गुरु नानक देव सिखों के प्रथम गुरु थे
गुरु नानक देवजी का प्रकाश (जन्म) 15 अप्रैल 1469 ई. (वैशाख सुदी 3, संवत 1526 विक्रमी) को तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ। मानवता की भलाई का संदेश के लिए गुरूजी ने देश-विदेश की कई यात्रएं की, जिन्हें इतिहास में उदासी का नाम दिया गया। तीसरी उदासी के समय गुरू नानक देव जी रीठा साहिब से चलकर सन् 1508 के लगभग भाई मरदाना जी के साथ सिद्धमत्ता नामक स्थान पहुंचे। उस समय यहाँ गुरु गोरक्षनाथ के शिष्यों का निवास हुआ करता था। नैनीताल और पीलीभीत के इन भयानक जंगलों में योगियों ने गढ़ स्थापित किया हुआ था, जिसका नाम गोरखमत्ता हुआ करता था। यहाँ एक पीपल का सूखा वृक्ष था। इसके नीचे गुरु नानक देव जी ने अपना आसन जमा लिया। कहा जाता है कि गुरु जी के पवित्र चरण पड़ते ही यह पीपल का वृक्ष हरा-भरा हो गया। रात्रि विश्रम के समय गुरुजी के शिष्य मरदाना जी के सिद्धों से आग मांगने पर सिद्धों ने मना कर दिया तब गुरूजी ने मरदाना को आदेश किया कि लकड़ियां एकत्र कर एक धूनी बनाएं। जब मरदाना जी ने सूखी लकड़ियों से एक धूनी बनाई तो वह स्वत: ही जल उठी। गुस्से में रात के समय योगियों ने अपनी योग शक्ति से आंधी और बरसात शुरू कर दी। परिणाम उल्टा हुआ। सिद्धों की सभी धूनियां बुझ गईं, लेकिन गुरु साहिब की धूनी जलती रही । आज भी वह जगह वहीं विद्यमान है और उस स्थान को धूनी साहिब के नाम से जाना जाता है। योगियों द्वारा की गई आंधी और बरसात के कारण पीपल का वृक्ष हवा में ऊपर को उड़ने लगा था। यह देखकर गुरु नानक ने पीपल के वृक्ष पर अपना पंजा लगा दिया। इससे वृक्ष वहीं पर रुक गया। आज भी इस वृक्ष की जड़ें जमीन से 15 फीट ऊपर देखी जा सकती हैं। जब सिद्धों द्वारा गुरुजी को उस स्थान से निकालने की सारी कोशिशें नाकाम हो गई, तब सिद्धों ने गुरु जी को धोखा देने के लिए एक गड्ढा खोद कर एक बच्चे को उसमें छिपा दिया और उस बच्चे से कहा कि जब हम पूछें कि यह धरती किसी है तो कहना-मैं सिद्धों की हूं। योगियों ने गुरुजी के सामने शर्त रखी कि धरती माता से पूछ लिया जाए कि यह जगह किसकी है। उस स्थान पर जाकर जब दो बार सिद्धों ने पूछा यह धरती किसकी है तो बच्चे ने जवाब दिया- मैं सिद्धों की हूं। जब तीसरी बार गुरूजी ने पूछा तो धरती से तीन बार आवाज़ आई-नानकमत्ता, नानकमत्ता, नानकमत्ता। तब से यह स्थान नानकमत्ता साहिब के नाम से प्रसिद्ध है एवं सिखों द्वारा इस जगह पर एक भव्य गुरुद्वारे का निर्माण कराया गया है। |
Source-http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/25-nov-2015-edition-Pithoragarh-page_8-25469-3294-140.html