इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने भेजा। जब कामदेव ने भगवान शिव पर अपने काम तीरों से प्रहार किया तो भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई। इससे क्रोधित होकर शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह त्रिशूल इस स्थान पर गड़ गया, जहां पर वर्तमान में गोपीनाथ जी का मंदिर स्थापित है।
इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा अनुसार यहां पर राजा सगर का शासन था। एक गाय जो प्रतिदिन इस स्थान पर आया करती थी तथा उसके स्तनों का दूध स्वतः ही यहां पर गिरने लगता। जब राजा को इस बात का पता चला तो संपूर्ण घटनाक्रम को देखकर राजा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। जहां गाय के दूध की धारा स्वतः ही बह रही थी, वहां पर एक शिव लिंग स्थापित था। इस पर राजा ने उस पवित्र स्थल पर मंदिर का निर्माण किया।
कुछ लोगों का कथन है कि जब राजा ने यहां मंदिर का निर्माण कार्य शुरु करवाया तो भूमि धंसने लगी। तब राजा ने यहां पर भैरव की स्थापना की जिसके फलस्वरूप मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हो सका। इस कथन के सत्यता का प्रमाण मंदिर के आस-पास की धंसी हुई जमीन से ज्ञात होता है। चमोली के गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मंदिर लोगों की आस्था एवं विश्वास का प्रमुख केंद्र है।
इस मंदिर में एक बहुत बडा़ त्रिशूल स्थापित है। त्रिशूल आज भी सही सलामत खड़ा हुआ है। इस त्रिशूल पर वहां के मौसम का तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ा और न ही इस त्रिशूल को उसके स्थान से हिलाया जा सका। इस मंदिर में शिवलिंग, परशुराम, भैरव जी की प्रतिमाएं विराजमान हैं।