कैलाश-मानसरोवर यात्रा
तिब्बत में हिमालयी सीमा के उत्तर 6,740 मीटर ऊंचा शिखर कैलाश अवस्थित है। यहां चार महान धर्मों का आध्यात्मिक केंद्र है, और ये है: तिब्बती-बौद्ध धर्म, हिन्दू धर्म, जैन धर्म, तथा बौद्ध-पूर्व चेतन धर्म-बोनयो।
हिंदू कैलाश शिखर को पौराणिक मेरू शिखर मानते हैं जो ब्रह्मांड का धार्मिक केंद्र है तथा जिसके इर्द-गिर्द संपूर्ण सृष्टि घूमती है। प्राचीन लेखों में इसका वर्णन एक अलौकिक विश्व स्तंभ के रूप में है, जिसकी जड़ें पाताल में हैं तथा जिसकी ऊंचाई आकाश को छुती है। इसके नीचे पवित्र मानसरोवर प्रवाहित है जो ब्रह्मा के मस्तिष्क से जन्मा है। माना जाता है कि कैलाश की मात्र एक परिक्रमा से एक युग के पापों से मुक्ति मिल जाती है जबकि धार्मिक संख्या 108 निर्वाण सुनिश्चित करती है। मानसरोवर झील का व्यास 55 किलोमीटर एवं चौड़ाई 15 किलोमीटर है। इसके नीलमणि जैसे जल में अद्भुत आरोग्य-गुण हैं।
बौद्धों के लिए शिखर कैलाश कांग रींगपोक एक मूल्यवान बर्फीला-पर्वत की तरह है। उनके लिये यह शिखर एक विशाल प्राकृतिक तत्व है जो तंत्र विद्या का नाभि-केन्द्र है। बौद्धों का विश्वास है कि बुद्ध की माता रानी माया को देवों ने बुद्ध के जन्म से पहले यहां लाकर स्नान कराया था। उन्होंने लद्दाख, भूटान, नेपाल, मंगोलिया एवं तिब्बत के प्रत्येक कोने की कठिन यात्रा को यहां पहुंचने के लिए जैन धर्म में कैलाश शिखर को अष्टपद शिखर माना गया है। जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव को इसी शिखर पर आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त हुई थी। तिब्बत के बौद्ध-पूर्व बोनपो के विश्वासानुसार यह "नौकथा स्वास्तिका पर्वत" है जो संपूर्ण क्षेत्र का रहस्यमयी आत्मा है।
कब जायें:
मध्य-मई से मध्य-अक्टूबर के बीच कैलाश-मानसरोवर की यात्रा का सर्वोत्तम समय है। इस समय के दौरान मौसम प्रायः स्थिर और अवलोकन शक्ति सर्वोत्तम रहती है। दिन में तापमान ठंडा और रात में शून्य डिग्री से भी कम रहता है।
वहां कैसे पहुंचे:
यात्रा का संचालन उत्तरांखण्ड सरकार तथा कुमाऊं मंडल विकास निगम एवं विदेश मंत्रालय के सहयोग से करते हैं। लिपु लेख पास तक सभी व्यवस्था कुमाऊं मंडल विकास निगम करता है, जिसमें सभी रात्रि के दौरान विश्राम की व्यवस्था टीन की छाया में करना शामिल होता है। साथ ही जेनरेटर द्वारा बिजली की आपूर्ति, साधारण निरामिष भोजन, आदि की भी कीमत कुमाऊं मंडल विकास मंडल के पैकेज में शामिल हैं। सभी प्रकार की स्वास्थ्य एवं सुरक्षा सेवाएं भी उपलब्ध रहती हैं। उत्तराखण्ड प्रांतीय सुरक्षा दल तथा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस सभी आवश्यक सेवाएं तीर्थ यात्रियों को मुहैया कराती है। यात्रियों की सुविधा के लिए खच्चरों तथा कुलियों की भी व्यवस्था होती है।
लिपु लेख पास के बाद चीनी अधिकारी कार्यभार ग्रहण कर सभी आवश्यक सुविधाएं जुटाते हैं। परिक्रमा के दौरान चीनी अधिकारी भोजन का प्रबंध नहीं करते हैं। इसलिए यात्रियों को तिब्बत में अपना सामान ले जाना चाहिए।
भारत से यात्रा करने के लिए विदेश मंत्रालय के आवेदन कर्त्ताओं के बीच लगभग 200 यात्रियों का चयन ही प्रत्येक वर्ष हो पाता है। यात्रा के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवश्यकता स्वास्थ्य-सक्षमता प्रमाणपत्र की जांच होती है। जांच में खरा उतरना ही होता हैं जिसमें लगभग 20,000 फीट की कठिन पैदल यात्रा शामिल है। इस उद्देश्य के लिए यात्रियों की शारीरिक अवस्था की डॉक्टरी जांच दो दिनों तक होती है।
उसके बाद वीजा एवं विदेशी मुद्रा विनिमय की औपचारिकता पूरी करनी होती है। यात्रा के लिए यात्रियों को 500 अमरीकी डॉलर की व्यवस्था करनी होती है, जिसमें से 400 अमरीकी डॉलर चीनी अधिकारियों को दी जाती है, जिससे आवास, परिवहन, कुली आदि का खर्च पूरा होता है।
अवधि
दिल्ली से संपूर्ण यात्रा 32 दिनों की होती है जिसमें केवल प्रथम एक दिन तथा अंतिम दो दिन बस में बिताना पड़ता है। पूरी यात्रा विदेश मंत्रालय एवं कुमाऊं विकास मंडल निगम की देखरेख में पूर्ण होती है।
रास्ता
नयी दिल्ली से रास्ते में बस यात्रा एवं पर्वत की ऊंची चढ़ाई दोनों शामिल हैं। बस का रास्ता निम्न प्रकार का हैं -
दिल्ली-गजरौला-काठगोदाम-नैनीताल-भोपाली-अलमोड़ा-कौसानी-बागेश्वर-चौवाकाटी-डीडीहाट-धारचूला (जौलजीबि होकर) तवाघाट
पैदल यात्रा में निम्नलिखित शामिल हैं जो कई सुंदर मैदानों एवं रास्तों से गुजरते है:
तवाघाट-थानीदार-पॉगू-सोसा-नारायण आश्रम-शिरखा-रंगलिंग शिखर-सिमखोला-गाला-जिप्ती-मालपा-गुधी, गुजी - गारम्यांग-कालापानी-अविधाग-लिपु-लेखपास-पाला-टकलाकोट
परिक्रमा
कैलाश शिखर की परिक्रमा बारचेन से ही शुरू और यहीं समाप्त होती है। बारचेन से तीर्थयात्रियों की परिक्रमा लहाछु घाटी (देवनदी) में प्रवेश करती है जो पर्वत के पश्चिमी सिरे के नीचे का एक अद्भुत स्थल है। उत्तरी दिशा में पथ डोलमा पास (18,600 फीट) की चढ़ाई पर जाता है और फिर शीघ्रता से लहाम छू खापेर घाटी में तारचेन वापस आने से पहले उतर जाता है। कैलाश शिखर की यह परिक्रमा 52 किलोमीटर की होती है।
मानसरोवर की परिक्रमा हुरौर, चुगु एवं जैदी होकर लगभग 75 किलोमीटर की दूरी से गुजरती है।