सरलता से हो जायेगा.
ब्रह्माजी के वचन सुनकर भगीरथ ने प्रभु भोलेनाथ की कठोर तपस्या की. भागीरथ की तपस्या से देव शिव प्रसन्न हुए और उन्होने कहा की मैं गंगे को अपने मस्तक पर धारण करके, सभी प्राणियों के कल्याण कार्य में तुम्हारी मदद करूंगा. देवी गंगा हिमालय राज की ज्येष्ठ पुत्री है.
गंगा को अपने वेग का अंहकार था. उन्होंने सोचा कि वे भगवान शंकर के मस्तक पर गिर, भगवान शंकर को लेकर सदैव के लिये पाताल लोक चली जायेगी. इस छुपी हुई दुर्भावना में कहीं न कहीं देवी का प्रेम भी था जो देवी गंगा मन ही मन भगवान शिव से करती थी.