घंटाकर्ण अज्ञातवास से लौटे मंदिर में विरामान
बदरीनाथ: सात माह तक अज्ञात स्थान पर रही घंटाकर्ण की मूर्ति को देश के अंतिम गांव माणा स्थित घंटाकर्ण मंदिर में स्थापित कर दिया गया है। मूर्ति स्थापना के बाद गांव के बारीदारों ने पूजा की। अब बदरीनाथ के कपाट बंद होने तक घंटाकर्ण अपने मूल मंदिर में भक्तों को दर्शन देंगे।
गौरतलब है कि जब श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं, उसी दौरान माणा गांव के ईष्ट देवता घंटाकर्ण के भी कपाट बंद कर दिए जाते हैं। कपाट बंद करने के बाद घंटाकर्ण के पश्वा भगवान घंटाकर्ण की मूर्ति अज्ञात स्थान पर छिपा देते हैं। पश्वा के अलावा ग्रामीणों तक को इस मूर्ति के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है। यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है। ग्रामीणों का मानना है कि कपाट बंदी के दौरान मूर्ति से कोई छेड़खानी न करे। इस लिहाज से इस मूर्ति को अज्ञात स्थान पर छिपाया जाता है।
नवंबर में जब भगवान बदरी विशाल के कपाट बंद होते हैं। उससे ठीक दो दिन पहले घंटाकर्ण के कपाट बंद कर मूर्ति छिपा दी जाती है। सात माह तक अज्ञातवास पर रहने के बाद जब श्री बदरीनाथ के कपाट खुलने हैं उसके बाद शुभ मुहूर्त पर मूर्ति निकालकर मंदिर में विराजित की जाती है। इस वर्ष शुक्रवार को शुभ मुहूर्त के अनुसार अज्ञात स्थान से भगवान घंटाकर्ण की मूर्ति निकालकर मूल मंदिर में स्थापित की गई।
इस वर्ष के गांव के चार बारीदारों ने ग्रामीणों को घंटाकर्ण का प्रसाद भी बांटा गया। घंटाकर्ण के पश्वा गंगा सिंह बिष्ट बताते हैं कि मूर्ति स्थापना के दौरान ग्रामीणों को विशेष प्रसाद वितरित किया जाता है।
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