उपेक्षा का दंश झेल रहा है पौराणिक मंदिर ऐड़द्यो साभार - दैनिक जागरण
जैंती (अल्मोड़ा) : बांज, बुरांश व देवदार के घने जंगल के मध्य पांडवों का पड़ाव रहा पौराणिक ऐड़द्यो रोड, पानी, बिजली के अभाव से सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। सात हजार फिट से अधिक ऊंचे इस धाम में शिवजी द्वारा दिया गया पाशुपत अस्त्र आज भी सुरक्षित है।
यही कारण है कि समस्त कुमाऊं के सैकड़ों श्रद्धालुओं का यहां वर्षभर तांता लगा रहता है। बावजूद इसके यहां बुनियादी सुविधाओं के अभाव में दर्शनार्थियों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। मान्यता है कि अपने अंतिम समय में पांडव कुछ काल तक यहां रहे। अपने अस्त्र-शस्त्र सहित धनुष, शंख, घंट, डमरु यहां गड़ गए। बाद में यहां एक मंदिर की स्थापना कर इन्हें पूजा जाने लगा। अर्जुन का स्थानीय नाम ऐड़ज्यू के के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यहां के लोक देवता के पुजारी रमेश चन्द्र भट्ट के अनुसार यहां स्थित काला लिंग एवं बरसीगाजा से मन्नतें मांगने तल्ला सालम, उच्यूर, बिशौद सहित चंपावत जनपद के चालसी पट्टी एवं नैनीताल के भीड़ापानी क्षेत्र से वर्षभर लोग आते रहते हैं। इसके अलावा सावन के महीने एवं नवरात्रियों में यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन दूर-दूर तक जलस्रोत न होने से यहां श्रद्धालुओं को भारी दिक्कत होती है। इसी तरह मोटर मार्ग से दूरी भी भक्तजनों की दुश्वारियां बढ़ाती है।
बहरहाल इस बात में कोई शक नहीं कि मध्य हिमालयी यह क्षेत्र पांडवों का आश्रय स्थल रहा। द्रोणागिरि, देवीधूरा, भीमा देवी, चित्रेश्वर सहित ऐड़द्यो धाम में पांडवों के स्मृति चिह्न इस बात के गवाह हैं। जरूरत है इनको सहेजकर रखने की। जिसके लिए सरकारों को जनभावना को ध्यान में रखते हुए अतिशीघ्र कदम उठाने की जरूरत है।