Author Topic: Guru Gorakhnath Temple Champawat-गुरू गोरखनाथ बाबा मंदिर चम्पावत, जलती अखंड धूनी  (Read 31477 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चौरासी और नौ नाथ परम्परा
आठवी सदी में 84 सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के महायान के वज्रयान की परम्परा का प्रचलन हुआ। ये सभी भी नाथ ही थे। सिद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते थे। उनमें से प्रमुख जो हुए उनकी संख्या चैरासी मानी गई है।
 नौनाथ गुरु  1.मच्छेंद्रनाथ 2.गोरखनाथ 3.जालंधरनाथ 4.नागेश नाथ 5.भारती नाथ 6.चर्पटी नाथ 7.कनीफ नाथ 8.गेहनी नाथ 9.रेवन नाथ। इसके अलावा ये भी हैं 1. आदिनाथ 2. मीनानाथ 3. गोरखनाथ 4.खपरनाथ 5.सतनाथ 6.बालकनाथ 7.गोलक नाथ 8.बिरुपक्षनाथ 9.भर्तृहरि नाथ 10.अईनाथ 11.खेरची नाथ 12.रामचंद्रनाथ। ओंकार नाथ, उदय नाथ, सन्तोष नाथ, अचल नाथ, गजबेली नाथ, ज्ञान नाथ, चैरंगी नाथ, मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ। सम्भव है यह उपयुक्त नाथों के ही दूसरे नाम है। बाबा शिलनाथ, दादाधूनी वाले, गजानन महाराज, गोगा नाथ, पंरीनाथ और साईं बाब को भी नाथ परंपरा का माना जाता है। उल्लेखनीय है क्या भगवान दत्तात्रेय को वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदाय का माना जाता है, क्योंकि उनकी भी नाथों में गणना की जाती है। भगवान भैरवनाथ भी नाथ संप्रदाय के अग्रज माने जाते हैं।


नाथपंथ के दूसरे नाथों के नाम-

 कपिल नाथ जी, सनक नाथ जी, लंक्नाथ रवें जी, सनातन नाथ जी, विचार नाथ जी , भ्रिथारी नाथ जी, चक्रनाथ जी, नरमी नाथ जी, रत्तन नाथ जी, श्रृंगेरी नाथ जी, सनंदन नाथ जी, निवृति नाथ जी, सनत कुमार जी, ज्वालेंद्र नाथ जी, सरस्वती नाथ जी, ब्राह्मी नाथ जी, प्रभुदेव नाथ जी, कनकी नाथ जी, धुन्धकर नाथ जी, नारद देव नाथ जी, मंजू नाथ जी, मानसी नाथ जी, वीर नाथ जी, हरिते नाथ जी, नागार्जुन नाथ जी, भुस्कई नाथ जी, मदर नाथ जी, गाहिनी नाथ जी, भूचर नाथ जी, हम्ब्ब नाथ जी, वक्र नाथ जी, चर्पट नाथ जी, बिलेश्याँ नाथ जी, कनिपा नाथ जी, बिर्बुंक नाथ जी, ज्ञानेश्वर नाथ जी, तारा नाथ जी, सुरानंद नाथ जी, सिद्ध बुध नाथ जी, भागे नाथ जी, पीपल नाथ जी, चंद्र नाथ जी, भद्र नाथ जी, एक नाथ जी, मानिक नाथ जी, गेहेल्लेअराव नाथ जी, काया नाथ जी, बाबा मस्त नाथ जी, यज्यावालाक्य नाथ जी, गौर नाथ जी, तिन्तिनी नाथ जी, दया नाथ जी, हवाई नाथ जी, दरिया नाथ जी, खेचर नाथ जी, घोड़ा कोलिपा नाथ जी, संजी नाथ जी, सुखदेव नाथ जी, अघोअद नाथ जी, देव नाथ जी, प्रकाश नाथ जी, कोर्ट नाथ जी, बालक नाथ जी, बाल्गुँदै नाथ जी, शबर नाथ जी, विरूपाक्ष नाथ जी, मल्लिका नाथ जी, गोपाल नाथ जी, लघाई नाथ जी, अलालम नाथ जी, सिद्ध पढ़ नाथ जी, आडबंग नाथ जी, गौरव नाथ जी, धीर नाथ जी, सहिरोबा नाथ जी, प्रोद्ध नाथ जी, गरीब नाथ जी, काल नाथ जी, धरम नाथ जी, मेरु नाथ जी, सिद्धासन नाथ जी, सूरत नाथ जी, मर्कंदय नाथ जी, मीन नाथ जी, काक्चंदी नाथ जी।

गुरु गोरखनाथ सचमुच ही महान योगी थे ! अगर भक्तिसिद्धान्तवादी सन्तों की माने तो वे साक्षात षिव के ही योगी रूप में अवतार थे जो विषुद्ध योग को प्रश्रय देते थे ! जिन सप्त चिरंजीवी लोगो मंे सन्तों की गणना होती है  उनमें एक गुरु गोरखनाथ को उनके अनुयायी आज भी जीवित अवस्था में मानते हैं आंैर कुछ श्रद्धालु अपने  शुभनाम के पीछे नाथ जरुर लगाते हैं । उत्तराखंड  तथा नेपालमें नाथपंथी साधुओ की वंसावली है जिनको कानफटा या  कानफडा साधु कहते और गेरुए लिबास मेे होते है और  ये सभी साधुसम्प्रदाय से दीक्षित होते है और इसके बावजूद स्त्रीसम्पर्क करते है और बिना विवाह संस्कार के किसी भीस्त्री  को मोहित करके या प्रेमजाल लाकर उसको अपने आश्रय में ले लेते है ! परन्तु इनको अघोरी नाथ भी कहते जिनको  भगवान बुद्ध के अनुयायी  भी कहा जाताहै ! वास्तव में मत्स्येन्दनाथ से उत्पन्न पारसनाथ और नीमनाथ ने  आगे चलकर ऐसे वामावार को नाथपन्थ में प्रवेष करा जहां साधु सन्त तंत्रसाधना के नाम कामपिपासा शान्त करने के लिए औरतों मे आसक्त होगये और नाथपंथ की ष्षक्ति योगसाधना की वजाय भोगसाधना में प्रवृत हो गई ! सभी प्रकार के शरीर के योगसाधन आदि भी गुरु गोरखनाथ की और उनके पूज्य गुरु मत्स्येन्द्र नाथ की देन है जिनकी प्राथमिक तंत्रसाधना और वामामार्ग की सि़द्धि के लिए अनिवार्य !  इन्हीं योगसाधनाओं के अनेक आसन करने के लिए योगगुरु रामदेव भी स्वास्थ्य रक्षा के लिए आम आदमी को प्रेरित करते है।

http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/aasthaaurchintan/entry/gorakhnath_aur_grihsth_sadhu


Pawan Pathak

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गुरु नानक देव सिखों के प्रथम गुरु थे
 गुरु नानक देवजी का प्रकाश (जन्म) 15 अप्रैल 1469 ई. (वैशाख सुदी 3, संवत 1526 विक्रमी) को तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ। मानवता की भलाई का संदेश के लिए गुरूजी ने देश-विदेश की कई यात्रएं की, जिन्हें इतिहास में उदासी का नाम दिया गया। तीसरी उदासी के समय गुरू नानक देव जी रीठा साहिब से चलकर सन् 1508 के लगभग भाई मरदाना जी के साथ सिद्धमत्ता नामक स्थान पहुंचे। उस समय यहाँ गुरु गोरक्षनाथ के शिष्यों का निवास हुआ करता था। नैनीताल और पीलीभीत के इन भयानक जंगलों में योगियों ने गढ़ स्थापित किया हुआ था, जिसका नाम गोरखमत्ता हुआ करता था। यहाँ एक पीपल का सूखा वृक्ष था। इसके नीचे गुरु नानक देव जी ने अपना आसन जमा लिया। कहा जाता है कि गुरु जी के पवित्र चरण पड़ते ही यह पीपल का वृक्ष हरा-भरा हो गया। रात्रि विश्रम के समय गुरुजी के शिष्य मरदाना जी के सिद्धों से आग मांगने पर सिद्धों ने मना कर दिया तब गुरूजी ने मरदाना को आदेश किया कि लकड़ियां एकत्र कर एक धूनी बनाएं। जब मरदाना जी ने सूखी लकड़ियों से एक धूनी बनाई तो वह स्वत: ही जल उठी। गुस्से में रात के समय योगियों ने अपनी योग शक्ति से आंधी और बरसात शुरू कर दी। परिणाम उल्टा हुआ। सिद्धों की सभी धूनियां बुझ गईं, लेकिन गुरु साहिब की धूनी जलती रही । आज भी वह जगह वहीं विद्यमान है और उस स्थान को धूनी साहिब के नाम से जाना जाता है। योगियों द्वारा की गई आंधी और बरसात के कारण पीपल का वृक्ष हवा में ऊपर को उड़ने लगा था। यह देखकर गुरु नानक ने पीपल के वृक्ष पर अपना पंजा लगा दिया। इससे वृक्ष वहीं पर रुक गया। आज भी इस वृक्ष की जड़ें जमीन से 15 फीट ऊपर देखी जा सकती हैं। जब सिद्धों द्वारा गुरुजी को उस स्थान से निकालने की सारी कोशिशें नाकाम हो गई, तब सिद्धों ने गुरु जी को धोखा देने के लिए एक गड्ढा खोद कर एक बच्चे को उसमें छिपा दिया और उस बच्चे से कहा कि जब हम पूछें कि यह धरती किसी है तो कहना-मैं सिद्धों की हूं। योगियों ने गुरुजी के सामने शर्त रखी कि धरती माता से पूछ लिया जाए कि यह जगह किसकी है। उस स्थान पर जाकर जब दो बार सिद्धों ने पूछा यह धरती किसकी है तो बच्चे ने जवाब दिया- मैं सिद्धों की हूं। जब तीसरी बार गुरूजी ने पूछा तो धरती से तीन बार आवाज़ आई-नानकमत्ता, नानकमत्ता, नानकमत्ता। तब से यह स्थान नानकमत्ता साहिब के नाम से प्रसिद्ध है एवं सिखों द्वारा इस जगह पर एक भव्य गुरुद्वारे का निर्माण कराया गया है। |
Source-http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/25-nov-2015-edition-Pithoragarh-page_8-25469-3294-140.html

 

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